कृष्ण पुत्र काम अवतार प्रद्युम्न | Krishna Putr Kaam Avatar Pradyum | Movie | Tilak
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्कृष्ण और रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न के जनम की कहनी देखा रहें हैं जिसमें प्रद्युम्न के रूप में कामदेव ने जनम लिया था। कामदेव को शिव भगवान ने भस्म कर दिया था जिसके कारण वह शरीर के बिना ही रह रहे थे। इसलिए उन्होंने श्री कृष्ण के पुत्र के रूप में जनम लिया था। कामदेव को शिव ने भस्म क्यों किया इस भाग में यही कहनी दिखायी गयी है। एक तारकासुर नाम का राक्षस जिसे वरदान प्राप्त था की उसे सिर्फ़ शिव पुत्र ही मार सकता है जो उस समय संभव नहीं था। तारकासुर पाताल और पृथ्वी लोग को परास्त करने के बाद वह राजा इंद्र को युद्ध में हरा कर स्वर्ग पर क़ब्ज़ा कर लेता है। इंद्र देव विष्णु भगवान के पास अपनी व्यथा लेकर पहुँचते हैं और उनसे सहायता माँगते है। विष्णु भगवान सभी देवताओं को भगवान शिव के पास भेजते हैं और उनसे सहायता माँगने कि लिए कहते हैं।
इंद्र भगवान शिव को तपस्या से जगाने के लिए आते हैं लेकिन जगा नहीं पाते। इंद्र देव को विष्णु भगवान कहते हैं की ब्रह्मा जी के पास जाओ और उनसे इसका रास्ता पूछो। ब्रह्मा जी इंद्र देव को कहते हैं की शिव को काम भावना से तप से जगाना होगा इसके लिए कामदेव और देवी रति को भेजें। रति कामदेव को शिव जी की तपस्या को भंग करने के लिए मना करती है लेकिन कामदेव अपने कर्तव्य के बारे में समझाता है। कामदेव और सभी देवता नारद जी के साथ माता पार्वती के पास जाते हैं और उनके सामने शिव की तपस्या को भंग करने के लिए कहते हैं तो पार्वती उन्हें बताती है की शिव की तपस्या भंग हुई तो उनके क्रोध का लव फट पड़ेगा और ना जाने फिर क्या होगा। कामदेव और रति माता पार्वती से विनती करते हैं की उनकी भगवान के क्रोध से रक्षा करने की कृपा करे। कामदेव और रति दोनो मिल कर भगवान शिव के सामने जाकर नृत्य करते हैं और गीत गाते हैं।
कामदेव भगवान पर प्रेम के बन चलता है परंतु शिव पर उसका असर नहीं होता। कामदेव का एक बाण भगवान शिव के तीसरे नेत्र पर जा लगता है जिस से उनकी तपस्या भंग हो जाती है और उस से क्रोधित होकर भगवान शिव कामदेव को क्रोधित कर देते हैं। माता पार्वती शिव को बताती है की उनकी तपस्या को भंग करने का कारण बताती है तो शिव रति की प्रार्थना पर कामदेव के जीवित होने को बात बताते हैं कि कामदेव का शरीर भस्म हुआ है लेकिन उनकी आत्मा जीवित है कामदेव को एक नया शरीर चाहिए जिसके लिए लाखों वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। कुछ समय बाद जिस वजह से शिव की तपस्या भंग की गयी थी शिव पुत्र कार्तिकेय जनम लेते हैं जो समय आने पर तारकासुर से युद्ध करके उसका वध कर देते हैं। तारकासुर के मरने के बाद शिव के कथन के अनुसार द्वापर युग में श्री कृष्ण और रुक्मिणी के विवाह के बारे में नारद जी कामदेव और रति के बारे में बताते हैं।
नारद मुनि कामदेव को बताते हैं की प्रद्युम्न के रूप में जनम लेने के बाद आपको शम्भ्रासुर का वध करना है। शम्भ्रासुर अपने पुत्र मायासुर के साथ श्री कृष्ण से युद्ध करने के लिए तैयार हो चुका है। दोनों पिता पुत्र श्री कृष्ण से युद्ध करने के लिए निकल पड़ते हैं। श्री कृष्ण का गुप्तचर श्री कृष्ण को शम्भ्रासुर और मायासुर अपनी सेना के साथ द्वारिका पर आक्रमण करने आ रहे है ये समाचार देता है। श्री कृष्ण का गुप्तचर श्री कृष्ण को शम्भ्रासुर और मायासुर अपनी सेना के साथ द्वारिका पर आक्रमण करने आ रहे है ये समाचार देता है। श्री कृष्ण और बलराम दोनों मिलकर शम्भ्रासुर और मायासुर से युद्ध करने के लिए निकल पड़ते हैं। दोनों सेनाओं में युद्ध शुरू हो जाता है।
बलराम को माया में फँसा कर मारने के लिए वह माया का इस्तेमाल करता है जिसमें वह श्री कृष्ण को मार देता है जो की असलियत नहीं थी इसे देख बलराम दुःख में अपने प्रण देने ही लगते हैं तो श्री कृष्ण आकर उन्हें रोक देते हैं और उन्हें शम्भ्रासुर की माया के बारे में बताते हैं। बलराम अपनी पूरी शक्ति के साथ उन पर टूट पड़ता है और उन्हें हराने लगता है तो मायासुर भगवान शिव का दिया अस्त्र बलराम पर इस्तेमाल करने लगता है तो श्री कृष्ण भगवान शिव से विनती करते हैं की ऐसा होने से रोके भगवान शिव श्री कृष्ण से कहते हैं की मेरा अस्त्र विफल नहीं हो सकता लेकिन यह अस्त्र बलराम का वध नहीं करेगा उसे मूर्छित कर देगा। बलराम के मूर्छित होने के बाद श्री कृष्ण मायासुर का सुदर्शन चक्र से वध कर देते हैं। शम्भ्रासुर युद्ध हार कर वापस चला जाता है।
श्री कृष्ण बलराम को मुर्छा से जगाते हैं। शम्भ्रासुर अपने पुत्र के शव को लेकर अपने राज्य में जाता है जहां उसके शव को देख मायासुर की माता मायावती दुःखी होती है और अपने पति शम्भ्रासुर से श्री कृष्ण से बदला लेने के लिए कहती है। शम्भ्रासुर प्रतिज्ञा लेता है की वह श्री कृष्ण के पुत्र का वध कर देगा। नारद मुनि जी रति और कामदेव को श्री कृष्ण के पास जाकर उनके दुःख के बार में बताने के लिए कहते हैं। श्री कृष्ण के पास दोनों पहुँच जाते हैं। श्री कृष्ण कामदेव को अपना पुत्र स्वीकार कर लेते हैं। कामदेव देवी रुक्मिणी के गर्भ में चले जाते हैं। द्वारिका में रुक्मिणी के गोद भराई की रस्म की जाती है। कुछ दिनों बाद श्री कृष्ण का पुत्र जनम ले लेता है। श्री कृष्ण बलराम दोनों अपने पुत्र को देख कर बहुत प्रसन्न होते हैं। नारद मुनि जी शम्भ्रासुर को श्री कृष्ण के पुत्र के जनम का समाचार देते हैं। द्वारिका में श्री कृष्ण के पुत्र का नामकरण की तैयारी की जाती है। गुरुदेव श्री कृष्ण के पुत्र का नाम प्रद्युम्न रख देते हैं। शम्भ्रासुर अपने मायावी नाम के राक्षस को बुलाता है और प्रद्युम्न के पुत्र का हरण करने के लिए कहता है।
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्कृष्ण और रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न के जनम की कहनी देखा रहें हैं जिसमें प्रद्युम्न के रूप में कामदेव ने जनम लिया था। कामदेव को शिव भगवान ने भस्म कर दिया था जिसके कारण वह शरीर के बिना ही रह रहे थे। इसलिए उन्होंने श्री कृष्ण के पुत्र के रूप में जनम लिया था। कामदेव को शिव ने भस्म क्यों किया इस भाग में यही कहनी दिखायी गयी है। एक तारकासुर नाम का राक्षस जिसे वरदान प्राप्त था की उसे सिर्फ़ शिव पुत्र ही मार सकता है जो उस समय संभव नहीं था। तारकासुर पाताल और पृथ्वी लोग को परास्त करने के बाद वह राजा इंद्र को युद्ध में हरा कर स्वर्ग पर क़ब्ज़ा कर लेता है। इंद्र देव विष्णु भगवान के पास अपनी व्यथा लेकर पहुँचते हैं और उनसे सहायता माँगते है। विष्णु भगवान सभी देवताओं को भगवान शिव के पास भेजते हैं और उनसे सहायता माँगने कि लिए कहते हैं।
इंद्र भगवान शिव को तपस्या से जगाने के लिए आते हैं लेकिन जगा नहीं पाते। इंद्र देव को विष्णु भगवान कहते हैं की ब्रह्मा जी के पास जाओ और उनसे इसका रास्ता पूछो। ब्रह्मा जी इंद्र देव को कहते हैं की शिव को काम भावना से तप से जगाना होगा इसके लिए कामदेव और देवी रति को भेजें। रति कामदेव को शिव जी की तपस्या को भंग करने के लिए मना करती है लेकिन कामदेव अपने कर्तव्य के बारे में समझाता है। कामदेव और सभी देवता नारद जी के साथ माता पार्वती के पास जाते हैं और उनके सामने शिव की तपस्या को भंग करने के लिए कहते हैं तो पार्वती उन्हें बताती है की शिव की तपस्या भंग हुई तो उनके क्रोध का लव फट पड़ेगा और ना जाने फिर क्या होगा। कामदेव और रति माता पार्वती से विनती करते हैं की उनकी भगवान के क्रोध से रक्षा करने की कृपा करे। कामदेव और रति दोनो मिल कर भगवान शिव के सामने जाकर नृत्य करते हैं और गीत गाते हैं।
कामदेव भगवान पर प्रेम के बन चलता है परंतु शिव पर उसका असर नहीं होता। कामदेव का एक बाण भगवान शिव के तीसरे नेत्र पर जा लगता है जिस से उनकी तपस्या भंग हो जाती है और उस से क्रोधित होकर भगवान शिव कामदेव को क्रोधित कर देते हैं। माता पार्वती शिव को बताती है की उनकी तपस्या को भंग करने का कारण बताती है तो शिव रति की प्रार्थना पर कामदेव के जीवित होने को बात बताते हैं कि कामदेव का शरीर भस्म हुआ है लेकिन उनकी आत्मा जीवित है कामदेव को एक नया शरीर चाहिए जिसके लिए लाखों वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। कुछ समय बाद जिस वजह से शिव की तपस्या भंग की गयी थी शिव पुत्र कार्तिकेय जनम लेते हैं जो समय आने पर तारकासुर से युद्ध करके उसका वध कर देते हैं। तारकासुर के मरने के बाद शिव के कथन के अनुसार द्वापर युग में श्री कृष्ण और रुक्मिणी के विवाह के बारे में नारद जी कामदेव और रति के बारे में बताते हैं।
नारद मुनि कामदेव को बताते हैं की प्रद्युम्न के रूप में जनम लेने के बाद आपको शम्भ्रासुर का वध करना है। शम्भ्रासुर अपने पुत्र मायासुर के साथ श्री कृष्ण से युद्ध करने के लिए तैयार हो चुका है। दोनों पिता पुत्र श्री कृष्ण से युद्ध करने के लिए निकल पड़ते हैं। श्री कृष्ण का गुप्तचर श्री कृष्ण को शम्भ्रासुर और मायासुर अपनी सेना के साथ द्वारिका पर आक्रमण करने आ रहे है ये समाचार देता है। श्री कृष्ण का गुप्तचर श्री कृष्ण को शम्भ्रासुर और मायासुर अपनी सेना के साथ द्वारिका पर आक्रमण करने आ रहे है ये समाचार देता है। श्री कृष्ण और बलराम दोनों मिलकर शम्भ्रासुर और मायासुर से युद्ध करने के लिए निकल पड़ते हैं। दोनों सेनाओं में युद्ध शुरू हो जाता है।
बलराम को माया में फँसा कर मारने के लिए वह माया का इस्तेमाल करता है जिसमें वह श्री कृष्ण को मार देता है जो की असलियत नहीं थी इसे देख बलराम दुःख में अपने प्रण देने ही लगते हैं तो श्री कृष्ण आकर उन्हें रोक देते हैं और उन्हें शम्भ्रासुर की माया के बारे में बताते हैं। बलराम अपनी पूरी शक्ति के साथ उन पर टूट पड़ता है और उन्हें हराने लगता है तो मायासुर भगवान शिव का दिया अस्त्र बलराम पर इस्तेमाल करने लगता है तो श्री कृष्ण भगवान शिव से विनती करते हैं की ऐसा होने से रोके भगवान शिव श्री कृष्ण से कहते हैं की मेरा अस्त्र विफल नहीं हो सकता लेकिन यह अस्त्र बलराम का वध नहीं करेगा उसे मूर्छित कर देगा। बलराम के मूर्छित होने के बाद श्री कृष्ण मायासुर का सुदर्शन चक्र से वध कर देते हैं। शम्भ्रासुर युद्ध हार कर वापस चला जाता है।
श्री कृष्ण बलराम को मुर्छा से जगाते हैं। शम्भ्रासुर अपने पुत्र के शव को लेकर अपने राज्य में जाता है जहां उसके शव को देख मायासुर की माता मायावती दुःखी होती है और अपने पति शम्भ्रासुर से श्री कृष्ण से बदला लेने के लिए कहती है। शम्भ्रासुर प्रतिज्ञा लेता है की वह श्री कृष्ण के पुत्र का वध कर देगा। नारद मुनि जी रति और कामदेव को श्री कृष्ण के पास जाकर उनके दुःख के बार में बताने के लिए कहते हैं। श्री कृष्ण के पास दोनों पहुँच जाते हैं। श्री कृष्ण कामदेव को अपना पुत्र स्वीकार कर लेते हैं। कामदेव देवी रुक्मिणी के गर्भ में चले जाते हैं। द्वारिका में रुक्मिणी के गोद भराई की रस्म की जाती है। कुछ दिनों बाद श्री कृष्ण का पुत्र जनम ले लेता है। श्री कृष्ण बलराम दोनों अपने पुत्र को देख कर बहुत प्रसन्न होते हैं। नारद मुनि जी शम्भ्रासुर को श्री कृष्ण के पुत्र के जनम का समाचार देते हैं। द्वारिका में श्री कृष्ण के पुत्र का नामकरण की तैयारी की जाती है। गुरुदेव श्री कृष्ण के पुत्र का नाम प्रद्युम्न रख देते हैं। शम्भ्रासुर अपने मायावी नाम के राक्षस को बुलाता है और प्रद्युम्न के पुत्र का हरण करने के लिए कहता है।
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