BHAKTAMAR STROTRA आर्यिकारत्न 105 PURANMATI MATAJI
श्री आदिनाथय नमः
आदिवचन
'भक्तामर स्तोत्र' इस कलिकाल में भक्तों के लिये एक अनुपम उपहार है।अतः शताब्दियों के व्यतीत हो जाने पर भी इस स्तोत्र की महिमा और प्रभावशीलता कम न होकर के और अधिक उत्तरोतर व्रद्धिगत् हुई है।लाखों भक्त आज भी बड़ी श्रद्धा एवं भक्ति भाव के साथ इसका नियमित रूप से पाठ करते हुये अपने अमीषा पाप्ति की सुखद अनुभूति करते हैं ।
भक्ति में अनन्त शक्ति और बल होता है।जो शुद्ध हृदय से समर्पित भावना पूर्वक परमात्मा की भक्ति करता है, उसे स्वयमेव वैभव सन्मान समृद्धि अरोग्य और धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।इतना ही नहीं वरन् मंत्र परम्परा से मोक्ष की प्राप्ति के हेतु होते हैं।
जब भक्ति स्तोत्र के द्वारा साधक का मन निर्मल एकाग्र हो जाता है तब उसके समस्त विकल्प समाप्त होकर परमात्मा में एकाकार होकर तन्मयता का अदभुत आनन्द लेता है जो कि अनिर्वचनीय व अनुभव गम्य है!!
भक्तामर स्तोत्र का हर काव्य अनन्त गुणवत्ता को लिये है।स्तोत्र के प्रत्येक काव्य से इसकी गुणवत्ता प्रवाहित होती है।यदि यह कहा जाये कि 'भक्तामर स्तोत्र ' भौतिक एंव अध्यात्मिक उपलब्धियो को प्राप्त करने के लिये चिन्तामणि रत्न या कामधेनु के समान अचन्त्यि फल देता है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
इसमें मानतुंगाचार्य ने मात्र ४८ श्लोकों में भगवान आदिनाथ की स्तुति
प्रस्तुति आर्यिकारत्न श्री १०५ पूर्णमति माताजी
भक्तामर सुप्रसिद्ध स्तोत्र भक्त शिरोमणि आचार्य मानतुंग द्वारा रचित ४८ काव्यों की कृति है।यह स्तोत्र अपनी प्राचीनता के साथ महत्व एवं उपयोगिता की दृष्टि से सदैव- सदैव श्रद्धा से पूज्यता प्राप्त करता चला आ रहा है। इसकी महिमा अचिन्त्य एवं अकथनीय है। इसकी साधना में निष्कपट निष्काम और भाव पूर्ण समर्पण एवं सवार्पण भक्ति कार्यकारी होती है।
समर्पण 1 MILLION VIEWS 1 YEAR AGO
आगम के पूर्ववर्ती, तत्कालीन उन दिगम्बर साधुजनों एवं आचार्य गणों जो सघन मौन व गहन साधना से निसृत आत्मकल्याणार्थ, लोकक्ल्याणार्थ मंत्रों,श्लोकों,स्तोत्रों की रचना कर कल्याण के सेतु निरुपित हुए उन्हें नमन सहित् समर्पित एवं पुज्य आर्यिका रत्न श्री १०५ पूर्णमति माताजी द्वारा प्रस्तुती भक्तामर स्तोत्र वन्दामि वन्दामि वन्दामि माताजी
Видео BHAKTAMAR STROTRA आर्यिकारत्न 105 PURANMATI MATAJI канала Sukhmall Bakliwal
आदिवचन
'भक्तामर स्तोत्र' इस कलिकाल में भक्तों के लिये एक अनुपम उपहार है।अतः शताब्दियों के व्यतीत हो जाने पर भी इस स्तोत्र की महिमा और प्रभावशीलता कम न होकर के और अधिक उत्तरोतर व्रद्धिगत् हुई है।लाखों भक्त आज भी बड़ी श्रद्धा एवं भक्ति भाव के साथ इसका नियमित रूप से पाठ करते हुये अपने अमीषा पाप्ति की सुखद अनुभूति करते हैं ।
भक्ति में अनन्त शक्ति और बल होता है।जो शुद्ध हृदय से समर्पित भावना पूर्वक परमात्मा की भक्ति करता है, उसे स्वयमेव वैभव सन्मान समृद्धि अरोग्य और धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।इतना ही नहीं वरन् मंत्र परम्परा से मोक्ष की प्राप्ति के हेतु होते हैं।
जब भक्ति स्तोत्र के द्वारा साधक का मन निर्मल एकाग्र हो जाता है तब उसके समस्त विकल्प समाप्त होकर परमात्मा में एकाकार होकर तन्मयता का अदभुत आनन्द लेता है जो कि अनिर्वचनीय व अनुभव गम्य है!!
भक्तामर स्तोत्र का हर काव्य अनन्त गुणवत्ता को लिये है।स्तोत्र के प्रत्येक काव्य से इसकी गुणवत्ता प्रवाहित होती है।यदि यह कहा जाये कि 'भक्तामर स्तोत्र ' भौतिक एंव अध्यात्मिक उपलब्धियो को प्राप्त करने के लिये चिन्तामणि रत्न या कामधेनु के समान अचन्त्यि फल देता है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
इसमें मानतुंगाचार्य ने मात्र ४८ श्लोकों में भगवान आदिनाथ की स्तुति
प्रस्तुति आर्यिकारत्न श्री १०५ पूर्णमति माताजी
भक्तामर सुप्रसिद्ध स्तोत्र भक्त शिरोमणि आचार्य मानतुंग द्वारा रचित ४८ काव्यों की कृति है।यह स्तोत्र अपनी प्राचीनता के साथ महत्व एवं उपयोगिता की दृष्टि से सदैव- सदैव श्रद्धा से पूज्यता प्राप्त करता चला आ रहा है। इसकी महिमा अचिन्त्य एवं अकथनीय है। इसकी साधना में निष्कपट निष्काम और भाव पूर्ण समर्पण एवं सवार्पण भक्ति कार्यकारी होती है।
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आगम के पूर्ववर्ती, तत्कालीन उन दिगम्बर साधुजनों एवं आचार्य गणों जो सघन मौन व गहन साधना से निसृत आत्मकल्याणार्थ, लोकक्ल्याणार्थ मंत्रों,श्लोकों,स्तोत्रों की रचना कर कल्याण के सेतु निरुपित हुए उन्हें नमन सहित् समर्पित एवं पुज्य आर्यिका रत्न श्री १०५ पूर्णमति माताजी द्वारा प्रस्तुती भक्तामर स्तोत्र वन्दामि वन्दामि वन्दामि माताजी
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