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समय यात्रा मंदिर की खोज? प्राचीन भारतीय तकनीक के प्रमाण | प्रवीण मोहन

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हैलो दोस्तों, आज हम एक मंदिर जिसे पंचवर्णस्वामी मंदिर कहते हैं उसे देखने जा रहे हैं और बाहर से यह पिछली सदी में बने हुए किसी भी साधारण मंदिर की तरह ही दिखता है, लेकिन ये कम से कम दो हजार साल पुराना है। मेरे लिए जो सबसे ज्यादा आकर्षक है वो है इस मंदिर की रूप- रेखा। इसकी रचना कुछ इस तरह की गई है की आम पर्यटक साधारण नक्काशियों को देखते हैं और अगर आप एक गंभीर शोधकर्ता हैं, तो यहां चौंकाने वाली आकृतियां हैं, और वे सभी मंदिर के अंधेरे कोनों में बनाई गई हैं।
आज, भले ही मंदिर में बिजली की रौशनी है, फिर भी सबसे अजीब नक्काशियां गहरी, अंधेरी जगहों में छुपी हुई हैं और इनका आज से पहले कोई स्पष्टीकरण नहीं है। आईये इस आकृति को एक नजर देखते हैं। इस आकृति का सर सीधे खड़े हाथी का है। आप सोच सकते हैं की ये हिंदुओं के लोकप्रिय देव गणेश हैं लेकिन ऐसा नहीं है, क्योंकि ये एक महिला की आकृति है और गणेश पुरुष हैं।
और इससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक बात ये है की इसके गरूड़ जैसे पंख हैं, आप फेदर्स(परों) को भी देख सकते हैं। अब, पैरों को देखिए, ये लंबे, पतले बेलनाकार पंजे हैं, जो किसी भी स्पष्टीकरण को झुठलाते हैं। ये क्या हो सकता है? आज भी, वैज्ञानिक जेनेटिक इंजीनियरिंग (आनुवंशिक अभियांत्रिकी) का उपयोग कर के ऐसी प्रजाति बनाने में कामयाब नहीं हुए हैं, हमारे पास आज की तारीख में ऐसा करने के लिए उपयुक्त तकनीक नहीं है। लेकिन आज से सौ साल बाद, हम आराम से परों वाले हाथी जैसी प्रजाति बना सकेंगे।

आप विश्वास करें या ना करें, ऐसा कहा जाता है कि वैज्ञानिक गुप्त रूप से पंख वाले इंसानों को बनाने के लिए भी काम कर रहें हैं। ऐसा अनुमान लगाया गया है की अभी से दो सौ साल से भी कम में वे इसे हासिल कर लेंगे। और यहां इस नक्काशी में हम ठीक उसे ही देख रहें हैं। पहली नजर में मैंने सोचा की एक बच्चे के साथ खेलते हुए ये एक आम माँ है, लेकिन ध्यान से देखने पर मुझे पता चला की इसके पंख हैं, जो उड़ने के लिए तैयार हैं ।

जहां ये नक्काशियां संभवतः भविष्य की होने वाली तरक्कियों को दिखाती हैं, यहां एक आकृति है जो सुदूर अतीत से कुछ दिखाती है। ये जानवर जिसे आप यहां देख रहे हैं एक कृपाण जैसे दाँतों वाली बिल्ली(सेबर टूथ कैट ) है, जिसे कभी कभी कृपाण जैसे दाँतों वाला बाघ(सेबर टूथ टाइगर) भी कहते हैं। इस विशेष प्रजाति को थाइलाकौस्मिलस कहते हैं।

थाइलाकौस्मिलस आधुनिक शेर या बाघ जैसा दिखता था, लेकिन एक बड़ा अंतर है इसके असाधारण रूप से लंबे ऊपरी कैनाइन दाँत। ये आकृति बिना किसी संदेह के इसी विशेष प्रजाति को दिखाती है जिसमें उभरे हुए विषैले दाँतों और लंबी पुंछ है । अगर आप इस आकृति की तुलना आज की जीवाश्म के साक्ष्य (फॉसिल एविडेंस) से बनाए हुए जानवर से करें, तो हम देख सकते हैं की ये लगभग एक जैसे है। फिर भी, एक समस्या है: सभी विशेषज्ञों का मानना है की ये प्रजाति लगभग २.५ मिलियन साल पहले ही विलुप्त हो चुकी है । और इतिहासकार और पुरातत्वविद हमें बताते हैं की इस मंदिर का निर्माण दो हजार साल पहले हुआ है। मूर्ति-कारों को ऐसे जानवर की आकृति बनाने के लिए, थाइलाकौस्मिलस को देखना जरूरी होता । तो मूर्ति-कारों ने दो हजार साल पहले इस जानवर को इतनी बारीकी से कैसे बनाया, जबकि ये प्रजाति २.५ मिलियन साल पहले ही विलुप्त हो चुकी है?

इसके बारे में सोचिए:कि एक मंदिर में भविष्य में होने वाली और सुदूर अतीत दोनों से संबंधित नक्काशियां कैसे हो सकती हैं? समय यात्रा ही एक मात्र ऐसा रास्ता है जिससे कोई भविष्य और अतीत दोनों की घटनाओं को ठीक ठीक रिकॉर्ड कर सकता है। क्या भारत के पौराणिक निर्माण-कर्ता समय यात्रा करने में सक्षम थे?क्या हिन्दू धर्म में समय यात्रा के और साक्ष्य हैं?

#हिन्दू #praveenmohanhindi #प्रवीणमोहन

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7 июня 2021 г. 9:30:13
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