कच्छ गुजरात प्रान्त का एक जिला है। [The Great Rann of Kutch in Gujarat]—Exclusive**Hindi Documentary
कच्छ में देखने लायक कई स्थान है जिसमें कच्छ का सफ़ेद रण आजकल पर्यटकों को लुभा रहा है। इस के अलावा मांडवी समुद्रतट भी सुंदर आकर्षण है। भुज कच्छ की राजधानी है जिसमें कच्छ के महाराजा का आइना महल, प्राग महल, शरद बाग़ पैलेस एवं हमीरसर तलाव भुज में मुख्य आकर्षण है तथा मांडवी में स्थित विजय विलास पैलेस जो समुद्रतट पर स्थित है जो देखने लायक है। भद्रेश्वर जैन तीर्थ और कोटेश्वर में महादेव का मंदिर और नारायण सरोवर जो पवित्र सरोवरों में से एक है वो भी घूमने लायक है।
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#मरुप्रदेशकच्छ #कच्छगुजरातप्रान्तकाएकजिला
इस स्थल की खोज 1967-68 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के जे पी जोशी ने की थी और यह आठ प्रमुख हड़प्पा स्थलों में से पांचवां सबसे बड़ा है। यह एएसआई द्वारा 1990 से उत्खनन के तहत किया गया है, जिसने कहा कि "धोलावीरा ने वास्तव में सिंधु घाटी सभ्यता के व्यक्तित्व में नए आयाम जोड़े हैं।"अब तक खोजे गए अन्य प्रमुख हड़प्पा स्थलों में हड़प्पा, मोहनजो-दड़ो, गनेरीवाला, राखीगढ़ी हैं। कालीबंगन, रूपनगर और लोथल। यह पुरातात्विक स्थल हडप्पा संस्कृति का प्रमुख केन्द्र था। जिला मुख्यालय भुज से करीब 250 किलोमीटर दूर स्थित धौलावीरा यह बात साबित करता है कि एक जमाने में हडप्पा संस्कृति यहां फली-फूली थी। यह संस्कृति 2900 ईसा पूर्व से 2500 ईसा पूर्व की मानी जाती है। सिंधु घाटी सभ्यता के अनेक अवशेषों को यहां देखा जा सकता है। वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग इसकी देखरेख करता है। धौलावीरा क्षेत्र का 47 ha (120 एकड़) है।[2] धौलावीरा का पिन कोड 370165 है।
भुज से करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित यह बीच गुजरात के सबसे आकर्षक बीचों में एक माना जाता है। दूर-दूर फैले नीले पानी को देखना और यहां की रेत पर टलहना पर्यटकों को खूब भाता है। साथ की अनेक प्रकार के जलपक्षियों को भी यहां देखा जा सकता है। सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा यहां से बड़ा आकर्षक प्रतीत होता हैं।
एक अलग-थलग पहाड़ी के शिखर पर बने इस किले का निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ था। अलग-अलग समय में इस पर सोलंकी, चावडा और वघेल वशों का नियंत्रण रहा। 1816 में अंग्रेजों ने इस पर अधिकार कर लिया और इसका अधिकांश हिस्सा नष्ट कर दिया। किले के निकट ही कंथडनाथ मंदिर, जैन मंदिर और सूर्य मंदिर को भी देखा जा सकता है।
भद्रावती में स्थित यह प्राचीन जैन मंदिर जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अति पवित्र माना जाता है। भद्रावती में 449 ईसा पूर्व राजा सिद्धसेन का शासन था। बाद में यहां सोलंकियों का अधिकार हो गया जो जैन मतावलंबी थे। उन्होंनें इस स्थान का नाम बदलकर भद्रेश्वर रख दिया।
इस बंदरगाह को विकसित करने का श्रेय महाराज श्री खेनगरजी प्रथम को जाता है। लेखक मिलबर्न ने मांडवी को कच्छ के सबसे महान बंदरगाहों में एक माना है। बड़ी संख्या में पानी के जहाजों को यहां देखा जा सकता है।
यह बंदरगाह मुंद्रा शहर से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर है। ओल्ड पोर्ट और अदनी पोर्ट यहां देखे जा सकते हैं। यह बंदरगाह पूरे साल व्यस्त रहते हैं और अनेक विदेशी पानी के जहाजों का यहां से आना-जाना लगा रहता है। दूसरे राज्यों से बहुत से लोग यहां काम करने आते हैं।
यह बंदरगाह कच्छ जिले के सबसे प्राचीन बंदरगाहों में एक है। वर्तमान में मात्र मछली पकडने के उद्देश्य से इसका प्रयोग किया जाता है। कच्छ जिले के इस खूबसूरत बंदरगाह में तटरक्षक केन्द्र और बीएसफ का जलविभाग है।
वायु मार्ग
भुज विमानक्षेत्र और कांदला विमानक्षेत्र कच्छ जिले के दो महत्वपूर्ण एयरपोर्ट हैं। मुंबई से यहां के लिए नियमित फ्लाइट्स हैं।
रेल मार्ग
गांधीधाम और भुज में जिले के नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं। यह रेलवे स्टेशन कच्छ को देश के अनेक हिस्सों से जोड़ते हैं।
सड़क मार्ग
कच्छ सड़क मार्ग द्वारा गुजरात और अन्य पड़ोसी राज्यों के बहुत से शहरों से जुड़ा हुआ है। राज्य परिवहन और प्राईवेट डीलक्स बसें गुजरात के अनेक शहरों से कच्छ के लिए चलती रहती हैं
कच्छ ज़िला भारत के गुजरात राज्य का एक ज़िला है। इस ज़िले का मुख्यालय भुज है
क्षेत्रफल की दृष्टि से यह राज्य का सबसे बड़ा ज़िला है। प्राचीन महानगर धोलावीरा, जहाँ पुरातन सिन्धु संस्कृति विकसित हुई थी, कच्छ जिलें में स्थित है। कच्छ में प्रायः कच्छी भाषा, सिंधी भाषा व गुजराती भाषा का प्रयोग होता है।
कच्छ ज़िला, 45,691 वर्ग किलोमीटर (17,642 वर्ग मील) में, भारत का दुसरे नंबर का सबसे बड़ा ज़िला है। राजधानी भुज में है जो भौगोलिक रूप से ज़िले के केंद्र में है। अन्य मुख्य कस्बे हैं गांधीधाम, रापर, नखतराना, अंजार, मांडवी, माधापार, मुंद्रा और भचाऊ। कच्छ में 969 गांव हैं। काला डूंगर (ब्लैक हिल) 458 मीटर (1,503 फीट) कच्छ का सबसे ऊंचा स्थान है। कच्छ वस्तुतः एक द्वीप है, क्योंकि यह पश्चिम में अरब सागर, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में कच्छ की खाड़ी और उत्तर और उत्तर-पूर्व में कच्छ के रण से घिरा हुआ है। पाकिस्तान के साथ सीमा सर क्रीक के कच्छ के रण के उत्तरी किनारे पर स्थित है। कच्छ प्रायद्वीप सक्रिय गुना और थ्रस्ट टेक्टोनिज्म का एक उदाहरण है।
कच्छ को चार क्षेत्रों में बांटा गया है, जिनका नाम है (क) वागड़ (रापार और भचाऊ ताल्लुक़ा और छोटा रण सहित क्षेत्र), (ख) कांठी (सागर तट क्षेत्र जिसमें अंजार मुंद्रा और मांडवी ताल्लुक़ा शामिल हैं, (ग) पस्चम के साथ बन्नी क्षेत्र इसमें भुज, नखतरना और आसपास के क्षेत्र और (घ) मगपत शामिल है जिसमें नखतराना और लखपत ताल्लुक़ा का हिस्सा शामिल है।
कच्छ रियासत के अंतर्गत, कच्छ को बानी, अबडासा, अंजार, बन्नी, भुवद चोवसी, गराडो, हलार चोविसी, कांड, कंठो, खादिर, मोडासा, प्रांथल, प्रवर और वागड़ में विभाजित किया गया था।
कच्छ ज़िले को दस ताल्लुक़ाओं में विभाजित किया गया है: अबडासा (अडासा-नालिया), अंजार, भचाऊ, भुज, गांधीधाम, लखपत, मांडवी, मुंद्रा, नखत्राणा और रापर।
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इस स्थल की खोज 1967-68 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के जे पी जोशी ने की थी और यह आठ प्रमुख हड़प्पा स्थलों में से पांचवां सबसे बड़ा है। यह एएसआई द्वारा 1990 से उत्खनन के तहत किया गया है, जिसने कहा कि "धोलावीरा ने वास्तव में सिंधु घाटी सभ्यता के व्यक्तित्व में नए आयाम जोड़े हैं।"अब तक खोजे गए अन्य प्रमुख हड़प्पा स्थलों में हड़प्पा, मोहनजो-दड़ो, गनेरीवाला, राखीगढ़ी हैं। कालीबंगन, रूपनगर और लोथल। यह पुरातात्विक स्थल हडप्पा संस्कृति का प्रमुख केन्द्र था। जिला मुख्यालय भुज से करीब 250 किलोमीटर दूर स्थित धौलावीरा यह बात साबित करता है कि एक जमाने में हडप्पा संस्कृति यहां फली-फूली थी। यह संस्कृति 2900 ईसा पूर्व से 2500 ईसा पूर्व की मानी जाती है। सिंधु घाटी सभ्यता के अनेक अवशेषों को यहां देखा जा सकता है। वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग इसकी देखरेख करता है। धौलावीरा क्षेत्र का 47 ha (120 एकड़) है।[2] धौलावीरा का पिन कोड 370165 है।
भुज से करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित यह बीच गुजरात के सबसे आकर्षक बीचों में एक माना जाता है। दूर-दूर फैले नीले पानी को देखना और यहां की रेत पर टलहना पर्यटकों को खूब भाता है। साथ की अनेक प्रकार के जलपक्षियों को भी यहां देखा जा सकता है। सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा यहां से बड़ा आकर्षक प्रतीत होता हैं।
एक अलग-थलग पहाड़ी के शिखर पर बने इस किले का निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ था। अलग-अलग समय में इस पर सोलंकी, चावडा और वघेल वशों का नियंत्रण रहा। 1816 में अंग्रेजों ने इस पर अधिकार कर लिया और इसका अधिकांश हिस्सा नष्ट कर दिया। किले के निकट ही कंथडनाथ मंदिर, जैन मंदिर और सूर्य मंदिर को भी देखा जा सकता है।
भद्रावती में स्थित यह प्राचीन जैन मंदिर जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अति पवित्र माना जाता है। भद्रावती में 449 ईसा पूर्व राजा सिद्धसेन का शासन था। बाद में यहां सोलंकियों का अधिकार हो गया जो जैन मतावलंबी थे। उन्होंनें इस स्थान का नाम बदलकर भद्रेश्वर रख दिया।
इस बंदरगाह को विकसित करने का श्रेय महाराज श्री खेनगरजी प्रथम को जाता है। लेखक मिलबर्न ने मांडवी को कच्छ के सबसे महान बंदरगाहों में एक माना है। बड़ी संख्या में पानी के जहाजों को यहां देखा जा सकता है।
यह बंदरगाह मुंद्रा शहर से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर है। ओल्ड पोर्ट और अदनी पोर्ट यहां देखे जा सकते हैं। यह बंदरगाह पूरे साल व्यस्त रहते हैं और अनेक विदेशी पानी के जहाजों का यहां से आना-जाना लगा रहता है। दूसरे राज्यों से बहुत से लोग यहां काम करने आते हैं।
यह बंदरगाह कच्छ जिले के सबसे प्राचीन बंदरगाहों में एक है। वर्तमान में मात्र मछली पकडने के उद्देश्य से इसका प्रयोग किया जाता है। कच्छ जिले के इस खूबसूरत बंदरगाह में तटरक्षक केन्द्र और बीएसफ का जलविभाग है।
वायु मार्ग
भुज विमानक्षेत्र और कांदला विमानक्षेत्र कच्छ जिले के दो महत्वपूर्ण एयरपोर्ट हैं। मुंबई से यहां के लिए नियमित फ्लाइट्स हैं।
रेल मार्ग
गांधीधाम और भुज में जिले के नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं। यह रेलवे स्टेशन कच्छ को देश के अनेक हिस्सों से जोड़ते हैं।
सड़क मार्ग
कच्छ सड़क मार्ग द्वारा गुजरात और अन्य पड़ोसी राज्यों के बहुत से शहरों से जुड़ा हुआ है। राज्य परिवहन और प्राईवेट डीलक्स बसें गुजरात के अनेक शहरों से कच्छ के लिए चलती रहती हैं
कच्छ ज़िला भारत के गुजरात राज्य का एक ज़िला है। इस ज़िले का मुख्यालय भुज है
क्षेत्रफल की दृष्टि से यह राज्य का सबसे बड़ा ज़िला है। प्राचीन महानगर धोलावीरा, जहाँ पुरातन सिन्धु संस्कृति विकसित हुई थी, कच्छ जिलें में स्थित है। कच्छ में प्रायः कच्छी भाषा, सिंधी भाषा व गुजराती भाषा का प्रयोग होता है।
कच्छ ज़िला, 45,691 वर्ग किलोमीटर (17,642 वर्ग मील) में, भारत का दुसरे नंबर का सबसे बड़ा ज़िला है। राजधानी भुज में है जो भौगोलिक रूप से ज़िले के केंद्र में है। अन्य मुख्य कस्बे हैं गांधीधाम, रापर, नखतराना, अंजार, मांडवी, माधापार, मुंद्रा और भचाऊ। कच्छ में 969 गांव हैं। काला डूंगर (ब्लैक हिल) 458 मीटर (1,503 फीट) कच्छ का सबसे ऊंचा स्थान है। कच्छ वस्तुतः एक द्वीप है, क्योंकि यह पश्चिम में अरब सागर, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में कच्छ की खाड़ी और उत्तर और उत्तर-पूर्व में कच्छ के रण से घिरा हुआ है। पाकिस्तान के साथ सीमा सर क्रीक के कच्छ के रण के उत्तरी किनारे पर स्थित है। कच्छ प्रायद्वीप सक्रिय गुना और थ्रस्ट टेक्टोनिज्म का एक उदाहरण है।
कच्छ को चार क्षेत्रों में बांटा गया है, जिनका नाम है (क) वागड़ (रापार और भचाऊ ताल्लुक़ा और छोटा रण सहित क्षेत्र), (ख) कांठी (सागर तट क्षेत्र जिसमें अंजार मुंद्रा और मांडवी ताल्लुक़ा शामिल हैं, (ग) पस्चम के साथ बन्नी क्षेत्र इसमें भुज, नखतरना और आसपास के क्षेत्र और (घ) मगपत शामिल है जिसमें नखतराना और लखपत ताल्लुक़ा का हिस्सा शामिल है।
कच्छ रियासत के अंतर्गत, कच्छ को बानी, अबडासा, अंजार, बन्नी, भुवद चोवसी, गराडो, हलार चोविसी, कांड, कंठो, खादिर, मोडासा, प्रांथल, प्रवर और वागड़ में विभाजित किया गया था।
कच्छ ज़िले को दस ताल्लुक़ाओं में विभाजित किया गया है: अबडासा (अडासा-नालिया), अंजार, भचाऊ, भुज, गांधीधाम, लखपत, मांडवी, मुंद्रा, नखत्राणा और रापर।
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