स्मॉग की समस्या और उनसे जुडी चुनौतियां का संपूर्ण विश्लेषण और जमीनी सचाई देखते हैं। [Smog Problem]**
जब देश पर्यावरण को लेकर ऐसी गंभीर समस्याओं से घिरा हुआ है उस समय जर्मनी की एक कंपनी ने प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए एक खोज की है। इस उपाय से न केवल इस समस्या से बचा जा सकेगा बल्कि प्रदूषण की विभीषिका को भी कम किया जा सकेगा।
#स्मॉगकीसमस्याHindiDocumentary #पर्यावरणकोठीककरना #पर्यावरणHindiDocumentray #TajAgro
जर्मनी में स्थित बर्लिन शहर की ग्रीन सिटी साल्यूशन कंपनी ने एक मोबाईल वॉल को डिजाइन किया है। यह एक चलता फिरता शैवाल (काई) की दीवार है जिसमें कई तरह के शैवाल लगाए गये हैं। इसके माध्यम से पर्यावरण की समस्या पर कुछ हद तक समाधान किया जा सकता है। इसको कंपनी ने सिटी ट्री नाम दिया है। यह हवा को शुद्ध करने के साथ ही आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है।
इसमें ऐसे शैवाल लगाए गए हैं जिनसे ज्यादा मात्रा में हवा को शुद्ध किया जा सकता है। इस कारण प्रकाश संश्लेषण (फोटो सिंथेसिस) की प्रक्रिया के दौरान हवा शुद्ध हो जाती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह चलता-फिरता वॉल है जिसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। इसके साथ ही इसके रख रखाव की भी लागत बहुत ही कम है।
दरअसल सारा विवाद इसी को लेकर है कि स्मॉग टॉवर वायु प्रदूषण की समस्या का हल नहीं है और यह प्रदूषण उत्पन्न करने वाले कारकों पर कोई प्रभाव नहीं डालता है। असल बात यह है कि जब तक प्रदूषण फैलाने वाले स्रोत बंद नहीं किए जाएंगे, तब तक स्मॉग टॉवर जैसे टोटके सिर्फ जन-धन की हानि करते रहेंगे।
स्मॉग से बचाने में एयर प्यूरीफ़ायर्स कितने कामयाब?
दिल्ली के गंगा राम अस्पताल में लंग कैंसर विशेषज्ञ डॉ. अरविंद कुमार के मुताबिक़, उत्तर भारत के बड़े शहरों में प्रदूषण का ये ट्रेंड अगर इसी तरह जारी रहा तो इस क्षेत्र में फेफड़ों के कैंसर के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हो सकती है. बीते साल ही दिल्ली की रहने वाली एक 28 वर्षीय महिला को लंग कैंसर होने की बात सामने आई थी जबकि वह सिगरेट या बीड़ी आदि नहीं पीती थीं.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि इसका समाधान क्या है?
डॉ. अरविंद समेत देश के तमाम विशेषज्ञ मानते हैं कि वायु प्रदूषण की समस्या का सिर्फ एक समाधान है – वायु प्रदूषण को कम करना.
लेकिन पिछले कई सालों से वायु प्रदूषण कम होने की बजाए बढ़ता ही दिख रहा है. ऐसे में लोगों ने एन 95 मास्क और एयर प्यूरीफायर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है जिससे इस इंडस्ट्री में बेहद तेज़ उछाल आया है.
ई-कॉमर्स वेबसाइट ऐमेज़ॉन के मुताबिक़, साल 2016 में लोगों ने 2015 के मुक़ाबले 400% ज़्यादा एयर प्यूरीफ़ायर ख़रीदे थे. वहीं, 2017 में लोगों ने 2016 के मुक़ाबले 500 प्रतिशत ज़्यादा एयर प्यूरीफ़ायर ख़रीदे और एयर प्यूरीफायर आहिस्ता-आहिस्ता से टीवी, फ्रिज़, एसी जैसे होम एप्लाएंस कहे जाने वाले उत्पादों में शामिल हो चुका है.
बाज़ार में इस समय 5,000 रुपये से लेकर 50,000 रुपये तक के एयर प्यूरीफायर्स उपलब्ध हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या इस ज़हरीली हवा से बचने के लिए एयर प्यूरीफायर का सहारा लिया जा सकता है?
कितने कामयाब हैं एयर प्यूरीफायर?
एयर प्यूरीफायर बनाने वाली कंपनियां अपने विज्ञापनों में अलग-अलग तकनीकी शब्दों का प्रयोग करके ये जताने की कोशिश करती हैं कि उनके ब्रांड के एयर प्यूरीफायर आपको वायु प्रदूषण की समस्या से एक हद तक निजात दिला सकते हैं.
लेकिन अब तक किसी वैज्ञानिक अध्ययन में ये सिद्ध नहीं हुआ है कि एयर प्यूरीफायर दिल्ली जैसे विशाल शहर की आबादी को वायु प्रदूषण के नकारात्मक प्रभावों से बचा सकता है.
सेंटर फॉर साइंस एंड स्टडीज़ से जुड़े विशेषज्ञ विवेक चट्टोपाध्याय मानते हैं कि एयर प्यूरीफायर को एक समाधान मानना ग़लती होगी.
वे कहते हैं, “अभी हम जिस हवा में साँस ले रहे हैं, वह स्वास्थ्य के लिहाज़ से बेहद ख़तरनाक है. हम ख़राब, बहुत ख़राब स्तरों की बात नहीं कर रहे हैं. ये वो स्तर है जो कि सबसे ज़्यादा ख़राब है. इस हवा में साँस लेने से स्वस्थ लोगों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.”
लेकिन एयर प्यूरीफायर के प्रभावशाली होने या न होने के सवाल पर वे कहते हैं, “एयर प्यूरीफायर किसी जगह विशेष जैसे किसी कमरे की हवा में प्रदूषकों की संख्या कम कर सकता है. मान लीजिए कि आप एक कमरे में बैठे हैं, ऐसे में वहां आपको साँस लेने के लिए ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ेगी. लेकिन एयर प्यूरीफायर आपको ऑक्सीजन नहीं दे सकता. ऐसे में आपको इतनी जगह रखनी होगी कि बाहर से हवा अंदर आ सके. रूम में वेंटिलेशन की ज़रूरत होगी. ऐसे में एयर प्यूरीफायर को बाहर से अंदर आती हवा को शुद्ध करना होगा जो कि अपने आप में चुनौतीपूर्ण है.”
“आप दिन के 24 घंटे कमरे के अंदर नहीं बैठ सकते हैं. दिन के किसी भी वक़्त अगर एयर पॉल्युशन बहुत ज़्यादा हाई लेवल पर है और आप उसके संपर्क में आ जाते हैं तो उसका आप पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. ऐसे में आपने भले ही कुछ घंटे साफ हवा में बिता लिए हों लेकिन इसका कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता है. एक और उदाहरण है कि जब आप ट्रैफिक में होते हैं तो थोड़ी सी देर ही अशुद्ध हवा में साँस लेने की वजह से आपको दिक्कत होने लगती है. ऐसे में बाहर की हवा को सुधारना हर हाल में ज़रूरी है.”
“लेकिन घर से बाहर निकलते ही आप फिर प्रदूषित हवा के संपर्क में आ जाते हैं. और आप पूरे घर में एयर प्यूरीफायर नहीं लगा सकते. ऐसे में चूंकि अभी कोविड का दौर जारी है. और लोगों को घर पर रहने की सलाह दी जाती है. ऐसे में कुछ विशेष वर्गों (उम्र और बीमारी के आधार पर) के लिए एयर प्यूरीफायर काम कर सकता है. लेकिन इसे एक बड़ी आबादी के लिए घर के ज़रूरी सामान में शामिल करना मुश्किल होगा.”
समाधान बस एक है – पर्यावरण को ठीक करना.”
Smog Problem, Delhi, Pollution In Delhi, City Tree, Crop Burning, National Capital Region, Green City Solutions, Air Pollution, Berlin, Toxic Air, Mobile Wall, स्मॉग समस्या, दिल्ली, वायू प्रदूषण, पौधे की दीवार,.जाने स्मॉग के जहरीले पदार्थ, जो कर सकते हैं आप को बहुत बीमार.
Видео स्मॉग की समस्या और उनसे जुडी चुनौतियां का संपूर्ण विश्लेषण और जमीनी सचाई देखते हैं। [Smog Problem]** канала Taj Agro Products
#स्मॉगकीसमस्याHindiDocumentary #पर्यावरणकोठीककरना #पर्यावरणHindiDocumentray #TajAgro
जर्मनी में स्थित बर्लिन शहर की ग्रीन सिटी साल्यूशन कंपनी ने एक मोबाईल वॉल को डिजाइन किया है। यह एक चलता फिरता शैवाल (काई) की दीवार है जिसमें कई तरह के शैवाल लगाए गये हैं। इसके माध्यम से पर्यावरण की समस्या पर कुछ हद तक समाधान किया जा सकता है। इसको कंपनी ने सिटी ट्री नाम दिया है। यह हवा को शुद्ध करने के साथ ही आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है।
इसमें ऐसे शैवाल लगाए गए हैं जिनसे ज्यादा मात्रा में हवा को शुद्ध किया जा सकता है। इस कारण प्रकाश संश्लेषण (फोटो सिंथेसिस) की प्रक्रिया के दौरान हवा शुद्ध हो जाती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह चलता-फिरता वॉल है जिसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। इसके साथ ही इसके रख रखाव की भी लागत बहुत ही कम है।
दरअसल सारा विवाद इसी को लेकर है कि स्मॉग टॉवर वायु प्रदूषण की समस्या का हल नहीं है और यह प्रदूषण उत्पन्न करने वाले कारकों पर कोई प्रभाव नहीं डालता है। असल बात यह है कि जब तक प्रदूषण फैलाने वाले स्रोत बंद नहीं किए जाएंगे, तब तक स्मॉग टॉवर जैसे टोटके सिर्फ जन-धन की हानि करते रहेंगे।
स्मॉग से बचाने में एयर प्यूरीफ़ायर्स कितने कामयाब?
दिल्ली के गंगा राम अस्पताल में लंग कैंसर विशेषज्ञ डॉ. अरविंद कुमार के मुताबिक़, उत्तर भारत के बड़े शहरों में प्रदूषण का ये ट्रेंड अगर इसी तरह जारी रहा तो इस क्षेत्र में फेफड़ों के कैंसर के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हो सकती है. बीते साल ही दिल्ली की रहने वाली एक 28 वर्षीय महिला को लंग कैंसर होने की बात सामने आई थी जबकि वह सिगरेट या बीड़ी आदि नहीं पीती थीं.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि इसका समाधान क्या है?
डॉ. अरविंद समेत देश के तमाम विशेषज्ञ मानते हैं कि वायु प्रदूषण की समस्या का सिर्फ एक समाधान है – वायु प्रदूषण को कम करना.
लेकिन पिछले कई सालों से वायु प्रदूषण कम होने की बजाए बढ़ता ही दिख रहा है. ऐसे में लोगों ने एन 95 मास्क और एयर प्यूरीफायर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है जिससे इस इंडस्ट्री में बेहद तेज़ उछाल आया है.
ई-कॉमर्स वेबसाइट ऐमेज़ॉन के मुताबिक़, साल 2016 में लोगों ने 2015 के मुक़ाबले 400% ज़्यादा एयर प्यूरीफ़ायर ख़रीदे थे. वहीं, 2017 में लोगों ने 2016 के मुक़ाबले 500 प्रतिशत ज़्यादा एयर प्यूरीफ़ायर ख़रीदे और एयर प्यूरीफायर आहिस्ता-आहिस्ता से टीवी, फ्रिज़, एसी जैसे होम एप्लाएंस कहे जाने वाले उत्पादों में शामिल हो चुका है.
बाज़ार में इस समय 5,000 रुपये से लेकर 50,000 रुपये तक के एयर प्यूरीफायर्स उपलब्ध हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या इस ज़हरीली हवा से बचने के लिए एयर प्यूरीफायर का सहारा लिया जा सकता है?
कितने कामयाब हैं एयर प्यूरीफायर?
एयर प्यूरीफायर बनाने वाली कंपनियां अपने विज्ञापनों में अलग-अलग तकनीकी शब्दों का प्रयोग करके ये जताने की कोशिश करती हैं कि उनके ब्रांड के एयर प्यूरीफायर आपको वायु प्रदूषण की समस्या से एक हद तक निजात दिला सकते हैं.
लेकिन अब तक किसी वैज्ञानिक अध्ययन में ये सिद्ध नहीं हुआ है कि एयर प्यूरीफायर दिल्ली जैसे विशाल शहर की आबादी को वायु प्रदूषण के नकारात्मक प्रभावों से बचा सकता है.
सेंटर फॉर साइंस एंड स्टडीज़ से जुड़े विशेषज्ञ विवेक चट्टोपाध्याय मानते हैं कि एयर प्यूरीफायर को एक समाधान मानना ग़लती होगी.
वे कहते हैं, “अभी हम जिस हवा में साँस ले रहे हैं, वह स्वास्थ्य के लिहाज़ से बेहद ख़तरनाक है. हम ख़राब, बहुत ख़राब स्तरों की बात नहीं कर रहे हैं. ये वो स्तर है जो कि सबसे ज़्यादा ख़राब है. इस हवा में साँस लेने से स्वस्थ लोगों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.”
लेकिन एयर प्यूरीफायर के प्रभावशाली होने या न होने के सवाल पर वे कहते हैं, “एयर प्यूरीफायर किसी जगह विशेष जैसे किसी कमरे की हवा में प्रदूषकों की संख्या कम कर सकता है. मान लीजिए कि आप एक कमरे में बैठे हैं, ऐसे में वहां आपको साँस लेने के लिए ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ेगी. लेकिन एयर प्यूरीफायर आपको ऑक्सीजन नहीं दे सकता. ऐसे में आपको इतनी जगह रखनी होगी कि बाहर से हवा अंदर आ सके. रूम में वेंटिलेशन की ज़रूरत होगी. ऐसे में एयर प्यूरीफायर को बाहर से अंदर आती हवा को शुद्ध करना होगा जो कि अपने आप में चुनौतीपूर्ण है.”
“आप दिन के 24 घंटे कमरे के अंदर नहीं बैठ सकते हैं. दिन के किसी भी वक़्त अगर एयर पॉल्युशन बहुत ज़्यादा हाई लेवल पर है और आप उसके संपर्क में आ जाते हैं तो उसका आप पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. ऐसे में आपने भले ही कुछ घंटे साफ हवा में बिता लिए हों लेकिन इसका कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता है. एक और उदाहरण है कि जब आप ट्रैफिक में होते हैं तो थोड़ी सी देर ही अशुद्ध हवा में साँस लेने की वजह से आपको दिक्कत होने लगती है. ऐसे में बाहर की हवा को सुधारना हर हाल में ज़रूरी है.”
“लेकिन घर से बाहर निकलते ही आप फिर प्रदूषित हवा के संपर्क में आ जाते हैं. और आप पूरे घर में एयर प्यूरीफायर नहीं लगा सकते. ऐसे में चूंकि अभी कोविड का दौर जारी है. और लोगों को घर पर रहने की सलाह दी जाती है. ऐसे में कुछ विशेष वर्गों (उम्र और बीमारी के आधार पर) के लिए एयर प्यूरीफायर काम कर सकता है. लेकिन इसे एक बड़ी आबादी के लिए घर के ज़रूरी सामान में शामिल करना मुश्किल होगा.”
समाधान बस एक है – पर्यावरण को ठीक करना.”
Smog Problem, Delhi, Pollution In Delhi, City Tree, Crop Burning, National Capital Region, Green City Solutions, Air Pollution, Berlin, Toxic Air, Mobile Wall, स्मॉग समस्या, दिल्ली, वायू प्रदूषण, पौधे की दीवार,.जाने स्मॉग के जहरीले पदार्थ, जो कर सकते हैं आप को बहुत बीमार.
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