कैलाश नाथ मंदिर में छुपा पुनर्जन्म और ज्ञान का रहस्य | प्रवीण मोहन
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हैलो दोस्तो, आज हमलोग कैलाश नाथर मंदिर जो दक्षिण भारत में है उसे देखने जा रहे हैं। कुछ लोग इसे ऐलोरा गुफाओं में स्थित विश्व प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का प्रतिरूप(नमूना) मानते है। वहीं कुछ इसे सभी मंदिरों और आध्यात्मिकता का उद्गम स्थान मानते है। आपको ये पूरा मंदिर अगले विडियो में दिखाउंगा,लेकिन इस विडियो में . मैं आपको इस मंदिर में छुपे हुए आध्यात्मिकता के रहस्य को दिखाना चाहता हूँ |
तो , यहां बहुत सारे रिलीफ कार्विंग्स हैं, उनमें से में आपको यह वाला दिखाने जा रहा हूं,ठीक है? आपकी आंखों अपने आप ही इस बीच में बनी आकृति जाती है , यह एक बहुत उत्तम कहानी है। यह भगवान शिव और अर्जुन की कहानी है| और मैं आशा करता हूं कि आप यह कहानी जानते होंगे , और आपने कहानी का आनंद लिया होगा लेकिन अब आप आगे क्या करेंगे?
यहां आपकी नजर अपने आप ही इन जानवरों की तरफ जाती है जिनको यालिस कहा जाता है। अब ,इसके हाथों पर देखिए। देखें कि उसके हाथ क्या कर रहे हैं। एक याली का हाथ इस तरफ इशारा कर रहा है,और दूसरे याली का हाथ इस तरफ इशारा कर रहा है। बिल्कुल ये मेरे लिए बहुत मजेदार है। अब आपने इस आकृति का आनंद ले लिया, और आपने इस मन्दिर का भी आनन्द ले लिया, लेकिन अब आप आगे क्या करेंगे?
ये केवल श्रद्धा के बारे में नहीं है,ये शेर आपको अंदर जाने का इशारा कर रहे हैं... चलिए देखते हैं कि यहां अंदर क्या है| तो आप देख सकते हैं कि यहां एक व्यक्ति के बैठने के लिए जगह बनी हुई है। और यह एक एकांत स्थान है तो आपको बाहर से कोई नहीं देख सकता।तो यह स्थान ध्यान लगाने के लिए एकदम सही है | चलिए अब देखते हैं कि, दूसरी तरफ क्या है। क्योंकि यह यालि इस तरफ इशारा कर रहा है |
यहाँ भी.. दूसरी तरफ की तरह ही ध्यान के लिए बिल्कुल उचित एक दूसरा स्थान बना हुआ है। ये याली हमें यही बता रहे हैं | यह केवल श्रद्धा के बारे में नहीं है, आत्मज्ञान को खोजने की बात है | लेकिन यहां एक और मजेदार वस्तु है। अब आवाज पर ध्यान दें। ओम, ओम , ओम , ओम ,ओम
यदि आप यहाँ मंत्रोच्चार करेंगे तो यहां आपको एक स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनाई देगी। इसी प्रकार सन्यासी मंदिर का प्रयोग करते थे | यदि आप इस स्थान के अंदर बैठकर उच्चारण करेंगे तो आप एक तो बहुत ही आश्चर्यजनक प्रतिध्वनि का अनुभव करेंगे, ना केवल आवाज बल्कि आप शरीर और दिमाग में भी एक कंपन महसूस करेंगे | यहां परइस तरह के केवल एक या दो ऐसे कक्ष नहीं हैं बल्कि इस मंदिर में 56 ऐसे कक्ष हैं।
प्राचीन सन्यासी यहां समूह में आते थे और इन कक्षों में ध्यान करते थे | मैं यह मंदिर बहुत बार आ चुका हूं और आप विश्वास करें या ना करें लेकिन ये प्रथा आज भी यहाँ चल रही है। यदि आप यहां सुबह के समय आएं या किसी अलग समय पर यहाँ ठहरें तो आप यहाँ कुछ सन्यासियों को आकर ध्यान करते हुए देख सकते हैं । बल्कि कुछ के पास कुछ निश्चित कक्ष हैं जिनका प्रयोग वो बार बार करते हैं।
तो आप देख सकते हैं कैसे याली नाम के इस जानवर के इशारों को समझ कर हम बहुत सारी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं याद करें कि मैंने आपको दारासुरम के मंदिर में भी याली को दिखाया था | मैंने आपको दिखाया था कि कैसे याली की पूंछ और सूंड हमें कुछ बहुत ही विशेष समझने में मदद कर रही थी इसलिए यदि आप किसी प्राचीन भारतीय मंदिर में जाएं,तो याली पर ध्यान जरूर दें। लेकिन इस मंदिर में कुछ और ही है, जिसे ये याली बता रहे हैं।
पुरातत्वविद हमें बताते हैं कि कैलासनाथर मंदिर पूरी तरह से सेंडस्टोन और ग्रेनाइट से बना हुआ है। लेकिन यदि आप सावधानीपूर्वक देखेंगे तो, आपको पता चलेगा कि यह याली खुद बता रहा है कि वह पत्थरों से नहीं बना हुआ है। देखिए, हम इन याली के अंदर मौजूद लाल ईंट के टुकड़ों को देख सकते हैं। केवल एक या दो नहीं बल्कि बहुत सारी कलाकृतियों में इसे देख सकते हैं। कुछ जगह पर हम इन प्रतिमाओं में प्रयोग की गई अन्य सामग्री जैसे मोर्टार को देख सकते हैं।
और यह केवल याली तक सीमित नहीं है, देखिए यह पैनल भी बालू के पत्थर से बना लगता है, लेकिन ऐसा नहीं है। आप अंदर से बाहर को निकलते हुए ईंटों के टुकड़ों को देख सकते हैं। यह मंदिर बालू पत्थर या साधारण पत्थर से मिलकर नहीं बना है यह एक कृत्रिम पदार्थ से बना है, जिसमें अन्य अलग अलग पदार्थों का मिश्रण है | आज हम इसी तकनीक का प्रयोग करते हैं जिसे हम जियो पॉलीमर तकनीक कहते हैं और इस तकनीक से कृत्रिम चट्टानों का निर्माण करते हैं।
यह केवल एक परिकल्पना नहीं है :देखें कि यहाँ के पुजारी हमें क्या बता रहे हैं:
यह दूसरे मंदिर (कैलासा) से पूरी तरह अलग है | यह कोई उपलब्ध पत्थर नहीं है |
पुराने समय के लोग बुद्धिमान थे, उन्होंने इसे बनाया |
आज के समय में हमारा ग्यान शून्य है, किसी को भी नहीं पता कि इसका सही मिश्रण क्या था |
यही एक बुरी बात है कि इसी कारण से इसकी देखभाल नही की जा सकती और न मरम्मत की जा सकती है।
और उन्होंने मंदिर के निर्माण में साधारण पत्थरों की जगह ज्योपॉलीमर्स तकनीक से बने पत्थरों का प्रयोग क्यों किया।
पुजारी और कुछ स्थानीय लोगों का मानना है कि इन कृत्रिम पदार्थों को कुछ ऐसी ऊर्जा के उत्सर्जन के लिए प्रयोग किया गया था, जो ध्यान लगते समय आपके मस्तिष्क को शांत रख कर ध्यान के लिए एक आदर्श स्थित उत्पन्न कर सकती है | सोंचिए की क्यों सभी लोग अपने घरों से दूर यहां इस मंदिर में आकर इन कक्षों में बैठकर ध्यान लगाएंगे?
#हिन्दू #praveenmohanhindi #प्रवीणमोहन
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तो , यहां बहुत सारे रिलीफ कार्विंग्स हैं, उनमें से में आपको यह वाला दिखाने जा रहा हूं,ठीक है? आपकी आंखों अपने आप ही इस बीच में बनी आकृति जाती है , यह एक बहुत उत्तम कहानी है। यह भगवान शिव और अर्जुन की कहानी है| और मैं आशा करता हूं कि आप यह कहानी जानते होंगे , और आपने कहानी का आनंद लिया होगा लेकिन अब आप आगे क्या करेंगे?
यहां आपकी नजर अपने आप ही इन जानवरों की तरफ जाती है जिनको यालिस कहा जाता है। अब ,इसके हाथों पर देखिए। देखें कि उसके हाथ क्या कर रहे हैं। एक याली का हाथ इस तरफ इशारा कर रहा है,और दूसरे याली का हाथ इस तरफ इशारा कर रहा है। बिल्कुल ये मेरे लिए बहुत मजेदार है। अब आपने इस आकृति का आनंद ले लिया, और आपने इस मन्दिर का भी आनन्द ले लिया, लेकिन अब आप आगे क्या करेंगे?
ये केवल श्रद्धा के बारे में नहीं है,ये शेर आपको अंदर जाने का इशारा कर रहे हैं... चलिए देखते हैं कि यहां अंदर क्या है| तो आप देख सकते हैं कि यहां एक व्यक्ति के बैठने के लिए जगह बनी हुई है। और यह एक एकांत स्थान है तो आपको बाहर से कोई नहीं देख सकता।तो यह स्थान ध्यान लगाने के लिए एकदम सही है | चलिए अब देखते हैं कि, दूसरी तरफ क्या है। क्योंकि यह यालि इस तरफ इशारा कर रहा है |
यहाँ भी.. दूसरी तरफ की तरह ही ध्यान के लिए बिल्कुल उचित एक दूसरा स्थान बना हुआ है। ये याली हमें यही बता रहे हैं | यह केवल श्रद्धा के बारे में नहीं है, आत्मज्ञान को खोजने की बात है | लेकिन यहां एक और मजेदार वस्तु है। अब आवाज पर ध्यान दें। ओम, ओम , ओम , ओम ,ओम
यदि आप यहाँ मंत्रोच्चार करेंगे तो यहां आपको एक स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनाई देगी। इसी प्रकार सन्यासी मंदिर का प्रयोग करते थे | यदि आप इस स्थान के अंदर बैठकर उच्चारण करेंगे तो आप एक तो बहुत ही आश्चर्यजनक प्रतिध्वनि का अनुभव करेंगे, ना केवल आवाज बल्कि आप शरीर और दिमाग में भी एक कंपन महसूस करेंगे | यहां परइस तरह के केवल एक या दो ऐसे कक्ष नहीं हैं बल्कि इस मंदिर में 56 ऐसे कक्ष हैं।
प्राचीन सन्यासी यहां समूह में आते थे और इन कक्षों में ध्यान करते थे | मैं यह मंदिर बहुत बार आ चुका हूं और आप विश्वास करें या ना करें लेकिन ये प्रथा आज भी यहाँ चल रही है। यदि आप यहां सुबह के समय आएं या किसी अलग समय पर यहाँ ठहरें तो आप यहाँ कुछ सन्यासियों को आकर ध्यान करते हुए देख सकते हैं । बल्कि कुछ के पास कुछ निश्चित कक्ष हैं जिनका प्रयोग वो बार बार करते हैं।
तो आप देख सकते हैं कैसे याली नाम के इस जानवर के इशारों को समझ कर हम बहुत सारी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं याद करें कि मैंने आपको दारासुरम के मंदिर में भी याली को दिखाया था | मैंने आपको दिखाया था कि कैसे याली की पूंछ और सूंड हमें कुछ बहुत ही विशेष समझने में मदद कर रही थी इसलिए यदि आप किसी प्राचीन भारतीय मंदिर में जाएं,तो याली पर ध्यान जरूर दें। लेकिन इस मंदिर में कुछ और ही है, जिसे ये याली बता रहे हैं।
पुरातत्वविद हमें बताते हैं कि कैलासनाथर मंदिर पूरी तरह से सेंडस्टोन और ग्रेनाइट से बना हुआ है। लेकिन यदि आप सावधानीपूर्वक देखेंगे तो, आपको पता चलेगा कि यह याली खुद बता रहा है कि वह पत्थरों से नहीं बना हुआ है। देखिए, हम इन याली के अंदर मौजूद लाल ईंट के टुकड़ों को देख सकते हैं। केवल एक या दो नहीं बल्कि बहुत सारी कलाकृतियों में इसे देख सकते हैं। कुछ जगह पर हम इन प्रतिमाओं में प्रयोग की गई अन्य सामग्री जैसे मोर्टार को देख सकते हैं।
और यह केवल याली तक सीमित नहीं है, देखिए यह पैनल भी बालू के पत्थर से बना लगता है, लेकिन ऐसा नहीं है। आप अंदर से बाहर को निकलते हुए ईंटों के टुकड़ों को देख सकते हैं। यह मंदिर बालू पत्थर या साधारण पत्थर से मिलकर नहीं बना है यह एक कृत्रिम पदार्थ से बना है, जिसमें अन्य अलग अलग पदार्थों का मिश्रण है | आज हम इसी तकनीक का प्रयोग करते हैं जिसे हम जियो पॉलीमर तकनीक कहते हैं और इस तकनीक से कृत्रिम चट्टानों का निर्माण करते हैं।
यह केवल एक परिकल्पना नहीं है :देखें कि यहाँ के पुजारी हमें क्या बता रहे हैं:
यह दूसरे मंदिर (कैलासा) से पूरी तरह अलग है | यह कोई उपलब्ध पत्थर नहीं है |
पुराने समय के लोग बुद्धिमान थे, उन्होंने इसे बनाया |
आज के समय में हमारा ग्यान शून्य है, किसी को भी नहीं पता कि इसका सही मिश्रण क्या था |
यही एक बुरी बात है कि इसी कारण से इसकी देखभाल नही की जा सकती और न मरम्मत की जा सकती है।
और उन्होंने मंदिर के निर्माण में साधारण पत्थरों की जगह ज्योपॉलीमर्स तकनीक से बने पत्थरों का प्रयोग क्यों किया।
पुजारी और कुछ स्थानीय लोगों का मानना है कि इन कृत्रिम पदार्थों को कुछ ऐसी ऊर्जा के उत्सर्जन के लिए प्रयोग किया गया था, जो ध्यान लगते समय आपके मस्तिष्क को शांत रख कर ध्यान के लिए एक आदर्श स्थित उत्पन्न कर सकती है | सोंचिए की क्यों सभी लोग अपने घरों से दूर यहां इस मंदिर में आकर इन कक्षों में बैठकर ध्यान लगाएंगे?
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