लंदन Clock टावर जैसी घड़ी दुनिया में केवल जोधपुर में: 3 लाख में बनी, 1 Lakh इसलिए कि ऐसी दूसरी न बने।
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बात है साल 1910 की। जोधपुर में तब राजा सरदार सिंह का शासन था। उनके नाम पर नई मंडी के पास सरदार मार्केट बसाया गया। चौपड़ के बीच में 100 फीट ऊंचाई का घंटाघर बना। घंटाघर में 3 लाख रुपए की लागत से घड़ी लगवाई गई।
यह है घड़ी की खासियत
घंटाघर के चारों दिशाओं में चार घड़ियां समय दिखाती हैं। जिनमें चारों के डायल आपस में जुड़े हुए हैं। बाहर से साधारण दिखने वाली इस घड़ी के डायल हमने अंदर जाकर देखे। ये एक दूसरे से जुड़े हुए थे। डायल को चलाने के लिए तीन मोटे तारों में अलग-अलग लोहे के तीन भार लटके हुए हैं।
जैसे-जैसे घड़ी की सुईयां चलती हैं, ये तीनों भार नीचे आते हैं। एक सप्ताह में यह भार पूरी तरह से नीचे आ जाते हैं। इसके बाद सप्ताह में एक बार इसमें चाबी भरी जाती है। इसके बाद तीनों भार वापस ऊपर आ जाते हैं। घंटाघर की तीसरी मंजिल पर चारों दिशाओं में चार घड़ियां लगी हुई हैं। इनके डायल 6 फीट लम्बे और 2 फीट चौड़े हैं। इसके पेंडुलम का वजन 50 किलो है।
विश्व में ऐसी सिर्फ दो घड़ियां:-
इकबाल ने बताया कि इस घड़ी को 1911 में बम्बई की कंपनी लुंड एंड ब्लोकली ने बनाया था। घड़ी बनने के बाद उन्हें कहा गया कि वे ऐसी दूसरी घड़ी न बनाएं। ऐसी घड़ी सिर्फ लंदन के क्लॉक टावर पर ही लगी हुई है। जयपुर, उदयपुर, कानपुर समेत देश के कई शहरों में इसी तरह के क्लॉक टावर हैं लेकिन उन घड़ियों की मशीनरी जोधपुर के घंटाघर से अलग है।
सप्ताह में एक दिन भरनी पड़ती है चाबी
इस घड़ी को चलाने के लिए सप्ताह में एक दिन चाबी भरनी पड़ती है। इकबाल या उनके बेटे शकील दोनों में से कोई चाबी भरता है। गुरुवार का दिन चाबी भरने के लिए निर्धारित है। इसमें किसी प्रकार की खराबी आने पर मरम्मत का काम भी यही परिवार करता है।
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Видео लंदन Clock टावर जैसी घड़ी दुनिया में केवल जोधपुर में: 3 लाख में बनी, 1 Lakh इसलिए कि ऐसी दूसरी न बने। канала Gyanvik vlogs
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बात है साल 1910 की। जोधपुर में तब राजा सरदार सिंह का शासन था। उनके नाम पर नई मंडी के पास सरदार मार्केट बसाया गया। चौपड़ के बीच में 100 फीट ऊंचाई का घंटाघर बना। घंटाघर में 3 लाख रुपए की लागत से घड़ी लगवाई गई।
यह है घड़ी की खासियत
घंटाघर के चारों दिशाओं में चार घड़ियां समय दिखाती हैं। जिनमें चारों के डायल आपस में जुड़े हुए हैं। बाहर से साधारण दिखने वाली इस घड़ी के डायल हमने अंदर जाकर देखे। ये एक दूसरे से जुड़े हुए थे। डायल को चलाने के लिए तीन मोटे तारों में अलग-अलग लोहे के तीन भार लटके हुए हैं।
जैसे-जैसे घड़ी की सुईयां चलती हैं, ये तीनों भार नीचे आते हैं। एक सप्ताह में यह भार पूरी तरह से नीचे आ जाते हैं। इसके बाद सप्ताह में एक बार इसमें चाबी भरी जाती है। इसके बाद तीनों भार वापस ऊपर आ जाते हैं। घंटाघर की तीसरी मंजिल पर चारों दिशाओं में चार घड़ियां लगी हुई हैं। इनके डायल 6 फीट लम्बे और 2 फीट चौड़े हैं। इसके पेंडुलम का वजन 50 किलो है।
विश्व में ऐसी सिर्फ दो घड़ियां:-
इकबाल ने बताया कि इस घड़ी को 1911 में बम्बई की कंपनी लुंड एंड ब्लोकली ने बनाया था। घड़ी बनने के बाद उन्हें कहा गया कि वे ऐसी दूसरी घड़ी न बनाएं। ऐसी घड़ी सिर्फ लंदन के क्लॉक टावर पर ही लगी हुई है। जयपुर, उदयपुर, कानपुर समेत देश के कई शहरों में इसी तरह के क्लॉक टावर हैं लेकिन उन घड़ियों की मशीनरी जोधपुर के घंटाघर से अलग है।
सप्ताह में एक दिन भरनी पड़ती है चाबी
इस घड़ी को चलाने के लिए सप्ताह में एक दिन चाबी भरनी पड़ती है। इकबाल या उनके बेटे शकील दोनों में से कोई चाबी भरता है। गुरुवार का दिन चाबी भरने के लिए निर्धारित है। इसमें किसी प्रकार की खराबी आने पर मरम्मत का काम भी यही परिवार करता है।
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