हर हर गंगे अंधकासुर उद्धार | Har Har Gange Andhakasur Uddhar | Movie | Tilak
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रामानन्द सागर जी गंगा मैया की कथा को सुनते हैं की उनका कैसे जन्म हुआ और उन्हें क्यों माता की तरह पूजा जाता है। गंगा माता के पृथ्वी लोक पर आने की कथा रामानन्द सागर जी के इस धारावाहिक जय गंगा मैया में आपके सामने प्रस्तुत किया गया है। ब्रह्मा जी महादेव की आज्ञा से माता शक्ति की आराधना करते हैं और उनसे सृष्टि के नव निर्माण के लिए शक्ति एवं मार्गदर्शन माँगते हैं। माता शक्ति ब्रह्मा जी को शक्तियाँ देती हैं जिस से सृष्टि का नव निर्माण के लिए देती हैं। माता शक्ति अपनी एक शक्ति के रूप सरस्वती को ब्रह्मा जी को देती हैं।
उसके बाद माता उन्हें अपना लक्ष्मी रूप प्रदान करती हैं जो विष्णु भगवान की धर्म पत्नी बनेंगी। उसके बाद माता अपने उमा रूप को ब्रह्मा जी प्रदान करती हैं जो सती के रूप में जनम लेंगी और उसके बाद पार्वती के रूप में जन्म लेकर महादेव की पत्नी बनेंगी। उसके बाद माता शक्ति अपने महत्वपूर्ण अंश गंगा को देती हैं। माता ब्रह्मा जी को बताती हैं की गंगा जल रूप में तीनों लोकों में स्थापित रहेंगी। ब्रह्मा जी गंगा मैया से कहते हैं की जब तक मैं सृष्टि का निर्माण करता हूँ तब तक आप मेरे कमंडल में विराज मां हो जाए। गंगा मैया ब्रह्मा जी की बात मान कर उनके कमंडल में चली जाती है। ब्रह्मा जी सृष्टि का निर्माण करना शुरू कर दिया था। उन्होंने सारी सृष्टि का निर्माण कर दिया था एक दिन इंद्र देव ब्रह्मा जी के पास जाते हैं और उनसे कहते हैं की प्रभु अपने सारी सृष्टि का निर्माण तो कर दिया परंतु आप हमें माता की छाया से दूर रखा है इसलिए आप गंगा मैया को स्वर्ग लोक में प्रवाहित कर हमें गंगा मैया की ममता प्रदान करे।
ब्रह्मा जी गंगा को स्वर्ग में प्रवाहित कर देते हैं। सभी देवता गंगा मैया का स्वर्ग में स्वागत करते हैं और उनकी आरती करते हैं। गंगा मैया का स्वर्ग में देवता स्वागत करते हैं और उनकी आरती करते हैं। एक दिन नारद मुनि जी गंगा मैया की सेवा में उपस्थित होते हैं और नारद मुनि जी उमा माता के बारे में बताते हैं की वो आपसे मिलने के लिए आना चाहती हैं गंगा मैया नारद जी को बताती है की वो भी उनसे मिलना चाहती है। नारद जी बताते हैं की कुछ असुर आपके स्वर्ग में आने से खुश नहीं हैं। नारद गंगा मैया को बताते हैं की असुर राज अंधकासुर देवताओं से आपको छीनने के लिए कभी भी आ सकता है। गंगा मैया नारद जी को समझाती है की मैं सबकी माँ हूँ और असुर भी मेरे ही बालक हैं मैं उन्हें कुछ भी अनुचित करने नहीं दूँगी।
अंधकासुर स्वर्ग पर आक्रमण करने के लिए कहता है और अपने मायावी दानवों को भेजता है। अंधकासुर के भेजे तीनों दानव स्वर्ग में जाते हैं और गंगा मैया जो अपने साथ पाताल लोक में चलने के लिए कहते हैं। गंगा मैया उन्हें समझाती हैं की मैं पाताल लोक अवश्य आऊँगी परंतु अभी मेरा वहाँ जाने का समय नहीं आया है समय आने पर मैं वहाँ अवश्य आ जाऊँगी। गंगा मैया के समझाने के बाद भी जब दानव नहीं मानते और गंगा को ज़बरदस्ती पाताल लोक ले जाने के लिए अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हैं तो गंगा मैया ज्वाला सुर को मार देती हैं और बाक़ी दोनों असुर वहाँ से भाग जाते हैं। इंद्र देव को जब यह पता चलता है तो इंद्र देव और देव गुरु उनके पास आते हैं और उनसे कहते हैं की हम असुरों को आपके अपमान करने का दंड अवश्य देंगे तो गंगा मैया उन्हें ऐसा करने से रोक देती हैं।
अंधकासुर अपने दानवों की पराजय से क्रोधित हो कर अपने गुरु शुक्राचार्य के पास जाता है और उनसे देवताओं पर आक्रमण करने और उनसे आशीर्वाद लेने जाता हैं। शुक्राचार्य अंधकासुर को समझाते हैं की अभी हमें उन पर आक्रमण नहीं करना चाहिए क्योंकि उनके साथ अभी गंगा मैया है। गंगा मैया को पाताल लोक लाने के लिए अभी समय नहीं आया है। शुक्राचार्य अंधकासुर को महादेव शिव की तपस्या करके अमोघ शक्ति माँगने के लिए कहते हैं जिसका तोड़ ना देवताओं के पास हो और ना ही गंगा मैया के पास हो। अंधकासुर तपस्या में लीन हो जाता है। नारद मुनि जी इंद्र को अंधकासुर की तपस्या के बारे में बताते हैं तो इंद्र देव अंधकासुर की तपस्या को भंग करने के लिए स्वर्ग से रम्भा को भेजता है। रम्भा को अंधकासुर की तपस्या भंग करने के लिए जाता देख शुक्राचार्य उसे अपनी शक्तियों में असफल कर देते हैं।
रम्भा के असफल होने के बाद अग्नि देव और वायु देव को इंद्र देव भेजते हैं लेकिन शुक्राचार्य अपनी शक्तियों से उन्हें भी अंधकासुर की तपस्या भंग नहीं करने देते। इंद्र देव जब अंधकासुर की तपस्या को भंग नहीं कर पता तो वह गंगा मैया के पास जाता है और उन्हें बताता है की मैंने उसकी तपस्या को भंग करने की कोशिश की थी लेकिन ऐसा कर नहीं पाया। गंगा मैया इंद्र देव को कहती हैं की तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए तपस्या करने से वो अपनी शक्तियों को बढ़ा रहा है तो तुम भी सर्वतोभद्रे यज्ञ करने के लिए कहती है और दानवों से उनके यज्ञ की रक्षा करने का आशीर्वाद देती हैं। देव राज इंद्र और देव गुरु सर्वतोभद्रे यज्ञ करना शुरू करते हैं जिसे देख शुक्राचार्य उनके यज्ञ को ध्वस्त करने के लिए कृत्या को शक्तियाँ प्रदान करके स्वर्ग में भेजते हैं। कृत्या स्वर्ग में जाकर स्वर्ग लोक पर हमला कर देती हैं अग्नि देव और वायु देव कृत्या को रोकने की कोशिश करते हैं लेकिन रोक नहीं पाते।
जब कृत्या यज्ञ को भंग करने के लिए अपनी शक्तियों से हमला करती है तो गंगा मैया अपना कवच बना कर उनके यज्ञ की रक्षा करते हैं। जब कृत्या यज्ञ भंग नहीं कर पाती तो शुक्राचार्य उसे गंगा को बंदी बना कर पाताल लोक लने के लिए कहते हैं।
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रामानन्द सागर जी गंगा मैया की कथा को सुनते हैं की उनका कैसे जन्म हुआ और उन्हें क्यों माता की तरह पूजा जाता है। गंगा माता के पृथ्वी लोक पर आने की कथा रामानन्द सागर जी के इस धारावाहिक जय गंगा मैया में आपके सामने प्रस्तुत किया गया है। ब्रह्मा जी महादेव की आज्ञा से माता शक्ति की आराधना करते हैं और उनसे सृष्टि के नव निर्माण के लिए शक्ति एवं मार्गदर्शन माँगते हैं। माता शक्ति ब्रह्मा जी को शक्तियाँ देती हैं जिस से सृष्टि का नव निर्माण के लिए देती हैं। माता शक्ति अपनी एक शक्ति के रूप सरस्वती को ब्रह्मा जी को देती हैं।
उसके बाद माता उन्हें अपना लक्ष्मी रूप प्रदान करती हैं जो विष्णु भगवान की धर्म पत्नी बनेंगी। उसके बाद माता अपने उमा रूप को ब्रह्मा जी प्रदान करती हैं जो सती के रूप में जनम लेंगी और उसके बाद पार्वती के रूप में जन्म लेकर महादेव की पत्नी बनेंगी। उसके बाद माता शक्ति अपने महत्वपूर्ण अंश गंगा को देती हैं। माता ब्रह्मा जी को बताती हैं की गंगा जल रूप में तीनों लोकों में स्थापित रहेंगी। ब्रह्मा जी गंगा मैया से कहते हैं की जब तक मैं सृष्टि का निर्माण करता हूँ तब तक आप मेरे कमंडल में विराज मां हो जाए। गंगा मैया ब्रह्मा जी की बात मान कर उनके कमंडल में चली जाती है। ब्रह्मा जी सृष्टि का निर्माण करना शुरू कर दिया था। उन्होंने सारी सृष्टि का निर्माण कर दिया था एक दिन इंद्र देव ब्रह्मा जी के पास जाते हैं और उनसे कहते हैं की प्रभु अपने सारी सृष्टि का निर्माण तो कर दिया परंतु आप हमें माता की छाया से दूर रखा है इसलिए आप गंगा मैया को स्वर्ग लोक में प्रवाहित कर हमें गंगा मैया की ममता प्रदान करे।
ब्रह्मा जी गंगा को स्वर्ग में प्रवाहित कर देते हैं। सभी देवता गंगा मैया का स्वर्ग में स्वागत करते हैं और उनकी आरती करते हैं। गंगा मैया का स्वर्ग में देवता स्वागत करते हैं और उनकी आरती करते हैं। एक दिन नारद मुनि जी गंगा मैया की सेवा में उपस्थित होते हैं और नारद मुनि जी उमा माता के बारे में बताते हैं की वो आपसे मिलने के लिए आना चाहती हैं गंगा मैया नारद जी को बताती है की वो भी उनसे मिलना चाहती है। नारद जी बताते हैं की कुछ असुर आपके स्वर्ग में आने से खुश नहीं हैं। नारद गंगा मैया को बताते हैं की असुर राज अंधकासुर देवताओं से आपको छीनने के लिए कभी भी आ सकता है। गंगा मैया नारद जी को समझाती है की मैं सबकी माँ हूँ और असुर भी मेरे ही बालक हैं मैं उन्हें कुछ भी अनुचित करने नहीं दूँगी।
अंधकासुर स्वर्ग पर आक्रमण करने के लिए कहता है और अपने मायावी दानवों को भेजता है। अंधकासुर के भेजे तीनों दानव स्वर्ग में जाते हैं और गंगा मैया जो अपने साथ पाताल लोक में चलने के लिए कहते हैं। गंगा मैया उन्हें समझाती हैं की मैं पाताल लोक अवश्य आऊँगी परंतु अभी मेरा वहाँ जाने का समय नहीं आया है समय आने पर मैं वहाँ अवश्य आ जाऊँगी। गंगा मैया के समझाने के बाद भी जब दानव नहीं मानते और गंगा को ज़बरदस्ती पाताल लोक ले जाने के लिए अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हैं तो गंगा मैया ज्वाला सुर को मार देती हैं और बाक़ी दोनों असुर वहाँ से भाग जाते हैं। इंद्र देव को जब यह पता चलता है तो इंद्र देव और देव गुरु उनके पास आते हैं और उनसे कहते हैं की हम असुरों को आपके अपमान करने का दंड अवश्य देंगे तो गंगा मैया उन्हें ऐसा करने से रोक देती हैं।
अंधकासुर अपने दानवों की पराजय से क्रोधित हो कर अपने गुरु शुक्राचार्य के पास जाता है और उनसे देवताओं पर आक्रमण करने और उनसे आशीर्वाद लेने जाता हैं। शुक्राचार्य अंधकासुर को समझाते हैं की अभी हमें उन पर आक्रमण नहीं करना चाहिए क्योंकि उनके साथ अभी गंगा मैया है। गंगा मैया को पाताल लोक लाने के लिए अभी समय नहीं आया है। शुक्राचार्य अंधकासुर को महादेव शिव की तपस्या करके अमोघ शक्ति माँगने के लिए कहते हैं जिसका तोड़ ना देवताओं के पास हो और ना ही गंगा मैया के पास हो। अंधकासुर तपस्या में लीन हो जाता है। नारद मुनि जी इंद्र को अंधकासुर की तपस्या के बारे में बताते हैं तो इंद्र देव अंधकासुर की तपस्या को भंग करने के लिए स्वर्ग से रम्भा को भेजता है। रम्भा को अंधकासुर की तपस्या भंग करने के लिए जाता देख शुक्राचार्य उसे अपनी शक्तियों में असफल कर देते हैं।
रम्भा के असफल होने के बाद अग्नि देव और वायु देव को इंद्र देव भेजते हैं लेकिन शुक्राचार्य अपनी शक्तियों से उन्हें भी अंधकासुर की तपस्या भंग नहीं करने देते। इंद्र देव जब अंधकासुर की तपस्या को भंग नहीं कर पता तो वह गंगा मैया के पास जाता है और उन्हें बताता है की मैंने उसकी तपस्या को भंग करने की कोशिश की थी लेकिन ऐसा कर नहीं पाया। गंगा मैया इंद्र देव को कहती हैं की तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए तपस्या करने से वो अपनी शक्तियों को बढ़ा रहा है तो तुम भी सर्वतोभद्रे यज्ञ करने के लिए कहती है और दानवों से उनके यज्ञ की रक्षा करने का आशीर्वाद देती हैं। देव राज इंद्र और देव गुरु सर्वतोभद्रे यज्ञ करना शुरू करते हैं जिसे देख शुक्राचार्य उनके यज्ञ को ध्वस्त करने के लिए कृत्या को शक्तियाँ प्रदान करके स्वर्ग में भेजते हैं। कृत्या स्वर्ग में जाकर स्वर्ग लोक पर हमला कर देती हैं अग्नि देव और वायु देव कृत्या को रोकने की कोशिश करते हैं लेकिन रोक नहीं पाते।
जब कृत्या यज्ञ को भंग करने के लिए अपनी शक्तियों से हमला करती है तो गंगा मैया अपना कवच बना कर उनके यज्ञ की रक्षा करते हैं। जब कृत्या यज्ञ भंग नहीं कर पाती तो शुक्राचार्य उसे गंगा को बंदी बना कर पाताल लोक लने के लिए कहते हैं।
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