Woh Mera GandivDhari tha.... || A Poem about Invincible Warrior Arjun by Deepankur Bhardwaj
So many people requested for the Jaidrath Vadh video so here we are with "Raudraroop Darshan of GandivDhari Arjun"
Jai Shree Krishna ❤️❤️❤️
Instagram Link : https://www.instagram.com/bhardwajdeepankur/
Twitter Link : https://twitter.com/Devildeep7
Mahabharat Bori Critical Edition Link : https://drive.google.com/file/d/1bJIeK3ekKJS_W0jjcd6n1WR8HCR1iP39/view?usp=drivesdk
Lyrics :
गाथा सुनाता हूं उस वीर की
शत्रु जिसके बाणों से कराहते थे,
केवल कृष्ण की ना बात करो
स्वयं शिव उसे सराहते थे।
करूणा से भरा हृदय था जिसका
न तनिक भी मन में स्वार्थ था,
तीनो लोक में प्रशंसा पाने वाला
मेरे माधव का वो पार्थ था
रावण इंद्र थे पराजित जिनसे
3 करोड़ निवात कवचों पर अकेला ही वो भारी था,
अरे शिव को अपने धनुष से खींचने वाला
वो मेरा गांडीवधारी था।
योद्धा तो थे श्रेष्ठ बहुत
पर मैं क्यों अर्जुन अर्जुन गाता हूं,
महाभारत के उस महासमर से
चौदहवें दिन का वृतांत सुनाता हूं।
अभिमन्यु की निर्मम हत्या से
अर्जुन की भीषण हुंकार हुई,
सूर्यास्त कल का नहीं देखेगा जयद्रथ
गांडीव की भयंकर टंकार हुई।
अर्जुन की प्रतिज्ञा से
धरती उस दिन कांप गई,
रणभूमि में होने वाले तांडव को
कुरु सेना थी भांप गई।
रूद्र तांडव जैसा उस दिन
युद्ध बड़ा ही क्रूर था,
श्रेष्ठ योद्धा होने का उस दिन
कईयों का वहम भी दूर था।
कौरव योद्धा लगे विचारने
कैसा भयंकर क्षण होगा,
जब अर्जुन उतरेगा रणभूमि में
जीवन नहीं मरण होगा।
अब सुनो कैसा भीषण रक्तपात हुआ
अगले दिन जब शंखनाद हुआ,
कुरुओं के भाग्य थे फूट पड़े
अर्जुन और सात्यकी उन पर टूट पड़े
घोर गर्जना करता अर्जुन
भयभीत सृष्टि का खंड खंड था,
कुरु योद्धाओं में हाहाकार मची थी
वेग पार्थ का ऐसा प्रचंड था।
धर्मराज की रक्षा हेतु
सात्यकी को पड़ा वापस जाना था,
पार्थ के उस रौद्र रूप से मुश्किल फिर भी
जयद्रथ का बच पाना था।
सभी व्यूह ध्वस्त होते जाते थे
पंचतत्व भी जयगान अर्जुन का ही तो गाते थे,
चक्रसप्तसूची व्यूह भी असफल से हो जाते हैं
जब क्रुद्ध होकर नर नारायण युद्ध भूमि में आते हैं।
जब दो प्रहर के युद्ध के कारण,
अश्व नहीं चल पाए थे,
तब सब्यसाची युद्ध करने
उतर धरा पर आए थे।
रथ विहीन पार्थ देखकर
हर महारथी उससे लड़ने आया था,
बिना रथ के भी उस दिन कोई
ना पार्थ को जीत पाया था।
सभी एक साथ मिलकर भी ना
धनंजय को जीत पाए थे,
यूं ही नहीं शांति सभा में परशुराम ने
जयगान अर्जुन के गाए थे।
रथविहीन होकर भी पार्थ
सभी महारथियों पर भारी था,
अरे गौर से सुन लो कथा ये बंधु
कैसा मेरा गांडीवधारी था।
अब आगे का वृतांत सुनाता हूं
जब दुर्योधन पार्थ समक्ष आया था,
गुरु द्रोण ने रक्षा हेतु
ब्रह्म कवच पहनाया था।
फिर अब अर्जुन अपने अग्रज से बोले
व्यर्थ में ही आज प्राण अपने गंवाओगे,
ये द्यूत नहीं है समरांगण है
मेरे हाथों मारे जाओगे।
ब्रह्म कवच जैसे संकट को भी
जिष्णु ने फिर टाला था,
अपने तीव्र बाणों से उसने
खुद के अग्रज को बींध डाला था।
फिर दुर्योधन संग अश्वत्थामा
वृषसेन शल्य और भूरिश्रवा आए,
पार्थ संग युद्ध करने हेतु
कृपाचार्य और कर्ण को भी थे वो लाए।
सभी मिलकर भी ना जीत सके फाल्गुन को
फिर दुशासन और सिंधु राज जुड़े,
पर गांडीव का प्रचंड वेग देखकर
हर योद्धा के थे होश उड़े।
सब ने मिलकर कुछ हद तक
किया कृष्णार्जुन को घायल था,
अरे समरांगण नहीं सृष्टि का कण-कण
मेरे पार्थ का उस दिन कायल था।
अंगराज को जब रथ विहीन किया तो
अश्वत्थामा को आना पड़ा,
परास्त होकर जिष्णु से अंगराज को
अश्वत्थामा संग रणभूमि से जाना पड़ा।
सूर्य ढलने को आया था
पर पार्थ का शौर्य अभी भी जारी था,
अरे 8 महारथी जिससे डरकर भागे जिससे
वो मेरा गांडीवधारी था।
अर्जुन गिराने लगे ज्यों शीश सिंधु राज का
माधव बोले पार्थ तनिक विचार करो,
व्यर्थ अपना बलिदान देकर
ना पांडव सेना को लाचार करो।
ज्यों धरा पर गिरा शीश सिंधुराज का
अनर्थ प्रचंड हो जाएगा,
वृद्धक्षत्र के वरदान के कारण
तुम्हारा मस्तक खंड खंड हो जाएगा।
तब विभत्सु ने क्रोध में आकर
समस्त रण क्षेत्र को हिला दिया,
और जयद्रथ का शीश उन्होंने
पिता वृद्धक्षत्र की गोद में था गिरा दिया।
अब पूछता हूं उन योद्धाओं से
जिन्होंने खुद को पार्थ से श्रेष्ठ बताया था,
क्यों अर्जुन के भय के कारण तुमने
सिंधुराज को छुपाया था।
अरे श्रेष्ठ होते तो जाकर सीधे
पार्थ की छाती पर तन जाते तुम,
योद्धाओं की भांति युद्ध को करते
ना सिंधुराज को छुपाते तुम।
अरे धर्म की खातिर लड़ा सदा ही
ना श्रेष्ठ कभी खुद को बताता था,
युद्ध कौशल को देख स्वयं इंद्र जिसके आगे
नतमस्तक हो जाता था।
हर धर्म परायण व्यक्ति जिसका
सदा ही आभारी था,
अरे योद्धाओं में सबसे उच्च
वो मेरा गांडीवधारी था, वो मेरा गांडिवधारी था।
Видео Woh Mera GandivDhari tha.... || A Poem about Invincible Warrior Arjun by Deepankur Bhardwaj канала Deepankur Bhardwaj Poetry
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Lyrics :
गाथा सुनाता हूं उस वीर की
शत्रु जिसके बाणों से कराहते थे,
केवल कृष्ण की ना बात करो
स्वयं शिव उसे सराहते थे।
करूणा से भरा हृदय था जिसका
न तनिक भी मन में स्वार्थ था,
तीनो लोक में प्रशंसा पाने वाला
मेरे माधव का वो पार्थ था
रावण इंद्र थे पराजित जिनसे
3 करोड़ निवात कवचों पर अकेला ही वो भारी था,
अरे शिव को अपने धनुष से खींचने वाला
वो मेरा गांडीवधारी था।
योद्धा तो थे श्रेष्ठ बहुत
पर मैं क्यों अर्जुन अर्जुन गाता हूं,
महाभारत के उस महासमर से
चौदहवें दिन का वृतांत सुनाता हूं।
अभिमन्यु की निर्मम हत्या से
अर्जुन की भीषण हुंकार हुई,
सूर्यास्त कल का नहीं देखेगा जयद्रथ
गांडीव की भयंकर टंकार हुई।
अर्जुन की प्रतिज्ञा से
धरती उस दिन कांप गई,
रणभूमि में होने वाले तांडव को
कुरु सेना थी भांप गई।
रूद्र तांडव जैसा उस दिन
युद्ध बड़ा ही क्रूर था,
श्रेष्ठ योद्धा होने का उस दिन
कईयों का वहम भी दूर था।
कौरव योद्धा लगे विचारने
कैसा भयंकर क्षण होगा,
जब अर्जुन उतरेगा रणभूमि में
जीवन नहीं मरण होगा।
अब सुनो कैसा भीषण रक्तपात हुआ
अगले दिन जब शंखनाद हुआ,
कुरुओं के भाग्य थे फूट पड़े
अर्जुन और सात्यकी उन पर टूट पड़े
घोर गर्जना करता अर्जुन
भयभीत सृष्टि का खंड खंड था,
कुरु योद्धाओं में हाहाकार मची थी
वेग पार्थ का ऐसा प्रचंड था।
धर्मराज की रक्षा हेतु
सात्यकी को पड़ा वापस जाना था,
पार्थ के उस रौद्र रूप से मुश्किल फिर भी
जयद्रथ का बच पाना था।
सभी व्यूह ध्वस्त होते जाते थे
पंचतत्व भी जयगान अर्जुन का ही तो गाते थे,
चक्रसप्तसूची व्यूह भी असफल से हो जाते हैं
जब क्रुद्ध होकर नर नारायण युद्ध भूमि में आते हैं।
जब दो प्रहर के युद्ध के कारण,
अश्व नहीं चल पाए थे,
तब सब्यसाची युद्ध करने
उतर धरा पर आए थे।
रथ विहीन पार्थ देखकर
हर महारथी उससे लड़ने आया था,
बिना रथ के भी उस दिन कोई
ना पार्थ को जीत पाया था।
सभी एक साथ मिलकर भी ना
धनंजय को जीत पाए थे,
यूं ही नहीं शांति सभा में परशुराम ने
जयगान अर्जुन के गाए थे।
रथविहीन होकर भी पार्थ
सभी महारथियों पर भारी था,
अरे गौर से सुन लो कथा ये बंधु
कैसा मेरा गांडीवधारी था।
अब आगे का वृतांत सुनाता हूं
जब दुर्योधन पार्थ समक्ष आया था,
गुरु द्रोण ने रक्षा हेतु
ब्रह्म कवच पहनाया था।
फिर अब अर्जुन अपने अग्रज से बोले
व्यर्थ में ही आज प्राण अपने गंवाओगे,
ये द्यूत नहीं है समरांगण है
मेरे हाथों मारे जाओगे।
ब्रह्म कवच जैसे संकट को भी
जिष्णु ने फिर टाला था,
अपने तीव्र बाणों से उसने
खुद के अग्रज को बींध डाला था।
फिर दुर्योधन संग अश्वत्थामा
वृषसेन शल्य और भूरिश्रवा आए,
पार्थ संग युद्ध करने हेतु
कृपाचार्य और कर्ण को भी थे वो लाए।
सभी मिलकर भी ना जीत सके फाल्गुन को
फिर दुशासन और सिंधु राज जुड़े,
पर गांडीव का प्रचंड वेग देखकर
हर योद्धा के थे होश उड़े।
सब ने मिलकर कुछ हद तक
किया कृष्णार्जुन को घायल था,
अरे समरांगण नहीं सृष्टि का कण-कण
मेरे पार्थ का उस दिन कायल था।
अंगराज को जब रथ विहीन किया तो
अश्वत्थामा को आना पड़ा,
परास्त होकर जिष्णु से अंगराज को
अश्वत्थामा संग रणभूमि से जाना पड़ा।
सूर्य ढलने को आया था
पर पार्थ का शौर्य अभी भी जारी था,
अरे 8 महारथी जिससे डरकर भागे जिससे
वो मेरा गांडीवधारी था।
अर्जुन गिराने लगे ज्यों शीश सिंधु राज का
माधव बोले पार्थ तनिक विचार करो,
व्यर्थ अपना बलिदान देकर
ना पांडव सेना को लाचार करो।
ज्यों धरा पर गिरा शीश सिंधुराज का
अनर्थ प्रचंड हो जाएगा,
वृद्धक्षत्र के वरदान के कारण
तुम्हारा मस्तक खंड खंड हो जाएगा।
तब विभत्सु ने क्रोध में आकर
समस्त रण क्षेत्र को हिला दिया,
और जयद्रथ का शीश उन्होंने
पिता वृद्धक्षत्र की गोद में था गिरा दिया।
अब पूछता हूं उन योद्धाओं से
जिन्होंने खुद को पार्थ से श्रेष्ठ बताया था,
क्यों अर्जुन के भय के कारण तुमने
सिंधुराज को छुपाया था।
अरे श्रेष्ठ होते तो जाकर सीधे
पार्थ की छाती पर तन जाते तुम,
योद्धाओं की भांति युद्ध को करते
ना सिंधुराज को छुपाते तुम।
अरे धर्म की खातिर लड़ा सदा ही
ना श्रेष्ठ कभी खुद को बताता था,
युद्ध कौशल को देख स्वयं इंद्र जिसके आगे
नतमस्तक हो जाता था।
हर धर्म परायण व्यक्ति जिसका
सदा ही आभारी था,
अरे योद्धाओं में सबसे उच्च
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16 июля 2021 г. 18:41:41
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