महाभारत द्रौपदी चीर हरण | Mahabharat Draupadi Cheer Haran | Movie | Tilak
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महाभारत के युद्ध के शुरू होने से पहले कौरव और पांडव दोनों के शिविरों में प्रातः सूर्योदय से पहले अपने कुल के अनुसार यज्ञ पूजन करते हैं। अर्जुन अपनी यज्ञ की पूर्ण आहुति देने ही वाला था तो श्री कृष्ण अर्जुन को विजय प्राप्ति के लिए माँ दुर्गा को पूजा करनी के लिए कहते हैं। अर्जुन श्री कृष्ण की आज्ञा से माँ गौरी की आराधना करता है। और उनके नो रूपों की पूजा करता है। माँ गौरी अर्जुन से प्रसन्न हो कर अर्जुन को आशीर्वाद देती हैं। सूर्योदय होते ही युद्ध की तैयारी शुरू हो जाती है। कौरव और पांडव अपने अस्त्र शस्त्र लेकर युद्ध के लिए चल पड़ते हैं। श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी बन कर युद्ध में जाते हैं। हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र को संजय युद्ध भूमि का सम्पूर्ण वर्णन सुनाता हैं।
सभी अपने अपने व्यूह की रचना करते हैं। युद्ध शुरू हो जाता है तो धृतराष्ट्र को युद्ध के आरम्भ होने का कारण याद आता है की क्यों युद्ध हुआ था। कौरवों ने पांडवों को द्यूत क्रीड़ा के लिए आमंत्रित किया था जिसमें शकुनि ने युधिष्ठिर को धीर धीरे हरा कर उसकी सारी सेना राजमल, स्वयं युधिष्ठिर और उसके भाइयों को एक एक करके दांव पर लगवा कर जित लिया था। जब युधिष्ठिर के पास कुछ नहीं बचा तो दुर्योधन ने युधिष्ठिर को लालच देते हुए कहा की यदि वह अपनी पत्नी द्रौपदी को दांव पर लगाता है तो वो उसका सारा हरा हुआ राजपाठ दांव पर लगा देगा।
युधिष्ठिर लालच में आ जाता है और द्रौपदी को भी दांव पर लगा देता है लेकिन शकुनि फिर से जित जाता है। द्रौपदी को जितने के बाद दुर्योधन दुशासन को द्रौपदी को सभा में लाने के लिए कहता है। दुशासन द्रौपदी को बाल से खिंचते हुए सभा में लाता है। द्रौपदी अपने अपमान को होते हुए देख वहाँ बैठे सभी लोगों से अपनी मदद की गुहार लगाती है लेकिन कोई भी उसकी मदद नहीं करता तो वह बैठा विकरन वह सभा में सभी लोगों के सामने दुर्योधन और दुशासन द्वारा द्रौपदी के अपमान करने की निंदा करता है और सभा से चला जाता है। दुर्योधन दुशासन को द्रौपदी का चिर हरण करने को कहता है। द्रौपदी के अपमान को देख भीम क़सम खाता है की वह दुशासन के सिने को चिर कर उसके रक्त से द्रौपदी के बाल धोएगा और दुर्योधन की जाँघ को तोड़ देगा।
दुर्योधन भीम को बैठने के लिए कहता है और उसे डस कह कर सम्बोधित करता है। द्रौपदी का दुशासन जब चिर हरण करने लगता है तो द्रौपदी अपनी रक्षा के लिए श्री कृष्ण को पुकारती है श्री कृष्ण द्रौपदी की मदद के लिए आते हैं और उसकी साड़ी को खतम नहीं होने देते जिसे दुशासन खिंचते खिंचते थक कर बेहोश हो जाता है यह देख धृतराष्ट्र द्रौपदी से क्षमा माँगता है और सभा को समाप्त कर देता है।
धृतराष्ट्र पांडवों को सब कुछ लौटाने के लिए कहता है लेकिन दुर्योधन बीच में आजाता है और कहता है की उसने ये सब जित है तो धृतराष्ट्र उसकी बात को सुनकर पांडवों को 13 वर्ष के लिए वनवास और एक साल के अज्ञात वास के लिए भेजने के लिए कहता है और वनवास पूरा करने के बाद उन्हें उनका राजपाठ वापस देने का वादा करता है लेकिन यदि पांडवों को अज्ञात वास में उन्हें खोज लिया जाता है तो उन्हें वापस से अपना वनवास शुरू करना होगा। पांडव यह बात मान कर वनवास को चले जाते हैं।
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सभी अपने अपने व्यूह की रचना करते हैं। युद्ध शुरू हो जाता है तो धृतराष्ट्र को युद्ध के आरम्भ होने का कारण याद आता है की क्यों युद्ध हुआ था। कौरवों ने पांडवों को द्यूत क्रीड़ा के लिए आमंत्रित किया था जिसमें शकुनि ने युधिष्ठिर को धीर धीरे हरा कर उसकी सारी सेना राजमल, स्वयं युधिष्ठिर और उसके भाइयों को एक एक करके दांव पर लगवा कर जित लिया था। जब युधिष्ठिर के पास कुछ नहीं बचा तो दुर्योधन ने युधिष्ठिर को लालच देते हुए कहा की यदि वह अपनी पत्नी द्रौपदी को दांव पर लगाता है तो वो उसका सारा हरा हुआ राजपाठ दांव पर लगा देगा।
युधिष्ठिर लालच में आ जाता है और द्रौपदी को भी दांव पर लगा देता है लेकिन शकुनि फिर से जित जाता है। द्रौपदी को जितने के बाद दुर्योधन दुशासन को द्रौपदी को सभा में लाने के लिए कहता है। दुशासन द्रौपदी को बाल से खिंचते हुए सभा में लाता है। द्रौपदी अपने अपमान को होते हुए देख वहाँ बैठे सभी लोगों से अपनी मदद की गुहार लगाती है लेकिन कोई भी उसकी मदद नहीं करता तो वह बैठा विकरन वह सभा में सभी लोगों के सामने दुर्योधन और दुशासन द्वारा द्रौपदी के अपमान करने की निंदा करता है और सभा से चला जाता है। दुर्योधन दुशासन को द्रौपदी का चिर हरण करने को कहता है। द्रौपदी के अपमान को देख भीम क़सम खाता है की वह दुशासन के सिने को चिर कर उसके रक्त से द्रौपदी के बाल धोएगा और दुर्योधन की जाँघ को तोड़ देगा।
दुर्योधन भीम को बैठने के लिए कहता है और उसे डस कह कर सम्बोधित करता है। द्रौपदी का दुशासन जब चिर हरण करने लगता है तो द्रौपदी अपनी रक्षा के लिए श्री कृष्ण को पुकारती है श्री कृष्ण द्रौपदी की मदद के लिए आते हैं और उसकी साड़ी को खतम नहीं होने देते जिसे दुशासन खिंचते खिंचते थक कर बेहोश हो जाता है यह देख धृतराष्ट्र द्रौपदी से क्षमा माँगता है और सभा को समाप्त कर देता है।
धृतराष्ट्र पांडवों को सब कुछ लौटाने के लिए कहता है लेकिन दुर्योधन बीच में आजाता है और कहता है की उसने ये सब जित है तो धृतराष्ट्र उसकी बात को सुनकर पांडवों को 13 वर्ष के लिए वनवास और एक साल के अज्ञात वास के लिए भेजने के लिए कहता है और वनवास पूरा करने के बाद उन्हें उनका राजपाठ वापस देने का वादा करता है लेकिन यदि पांडवों को अज्ञात वास में उन्हें खोज लिया जाता है तो उन्हें वापस से अपना वनवास शुरू करना होगा। पांडव यह बात मान कर वनवास को चले जाते हैं।
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