महारथी जरासंध | Maharathi Jarasand | Movie | Tilak
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कंस की मृत्यु के बाद जब उसकी विधवा पत्नियाँ अपने पिता जरासंध के पास जाती हैं तो वो उन्हें ऐसी हालात में देख कर बहुत क्रोधित हो जाता है और मथुरा की और कुच करने की तैयारी शुरू करने के आदेश दे देता हैं। जरासंध अपने जमाई कंस की हत्या पर श्री कृष्ण की जय जयकार करने वाले मथुरा वसियों के वध करने के आदेश भी दे देता है। जरासंध अपनी सारी सेना को लेकर मथुरा के पास पहुँच जाता हैं। जरासंध के मथुरा पर हमला करने आने की बात को सुन मथुरा के राजा और मंत्री श्री कृष्ण द्वारा समझने पर जरासंध के साथ युद्ध करने के लिए तैयार हो जाते हैं। जरासंध अपने मित्र राजाओं के साथ बातचीत करते हुए मथुरा पर हमले की तैयारी करता है तो राजा शैलय जरासंध को कहता है की क्यों ना हम राजा उग्र्सैन को ये कहे की उनकी प्रजा को वो एक शर्त पर जीवित छोड़ सकते हैं यदि श्री कृष्ण और बलराम को उनके हवाले कर दिया जाए। यही सब जरासंध एक संधि पत्र में लिख कर राजा उग्र्सैन के पास भेज देता हैं। जिसके बारे में सुन राजा उग्र्सैन और उनके राज्य कि मंत्री वार्ता करते हैं।
जरासंध के संधि पत्र के आने के बाद उग्र्सैन और उनके सभी मंत्री गण उस पर विचार करते हैं हैं और इस निर्णय पर पहुँचते हैं की यादवों के सर कट सकते हैं पर झुक नहीं सकते। जरासंध को यह सूचना मिलती है की उन्होंने उसका भेजा प्रस्ताव ठुकरा दिया है तो वह युध को तैयार हो जाता है। सेनापति अक्रूर अपनी सेना को तैयार करते हैं। सेनापति अक्रूर के गुप्तचर जरासंध की रणनीति का अक्रूर को बताते हैं। अक्रूर राज्य को सुरक्षित बनाने की तैयारी शुरू कर देता है। जरासंध की सेना मथुरा की सीमा के पास आ जाती है। सूर्योदय होते ही श्री कृष्ण जरासंध के पास जाने के लिए निकल पड़ते हैं। श्री कृष्ण स्वर्ग से अपने लिए दिव्य रथ माँगते हैं। श्री कृष्ण अपने अस्त्र शस्त्र माँगते हैं। श्री कृष्ण अपने लिए धनुष, गदा और चक्र रखते हैं और बलराम अपने लिए हल और मूसल। श्री कृष्ण बलराम को सेनापति बना देते हैं और उन्हें कहते हैं की जरासंध की सिर्फ़ सेना को समाप्त करना हैं और जरासंध को अपमानित करके जीवित छोड़ देना है ताकि वह अपने जैसे दुष्ट राजाओं को एकत्रित करके लता रहे और हम यही से सभी को समाप्त कर सके। श्री कृष्ण अपने शंख से युद्ध की घोषणा करते हैं। शंखनाद सुन जरासंध युद्ध करने के आदेश दे देता हैं। युद्ध शुरू हो जाता है और देखते ही देखते श्री कृष्ण और बलराम अकेले मिल कर ही जरासंध की सारी सेना को समाप्त कर देते हैं। अंत में जब जरासंध अकेला बच जाता है तो बलराम उस से गदायुद्ध करता है। बलराम जरासंध को युद्ध में हरा देते हैं। श्री कृष्ण और बलराम जरासंध को अपमानित कर वहाँ से चले जाते हैं। जरासंध हार के बाद अपने साथी राजाओं के साथ रात्रि में हारने का प्रतिशोध लेने की बात करता है और प्रण लेता है की जब तक श्री कृष्ण और समस्त यादवों का विनाश नहीं करेगा तब तक उसकी प्रतिशोध की अग्नि नहीं बुझेगी।
राजा शैलय जरासंध को कालयवन की कहनी सुनते हैं की वह कैसे इतना पराकर्मी है और उसकी सहायता से कैसे मथुरा पर विजय पा सकते हैं। जरासंध राजा शैलय को कालयवन के पास संधि का प्रस्ताव लेकर भेजते हैं। राजा शैलय कालयवन को श्री कृष्ण के साथ युद्ध करने में सहायता माँगता है। कालयवन राजा शैलय का प्रस्ताव मान लेता है और अपने सेनापति को मथुरा की ओर निकलने के आदेश दे देता है। अक्रूर श्री कृष्ण को कालयवन के जरासंध के साथ मिल कर मथुरा पर हमला करने की योजना की बताता है। कालयवन को मारने के योजना श्री कृष्ण बलराम और अक्रूर को समझाते हैं और उन्हें बताते हैं कि महाराज मुचुकंद ही कालयवन को मारेंगे। राजा मुचुकंद के बारे में श्री कृष्ण बलराम और अक्रूर को बताते हैं की राजा मुचुकंद त्रेता युग से द्वापर युग में अभी भी जीवित है और मथुरा के पास ही एक पहाड़ की गुफा में सो रहे हैं वही हमारी कालयवन को मारने में सहायता करेंगे। श्री कृष्ण बलराम और अक्रूर को राजा मुचुकंद की कहानी सुनाते हैं। एक समय देव असुर में युद्ध चल रहा था तो देव इंद्र ने राजा मुचुकंद से सहयाता माँगी तो राजा मुचुकंद ने उनकी और से राक्षसों से युद्ध लड़ा और असुर सेना को हरा दिया। राजा मुचुकंद राजा इंद्र से पृथ्वी लोक वापस जाने की आज्ञा माँगते हैं तो देवराज इंद्र मना कर देते हैं और उन्हें बताते हैं की अब पृथ्वी पर आपका कोई नहीं रहा। इंद्र देव राजा मुचुकंद को बताते हैं की आप स्वर्ग में हमारे पास एक वर्ष रहे हैं पृथ्वी पर उतने समय में एक युग बीत गया है इस कारण से आपका अब पृथ्वी पर कोई भी नहीं रहा है। देव इंद्र राजा मुचुकंद को वरदान देने के बात कहते हैं जिसपर राजा मुचुकंद देव इंद्र से वर के रूप में युद्ध करते करते थक गया हूँ और अब मैं बस सोना चाहता हूँ और कोई मेरी निंद्रा में विघ्न ना डाले। इंद्र देव राजा मुचुकंद को वरदान देते हैं की आपकी निंद्रा में जो भी विघ्न डालेगा उसपर आपकी एक दृष्टि पड़ते हाई वह भस्म हो जाएगा। श्री कृष्ण बलराम को बताते हैं कि बस यही मेरी योजना है की कालयवन को मैं किसी तरह राजा मुचुकंद की गुफा तक ले जाऊँ और वहाँ राजा मुचुकंद बिना युध करे कालयवन को मार देंगे। जरासंध अपने सेना को मथुरा को घेरने के आदेश दे देता है। अगले दिन कालयवन और उसकी सेना मथुरा पहुँच जाती है और कालयवन श्री कृष्ण को समर्पण करने के लिए कहता है। कालयवन श्री कृष्ण से अकेले युद्ध करने के प्रस्ताव को मान लेता है। अगले दिन सूर्योदय होते ही श्री कृष्ण कालयवन के सामने पहुँच जाते हैं।
श्री कृष्ण राजा कालयवन के सामने आ जाते हैं और उसे अपनी बातों में बहला फुसला कर अकेले युद्ध करने के लिए दूसरे स्थान पर चलने के लिए मना लेते हैं।
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जरासंध के संधि पत्र के आने के बाद उग्र्सैन और उनके सभी मंत्री गण उस पर विचार करते हैं हैं और इस निर्णय पर पहुँचते हैं की यादवों के सर कट सकते हैं पर झुक नहीं सकते। जरासंध को यह सूचना मिलती है की उन्होंने उसका भेजा प्रस्ताव ठुकरा दिया है तो वह युध को तैयार हो जाता है। सेनापति अक्रूर अपनी सेना को तैयार करते हैं। सेनापति अक्रूर के गुप्तचर जरासंध की रणनीति का अक्रूर को बताते हैं। अक्रूर राज्य को सुरक्षित बनाने की तैयारी शुरू कर देता है। जरासंध की सेना मथुरा की सीमा के पास आ जाती है। सूर्योदय होते ही श्री कृष्ण जरासंध के पास जाने के लिए निकल पड़ते हैं। श्री कृष्ण स्वर्ग से अपने लिए दिव्य रथ माँगते हैं। श्री कृष्ण अपने अस्त्र शस्त्र माँगते हैं। श्री कृष्ण अपने लिए धनुष, गदा और चक्र रखते हैं और बलराम अपने लिए हल और मूसल। श्री कृष्ण बलराम को सेनापति बना देते हैं और उन्हें कहते हैं की जरासंध की सिर्फ़ सेना को समाप्त करना हैं और जरासंध को अपमानित करके जीवित छोड़ देना है ताकि वह अपने जैसे दुष्ट राजाओं को एकत्रित करके लता रहे और हम यही से सभी को समाप्त कर सके। श्री कृष्ण अपने शंख से युद्ध की घोषणा करते हैं। शंखनाद सुन जरासंध युद्ध करने के आदेश दे देता हैं। युद्ध शुरू हो जाता है और देखते ही देखते श्री कृष्ण और बलराम अकेले मिल कर ही जरासंध की सारी सेना को समाप्त कर देते हैं। अंत में जब जरासंध अकेला बच जाता है तो बलराम उस से गदायुद्ध करता है। बलराम जरासंध को युद्ध में हरा देते हैं। श्री कृष्ण और बलराम जरासंध को अपमानित कर वहाँ से चले जाते हैं। जरासंध हार के बाद अपने साथी राजाओं के साथ रात्रि में हारने का प्रतिशोध लेने की बात करता है और प्रण लेता है की जब तक श्री कृष्ण और समस्त यादवों का विनाश नहीं करेगा तब तक उसकी प्रतिशोध की अग्नि नहीं बुझेगी।
राजा शैलय जरासंध को कालयवन की कहनी सुनते हैं की वह कैसे इतना पराकर्मी है और उसकी सहायता से कैसे मथुरा पर विजय पा सकते हैं। जरासंध राजा शैलय को कालयवन के पास संधि का प्रस्ताव लेकर भेजते हैं। राजा शैलय कालयवन को श्री कृष्ण के साथ युद्ध करने में सहायता माँगता है। कालयवन राजा शैलय का प्रस्ताव मान लेता है और अपने सेनापति को मथुरा की ओर निकलने के आदेश दे देता है। अक्रूर श्री कृष्ण को कालयवन के जरासंध के साथ मिल कर मथुरा पर हमला करने की योजना की बताता है। कालयवन को मारने के योजना श्री कृष्ण बलराम और अक्रूर को समझाते हैं और उन्हें बताते हैं कि महाराज मुचुकंद ही कालयवन को मारेंगे। राजा मुचुकंद के बारे में श्री कृष्ण बलराम और अक्रूर को बताते हैं की राजा मुचुकंद त्रेता युग से द्वापर युग में अभी भी जीवित है और मथुरा के पास ही एक पहाड़ की गुफा में सो रहे हैं वही हमारी कालयवन को मारने में सहायता करेंगे। श्री कृष्ण बलराम और अक्रूर को राजा मुचुकंद की कहानी सुनाते हैं। एक समय देव असुर में युद्ध चल रहा था तो देव इंद्र ने राजा मुचुकंद से सहयाता माँगी तो राजा मुचुकंद ने उनकी और से राक्षसों से युद्ध लड़ा और असुर सेना को हरा दिया। राजा मुचुकंद राजा इंद्र से पृथ्वी लोक वापस जाने की आज्ञा माँगते हैं तो देवराज इंद्र मना कर देते हैं और उन्हें बताते हैं की अब पृथ्वी पर आपका कोई नहीं रहा। इंद्र देव राजा मुचुकंद को बताते हैं की आप स्वर्ग में हमारे पास एक वर्ष रहे हैं पृथ्वी पर उतने समय में एक युग बीत गया है इस कारण से आपका अब पृथ्वी पर कोई भी नहीं रहा है। देव इंद्र राजा मुचुकंद को वरदान देने के बात कहते हैं जिसपर राजा मुचुकंद देव इंद्र से वर के रूप में युद्ध करते करते थक गया हूँ और अब मैं बस सोना चाहता हूँ और कोई मेरी निंद्रा में विघ्न ना डाले। इंद्र देव राजा मुचुकंद को वरदान देते हैं की आपकी निंद्रा में जो भी विघ्न डालेगा उसपर आपकी एक दृष्टि पड़ते हाई वह भस्म हो जाएगा। श्री कृष्ण बलराम को बताते हैं कि बस यही मेरी योजना है की कालयवन को मैं किसी तरह राजा मुचुकंद की गुफा तक ले जाऊँ और वहाँ राजा मुचुकंद बिना युध करे कालयवन को मार देंगे। जरासंध अपने सेना को मथुरा को घेरने के आदेश दे देता है। अगले दिन कालयवन और उसकी सेना मथुरा पहुँच जाती है और कालयवन श्री कृष्ण को समर्पण करने के लिए कहता है। कालयवन श्री कृष्ण से अकेले युद्ध करने के प्रस्ताव को मान लेता है। अगले दिन सूर्योदय होते ही श्री कृष्ण कालयवन के सामने पहुँच जाते हैं।
श्री कृष्ण राजा कालयवन के सामने आ जाते हैं और उसे अपनी बातों में बहला फुसला कर अकेले युद्ध करने के लिए दूसरे स्थान पर चलने के लिए मना लेते हैं।
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