क्या? हमारे हिन्दू मंदिर आधुनिक वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं से अधिक उन्नत थे?
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नमस्कार मित्रों,ये है हम्पी का विरुपाक्ष मंदिर जिसका निर्माण चौदह सौ वर्ष पूर्व हुआ था और इस मंदिर में एक बहुत रहस्यमयी घटना घटित हो रही है। यहाँ के कई अंधेरे कक्षों में से एक में हम मंदिर के मीनार की उल्टी तस्वीर देख सकते हैं। यहाँ दीवाल पर आप मीनार की चमकती,सुनहली छवि को उल्टा देख सकते हैं। अगर आप ध्यान से देखें,तो आप मीनार के ऊपर बनी धातु की संरचना सहित पूरे मीनार को सारे विस्तार सहित देख सकते हैं। और ये और ज्यादा दिलचस्प होगा कि ये तस्वीर केवल दोपहर में नजर आती है,आप इस उल्टी सुनहली मीनार को सवेरे नहीं देख सकते,ये केवल दोपहर दो और छह के बीच ही होता है।
कक्ष के बिल्कुल दूसरी तरफ,हम एक छेद देख सकते हैं,जो कि एक फुट चौड़ा है।
अगर आप इस छेद से देखें तो आप मंदिर की वास्तविक मीनार को देख पाएंगे जो एक सौ साठ फुट लंबी है। अब,ये कैसे संभव है कि हम मीनार की उल्टी तस्वीर देख पाते हैं? क्या ये छवि वास्तविक है? या ये किसी तरह का जादू या दृष्टिभ्रम है? आज भी,हजारों लोग इस मंदिर में इस चमत्कारी दृश्य को देखने आते हैं। मेरा सबसे पहला शक था कि दीवाल को किसी प्रकार के ऐसे लेप से रंगा गया हो जो अंधेरे में चमकता हो,फोस्फोर जैसा ये इसलिए कि प्रकाश के उजाले में भी दीवाल पर काला सा त्रिकोण दिखता है जिसमें किसी प्रकार का रंग लगा दिखता है या फिर हो सकता है कि वो कोई गंदगी ही हो।
सो मैंने इन महाशय को दीवाल के सामने एक कपड़ा पकड़ के रखने का अनुरोध किया। जिसका मतलब है कि यदि वास्तव में मीनार से प्रकाश-किरणें इस छेद के सहारे आ रही है तो हम अवश्य कपड़े पर भी छवि देख पाएंगे। पर अगर ये कोई चाल है,तो कपड़े पर छवि नही दिखाई देगी। पर जैसा कि आप देख सकते हैं,छवि कपड़े पर भी दिख रही है,जिसका अर्थ है कि ये वास्तव में मीनार की ही छवि है जो कि छेद से आ रही रोशनी के सहारे बनी है। और अब अंतिम परीक्षा है छेद को ढककर देखने की,कि ये परछाई गायब होती है क्या ये पुष्टि करेगा कि जो प्रकाश इस छवि को निर्मित कर रहा है वो क्या वास्तव में इसी छिद्र विशेष से आ रहा है।
सो,मैंने अपने मित्र को छेद को ढकने को कहा,और जैसे ही उसने अपने हाथ से छेद को ढका, आप देख सकते हैं कि दीवाल पर से परछाई गायब हो गई। सो वास्तव में प्रकाश इसी छिद्र विशेष से आ रहा है,जिसके साथ कोई लेंस या वैसा कुछ जुड़ा नहीं है। और अगर आप बाहर जाते हैं,तो आप इस छेद को बाहर से भी देख सकते हैं और ये सीधे मंदिर की मीनार की तरफ इंगित कर रहा है।
अब वेब पर बहुत सारी पोस्ट्स और वीडिओज़ हैं जो ये दावा करते हैं कि ये एक अलौकिक घटना है किसी ने भी ये समझाने की चेष्टा नहीं की क्यूँ हम यहाँ मीनार की उल्टी तस्वीर देखते हैं। और ये अगर वाकई रोशनी के आर-पार होने की साधारण सी घटना है,तो फिर ये सबेरे भी क्यूँ नहीं घटती? ये दोपहर में ही क्यूँ होती है? पहली बात ये है कि जो हम देख रहे हैं उसे कैमरा ऑब्सक्यूरा पिन होल इमेज कहते हैं।
ये एक प्राकृतिक प्रकाशीय घटना है। मसलन,अगर आप अपने घर की सारी खिड़कियाँ बंद कर लें,और एक छोटा सा छिद्र बनाएँ,तो प्रकाश की किरणें दीवाल से टकराएंगी और जो कुछ भी बाहर है उसकी उल्टी परछाई बनाएगी। इसका कारण है कि ऊपर से रोशनी नीचे टकराएगी और नीचे से रोशनी ऊपर टकराएगी। इसे आधुनिक भौतिक विज्ञान में कई बार सिद्ध किया गया है।
बहरहाल,ये भारत में सबसे पुरानी ज्ञात पिन होल इमेज है जो कि चौदह सौ वर्ष पहले बनाई गई। बिल्कुल इसलिए ही आप दीवाल पर मीनार की उल्टी तस्वीर देख पाते हैं। ठीक है,तो पिन होल इफ़ेक्ट के कारण हम ये सुनहरी छवि देख पाते हैं,पर आखिर ये दोपहर में ही क्यूँ बनती है? इसको समझने के लिए हमें मीनार को बाहर से देखना होगा। ये मंदिर की मीनार है जब हम इसे मंदिर के बाहर खड़े होकर देखते हैं। मैंने इसे दोपहर के लगभग चार बजे शूट किया।
आप देख सकते हैं कि मीनार सुनहरी या चमकती हुई हैं दिखती,बल्कि बेहद धुंधली सी दिखती है। पर यदि हम मंदिर के अंदर जाते हैं और इसी मीनार का दूसरा पहलू देखते है,तो ये सूर्य किरणों के कारण चमकता हुआ और सुनहला सा दिखता है। इसका कारण है कि मंदिर को पूर्वाभिमुख बनाया गया है,और सवेरे के समय अंदर से मीनार धुंधला दिखाई देता है क्यूंकि सूर्य मीनार के अंदर वाले भाग पर नहीं चमक रहा।
मीनार का भीतरी भाग तभी चमकना प्रारम्भ करता है जब सूर्य पश्चिम की तरफ बढ़ता है और उसे सुनहला रूप देता है। अगर आप अंधेरे कक्ष में सबेरे जाएंगे,तब भी आप मीनार की बहुत ही धुंधली परछाई देख पाएंगे पर ये सुनहला नहीं दिखेगा। सो,अब आप जान गए कि क्यूँ हम विरुपाक्ष मंदिर में रहस्यमयी सुनहली मीनार को उल्टा देखते हैं मैं आशा करता हूँ कि आपको ये वीडियो पसंद आया होगा,मैं हूँ प्रवीण मोहन इस वीडियो को लाइक करे और इसे अपने दोस्तों के साथ साँझा करें इस वीडियो को देखने के लिए बहुत धन्यवाद,चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें,मैं फिर शीघ्र आप से मुलाकात करूंगा,नमस्कार…
#हिन्दू #praveenmohanhindi #प्रवीणमोहन
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कक्ष के बिल्कुल दूसरी तरफ,हम एक छेद देख सकते हैं,जो कि एक फुट चौड़ा है।
अगर आप इस छेद से देखें तो आप मंदिर की वास्तविक मीनार को देख पाएंगे जो एक सौ साठ फुट लंबी है। अब,ये कैसे संभव है कि हम मीनार की उल्टी तस्वीर देख पाते हैं? क्या ये छवि वास्तविक है? या ये किसी तरह का जादू या दृष्टिभ्रम है? आज भी,हजारों लोग इस मंदिर में इस चमत्कारी दृश्य को देखने आते हैं। मेरा सबसे पहला शक था कि दीवाल को किसी प्रकार के ऐसे लेप से रंगा गया हो जो अंधेरे में चमकता हो,फोस्फोर जैसा ये इसलिए कि प्रकाश के उजाले में भी दीवाल पर काला सा त्रिकोण दिखता है जिसमें किसी प्रकार का रंग लगा दिखता है या फिर हो सकता है कि वो कोई गंदगी ही हो।
सो मैंने इन महाशय को दीवाल के सामने एक कपड़ा पकड़ के रखने का अनुरोध किया। जिसका मतलब है कि यदि वास्तव में मीनार से प्रकाश-किरणें इस छेद के सहारे आ रही है तो हम अवश्य कपड़े पर भी छवि देख पाएंगे। पर अगर ये कोई चाल है,तो कपड़े पर छवि नही दिखाई देगी। पर जैसा कि आप देख सकते हैं,छवि कपड़े पर भी दिख रही है,जिसका अर्थ है कि ये वास्तव में मीनार की ही छवि है जो कि छेद से आ रही रोशनी के सहारे बनी है। और अब अंतिम परीक्षा है छेद को ढककर देखने की,कि ये परछाई गायब होती है क्या ये पुष्टि करेगा कि जो प्रकाश इस छवि को निर्मित कर रहा है वो क्या वास्तव में इसी छिद्र विशेष से आ रहा है।
सो,मैंने अपने मित्र को छेद को ढकने को कहा,और जैसे ही उसने अपने हाथ से छेद को ढका, आप देख सकते हैं कि दीवाल पर से परछाई गायब हो गई। सो वास्तव में प्रकाश इसी छिद्र विशेष से आ रहा है,जिसके साथ कोई लेंस या वैसा कुछ जुड़ा नहीं है। और अगर आप बाहर जाते हैं,तो आप इस छेद को बाहर से भी देख सकते हैं और ये सीधे मंदिर की मीनार की तरफ इंगित कर रहा है।
अब वेब पर बहुत सारी पोस्ट्स और वीडिओज़ हैं जो ये दावा करते हैं कि ये एक अलौकिक घटना है किसी ने भी ये समझाने की चेष्टा नहीं की क्यूँ हम यहाँ मीनार की उल्टी तस्वीर देखते हैं। और ये अगर वाकई रोशनी के आर-पार होने की साधारण सी घटना है,तो फिर ये सबेरे भी क्यूँ नहीं घटती? ये दोपहर में ही क्यूँ होती है? पहली बात ये है कि जो हम देख रहे हैं उसे कैमरा ऑब्सक्यूरा पिन होल इमेज कहते हैं।
ये एक प्राकृतिक प्रकाशीय घटना है। मसलन,अगर आप अपने घर की सारी खिड़कियाँ बंद कर लें,और एक छोटा सा छिद्र बनाएँ,तो प्रकाश की किरणें दीवाल से टकराएंगी और जो कुछ भी बाहर है उसकी उल्टी परछाई बनाएगी। इसका कारण है कि ऊपर से रोशनी नीचे टकराएगी और नीचे से रोशनी ऊपर टकराएगी। इसे आधुनिक भौतिक विज्ञान में कई बार सिद्ध किया गया है।
बहरहाल,ये भारत में सबसे पुरानी ज्ञात पिन होल इमेज है जो कि चौदह सौ वर्ष पहले बनाई गई। बिल्कुल इसलिए ही आप दीवाल पर मीनार की उल्टी तस्वीर देख पाते हैं। ठीक है,तो पिन होल इफ़ेक्ट के कारण हम ये सुनहरी छवि देख पाते हैं,पर आखिर ये दोपहर में ही क्यूँ बनती है? इसको समझने के लिए हमें मीनार को बाहर से देखना होगा। ये मंदिर की मीनार है जब हम इसे मंदिर के बाहर खड़े होकर देखते हैं। मैंने इसे दोपहर के लगभग चार बजे शूट किया।
आप देख सकते हैं कि मीनार सुनहरी या चमकती हुई हैं दिखती,बल्कि बेहद धुंधली सी दिखती है। पर यदि हम मंदिर के अंदर जाते हैं और इसी मीनार का दूसरा पहलू देखते है,तो ये सूर्य किरणों के कारण चमकता हुआ और सुनहला सा दिखता है। इसका कारण है कि मंदिर को पूर्वाभिमुख बनाया गया है,और सवेरे के समय अंदर से मीनार धुंधला दिखाई देता है क्यूंकि सूर्य मीनार के अंदर वाले भाग पर नहीं चमक रहा।
मीनार का भीतरी भाग तभी चमकना प्रारम्भ करता है जब सूर्य पश्चिम की तरफ बढ़ता है और उसे सुनहला रूप देता है। अगर आप अंधेरे कक्ष में सबेरे जाएंगे,तब भी आप मीनार की बहुत ही धुंधली परछाई देख पाएंगे पर ये सुनहला नहीं दिखेगा। सो,अब आप जान गए कि क्यूँ हम विरुपाक्ष मंदिर में रहस्यमयी सुनहली मीनार को उल्टा देखते हैं मैं आशा करता हूँ कि आपको ये वीडियो पसंद आया होगा,मैं हूँ प्रवीण मोहन इस वीडियो को लाइक करे और इसे अपने दोस्तों के साथ साँझा करें इस वीडियो को देखने के लिए बहुत धन्यवाद,चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें,मैं फिर शीघ्र आप से मुलाकात करूंगा,नमस्कार…
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