| Ratneshwar Mahadev Temple | पीसा की मीनार से 5 डिग्री ज्यादा झुका हुआ है, रत्नेश्वर महादेव मंदिर!
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रत्नेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास:-
मणिकर्णिका घाट पर स्थित रत्नेश्वर महादेव एक अद्भुत मंदिर है, जो 9 डिग्री के कोण पर झुका हुआ है। इस मंदिर का झुकाव इटली में पीसा के मशहूर मीनार से 5 डिग्री अधिक है। दिलचस्प बात यह है, कि यह दुनिया में झुके हुए दो मंदिरों में से एक है। दूसरा मंदिर “हुमा का झुका हुआ मंदिर” है, जो ओड़िशा है।
जिस घाट पर यह मंदिर बना हुआ है, उसका भी बहुत महत्व है। मणिकर्णिका घाट वाराणसी के सबसे पुराने और पवित्र घाटों में से एक है। बनारस में केवल दो घाट हैं, जहां अंतिम संस्कार किया जाता है, और यह उनमें से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिव की पत्नी सती के कान के कुंडल इसी घाट पर गिर गए थे। मंदिर का नाम उसी बाली पर पड़ा है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठों में से एक है। माना जाता है, कि जब सती ने आत्मदाह किया था, तब उनके शरीर के 51 अंग समस्त भारतीय उपमहाद्वीप में गिर गए थे, जिनमें से उनके कुंडल वारणसी में गिरे।
एडविन ग्रीव्स ने अपनी पुस्तक “काशी द सिटी इलस्ट्रियस या बनारस (1909)” में मणिकर्णिका घाट का जीवंत वर्णन किया है। इस पुस्तक में झुके हुए मंदिर का भी उल्लेख है। वे लिखते है:
”नदी के किनारे के पास से देखने पर मणिकर्णिका कुंड के पास पैदल मार्ग के बीच में लोगों का हुजूम दिखाई पड़ता है। इसके पीछे मंदिरों और इमारतों का एक अजीब-सा जमघट है, जिसमें अमेठी के राजा का लाल गुंबद वाला मंदिर सबसे ऊंचा है; अगले हिस्से में एक झुका हुआ मंदिर और बरामदा है, जो लगभग पानी के स्तर पर ही बना हुआ है, और जिसे देखकर लगता है, कि ये कभी भी पानी के ऊपर गिर जाएगा । देश के विभिन्न हिस्सों से तरह-तरह की पोशाकों में स्नान करने आये लोगों की उत्सुक भीड़ रंग बिरंगी छटा बिखेरती दिखाई देती है।”
रत्नेश्वर महादेव मंदिर, तारकेश्वर महादेव मंदिर के पास ही स्थित है। इस घाट पर तारकेश्वर महादेव मंदिर, मालवा साम्राज्य की महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने बनवाया था।
ये मंदिर एक पहेली है। इस मंदिर का इतिहास संदिग्ध है, यहां तक के इसके निर्माण के बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, मंदिर का निर्माण राजा मान सिंह के एक सेवक ने करवाया था, जिसका नाम पता नहीं है। जबकि एक अन्य कथा के अनुसार इसका निर्माण अहिल्या बाई के एक सेवक ने करवाया था। कुछ विद्वानों का मानना है, कि मंदिर का निर्माण ग्वालियर के सिंधिया वराजवंश की रानी बैजा बाई ने 19वीं शताब्दी में करवाया था। उत्तर भारतीय नागर शैली में बने मंदिर में एक गर्भगृह, एक अर्ध-मंडपा और एक बड़ा हाल है। नदी के जलस्तर बढ़ने पर, ये सभी पानी में डूबे जाते हैं।
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रत्नेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास:-
मणिकर्णिका घाट पर स्थित रत्नेश्वर महादेव एक अद्भुत मंदिर है, जो 9 डिग्री के कोण पर झुका हुआ है। इस मंदिर का झुकाव इटली में पीसा के मशहूर मीनार से 5 डिग्री अधिक है। दिलचस्प बात यह है, कि यह दुनिया में झुके हुए दो मंदिरों में से एक है। दूसरा मंदिर “हुमा का झुका हुआ मंदिर” है, जो ओड़िशा है।
जिस घाट पर यह मंदिर बना हुआ है, उसका भी बहुत महत्व है। मणिकर्णिका घाट वाराणसी के सबसे पुराने और पवित्र घाटों में से एक है। बनारस में केवल दो घाट हैं, जहां अंतिम संस्कार किया जाता है, और यह उनमें से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिव की पत्नी सती के कान के कुंडल इसी घाट पर गिर गए थे। मंदिर का नाम उसी बाली पर पड़ा है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठों में से एक है। माना जाता है, कि जब सती ने आत्मदाह किया था, तब उनके शरीर के 51 अंग समस्त भारतीय उपमहाद्वीप में गिर गए थे, जिनमें से उनके कुंडल वारणसी में गिरे।
एडविन ग्रीव्स ने अपनी पुस्तक “काशी द सिटी इलस्ट्रियस या बनारस (1909)” में मणिकर्णिका घाट का जीवंत वर्णन किया है। इस पुस्तक में झुके हुए मंदिर का भी उल्लेख है। वे लिखते है:
”नदी के किनारे के पास से देखने पर मणिकर्णिका कुंड के पास पैदल मार्ग के बीच में लोगों का हुजूम दिखाई पड़ता है। इसके पीछे मंदिरों और इमारतों का एक अजीब-सा जमघट है, जिसमें अमेठी के राजा का लाल गुंबद वाला मंदिर सबसे ऊंचा है; अगले हिस्से में एक झुका हुआ मंदिर और बरामदा है, जो लगभग पानी के स्तर पर ही बना हुआ है, और जिसे देखकर लगता है, कि ये कभी भी पानी के ऊपर गिर जाएगा । देश के विभिन्न हिस्सों से तरह-तरह की पोशाकों में स्नान करने आये लोगों की उत्सुक भीड़ रंग बिरंगी छटा बिखेरती दिखाई देती है।”
रत्नेश्वर महादेव मंदिर, तारकेश्वर महादेव मंदिर के पास ही स्थित है। इस घाट पर तारकेश्वर महादेव मंदिर, मालवा साम्राज्य की महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने बनवाया था।
ये मंदिर एक पहेली है। इस मंदिर का इतिहास संदिग्ध है, यहां तक के इसके निर्माण के बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, मंदिर का निर्माण राजा मान सिंह के एक सेवक ने करवाया था, जिसका नाम पता नहीं है। जबकि एक अन्य कथा के अनुसार इसका निर्माण अहिल्या बाई के एक सेवक ने करवाया था। कुछ विद्वानों का मानना है, कि मंदिर का निर्माण ग्वालियर के सिंधिया वराजवंश की रानी बैजा बाई ने 19वीं शताब्दी में करवाया था। उत्तर भारतीय नागर शैली में बने मंदिर में एक गर्भगृह, एक अर्ध-मंडपा और एक बड़ा हाल है। नदी के जलस्तर बढ़ने पर, ये सभी पानी में डूबे जाते हैं।
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