|| हर्ष का टीला || Harsh Ka Tila || “रहस्यों से भरा 1400 साल पुराना हिंदू राजा हर्षवर्धन का किला।।
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हर्षवर्धन काल ::--
हर्षवर्धन के साम्राज्य की राजधानी कन्नौज थी। उसने 606 ईस्वी से 647 ईस्वी तक शासन किया था। उसका साम्राज्य पंजाब से उत्तरी उड़ीसा तथा हिमालय से नर्मदा नदी के तट तक फैला हुआ था। हर्षवर्धन पुष्यभूति राजवंश से संबंध रखता था जिसकी स्थापना नरवर्धन ने 5वीं या छठी शताब्दी ईस्वी के आरम्भ में की थी। यह केवल थानेश्वर के राजा प्रभाकर वर्धन (हर्षवर्धन के पिता) के अधीन था। पुष्यभूति समृद्ध राजवंश था और इसने महाराजाधिराज का खिताब प्राप्त किया था। हर्षवर्धन 606 ईस्वी में सिंहासन का उत्तराधिकारी बना था।
हर्षवर्धन पुष्यभूति राजवंश से संबंध रखता था जिसकी स्थापना नरवर्धन ने 5वीं या छठी शताब्दी ईस्वी के आरम्भ में की थी। यह केवल थानेश्वर के राजा प्रभाकर वर्धन (हर्षवर्धन के पिता) के अधीन था। पुष्यभूति समृद्ध राजवंश था और इसने महाराजाधिराज का खिताब प्राप्त किया था। हर्षवर्धन 606 ईस्वी में 16 वर्ष की आयु में तब सिंहासन का उत्तराधिकारी बना था जब उसके भाई राज्यवर्धन की शशांक द्वारा हत्या कर दी गयी थी जो गौड और मालवा के राजाओं का दमन करने निकला था। हर्ष को स्कालोट्टारपथनाथ के रूप में भी जाना जाता था। सिंहासन पर बैठने के बाद उसने अपनी बहन राज्यश्री को बचाया और एक असफल प्रयास के साथ शशांक की तरफ बढा था।
अपने दूसरे अभियान में, शशांक की मौत के बाद, उसने मगध और शशांक के साम्राज्य पर विजय प्राप्त की थी। उसने कन्नौज में अपनी राजधानी स्थापित की। एक बड़ी सेना के साथ, हर्षवर्धन ने अपने साम्राज्य को पंजाब से उत्तरी उड़ीसा तथा हिमालय से नर्मदा नदी के तट तक विस्तारित किया। उसने नर्मदा से आगे भी अपने साम्राज्य को विस्तारित करने की कोशिश की लेकिन ऐसा करने में वह विफल रहा था। उसे बादामी के चालुक्य राजा पुलकेसिन द्वितीय के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। बाणभट्ट द्वारा लिखित “हर्षचरित्र” हर्ष की अवधि में एक सफल दस्तावेज के रूप में मौजूद है। चीनी विद्वान ह्वेनसांग जिसने हर्ष के शासन के दौरान यहा का दौरा किया था, की रचनाओं में भी हर्ष और हर्ष की अवधि के दौरान के भारत, के बारे में काफी विस्तार से वर्णन किया गया है। 647 ईस्वी में हर्षवर्धन की मृत्यु के साथ ही उसके साम्राज्य का भी अंत हो गया।
महत्वपूर्ण हस्तियां:
हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान दो महत्वपूर्ण हस्तियां थीं।
क) बाणभट्ट हर्ष के दरबार में एक कवि थे। उन्होंने हर्षवर्धन की जीवनी 'हर्षचरित' की रचना की जिसमें उन्होंने विस्तृत जानकारी के साथ हर्ष की शक्ति के उदय तक की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख किया है। यह संस्कृत भाषा में लिखित थी। उन्होंने 'कादम्बरी' नामक एक नाटक भी लिखा था।
ख) ह्वेनसांग जो एक चीनी तीर्थयात्री था उसने भी हर्ष के साम्राज्य का दौरा किया था। चीन वापस जाने के बाद एक उसने 'शि-यू-की' (पश्चिम की दुनिया) नामक एक पुस्तक लिखी थी। हर्षवर्धन के साथ-साथ ह्वेनसांग ने अपनी पुस्तक में दो अन्य राजाओं- पल्लव वंश के नरसिंह वर्मन और चालुक्य वंश के पुलकेसिन द्वितीय की भी प्रशंसा की थी। वह अफगानिस्तान के माध्यम से मध्य एशिया में आया था और उसी मार्ग के माध्यम से वापस चला गया। ह्वेनसांग ने नालंदा में अध्ययन किया था और बाद में नौ वर्षों तक वहां शिक्षण भी किया था।
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दोस्तों अगर आपको हमारी यह वीडियो और हमारा कंटेंट पसंद आए तो जरूर अपने अच्छे सुझाव और अपने कमेंट जरुर हमें दें ताकि अगली बार हम आपके लिए इस से भी बेहतर और अच्छी वीडियो ला सकें।
धन्यवाद
नमस्ते।
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हर्षवर्धन के साम्राज्य की राजधानी कन्नौज थी। उसने 606 ईस्वी से 647 ईस्वी तक शासन किया था। उसका साम्राज्य पंजाब से उत्तरी उड़ीसा तथा हिमालय से नर्मदा नदी के तट तक फैला हुआ था। हर्षवर्धन पुष्यभूति राजवंश से संबंध रखता था जिसकी स्थापना नरवर्धन ने 5वीं या छठी शताब्दी ईस्वी के आरम्भ में की थी। यह केवल थानेश्वर के राजा प्रभाकर वर्धन (हर्षवर्धन के पिता) के अधीन था। पुष्यभूति समृद्ध राजवंश था और इसने महाराजाधिराज का खिताब प्राप्त किया था। हर्षवर्धन 606 ईस्वी में सिंहासन का उत्तराधिकारी बना था।
हर्षवर्धन पुष्यभूति राजवंश से संबंध रखता था जिसकी स्थापना नरवर्धन ने 5वीं या छठी शताब्दी ईस्वी के आरम्भ में की थी। यह केवल थानेश्वर के राजा प्रभाकर वर्धन (हर्षवर्धन के पिता) के अधीन था। पुष्यभूति समृद्ध राजवंश था और इसने महाराजाधिराज का खिताब प्राप्त किया था। हर्षवर्धन 606 ईस्वी में 16 वर्ष की आयु में तब सिंहासन का उत्तराधिकारी बना था जब उसके भाई राज्यवर्धन की शशांक द्वारा हत्या कर दी गयी थी जो गौड और मालवा के राजाओं का दमन करने निकला था। हर्ष को स्कालोट्टारपथनाथ के रूप में भी जाना जाता था। सिंहासन पर बैठने के बाद उसने अपनी बहन राज्यश्री को बचाया और एक असफल प्रयास के साथ शशांक की तरफ बढा था।
अपने दूसरे अभियान में, शशांक की मौत के बाद, उसने मगध और शशांक के साम्राज्य पर विजय प्राप्त की थी। उसने कन्नौज में अपनी राजधानी स्थापित की। एक बड़ी सेना के साथ, हर्षवर्धन ने अपने साम्राज्य को पंजाब से उत्तरी उड़ीसा तथा हिमालय से नर्मदा नदी के तट तक विस्तारित किया। उसने नर्मदा से आगे भी अपने साम्राज्य को विस्तारित करने की कोशिश की लेकिन ऐसा करने में वह विफल रहा था। उसे बादामी के चालुक्य राजा पुलकेसिन द्वितीय के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। बाणभट्ट द्वारा लिखित “हर्षचरित्र” हर्ष की अवधि में एक सफल दस्तावेज के रूप में मौजूद है। चीनी विद्वान ह्वेनसांग जिसने हर्ष के शासन के दौरान यहा का दौरा किया था, की रचनाओं में भी हर्ष और हर्ष की अवधि के दौरान के भारत, के बारे में काफी विस्तार से वर्णन किया गया है। 647 ईस्वी में हर्षवर्धन की मृत्यु के साथ ही उसके साम्राज्य का भी अंत हो गया।
महत्वपूर्ण हस्तियां:
हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान दो महत्वपूर्ण हस्तियां थीं।
क) बाणभट्ट हर्ष के दरबार में एक कवि थे। उन्होंने हर्षवर्धन की जीवनी 'हर्षचरित' की रचना की जिसमें उन्होंने विस्तृत जानकारी के साथ हर्ष की शक्ति के उदय तक की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख किया है। यह संस्कृत भाषा में लिखित थी। उन्होंने 'कादम्बरी' नामक एक नाटक भी लिखा था।
ख) ह्वेनसांग जो एक चीनी तीर्थयात्री था उसने भी हर्ष के साम्राज्य का दौरा किया था। चीन वापस जाने के बाद एक उसने 'शि-यू-की' (पश्चिम की दुनिया) नामक एक पुस्तक लिखी थी। हर्षवर्धन के साथ-साथ ह्वेनसांग ने अपनी पुस्तक में दो अन्य राजाओं- पल्लव वंश के नरसिंह वर्मन और चालुक्य वंश के पुलकेसिन द्वितीय की भी प्रशंसा की थी। वह अफगानिस्तान के माध्यम से मध्य एशिया में आया था और उसी मार्ग के माध्यम से वापस चला गया। ह्वेनसांग ने नालंदा में अध्ययन किया था और बाद में नौ वर्षों तक वहां शिक्षण भी किया था।
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