स्मयंतक मणि | Smayantak Mani | Movie | Tilak
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श्री कृष्ण जी अपने बाल समय से अपनी लीला का खेल करते आते हैं उन्होंने कैसे गोवर्धन पर्वत को अपनी उँगली पर उठा कर नगर के लोगों को भारी बारिश और तूफ़ान से बचाया। कैसे उन्होंने कंस के भेजे राक्षसों को मारा और अंत में कंस का भी वध कर दिया। कंस के ससुर जरासंध ने श्री कृष्ण को मारने के लिए बहुत कोशिश की उन्होंने जब मथुरा पर बार बार हमला किया तो श्री कृष्ण ने अपने मथुरा के लोगों के लिए द्वारिका का निर्माण कराया और अपने सभी नगर वासियों को वहाँ बसा दिया और जरासंध को धोका देकर स्वयं भी वहाँ से निकल गए जरासंध उन्हें मारा समझ अपने राज्य में वापस चला जाता है। श्री कृष्ण की पहली पत्नी रुक्मिणी थी जिसका हरण कर श्री कृष्ण उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेते हैं। उनकी दूसरी पत्नी का नाम था जमवंती और तीसरी पत्नी का नाम था सत्यभामा।
सत्यभामा और जामवंती का विवाह श्री कृष्ण से स्मयंतक मणि के कारण होता है।सत्यभामा अपने रूप के कारण अहंकार में रहती थी। सत्यभामा के अहंकार का कारण सत्यभामा के पिता सत्रहजित के पास धान की बरसाने वाली मणि थी जिससे प्रति दिन बीस मण सोना बरसता था। सत्रहजित की मणि को लेकर द्वारिका में चिंतन किया जाता है और उस मणि को राज कोश में जमा करवाने के लिए बातचीत होती है और इस निर्णय पर आते हैं की उसे समन्तक मणि राज कोश में जमा करवाने के लिए बुलाया जाए। अक्रूर के सत्रहजित को समझाते हैं लेकिन वो नहीं मानता। बलराम यह सुन क्रोधित होते हैं और उसे सजा देने के लिए चलने को तैयार होते हैं तो श्री कृष्ण बलराम को रोक देते हैं की वह उसकी समन्तक मणि सत्रहजित की है उसे उसी के पास रहना चाहिए। अगले दिन सत्रहजित का भाई समन्तक मणि को अपने साथ सुरक्षित रखने के लिए शिकार पर साथ ले जाता है जहां उसे जंगल में शेर मार देता है।
सत्यभामा की माँ सत्रहजित को समझती है की हमें समन्तक मणि को श्री कृष्ण को दहेज में देने और श्री कृष्ण को अपना जमाता बनाने के लिए कहती है। तभी वहाँ अपने भाई का अश्व वहाँ आ जाता है जिसे अकेले आता देख सत्रहजित और उसके साथी उसे ढूँढने निकल पड़ते हैं। जंगल में उन्हें उसके के खून से सने कपड़े मिलते हैं। सभी उसे देख यह तर्क देते हैं की ज़रूर द्वारिकाधीश ने ही उसे तो नहीं मरवा दिया और समन्तक मणि को ले गए। बलराम को जब श्री कृष्ण पर लगे आरोप के बारे में सुनाई पड़ता है तो वह क्रोधित हो उठता है। अक्रूर और सारतिके बलरमा को श्री कृष्ण से सलाह लेने के लिए कहते हैं।श्री कृष्ण बलराम, अक्रूर और सारतिके को समझाते हैं की हमें सत्रहजित के भाई प्रशंजित की मृत्य का सत्य ढूँढना चाहिए और उस मणि को ढूँढना होगा। ताकि श्री कृष्ण पर लगे कलंक को मिटाया जा सके।
श्री कृष्ण वन में जाते हैं और वहाँ प्रशंजित पर हुए हमले की जगह का निरीक्षण करते हैं तो उन्हें शेर के पंजो के निशान मिलते है, जिसका पीछा करते हुए वो सब एक गुफा के पास पहुँचते है। श्री कृष्ण अंदर जाते हैं और वहाँ एक शेर की लाश मिलती हैं। श्री कृष्ण जब आगे बढ़ते हैं तो उन्हें एक स्त्री को समन्तक मणि के साथ पाते हैं। वह स्त्री जामवन्त की पुत्री थी, जामवन्त से श्री कृष्ण उस मणि को वापस माँगते हैं लेकिन वह मना कर देता है। श्री कृष्ण और जामवन्त के बीच युद्ध शुरू हो जाता है और युद्ध में जामवन्त श्री कृष्ण से हार जाता है। जामवन्त श्री कृष्ण से हारने के बाद उन्हें बताते हैं की श्री राम ने उन्हें त्रेतायुग में कहा था कि मेरी द्वापरयुग में मिलने वासुदेव के रूप में आऊँगा। श्री कृष्ण उन्हें बताते हैं की मैं ही वासुदेव हूँ। जामवन्त उन्हें प्रणाम करते हैं। श्री कृष्ण जामवन्त से प्रसन्न हो वर माँगने के लिए कहते हैं। जामवन्त अपनी पुत्री जामवंती को स्वीकार करने के लिए श्री कृष्ण से आग्रह करते हैं।
श्री कृष्ण जामवंती को स्वीकार कर लेते हैं। श्री कृष्ण जामवंती को लेकर अपने साथ समन्तक मणि लेकर वापस द्वारिका आ जाते हैं। श्री कृष्ण उस मणि को लेकर अपने साथ सत्रहजित के पास जाते हैं और उन्हें उसकी मणि लौटा देते हैं। सत्रहजित श्री कृष्ण से उनपर लगे आरोपों को क्षमा माँगता है, और श्री कृष्ण को मणि भेंट करते हैं। सत्यभामा की माँ श्री कृष्ण से कहती हैं कि कृपया करके हमारी पुत्री सत्यभामा को भी पत्नी के रूप में स्वीकार करें।
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श्री कृष्ण जी अपने बाल समय से अपनी लीला का खेल करते आते हैं उन्होंने कैसे गोवर्धन पर्वत को अपनी उँगली पर उठा कर नगर के लोगों को भारी बारिश और तूफ़ान से बचाया। कैसे उन्होंने कंस के भेजे राक्षसों को मारा और अंत में कंस का भी वध कर दिया। कंस के ससुर जरासंध ने श्री कृष्ण को मारने के लिए बहुत कोशिश की उन्होंने जब मथुरा पर बार बार हमला किया तो श्री कृष्ण ने अपने मथुरा के लोगों के लिए द्वारिका का निर्माण कराया और अपने सभी नगर वासियों को वहाँ बसा दिया और जरासंध को धोका देकर स्वयं भी वहाँ से निकल गए जरासंध उन्हें मारा समझ अपने राज्य में वापस चला जाता है। श्री कृष्ण की पहली पत्नी रुक्मिणी थी जिसका हरण कर श्री कृष्ण उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेते हैं। उनकी दूसरी पत्नी का नाम था जमवंती और तीसरी पत्नी का नाम था सत्यभामा।
सत्यभामा और जामवंती का विवाह श्री कृष्ण से स्मयंतक मणि के कारण होता है।सत्यभामा अपने रूप के कारण अहंकार में रहती थी। सत्यभामा के अहंकार का कारण सत्यभामा के पिता सत्रहजित के पास धान की बरसाने वाली मणि थी जिससे प्रति दिन बीस मण सोना बरसता था। सत्रहजित की मणि को लेकर द्वारिका में चिंतन किया जाता है और उस मणि को राज कोश में जमा करवाने के लिए बातचीत होती है और इस निर्णय पर आते हैं की उसे समन्तक मणि राज कोश में जमा करवाने के लिए बुलाया जाए। अक्रूर के सत्रहजित को समझाते हैं लेकिन वो नहीं मानता। बलराम यह सुन क्रोधित होते हैं और उसे सजा देने के लिए चलने को तैयार होते हैं तो श्री कृष्ण बलराम को रोक देते हैं की वह उसकी समन्तक मणि सत्रहजित की है उसे उसी के पास रहना चाहिए। अगले दिन सत्रहजित का भाई समन्तक मणि को अपने साथ सुरक्षित रखने के लिए शिकार पर साथ ले जाता है जहां उसे जंगल में शेर मार देता है।
सत्यभामा की माँ सत्रहजित को समझती है की हमें समन्तक मणि को श्री कृष्ण को दहेज में देने और श्री कृष्ण को अपना जमाता बनाने के लिए कहती है। तभी वहाँ अपने भाई का अश्व वहाँ आ जाता है जिसे अकेले आता देख सत्रहजित और उसके साथी उसे ढूँढने निकल पड़ते हैं। जंगल में उन्हें उसके के खून से सने कपड़े मिलते हैं। सभी उसे देख यह तर्क देते हैं की ज़रूर द्वारिकाधीश ने ही उसे तो नहीं मरवा दिया और समन्तक मणि को ले गए। बलराम को जब श्री कृष्ण पर लगे आरोप के बारे में सुनाई पड़ता है तो वह क्रोधित हो उठता है। अक्रूर और सारतिके बलरमा को श्री कृष्ण से सलाह लेने के लिए कहते हैं।श्री कृष्ण बलराम, अक्रूर और सारतिके को समझाते हैं की हमें सत्रहजित के भाई प्रशंजित की मृत्य का सत्य ढूँढना चाहिए और उस मणि को ढूँढना होगा। ताकि श्री कृष्ण पर लगे कलंक को मिटाया जा सके।
श्री कृष्ण वन में जाते हैं और वहाँ प्रशंजित पर हुए हमले की जगह का निरीक्षण करते हैं तो उन्हें शेर के पंजो के निशान मिलते है, जिसका पीछा करते हुए वो सब एक गुफा के पास पहुँचते है। श्री कृष्ण अंदर जाते हैं और वहाँ एक शेर की लाश मिलती हैं। श्री कृष्ण जब आगे बढ़ते हैं तो उन्हें एक स्त्री को समन्तक मणि के साथ पाते हैं। वह स्त्री जामवन्त की पुत्री थी, जामवन्त से श्री कृष्ण उस मणि को वापस माँगते हैं लेकिन वह मना कर देता है। श्री कृष्ण और जामवन्त के बीच युद्ध शुरू हो जाता है और युद्ध में जामवन्त श्री कृष्ण से हार जाता है। जामवन्त श्री कृष्ण से हारने के बाद उन्हें बताते हैं की श्री राम ने उन्हें त्रेतायुग में कहा था कि मेरी द्वापरयुग में मिलने वासुदेव के रूप में आऊँगा। श्री कृष्ण उन्हें बताते हैं की मैं ही वासुदेव हूँ। जामवन्त उन्हें प्रणाम करते हैं। श्री कृष्ण जामवन्त से प्रसन्न हो वर माँगने के लिए कहते हैं। जामवन्त अपनी पुत्री जामवंती को स्वीकार करने के लिए श्री कृष्ण से आग्रह करते हैं।
श्री कृष्ण जामवंती को स्वीकार कर लेते हैं। श्री कृष्ण जामवंती को लेकर अपने साथ समन्तक मणि लेकर वापस द्वारिका आ जाते हैं। श्री कृष्ण उस मणि को लेकर अपने साथ सत्रहजित के पास जाते हैं और उन्हें उसकी मणि लौटा देते हैं। सत्रहजित श्री कृष्ण से उनपर लगे आरोपों को क्षमा माँगता है, और श्री कृष्ण को मणि भेंट करते हैं। सत्यभामा की माँ श्री कृष्ण से कहती हैं कि कृपया करके हमारी पुत्री सत्यभामा को भी पत्नी के रूप में स्वीकार करें।
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