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क्या कृष्ण की बांसुरी का संगीत पत्थरों को भी पिघला सकता था? रामप्पा मंदिर में मिले सबूत

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हैलो दोस्तों, आज हम रामप्पा मंदिर की जांच करने जा रहे हैं, जो कि चट्टान को पिघलाने की तकनीक के कुछ ठोस सुबूतों को दर्शाता है। यहां आप भगवान कृष्ण को बांसुरी बजाते हुए देख सकते हैं, और उनके पैर इस पेड़ के एक पत्ते को छू रहे हैं। और यह सुंदर महिला उस पेड़ के तने पर झुकी हुई है। इसका क्या मतलब हो सकता है?

यदि कृष्ण सच में अपनी बांसुरी बजा रहे थे, तो जिस संगीत की उत्पत्ति हो रही थी वह उस पेड़ से हो कर गुजरत। यदि मैं तने पर थपथपाऊं, तो इससे एक अजीब सी धात्विक आवाज़ निकलती है। यह एक ही ठोस चट्टान से बना है, पर फिर भी इस पेड़ के तने के अलग अलग हिस्सों पर थपथपाने पर अलग अलग आवाजें निकलती है। आवाजों के अंतर पर ध्यान दीजिए।

और यदि आप इसी चट्टान के अन्य हिस्सों पर थपथपाते हैं तो, वहां कोई आवाज़ नहीं होती है। बिल्कुल, यह कोई संयोग नहीं है, प्राचीन निर्माता स्पष्ट रूप से यह चाहते थे कि हम यह जानें कि यह सिलेंडर संगीत उत्पन्न करता है, यही कारण है कि उन्होंने कृष्ण को अपने शाश्वत संगीत को बजाते हुए प्रतीकात्मक रूप में बनाया। पर क्या यह संरचना एक नक्काशी है? सभी इतिहासकार और पुरातत्वविद यह दावा करते हैं कि इस मंदिर में सब कुछ मानव के द्वारा कठिन परिश्रम से बनाया गया था।

पर आप इस चट्टान पर एक ऐसा सिलेंडर कैसे उकेरेंगे जो संगीत पैदा करता हो? और भी अधिक रोचक बात यह है कि, आप ऐसा सिलेंडर कैसे बनायेंगे जो अलग जगह पर खटखटाने पर अलग सुर उत्पन्न करता हो? और तने की चौड़ाई पर ध्यान दीजिए, इसकी चौड़ाई ऊपर से नीचे तक एक सी है। अलग आवाजें नाप और आकार की विभिन्नता के कारण उत्पन्न नहीं होती हैं।

शिल्पकार और संगतराश इस बात की पुष्टि करते हैं कि आज ऐसी कोई भी तकनीक उपलब्ध नहीं है, जिससे एक चट्टान को ऐसे तराशा जाए जो कि अलग स्थान पर थपथपाने पर अलग ध्वनि पैदा कर सके। पर इस मंदिर में कम से कम 800 साल पहले ऐसी तकनीक का प्रयोग कैसे किया गया था? इस तरह की अलग-अलग ध्वनियों को बनाने का एकमात्र तरीका है चट्टान को पिघलाकर इसके घनत्व को बदलना, और इसे वांछित आकार में ढालना। पर क्या चट्टान को पिघला कर विभिन्न आकार देना संभव भी है?

2016 में बफैलो यूनिवर्सिटी ने कुछ बहुत ही अजीब साबित किया था। उन्होंने चट्टानों को भट्ठी में रखा, और उन्हें 2500 डिग्री फारेनहाइट से ज्यादा तापमान पर गर्म किया, और उन्हें द्रव बना दिया। वास्तव में, प्रकृति ऐसा हर समय करती है, जब भी कभी ज्वालामुखी विस्फोट होता है यह द्रवित लावा बाहर निकाल देती है। जब बफैलो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इस पिघले हुए चट्टान को बाहर निकाला, तब उन्होंने इसे रेत से बने साधारण सांचे में इकट्ठा कर लिया।

और आप देख सकते हैं कि पिघली हुई चट्टान जल्दी ही इसमें भर जाती है और सांचे का आकार ले लेती है। उदाहरण के तौर पर ठीक ऐसे ही हम तलवार और हथियारों जैसी धातु की वस्तुएं बनाते हैं। क्या प्राचीन निर्माताओं ने चट्टान पिघलाने की इसी तकनीक का प्रयोग किया और इसे मनचाहे घनत्वों में ढाला, यही इस से अलग जगहों पर अलग ध्वनि पैदा करवाने का एकमात्र तरीका हो सकता था। जो वास्तव में रोचक बात है वो यह है कि बफैलो यूनिवर्सिटी ने भी प्राचीन निर्माताओं के समान ही चट्टान का चयन किया, ये दोनों ही बेसाल्ट हैं।

बेसाल्ट में ऐसे गुण होते हैं, जो कि पिघलाने और आकार देने के लिए आदर्श होते हैं। पर इस मंदिर में चट्टान पिघलाने की तकनीक का एक और दिलचस्प सुबूत है। इस मंदिर के स्तंभ बहुत अद्वितीय और जटिल संरचना वाले हैं पर यहां एक टुकड़ा है जो बिल्कुल अलग है। अपनी नक्काशी के कारण नहीं, बल्कि इसलिए कि इसे खाली छोड़ दिया गया है, जबकि इसी स्तर पर अन्य सभी खंभे नक्काशी किये हुए हैं। और यह कुछ बहुत अजीब दर्शाता है, यह ढालने की तकनीक में कुछ कमियों को दर्शाता है। चलिए, इस सतह पर नजदीक से नज़र डालते हैं, इस पर असाधारण पॉलिश की गई है, पर यह सतह पूरी तरह से सपाट नहीं है।

#हिन्दू #praveenmohanhindi #प्रवीणमोहन

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8 июня 2021 г. 9:30:01
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