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भारत का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजुली का जीवन, असम – ब्रह्मपुत्र नदी।—Hindi****4k

माजुली विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप है, जो चारों तरफ से महानदी ब्रह्मपुत्र से घिरा हुआ है। नदी के मध्य में बसा हुआ यह द्वीप बहुत ही रोचक है। लेकिन चिंता की बात यह है कि, माजुली का यह नदी द्वीप बड़ी ही तेज़ गति से सिकुड़ता जा रहा है और हो सकता है कि गुजरते समय के साथ वह पूरी तरह से लुप्त हो जाए।

यहां तक कि इस द्वीप पर किए गए कुछ सर्वेक्षणों द्वारा यह अनुमानित किया गया है कि, यह द्वीप कम से कम 15-20 सालों तक ही विद्यमान है। 150 साल पहले इस द्वीप का क्षेत्रफल 1250 वर्ग कि.मी. हुआ करता परंतु अब इसका क्षेत्रफल केवल 450 वर्ग कि.मी. ही रह गया है। लगातार होते भूकटाव और हर साल वर्षा ऋतु के दौरान बाढ़ में जलमग्न होने के कारण यह द्वीप निरंतर रूप से अपना आकार बदलता रहता है। इन प्रकृतिक बदलावों के अनुसार अपने आप को ढालने के लिए इस द्वीप के वासियों को अपने दैनिक जीवन में अनेक परिवर्तन लाने पड़ते हैं। जैसा कि हमे किसी ने बताया, आप कभी भी माजुली का पक्का नक्शा नहीं बना सकते, क्योंकि, जब तक वह तैयार होकर छपेगा तब तक यह द्वीप अपना आकार बदल चुका होगा।

माजुली केवल पानी से घिरे होने के कारण एक द्वीप नहीं कहलता, बल्कि ऐसी बहुत सी बातें हैं जो वास्तव में उसे एक द्वीप बनाती हैं और इन्हीं में से एक है यातायात के साधन। माजुली तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता है फेरी, जो पीढ़ियों से इस द्वीप को बाहरी दुनिया से जोड़े हुए है। लोगों का भी यही कहना है कि जहां तक उन्हें याद है वे इस फेरी के अलावा अन्य किसी भी मार्ग के बारे में नहीं जानते।

यहां पर जोरहाट, जो यहां का नजदीकी शहर है, के निमाती घाट से दिन में 5 बार एक फेरी आती है। यह फेरी मौसम के अनुसार 60-90 मिनट के बीच लोगों को माजुली ले जाती है और फिर उतनी ही बार वापस आती है। लेकिन लौटते समय नदी की धारा के विरुद्ध चलने के कारण उसे दुगना समय लगता है। नदी में पानी के उतार-चढ़ाव और उसके प्रवाह के अनुसार दोनों तरफ के फेरी सथानक अपने स्थान बदलते रहते हैं। आम तौर पर इन फेरी स्टेशनों का स्थान साल में 6-7 बार तो बदलता ही है। इस द्वीप पर सबकुछ इसी फेरी के माध्यम से आता है, चाहे वह वाहन का ईंधन हो या खान-पान की वस्तुएं।

ये फेरी लोगों के साथ-साथ वाहनों को भी एक ओर से दूसरी ओर ले जाती है, जिनमें से अधिकतर मोटरसाइकिले होती हैं, लेकिन इसके अलावा कभी-कभी कुछ गाडियाँ भी होती हैं जो यहां पर आनेवाले पर्यटक अपने साथ लाते हैं। इस द्वीप पर आवश्यक चिकित्सक सुविधाओं की अनुपलब्धि का प्रमुख कारण भी सीमित यातायात के साधन ही हैं। जिसके चलते लोगों को बहुत सी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। कभी-कभी तो मरीजों को जोरहाट पहुँचने के लिए, जो माजुली से लगभग 3 घंटे की दूरी पर बसा हुआ है, अगली फेरी के आने तक का इंतजार करना पड़ता है। कई बार तो ये मरीज इतने लंबे इंतजार की परिस्थिति में भी नहीं होते।

इस द्वीप पर बसनेवाले लोगों का जीवन पूर्ण रूप से बारिश और चारों तरफ से बहनेवाली नदी के प्रवाह पर निर्भर है। हमे बताया गया कि बारिश के दौरान यह पूरा द्वीप बाढ़ से जलमग्न हो जाता है और यहां-वहां ऊंचाई पर स्थित कुछ ही क्षेत्र नज़र आते हैं।

इस द्वीप पर रहनेवाले प्रत्येक परिवार के पास एक या दो नावें हैं, जो बाढ़ के समय द्वीप पर यहां-वहां जाने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। ये नावें द्वीप पर हर जगह रखी हुई नज़र आती हैं। यहां पर हर व्यक्ति को तैरना आता है, क्योंकि यहां पर जीवित रहने के लिए यह कौशल बहुत ही आवश्यक है। यहां के अधिकतर लोग अपनी खुद की खेती करते हैं, जिनमें चावल और अन्य कोई भी सब्जियाँ उगाई जाती हैं, लेकिन इसके लिए भी लोगों को बारिश और नदी की अवस्था पर निर्भर रहना पड़ता है।

मालूम होता है कि असम की सरकार इस द्वीप को मुख्य भूभाग से जोड़ने हेतु यहां पर एक पुल का निर्माण करना चाहते हैं, लेकिन द्विपवासी शायद इस प्रस्ताव से ज्यादा खुश नहीं हैं। एक पर्यटक की हैसियत से मुझे तो लगता है कि, सड़क के निर्माण से शायद इस द्वीप की शांतता भंग होने में ज्यादा देर नहीं लगेगी।

माजुली में अनेक जनजातियाँ रहती हैं, जिन में से एक है यहां का मिसिंग समुदाय। इस जाति के लोग मूलतः अरुणाचल प्रदेश के निवासी थे, जो सदियों पहले यहां पर आकर बस गए थे। इस जाति के लोगों से बातचीत करने के बाद हमे पता चला कि सालों पहले ये लोग यहां पर खेती का व्यवसाय किया करते थे, लेकिन बाढ़ के कारण अब उनके खेत नष्ट हो गए हैं। ऐसी स्थिति में अब उन्होंने हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योग अपना लिए हैं।

इस जाति की महिलाएं मेखला की चादरें और गमछे बुनने में बहुत कुशल हैं। ये लोग बांस की अस्थायी झोपड़ियों में रहते हैं, जो बारिश के समय आसानी से विघटित किए जा सकते हैं और किसी अन्य स्थान पर पुनःनिर्मित किए जा सकते हैं। पर्यटक उनके पास खास तौर से उनकी बनाई गयी चावल की घरेलू शराब के लिए आते हैं।

माजुली द्वीप की सबसे प्रसिद्ध जगहें हैं, यहां के सत्र, जिन्हें भारत के अन्य भागों में आश्रमों या मठों के रूप में जाना जाता है। ये सत्र 15वी शताब्दी के संत गुरु शंकरदेव द्वारा स्थापित किए गए थे। यद्यपि इनके द्वरा स्थापित मूल सत्र आज नदी में विलीन हो गए हैं, लेकिन आज भी यहां पर बहुत से ऐसे सत्र हैं, जो अब तक सक्रिय हैं और जिनका निर्माण संत गुरु शंकरदेव के कई अनुयायियों द्वारा किया गया था। वैसे तो इस प्रकार के सत्र पूरे असम में फैले हुए हैं, लेकिन फिर भी आपको माजुली द्वीप पर बसे हुए सत्रों के बारे में ही ज्यादा सुनने को मिलता है। ये सत्र प्रमुख रूप से वैष्णव ब्रह्मचारियों के निवास स्थान हैं, जिन्होंने अपने आपको पूर्ण रूप से इस भक्तिधारा को समर्पित कर दिया है।

ये ब्रह्मचारी इन सत्रों के शयनगृहों में रहते हैं। वे हस्तशिल्प बनाना, बुनाई करना या फिर नाट्य प्रदर्शन जैसे विविध कार्यों में भाग लेते हैं और इन में से कुछ ब्रह्मचारी नौकरी भी करते हैं। इन सत्रों की बड़ी-बड़ी ज़मीनें हैं, जिनसे प्राप्त होनेवाली आय इन्हीं सत्रों को जाती है।

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13 января 2022 г. 15:07:23
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