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बंगाल विभाजन का इतिहास | History of Partition of Bengal & Indian independence movement—Hindi

इस लड़ाई में कई आंदोलन हुए जिसके बाद 15 अगस्त 1947 का दिन एक नया सवेरा लेकर आया,भारत को ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता प्राप्त हुईं। यद्यपि भारत को 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त हुई परन्तु इस स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु स्वतंत्रता संग्राम की नींव 1857 के विद्रोह ने रखी।

बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा 19 जुलाई 1905 को भारत के तत्कालीन वाइसराय कर्जन के द्वारा किया गया था। एक मुस्लिम बहुल प्रान्त का सृजन करने के उद्देश्य से ही भारत के बंगाल को दो भागों में बाँट दिये जाने का निर्णय लिया गया था। बंगाल-विभाजन 16 अक्टूबर 1905 से प्रभावी हुआ। इतिहास में इसे बंगभंग के नाम से भी जाना जाता है।
बंगाल विभाजन का मुद्दा पहली बार 1903 में उठा था. इसके लिए कुछ अतिरिक्त प्रस्ताव भी आये थे,जिसमें चित्तागोंग (Chittagong) को अलग करना और ढाका और म्य्मेंसिंह (Mymensingh) को जिला बनाकर उन्हें आसाम में शामिल करना था. परंतु इस जानकारी की आधिकारिक घोषणा 1904 में की गई थी. इस विभाजन के लिए ब्रिटिश वायसराय ने बंगाल के पूर्वी जिलों का आधिकारिक दौरा किया,जिससे विभाजन पर आम जनों का मत भी जान सके. इस दौरान उसने बंगाल के कुछ महत्वपूर्ण व्यक्तियों से इस मुद्दे पर बात की,और ढाका,चित्तान्गोंग और म्य्मेंसिंह में में एक भाषण दिया जिसमे विभाजन पर सरकार का पक्ष समझाया. कर्जन ने इसके कारण भी समझाये कि “ब्रिटिश राज के अंतर्गत बंगाल, फ्रांस जितना बड़ा हैं,इसकी जनसंख्या ग्रेट ब्रिटेन और फ्रांस को मिलाकर जितनी हैं,इस कारण इसे तोड़ने से प्राशासनिक प्रगति होगी

बिहार और उड़ीसा और पूर्वी क्षेत्र विशेष रूप से अंडर-गवर्नड थे. कहा जाता हैं कि कर्जन, हिन्दुओ का विभाजन नहीं चाहते थे,जो कि उस समय पश्चिम में मेजोरिटी में थे जबकि पूर्व में मुस्लिम थे. उनका प्लान आसाम (जो कि 1874 तक बंगाल का हिस्सा था)के पूर्वी भाग को वापिस जोड़ना था,और 31 लाख जनसंख्या वाले क्षेत्र का न्यू प्रोविंस बनाना था जिसमे 59% मुस्लिम थे.

बंगाल विभाजन का महत्व (Importance of Partition of Bengal)

बंगाल विभाजन को भारत के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हैं,इसका कारण हैं कि ये किसी राज्य का सामान्य विभाजन नही था बल्कि अंग्रेजों द्वारा देश के बंटवारे के लिए रखी गयी नीव थी. जिसका तत्कालीन परिप्रेक्ष्य में भले धर्म और भाषा का आधार रहा हो लेकिन अंग्रेज इसे तब भी समझ सकते थे कि ये निर्णय दीर्घकाल में देश के साथ धर्म के आधार पर भी भारतीयों को बाँट सकता हैं,जो कि दुर्भाग्यवश सच सिद्ध हुआ.

बंगाल विभाजन आंदोलन (Revolution for Partition of Bengal))

जैसे ही बंग-भंग समन्धित योजना की घोषणा हुयी,बंगाली समुदाय ने अंग्रेजों के खिलाफ अपना रोष व्यक्त करना शुरू कर दिया, इसके लिए सबसे पहले उन्होंने ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार किया. ये विरोध मुख्तया हिन्दू समुदाय का था इनके साथ ढाका के नवाब ने भी पहले इसका विरोध किया,जबकि ढाका तो नए प्रोविंस की राजधानी के रूप में प्रस्तावित थी.
बंगाल के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एंड्रयू फ्रेंसर पर बंगाल विभाजन का विरोध करने वाले क्रांतिकारियों ने हमला किया. वैसे बंग-भंग के विरोध में पूरे भारत से आवाजें उठ रही थी.क्योंकि ये बात हर कोई समझ रहा था कि अंग्रेज अब देश तोड़ने की तरफ अग्रसर हैं. कलकता में बहुत सी रैलियां,निकाली जा रही थी,विदेशी वस्तुओं की होली जलाई जा रही थी.वास्तव में स्वदेशी आन्दोलन की शुरुआत भी यही से हुई थी.
रबिन्द्रनाथ टैगोर ने अमार शोनार बांग्ला भी बंग-भंग के विरोध में लिखा था,जो कि कालान्तर में 1972 में बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान बना. 1905 में टैगोर का लिखा “वन्दे मातरम” भी क्रांतिकारियों के लिए राष्ट्र गान बन गया था. क्रांतिकारियों के लिए बंगाल पवित्र भूमि बन गयी थी क्योंकि वहाँ माँ काली की पूजा होती थी जो कि विनाश की देवी मानी जाती थी,इसलिए क्रांतिकारियों ने अपने हथियार उन्हें समर्पित कर दिए.
बंगाल विभाजन के परिणाम और प्रभाव (Impact and Result of Partition of Bengal)

बंगाल विभाजन से देश में राजनीतिक परिवर्तन हुए. पूर्वी बंगाल में शुरूआती विरोध के बाद मुस्लिम ने इस व्यवस्था को अपना लिया था और ये मानने लगे थे कि अलग से बना राज्य उन्हें शिक्षा,रोजगार में आगे बढ़ने का मौका देगा. हालांकि ये विभाजन पश्चिम बंगाल के समुदाय को पसंद नहीं आया था,जहां पर राष्ट्रवाद के लिए कई शक्शियत तैयार हो रही थी. इंडियन नेशनल कांग्रेस के तरफ से सर हेनरी कॉटन ने इसका विरोध किया जो कि आसाम के चीफ कमिश्नर थे,लेकिन कर्ज़न अपने फैसले से नहीं हिले. उनके अनुयायी लार्ड मिन्टो ने भी बंगाल का विभाजन करना मुश्किल निर्णय माना और कहा इससे बंगाली राजनैतिक आन्दोलन को दबाने में सहायता मिलेगी. क्योंकि बढती हुयी बुद्धिजीवियों की संख्या अंग्रेज सरकार के लिए कही से भी हितकर नहीं हैं.
बंगाल विभाजन के बाद चले स्वदेशी आन्दोलन से कई शैक्षिक परिवर्तन भी हुए जिनमे बंगाल नेशनल कॉलेज की स्थापना हुयी. वास्तव में इससे पहले बंगाल फ्रांस जितना बड़ा राज्य था, इसके पूर्वी क्षेत्र को पहले उपेक्षित और अव्यवस्थित माना जाता था लेकिन विभाजन के बाद यहाँ एडमिनिस्ट्रेशन में सुधार हुआ. और यहाँ के आम-जन को भी नयी स्कूल खुलने से और रोजगार के अवसर मिलने से फायदा हुआ

जिनका सम्मान गरम और नरमदल के नेता समान रूप से करते थे. लेकिन इस सेशन में गरम दल प्रभावी रहा और उन्होंने ये प्रण करवाए जिनमें निम्न प्रमुख हैं-

बंगला विभाजन के विरुद्ध संकल्प
स्वराज्य की मांग
स्वदेशी अपनाने का संकल्प
बहिष्कार का संकल्प

ढाका अब राजधानी नही थी, इसलिए उसे इसके स्थान पर भरपाई में 1922 में एक यूनिवर्सिटी दी गई,कर्ज़न हॉल भी नयी फाउंडेशन को पहली बिल्डिंग के तौर पर दिया गया (1904 मेंविभाजन के लिए कर्ज़न हॉल बना था). इससे ना केवल बंगाल बल्कि आसाम और पूर्वी सीमावर्ती राज्य भी कई वर्षो से प्रभावित हैं.

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