रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 96 - श्री कृष्ण और इंद्र देव का युद्ध | पारिजात का वृक्ष मिला
Watch This New Song Bhaj Govindam By Adi Shankaracharya : https://youtu.be/uRxtXh4oNaM
तिलक की नवीन प्रस्तुति "श्री आदि शंकराचार्य कृत भज गोविन्दम्" अभी देखें : https://youtu.be/uRxtXh4oNaM
_________________________________________________________________________________________________ बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏
Watch the video song of ''Darshan Do Bhagwaan'' here - https://youtu.be/j7EQePGkak0
Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 96 - Shri Krishna Aur Indra Dev Ka Yudh. Parijat Ka Vruksh Mila.
श्रीकृष्ण देवलोक से अपने साथ पारिजात पुष्प लेकर आये थे, जिसे उन्होंने अपनी पटरानी रुक्मिणी को भेंट कर दिया। पारिजात पुष्प की विशेषता यह है कि इसे धारण करने वाले को चिरयौवन की प्राप्ति होती है। इस बात का पता चलने पर सत्यभामा को बहुत ईर्ष्या होती है। सत्यभामा तय करती हैं कि द्वारिकाधीश ने तो रुक्मिणी दीदी को केवल एक पुष्प दिया है। मैं उनसे पारिजात का पूरा वृक्ष लेकर रहूँगी। इसके बाद सत्यभामा अपने समस्त श्रँगार का त्याग करती हैं और रुष्ट होने के प्रदर्शन करती हैं। श्रीकृष्ण उन्हें मनाने आते हैं तो वह उनसे पारिजात का वृक्ष लाकर देने की माँग करती हैं। श्रीकृष्ण इसे दुष्कर कार्य बताते हुए कहते हैं कि पारिजात का वृक्ष तो देवलोक के नन्दन वन में है। सत्यभामा की नाराजगी और बढती है। वह कहती हैं कि आप रुक्मिणी दीदी से अधिक प्रेम करते हैं। आपने पारिजात पुष्प उन्हें दिया, मुझे नहीं। श्रीकृष्ण सत्यभामा को समझाते हुए कहते हैं कि तुमने देवलोक जाकर पारिजात के दर्शन किये थे। परन्तु रुक्मिणी ने पारिजात को नहीं देखा था इसलिये जब देवराज इन्द्र ने मुझे वह फूल दिया तो मैंने इसे रुक्मिणी को दे दिया। इसमें भेदभाव की बात कहाँ है। किन्तु अब सत्यभामा अपने हठ पर हैं। वह कहती हैं कि यदि आप मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं तो अब मुझे एक पुष्प नहीं, पूरा पारिजात वृक्ष लाकर दीजिये, मैंने उसकी छाया में पुण्यक व्रत करने का संकल्प किया है। अन्यथा मैं तपस्विनी बनकर वन चली जाऊँगी। सत्यभामा के हठ को देखकर श्रीकृष्ण उन्हें पारिजात वृक्ष लाने का आश्वासन देते हैं। सत्यभामा की प्रसन्नता चरम पर पहुँचती है। श्रीकृष्ण नारद मुनि के माध्यम से इन्द्र तक अपना सन्देश पहुँचाते हैं। इन्द्र नारद जी से रूखे स्वर में कहते हैं कि श्रीकृष्ण क्या ये नहीं जानते हैं कि वे मनुष्य योनि में हैं और इस समय मृत्युलोक वास कर रहे हैं। यदि देवलोक की निधि मृत्युलोक में चली गयीं तो पृथ्वी और देवलोक के बीच अन्तर क्या रह जायेगा। द्वारिकाधीश चाहें तो स्वर्ग के तमाम आभूषण और वस्त्रों का उपभोग कर सकते हैं किन्तु पारिजात स्वर्ग की शोभा है, मैं इसे देने से स्पष्ट इनकार करता हूँ। नारद धरती पर वापस आकर श्रीकृष्ण को इन्द्र का सन्देश देते हैं। श्रीकृष्ण इन्द्र से युद्ध करके पारिजात प्राप्त करने की घोषणा कर देते हैं। दोनों के बीच संग्राम छिड़ जाता है। लड़ते-लड़ते पूरा दिन निकल जाता है। इन्द्र श्रीकृष्ण से कहते हैं कि पृथ्वी पर संध्या वन्दन का समय हो गया है और युद्धनीति के अनुसार अब ये आपके विश्राम का समय है। कल प्रातः फिर युद्ध शुरू होगा। उस दिन शिवरात्रि होने के कारण श्रीकृष्ण पारियात्र पर्वत जाकर शिवजी की अराधना करते हैं। शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट होते हैं और कहते हैं कि आपने जिस पर्वत पर मेरी आराधना की है, अब वह स्थान बिल्वेश्वर के नाम से पुकारा जायेगा। भगवान शंकर कहते हैं कि मैं देखकर रहा हूँ कि इन्द्र से युद्ध करते हुए आपने अभी तक उसपर एक भी घातक प्रहार नहीं किया है। तब श्रीकृष्ण उन्हें बताते हैं कि मैं इन्द्र का पराभाव नहीं चाहता। बस केवल उनके अहंकार का नाश करना चाहता हूँ। मैं पहले भी गोवर्धन पर्वत पर उसके अहंकार का नाश कर चुका हूँ। उसने आपको भी पारिजात देने से इनकार कर दिया था। वह स्वयं को देवलोक में सर्वोच्च सत्ता के रूप में स्थापित कर रहा है। मैं उसके इसी अहंकार को तोड़ने के लिये पारिजात वृक्ष धरती पर ले जाना चाहता हूँ। इसके लिये आप मुझे आशीर्वाद दीजिये। शिवजी उन्हें वरदान देते हैं कि कल आप पारिजात के साथ ही पृथ्वी लोक जायेंगे। अगले दिन पुनः युद्ध प्रारम्भ होता है। श्रीकृष्ण का सुदर्शन इन्द्र का शीश काटने को बढ़ता है। तभी देवमाता अदिति इन्द्र और सुदर्शन के बीच खड़ी हो जाती हैं। श्रीकृष्ण सुदर्शन को रुकने का आदेश देते हैं और देवमाता को प्रणाम करते हैं। देवमाता अदिति श्रीकृष्ण से कहती हैं कि तुम्हारे वामन अवतार के लिये मैंने ही तुम्हें जन्म दिया था। इस तरह इन्द्र तुम्हारा भाई है। तुम यह युद्ध रोक दो। श्रीकृष्ण सुदर्शन को वापस अपनी उँगली पर बुला लेते हैं। देवमाता श्रीकृष्ण से कहती हैं कि मैं तुम्हें पारिजात प्रदान करती हूँ किन्तु इसका विधान यह होगा कि जब सत्यभामा का पुण्यक व्रत पूरा होगा, यह वापस देवलोक में आ जायेगा। इसके बाद श्रीकृष्ण पारिजात वृक्ष को लेकर धरती की ओर प्रस्थान करते हैं।
In association with Divo - our YouTube Partner
#SriKrishna #SriKrishnaonYouTube
Видео रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 96 - श्री कृष्ण और इंद्र देव का युद्ध | पारिजात का वृक्ष मिला канала Tilak
तिलक की नवीन प्रस्तुति "श्री आदि शंकराचार्य कृत भज गोविन्दम्" अभी देखें : https://youtu.be/uRxtXh4oNaM
_________________________________________________________________________________________________ बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏
Watch the video song of ''Darshan Do Bhagwaan'' here - https://youtu.be/j7EQePGkak0
Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 96 - Shri Krishna Aur Indra Dev Ka Yudh. Parijat Ka Vruksh Mila.
श्रीकृष्ण देवलोक से अपने साथ पारिजात पुष्प लेकर आये थे, जिसे उन्होंने अपनी पटरानी रुक्मिणी को भेंट कर दिया। पारिजात पुष्प की विशेषता यह है कि इसे धारण करने वाले को चिरयौवन की प्राप्ति होती है। इस बात का पता चलने पर सत्यभामा को बहुत ईर्ष्या होती है। सत्यभामा तय करती हैं कि द्वारिकाधीश ने तो रुक्मिणी दीदी को केवल एक पुष्प दिया है। मैं उनसे पारिजात का पूरा वृक्ष लेकर रहूँगी। इसके बाद सत्यभामा अपने समस्त श्रँगार का त्याग करती हैं और रुष्ट होने के प्रदर्शन करती हैं। श्रीकृष्ण उन्हें मनाने आते हैं तो वह उनसे पारिजात का वृक्ष लाकर देने की माँग करती हैं। श्रीकृष्ण इसे दुष्कर कार्य बताते हुए कहते हैं कि पारिजात का वृक्ष तो देवलोक के नन्दन वन में है। सत्यभामा की नाराजगी और बढती है। वह कहती हैं कि आप रुक्मिणी दीदी से अधिक प्रेम करते हैं। आपने पारिजात पुष्प उन्हें दिया, मुझे नहीं। श्रीकृष्ण सत्यभामा को समझाते हुए कहते हैं कि तुमने देवलोक जाकर पारिजात के दर्शन किये थे। परन्तु रुक्मिणी ने पारिजात को नहीं देखा था इसलिये जब देवराज इन्द्र ने मुझे वह फूल दिया तो मैंने इसे रुक्मिणी को दे दिया। इसमें भेदभाव की बात कहाँ है। किन्तु अब सत्यभामा अपने हठ पर हैं। वह कहती हैं कि यदि आप मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं तो अब मुझे एक पुष्प नहीं, पूरा पारिजात वृक्ष लाकर दीजिये, मैंने उसकी छाया में पुण्यक व्रत करने का संकल्प किया है। अन्यथा मैं तपस्विनी बनकर वन चली जाऊँगी। सत्यभामा के हठ को देखकर श्रीकृष्ण उन्हें पारिजात वृक्ष लाने का आश्वासन देते हैं। सत्यभामा की प्रसन्नता चरम पर पहुँचती है। श्रीकृष्ण नारद मुनि के माध्यम से इन्द्र तक अपना सन्देश पहुँचाते हैं। इन्द्र नारद जी से रूखे स्वर में कहते हैं कि श्रीकृष्ण क्या ये नहीं जानते हैं कि वे मनुष्य योनि में हैं और इस समय मृत्युलोक वास कर रहे हैं। यदि देवलोक की निधि मृत्युलोक में चली गयीं तो पृथ्वी और देवलोक के बीच अन्तर क्या रह जायेगा। द्वारिकाधीश चाहें तो स्वर्ग के तमाम आभूषण और वस्त्रों का उपभोग कर सकते हैं किन्तु पारिजात स्वर्ग की शोभा है, मैं इसे देने से स्पष्ट इनकार करता हूँ। नारद धरती पर वापस आकर श्रीकृष्ण को इन्द्र का सन्देश देते हैं। श्रीकृष्ण इन्द्र से युद्ध करके पारिजात प्राप्त करने की घोषणा कर देते हैं। दोनों के बीच संग्राम छिड़ जाता है। लड़ते-लड़ते पूरा दिन निकल जाता है। इन्द्र श्रीकृष्ण से कहते हैं कि पृथ्वी पर संध्या वन्दन का समय हो गया है और युद्धनीति के अनुसार अब ये आपके विश्राम का समय है। कल प्रातः फिर युद्ध शुरू होगा। उस दिन शिवरात्रि होने के कारण श्रीकृष्ण पारियात्र पर्वत जाकर शिवजी की अराधना करते हैं। शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट होते हैं और कहते हैं कि आपने जिस पर्वत पर मेरी आराधना की है, अब वह स्थान बिल्वेश्वर के नाम से पुकारा जायेगा। भगवान शंकर कहते हैं कि मैं देखकर रहा हूँ कि इन्द्र से युद्ध करते हुए आपने अभी तक उसपर एक भी घातक प्रहार नहीं किया है। तब श्रीकृष्ण उन्हें बताते हैं कि मैं इन्द्र का पराभाव नहीं चाहता। बस केवल उनके अहंकार का नाश करना चाहता हूँ। मैं पहले भी गोवर्धन पर्वत पर उसके अहंकार का नाश कर चुका हूँ। उसने आपको भी पारिजात देने से इनकार कर दिया था। वह स्वयं को देवलोक में सर्वोच्च सत्ता के रूप में स्थापित कर रहा है। मैं उसके इसी अहंकार को तोड़ने के लिये पारिजात वृक्ष धरती पर ले जाना चाहता हूँ। इसके लिये आप मुझे आशीर्वाद दीजिये। शिवजी उन्हें वरदान देते हैं कि कल आप पारिजात के साथ ही पृथ्वी लोक जायेंगे। अगले दिन पुनः युद्ध प्रारम्भ होता है। श्रीकृष्ण का सुदर्शन इन्द्र का शीश काटने को बढ़ता है। तभी देवमाता अदिति इन्द्र और सुदर्शन के बीच खड़ी हो जाती हैं। श्रीकृष्ण सुदर्शन को रुकने का आदेश देते हैं और देवमाता को प्रणाम करते हैं। देवमाता अदिति श्रीकृष्ण से कहती हैं कि तुम्हारे वामन अवतार के लिये मैंने ही तुम्हें जन्म दिया था। इस तरह इन्द्र तुम्हारा भाई है। तुम यह युद्ध रोक दो। श्रीकृष्ण सुदर्शन को वापस अपनी उँगली पर बुला लेते हैं। देवमाता श्रीकृष्ण से कहती हैं कि मैं तुम्हें पारिजात प्रदान करती हूँ किन्तु इसका विधान यह होगा कि जब सत्यभामा का पुण्यक व्रत पूरा होगा, यह वापस देवलोक में आ जायेगा। इसके बाद श्रीकृष्ण पारिजात वृक्ष को लेकर धरती की ओर प्रस्थान करते हैं।
In association with Divo - our YouTube Partner
#SriKrishna #SriKrishnaonYouTube
Видео रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 96 - श्री कृष्ण और इंद्र देव का युद्ध | पारिजात का वृक्ष मिला канала Tilak
Показать
Комментарии отсутствуют
Информация о видео
Другие видео канала
उस सुन्दरी का कैसा सौभाग्य है, कि वन की कुटिया से सीधी लंका के राजमहल पहुँचने वाली है | रावण औरसोलह कलाओं का ज्ञान और भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार | श्री कृष्ण | दिव्य कथाएँमंत्र महात्म्य श्रृंखला | माँ बगलामुखी बीज मंत्र | शत्रुओं से रक्षा और जीवन की हर समस्या का समाधानशिव और शक्ति ने देवगणों को मनवांछित उपहार दिया है | देवताओं की रक्षा सिर्फ़ शिव पुत्र ही कर सकता हैअयि गिरिनन्दिनि- महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र | मधुबंती बागची - 9 #shortsमन को वश में करने हेतु अभ्यास और वैराग्य को अपना पड़ता है | Shree Krishna | Geeta Updesh #Shortsदानवेश्वर, लगता है आप हमारी मान्यता को मिटाने की ठान कर आए है | रावण | Ramayan Dialogues Compilationमूर्खों के सामने विनय दिखाना और कुटिल के संग प्रीत करना व्यर्थ होता है | श्री राम | Ramayanजो जिस रूप में प्रभु को ध्याता है उसी रूप में प्रभु प्राप्त होते हैं | Shree Krishna Samvadमाया की ऐसी शक्ति नहीं की वह भक्तों के साथ खेल सके | Shree Krishna Samvad | श्री कृष्ण संवादRamayan Dialogue Status | रामायण डायलॉग | जटायु तुम मेरे प्राणों जैसे प्यारे होप्रेम तो किसी दूसरे से किया जाता है | Shree Krishna Samvad | श्री कृष्ण संवादअगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी- रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् | शिव तांडव स्तोत्र | तिलक 🙏जो होता है वह अच्छे के लिए होता है | Ramayan Dialogues | रामायण डायलोग #ShortsRamayan Dialogue Status । रामायण डायलॉग | Raavan | रावणराम जिसके ईश्वर हैं वही रामेश्वर हैं | Ramayan Samvad | रामायण संवादमैं तो केवल प्रेम के वश में हूँ | Shree Krishna Samvad | श्री कृष्ण संवाददुर्भाग्य की संक्षिप्त व्याख्या | Shree Krishna Samvad | श्री कृष्ण संवादअयि गिरिनन्दिनि- महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र | मधुबंती बागची - 5 #shortsअयि गिरिनन्दिनि- महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र | मधुबंती बागची - 4 #shortsचंचल मन पर क़ाबू पाना बहुत कठिन होता है | Shree Krishna | Geeta Updesh