शिव के नृत्य में छुपा प्रकृति का सिद्धांत?1300 साल पुराना रहस्योद्घाटन | प्रवीण मोहन
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हैलो दोस्तों , मैं कांचीपुरम के प्राचीन कैलाशनाथर मंदिर में हूँ, और आज हम एक बहुत अजीब आकृति पर नजर डालने वाले हैं, जो कि ज्यामितीय(ज्योमेट्री) से संबंधित है, और इसमें पवित्र अंकों की व्यवस्था छुपी हुई है | चलिए, इस नृत्य करते हुए शिव की आकृति पर नजर डालते हैं | यह लगभग 1300 साल पहले बनाई गई एक बहुत उत्तम नक्काशी है, और आप देख सकते हैं कि इस नक्काशी के ज्यादातर हिस्से का रंग उतर चुका है |
मैंने फोटोशॉप का प्रयोग कर के इसे ठीक करने की कोशिश की है, और अब आप इसे ज्यादा अच्छी तरह से देख सकते हैं | यहां, शिव को मज़बूती से एक पैर ज़मीन पर रखे हुए दिखाया गया है, और उनका दूसरा पैर घुटने से मुड़ा हुआ ज़मीन से टिका हुआ है और पैर ऊपर की ओर मुड़ा हुआ है | शिव ने एक हाथ अपने इस पैर पर रखा हुआ है, जबकि उनका दूसरा हाथ उनके सिर के ऊपर उठा हुआ है |
चलिए, उनके दूसरे हाथों को अभी के लिए भूल जाते हैं | पर यहां मंदिर के दूसरी ओर एक और नक्काशी है, जो और भी ज्यादा बुरी हालत में है | जब मैंने इसे देखा तो मैं चौक गया, क्योंकि यह बिल्कुल वैसे ही नृत्य करते हुए शिव को दर्शाती है, पर यहां अजीब बात यह है कि, यह नक्काशी क्षैतिज रूप से पलट दी गई है, पहली वाली नक्काशी के प्रतिबिंब की तरह | अब मैं फ़ोटोशॉप में इस असली चित्र को पलट रहा हूँ, और अब आप देख सकते हैं कि ये दोनों कितनी सूक्ष्मता से आपस में मेल खाते हैं |
पहली नक्काशी मे, उनका बांया पैर ज़मीन पर है, और दूसरी नक्काशी में, दांया पैर ज़मीन पर है | सभी हाथ और पैर इस तरह मुड़े हुए हैं, जैसे कि आप खुद को शीशे में देख रहे हों, बिल्कुल जैसे हैं वैसे नहीं , पर पार्श्व रूप से पलटा हुआ | पर शिव के इतने सारे हाथ हैं, उनमें से एक में एक रिंग है, दूसरे में एक हथियार है, इन सभी विवरणों को प्रतिबिंबित होना चाहिए |
सबसे पहले, इसे उकेर कर बनाना आसान नहीं है, यह एक आश्चर्यजनक मूर्ति-कला है, जिसके लिये मशीन जैसी दक्षता की आवश्यकता होगी |
यहां तक कि इसे आपको अॉनलाइन दिखाने के लिए भी मैं फोटोशॉप जैसे सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर रहा हूँ , कल्पना कीजिए, अगर मुझे इसे अपने हाथ से चित्र बनाना होता तो मुझे उसके लिए कितना अच्छा कलाकार होना पड़ता | आज के समय में ऐसा कुछ बनाने के लिए हमें , सॉफ्टवेयर और हार्डवेअर की जरूरत पड़ेगी, मतलब मशीनों की, उन्नत मशीनों की जरूरत होगी | दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है : क्यों? उन्हें ऐसे पार्श्व रूप से पलटी हुई प्रतिबिंब जैसी नक्काशी बनाने की क्या आवश्यकता थी ? इतनी तकलीफ़ उठा कर इसे बनाने के पीछे उनका क्या उद्देश्य रहा होगा ?
और इन दोनों नक्काशियों की स्थिति भी उतनी ही दिलचस्प है | उन्हें ऐसे ही कही भी नहीं बना दिया गया है, इनमें से एक मंदिर के बांयी ओर है और दूसरी दांयी ओर है, जैसे कि वो संतुलन बनाने की कोशिश कर रही हों , विशेष रूप से जिसे द्विपक्षीय संतुलन कहा जाता है | द्विपक्षीय समरूपता क्या है? यह प्रकृति में हर समय होता है, यह बराबर आधे में विभाजित होने की property है, लेकिन yeh kisi satah ke दोनों प्रतिबिंब ke roop me होता है यदि मैं एक मानव शरीर लेता हूं और iske thik bich me एक रेखा डालता हूं और उन्हें अलग करता हूं तो मेरे पास दो बराबर होंगे प्रतिबिंबित bhag होंगे पर चलिए , सेल्स(कोशिका) के स्तर पर जाकर देखते हैं कि इसे कैसे बनाया गया था, ठीक है ? जीवविग्यानी हमें बतायेंगे, ठीक है यहां एक सेल है, यह दो में विभाजित हो जाता है , हम इस से बहुत मिलता जुलता कुछ देखने जा रहे हैं | पर यह केवल सामान्य गुणन नहीं है, है ना ?
#हिन्दू #praveenmohanhindi #प्रवीणमोहन
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मैंने फोटोशॉप का प्रयोग कर के इसे ठीक करने की कोशिश की है, और अब आप इसे ज्यादा अच्छी तरह से देख सकते हैं | यहां, शिव को मज़बूती से एक पैर ज़मीन पर रखे हुए दिखाया गया है, और उनका दूसरा पैर घुटने से मुड़ा हुआ ज़मीन से टिका हुआ है और पैर ऊपर की ओर मुड़ा हुआ है | शिव ने एक हाथ अपने इस पैर पर रखा हुआ है, जबकि उनका दूसरा हाथ उनके सिर के ऊपर उठा हुआ है |
चलिए, उनके दूसरे हाथों को अभी के लिए भूल जाते हैं | पर यहां मंदिर के दूसरी ओर एक और नक्काशी है, जो और भी ज्यादा बुरी हालत में है | जब मैंने इसे देखा तो मैं चौक गया, क्योंकि यह बिल्कुल वैसे ही नृत्य करते हुए शिव को दर्शाती है, पर यहां अजीब बात यह है कि, यह नक्काशी क्षैतिज रूप से पलट दी गई है, पहली वाली नक्काशी के प्रतिबिंब की तरह | अब मैं फ़ोटोशॉप में इस असली चित्र को पलट रहा हूँ, और अब आप देख सकते हैं कि ये दोनों कितनी सूक्ष्मता से आपस में मेल खाते हैं |
पहली नक्काशी मे, उनका बांया पैर ज़मीन पर है, और दूसरी नक्काशी में, दांया पैर ज़मीन पर है | सभी हाथ और पैर इस तरह मुड़े हुए हैं, जैसे कि आप खुद को शीशे में देख रहे हों, बिल्कुल जैसे हैं वैसे नहीं , पर पार्श्व रूप से पलटा हुआ | पर शिव के इतने सारे हाथ हैं, उनमें से एक में एक रिंग है, दूसरे में एक हथियार है, इन सभी विवरणों को प्रतिबिंबित होना चाहिए |
सबसे पहले, इसे उकेर कर बनाना आसान नहीं है, यह एक आश्चर्यजनक मूर्ति-कला है, जिसके लिये मशीन जैसी दक्षता की आवश्यकता होगी |
यहां तक कि इसे आपको अॉनलाइन दिखाने के लिए भी मैं फोटोशॉप जैसे सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर रहा हूँ , कल्पना कीजिए, अगर मुझे इसे अपने हाथ से चित्र बनाना होता तो मुझे उसके लिए कितना अच्छा कलाकार होना पड़ता | आज के समय में ऐसा कुछ बनाने के लिए हमें , सॉफ्टवेयर और हार्डवेअर की जरूरत पड़ेगी, मतलब मशीनों की, उन्नत मशीनों की जरूरत होगी | दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है : क्यों? उन्हें ऐसे पार्श्व रूप से पलटी हुई प्रतिबिंब जैसी नक्काशी बनाने की क्या आवश्यकता थी ? इतनी तकलीफ़ उठा कर इसे बनाने के पीछे उनका क्या उद्देश्य रहा होगा ?
और इन दोनों नक्काशियों की स्थिति भी उतनी ही दिलचस्प है | उन्हें ऐसे ही कही भी नहीं बना दिया गया है, इनमें से एक मंदिर के बांयी ओर है और दूसरी दांयी ओर है, जैसे कि वो संतुलन बनाने की कोशिश कर रही हों , विशेष रूप से जिसे द्विपक्षीय संतुलन कहा जाता है | द्विपक्षीय समरूपता क्या है? यह प्रकृति में हर समय होता है, यह बराबर आधे में विभाजित होने की property है, लेकिन yeh kisi satah ke दोनों प्रतिबिंब ke roop me होता है यदि मैं एक मानव शरीर लेता हूं और iske thik bich me एक रेखा डालता हूं और उन्हें अलग करता हूं तो मेरे पास दो बराबर होंगे प्रतिबिंबित bhag होंगे पर चलिए , सेल्स(कोशिका) के स्तर पर जाकर देखते हैं कि इसे कैसे बनाया गया था, ठीक है ? जीवविग्यानी हमें बतायेंगे, ठीक है यहां एक सेल है, यह दो में विभाजित हो जाता है , हम इस से बहुत मिलता जुलता कुछ देखने जा रहे हैं | पर यह केवल सामान्य गुणन नहीं है, है ना ?
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