सागर नंदनी लक्ष्मी | Saagar Nandhini Lakhsmi | Movie | Tilak
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श्री हरी सृष्टि के निर्माण के लिए ब्रह्मा जी को अवतरित करते हैं। ब्रह्मा जी विष्णु जी के कहे अनुसार सृष्टि का निर्माण कर देते हैं। कुछ समय बाद देवताओं और असुरों में युद्ध शुरू हो जाता है और स्वर्गलोक पर क़ब्ज़ा करने के लिए असुर बार बार देवताओं पर आक्रमण करते हैं। असुरों और देवताओं के युद्ध को रोकने के लिए देवताओं के गुरु ब्रहस्पति असुरों के गुरु शुक्राचार्य के पास जाते हैं और उनसे देवताओं और असुरों के कल्याण के लिए समुद्र मंथन करने। का प्रस्ताव रखते हैं। देवी सरस्वती शुक्राचार्य के मन में निवास कर जाती है और उन्हें समुद्र मंथन के लिए मना लेती हैं। समुद्र मंथन के लिए देवता महादेव के पास जाते हैं और उनसे समुद्र मंथन की बात बताते हैं।
महादेव उन्हें समुद्र मंथन करने लिए विष्णु जी के शेषनाग को रासी की तरह इस्तेमाल करने और विशाल पर्वत को समुद्र मंथन के लिए इस्तेमाल करने को कहते हैं। समुद्र मंथन शुरू किया जाता है लेकिन पर्वत को समुद्र में कोई ठोस थल ना मिलने के कारण पर्वत समुद्र में डूबने लगता है आटो देवताओं और असुरों की प्रार्थना पर विष्णु जी कछुआ रूप में पर्वत के नीचे स्थान ले लेते हैं और पर्वत को स्थिरता प्रदान करते हैं। समुद्र मंथन शुरू कर दिया जाता है समुद्र से सबसे पहले बहुत विषैला विश निकलता है जिसे महादेव अपने गाल में धारण कर लेते हैं। बाद में समुद्र से बहुत सारी चीज़ें निकलती हैं जैसे ऐरावत, अश्व, कल्पवृक्ष, आदि। समुद्र मंथन में से देवी लक्ष्मी जी भी निकलती हैं जिसे देख असुर राज बलि उन्हें अपने साथ असुर लोक ले जाने के लिए बंदी बनाना चाहता है आटो माता लक्ष्मी सभी असुरों को अपने अंदर समा लेती हैं।
असुर राज बलि माता लक्ष्मी से क्षमा माँगता है तो माता लक्ष्मी सभी असुरों को वापस छोड़ देती है। नारद मुनि जी देव गुरु ब्रहस्पति और शुक्राचार्य को कहते हैं की माता लक्ष्मी सिर्फ़ उन्हीं के पास रहेगी जो त्रिगुणातीत होगा देवी लक्ष्मी उन्हीं के पास रहेगी। शुक्राचार्य और ब्रहस्पति यह पता लगाने के लिए ब्रह्म विष्णु और महादेव के पास जाने की सोचते हैं की देखते हैं की कौन से देवता के साथ देवी लक्ष्मी का विवाह किया जा सकता है। शुक्राचार्य और ब्रहस्पति दोनों ब्रह्मा जी के पास जाते हैं और उन्हें चोर कह कर पुकारते हैं तो ब्रह्मा जी को क्रोध आ जाता है और वो उन दोनों पर शक्ति से प्रहार करते हैं नारद मुनि जी ब्रह्मा जी को ऐसा करने से रोक देते हैं और उन्हें बताते हैं की ये सब एक नाटक था। शुक्राचार्य और ब्रहस्पति तो सिर्फ़ ये जानना चाहते थे की आप त्रिगुणातीत हैं या नहीं। ब्रह्मा जी उन्हें माफ़ आकर देते हैं और उन्हें बताते हैं की वो लक्ष्मी के पति नहीं बन सकते।
इसके बाद शुक्राचार्य और ब्रहस्पति महादेव के पास भी जाते हैं और उनका भी अपमान कर उन्हें क्रोधित कर देते हैं। महादेव उनसे क्रोधित हो उन्हें भस्म करने ही वाले थे की नारद मुनि जी और ब्रह्मा जी महादेव को आकर रोक देते हैं। महादेव उन्हें बताते हैं की मैं त्रिगुणातीत नहीं हूँ क्योंकि मुझमें क्रोध निवास करता है। त्रिगुणातीत तो सिर्फ़ क्षीर सागर में निवास करने वाले विष्णु हैं। शुक्राचार्य और ब्रहस्पति विष्णु के पास आते हैं और शुक्राचार्य विष्णु से भी अपमान जनक शब्द बोल कर उन्हें अपमानित करते हैं। शुक्राचार्य विष्णु जी पर त्रिशूल से प्रहार करता है तो शेषनाग उस त्रिशूल को रोक देते हैं। विष्णु जी ब्रहस्पति और शुक्राचार्य से क्षमा माँगते हैं और उनसे कहते हैं की आप सभी सृष्टि की भलाई के लिए कार्य करते हैं।
शुक्राचार्य और ब्रहस्पति जी विष्णु जी को कहते हैं आप त्रिगुणातीत हैं कृपा करके आप देवी लक्ष्मी को आश्रय दें और अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करें। समुद्र राज देवी लक्ष्मी के पिता बन कर उनका कन्यादान करने के लिए आगे आते हैं और देवताओं और असुरों को कहते हैं की देवी लक्ष्मी मेरे अंदर से निकली हैं तो मैं ही इनका पिता हुआ। समुद्र राज लक्ष्मी माता को अपनी पुत्री रूप में आने के लिए कहते हैं। देवी लक्ष्मी समुद्र राज के राजभवन में विवाह तक रहने के लिए चली जाती हैं। समुद्र राज विष्णु जी के पास देवी लक्ष्मी से विवाह का प्रस्ताव लेकर आते हैं जिसे विष्णु जी स्वीकार कर लेते हैं। देवी लक्ष्मी और विष्णु जी का विवाह कर दिया जाता है। श्री हरी और देवी लक्ष्मी दोनों वैकुंठ में विराजमान हो जाते हैं सभी देवी देवता उनकी पूजा आरती करते हैं।
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श्री हरी सृष्टि के निर्माण के लिए ब्रह्मा जी को अवतरित करते हैं। ब्रह्मा जी विष्णु जी के कहे अनुसार सृष्टि का निर्माण कर देते हैं। कुछ समय बाद देवताओं और असुरों में युद्ध शुरू हो जाता है और स्वर्गलोक पर क़ब्ज़ा करने के लिए असुर बार बार देवताओं पर आक्रमण करते हैं। असुरों और देवताओं के युद्ध को रोकने के लिए देवताओं के गुरु ब्रहस्पति असुरों के गुरु शुक्राचार्य के पास जाते हैं और उनसे देवताओं और असुरों के कल्याण के लिए समुद्र मंथन करने। का प्रस्ताव रखते हैं। देवी सरस्वती शुक्राचार्य के मन में निवास कर जाती है और उन्हें समुद्र मंथन के लिए मना लेती हैं। समुद्र मंथन के लिए देवता महादेव के पास जाते हैं और उनसे समुद्र मंथन की बात बताते हैं।
महादेव उन्हें समुद्र मंथन करने लिए विष्णु जी के शेषनाग को रासी की तरह इस्तेमाल करने और विशाल पर्वत को समुद्र मंथन के लिए इस्तेमाल करने को कहते हैं। समुद्र मंथन शुरू किया जाता है लेकिन पर्वत को समुद्र में कोई ठोस थल ना मिलने के कारण पर्वत समुद्र में डूबने लगता है आटो देवताओं और असुरों की प्रार्थना पर विष्णु जी कछुआ रूप में पर्वत के नीचे स्थान ले लेते हैं और पर्वत को स्थिरता प्रदान करते हैं। समुद्र मंथन शुरू कर दिया जाता है समुद्र से सबसे पहले बहुत विषैला विश निकलता है जिसे महादेव अपने गाल में धारण कर लेते हैं। बाद में समुद्र से बहुत सारी चीज़ें निकलती हैं जैसे ऐरावत, अश्व, कल्पवृक्ष, आदि। समुद्र मंथन में से देवी लक्ष्मी जी भी निकलती हैं जिसे देख असुर राज बलि उन्हें अपने साथ असुर लोक ले जाने के लिए बंदी बनाना चाहता है आटो माता लक्ष्मी सभी असुरों को अपने अंदर समा लेती हैं।
असुर राज बलि माता लक्ष्मी से क्षमा माँगता है तो माता लक्ष्मी सभी असुरों को वापस छोड़ देती है। नारद मुनि जी देव गुरु ब्रहस्पति और शुक्राचार्य को कहते हैं की माता लक्ष्मी सिर्फ़ उन्हीं के पास रहेगी जो त्रिगुणातीत होगा देवी लक्ष्मी उन्हीं के पास रहेगी। शुक्राचार्य और ब्रहस्पति यह पता लगाने के लिए ब्रह्म विष्णु और महादेव के पास जाने की सोचते हैं की देखते हैं की कौन से देवता के साथ देवी लक्ष्मी का विवाह किया जा सकता है। शुक्राचार्य और ब्रहस्पति दोनों ब्रह्मा जी के पास जाते हैं और उन्हें चोर कह कर पुकारते हैं तो ब्रह्मा जी को क्रोध आ जाता है और वो उन दोनों पर शक्ति से प्रहार करते हैं नारद मुनि जी ब्रह्मा जी को ऐसा करने से रोक देते हैं और उन्हें बताते हैं की ये सब एक नाटक था। शुक्राचार्य और ब्रहस्पति तो सिर्फ़ ये जानना चाहते थे की आप त्रिगुणातीत हैं या नहीं। ब्रह्मा जी उन्हें माफ़ आकर देते हैं और उन्हें बताते हैं की वो लक्ष्मी के पति नहीं बन सकते।
इसके बाद शुक्राचार्य और ब्रहस्पति महादेव के पास भी जाते हैं और उनका भी अपमान कर उन्हें क्रोधित कर देते हैं। महादेव उनसे क्रोधित हो उन्हें भस्म करने ही वाले थे की नारद मुनि जी और ब्रह्मा जी महादेव को आकर रोक देते हैं। महादेव उन्हें बताते हैं की मैं त्रिगुणातीत नहीं हूँ क्योंकि मुझमें क्रोध निवास करता है। त्रिगुणातीत तो सिर्फ़ क्षीर सागर में निवास करने वाले विष्णु हैं। शुक्राचार्य और ब्रहस्पति विष्णु के पास आते हैं और शुक्राचार्य विष्णु से भी अपमान जनक शब्द बोल कर उन्हें अपमानित करते हैं। शुक्राचार्य विष्णु जी पर त्रिशूल से प्रहार करता है तो शेषनाग उस त्रिशूल को रोक देते हैं। विष्णु जी ब्रहस्पति और शुक्राचार्य से क्षमा माँगते हैं और उनसे कहते हैं की आप सभी सृष्टि की भलाई के लिए कार्य करते हैं।
शुक्राचार्य और ब्रहस्पति जी विष्णु जी को कहते हैं आप त्रिगुणातीत हैं कृपा करके आप देवी लक्ष्मी को आश्रय दें और अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करें। समुद्र राज देवी लक्ष्मी के पिता बन कर उनका कन्यादान करने के लिए आगे आते हैं और देवताओं और असुरों को कहते हैं की देवी लक्ष्मी मेरे अंदर से निकली हैं तो मैं ही इनका पिता हुआ। समुद्र राज लक्ष्मी माता को अपनी पुत्री रूप में आने के लिए कहते हैं। देवी लक्ष्मी समुद्र राज के राजभवन में विवाह तक रहने के लिए चली जाती हैं। समुद्र राज विष्णु जी के पास देवी लक्ष्मी से विवाह का प्रस्ताव लेकर आते हैं जिसे विष्णु जी स्वीकार कर लेते हैं। देवी लक्ष्मी और विष्णु जी का विवाह कर दिया जाता है। श्री हरी और देवी लक्ष्मी दोनों वैकुंठ में विराजमान हो जाते हैं सभी देवी देवता उनकी पूजा आरती करते हैं।
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