जानिए जोधा और अकबर के विवाह की एतिहासिक सच्चाई जो कभी हुआ ही नहीं!
जानिए जोधा और अकबर के विवाह की एतिहासिक सच्चाई- जो कभी हुआ ही नहीं!
यह विडंबना ही है कि विश्व को ज्ञान देने वाले भारत को ही दुनिया का सबसे झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है। महाराणा प्रताप और भगत सिंह को आतंकी तो विश्व के सबसे क्रूर और अतातई में से एक अकबर की महानता के गीत गाये जाते हैं। भारत की इतिहास की किताबों में अकबर पर पूरे अध्याय होते है और अन्दर कही दो पंक्तियाँ महाराणा प्रताप पर भी होती है। मसलन वो कब पैदा हुए, कब मरे, कैसे विद्रोह किया, और कैसे राजपूत ही उनके खिलाफ थे।
आप जौधा अकबर टीवी सिरियल के बारे मे जानते होंगे। जौधा अकबर पर एक फिल्म भी बन चुकी है। दरसअल टीवी सिरियल के अंदर जो दिखाया जा रहा है। वह सच नहीं है। आप अकबर के बारे मे अच्छी तरह से नहीं जानते हैं। इस टीवी सिरियल का पहले भी विरोध हो चुका है। इतिहास के अंदर जौधा शब्द का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। यानि इस सिरियल के अंदर जो कुछ दिखाया जा रहा है वो झूठा है। यह टीवी सिरियल वाले अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिये ऐसा कर रहे हैं। बड़े अफसोस की बात तो यह है कि इस टीवी सिरियल के अंदर बहुत सी बातों को धर्मविरोधी दिखाया गया है।
यह कहानी शुरू होती हैं जयपुर (आमेर) के राजा भारमल (शासन: 1 जून 1548 – 27 जनवरी 1574) जो की राजा पृथ्वीराज कछवाहा के पुत्र थे। जब जोधपुर कि राजकुमारी जो कि आमेर के राजा भारमल की रानी बनी, ने प्रथम मिलन की रात्रि को ही राजा भारमल से वचन ले लिया कि हरखू को मैंने अपनी धर्म बेटी बनाया हुआ है और मै चाहती हूँ कि उसका विवाह किसी राजपरिवार में हो, राजा भारमल ने जोधपुर की राजकुमारी को वचन दे दिया कि वह उसका विवाह किसी राजपरिवार में करेंगे। किन्तु यह आसान कार्य नहीं था क्योंकि किसी भी राजपूत परिवार ने हरखू से विवाह करना उचित नहीं समझा इस कारण उसकी उम्र काफी हो गई।
दरअसल, जिसे हम सब लोग आज जोधा के नाम से जानते हैं मैं वो “मरियम- उल-जमानी” (उम्र में भी अकबर से बड़ी) थी, जो कि जोधपुर से राजा भारमल के विवाह के दहेज में आई दासी की पुत्री थी उसका लालन पालन राजपुताना में हुआ था इसलिए वह राजपूती रीती रिवाजों को भली भाँती जान्ती थी और राजपूतों में उसे हीरा कुँवरनी (हरका) कहते थे।
यह राजा भारमल की कूटनीतिक चाल थी, राजा भारमल जानते थे की अकबर की सेना जंसंख्या में उनकी सेना से बहुत बड़ी है तो राजा भारमल ने हवसी अकबर बेवकूफ बनाकर उस्से संधी करना ठीक समझा, इससे पूर्व में अकबर ने एक बार राजा भारमल की पुत्री (मरियम- उल-जमानी) से विवाह करने का प्रस्ताव रखा था, जिस पर भारमल ने कड़े शब्दों में क्रोधित होकर प्रस्ताव ठुकरा दिया था, परंतु बाद में राजा के दिमाग में युक्ती सूझी, उन्होने अकबर के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और परसियन दासी को हरका बाइ बनाकर उसका विवाह रचा दिया, क्योकी राजा भारमल ने उसका कन्यादान किया था इसलिये वह राजा भारमल की पुत्री हुई लेकिन वह कचछ्वाहा राजकुमारी नही थी। उन्होंने यह प्रस्ताव को एक संधि की तरह या राजपूती भाषा में कहें तो हल्दी-चन्दन किया था।
जोधाबाई” जयपुर के राजा भारमल की वास्तविक बेटी और राजा मानसिंह की बहन थी। यह भेद बहुत कम लोगों को ही ज्ञात था। इस प्रकरण में मेड़ता के राव दूदा, राजा मानसिंह (भारमल के बेटे) के पूरे सहयोगी और परामर्शक रहे थे। राव दूदा के परामर्श से जोधाबाई को जोधपुर भेज दिया गया। इसके साथ हिम्मत सिंह और उसकी पत्नी मूलीबाई को जोधाबाई के धर्म के पिता-माता बनाकर भेजा गया, परन्तु बाद में भेद खुल जाने के डर से दूदा इन्हें मेड़ता ले जाया गया, मेड़ता नगर राजस्थान राज्य के मध्यवर्ती नगर जोधपुर से 100 मील दूर है।
जोधाबाई का नाम जगत कुंवर कर दिया गया था और राव दूदा ने उससे अपने पुत्र का विवाह रचा दिया। इस प्रकार जयपुर के राजा भारमल की बेटी जोधाबाई उर्फ जगत कुंवर का विवाह तो मेड़ता के राव दूदा के बेटे रतन सिंह के साथ हुआ था। विवाह के एक वर्ष बाद जगत कुंवर ने एक बालिका को जन्म दिया। यही बालिका मीराबाई थी। आप सभी जानते हैं कि मेड़ता प्रसिद्ध कृष्ण भक्त-कवयित्री मीरांबाई का जन्म स्थान है।
विन्सेंट स्मिथ ने किताब यहाँ से शुरू की है कि “अकबर भारत में एक विदेशी था. उसकी नसों में एक बूँद खून भी भारतीय नहीं था…. अकबर मुग़ल से ज्यादा एक तुर्क था” पर देखिये! हमारे झूठे और मक्कार इतिहासकारों और कहानीकारों ने अकबर को एक भारतीय के रूप में पेश किया है।
तुजुक-ए-जहांगिरी में भी जोधा का कहीं कोई उल्लेख नही है जब की एतिहासिक दावे और झूठे सीरियल यह कहते हैं की जोधा बाई अकबर की पत्नि व जहांगीर की माँ थी जब की हकीकत यह है की “जोधा बाई” का पूरे इतिहास में कहीं कोइ नाम नहीं है। वैसे तो कई कोशिशें की दुनिया ने हमें बदनाम करने के लिये लेकिन एक सच ये भी है, अबुल फज्ल के अकबरनामा तक में अकबर की रानियों में से किसी का भी नाम जोधाबाई नहीं था, वहीं जांहगिर की आत्मकथा के अंदर भी जौधा का उल्लेख नहीं मिलता है। तो ये टीवी सीरियल कौन सा नया अकबरनामा लिखने की कोशिश कर रहे हैं? इन सभी तथ्यों का अध्ययन करने के बाद सवाल खड़ा होता है की जोधा अकबर का झूठ आखिर और कब तक ?
अरब में बहुत सी किताबों में लिखा है:- “हम यकीन नहीं करते इस निकाह पर हमें संदेह है।।” ईरान के मल्लिक नेशनल संग्रहालय एन्ड लाइब्रेरी में रखी किताबों में इन्डियन मुघलों का विवाह एक परसियन दासी से करवाए जाने की बात लिखी है। अकबर-ए-महुरियत में यह साफ-साफ लिखा है कि :- “हमें इस हिन्दू निकाह पर संदेह है क्यौकी निकाह के वक्त राजभवन में किसी की आखों में आँसू नही थे और ना ही हिन्दू गोद भरई की रस्म हुई थी।।” सिक्ख धर्म के गुरू अर्जुन और गुरू गोविन्द सिंह ने इस विवाह के समय यह बात स्वीकारी थी कि:- “क्षत्रीय , ने अब तलवारों और बुद्धी दोनो का इस्तेमाल करना सीख लिया है, मत्लब राजपुताना अब तलवारों के साथ-साथ बुद्धी का भी काम लेने लगा है।”
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यह विडंबना ही है कि विश्व को ज्ञान देने वाले भारत को ही दुनिया का सबसे झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है। महाराणा प्रताप और भगत सिंह को आतंकी तो विश्व के सबसे क्रूर और अतातई में से एक अकबर की महानता के गीत गाये जाते हैं। भारत की इतिहास की किताबों में अकबर पर पूरे अध्याय होते है और अन्दर कही दो पंक्तियाँ महाराणा प्रताप पर भी होती है। मसलन वो कब पैदा हुए, कब मरे, कैसे विद्रोह किया, और कैसे राजपूत ही उनके खिलाफ थे।
आप जौधा अकबर टीवी सिरियल के बारे मे जानते होंगे। जौधा अकबर पर एक फिल्म भी बन चुकी है। दरसअल टीवी सिरियल के अंदर जो दिखाया जा रहा है। वह सच नहीं है। आप अकबर के बारे मे अच्छी तरह से नहीं जानते हैं। इस टीवी सिरियल का पहले भी विरोध हो चुका है। इतिहास के अंदर जौधा शब्द का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। यानि इस सिरियल के अंदर जो कुछ दिखाया जा रहा है वो झूठा है। यह टीवी सिरियल वाले अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिये ऐसा कर रहे हैं। बड़े अफसोस की बात तो यह है कि इस टीवी सिरियल के अंदर बहुत सी बातों को धर्मविरोधी दिखाया गया है।
यह कहानी शुरू होती हैं जयपुर (आमेर) के राजा भारमल (शासन: 1 जून 1548 – 27 जनवरी 1574) जो की राजा पृथ्वीराज कछवाहा के पुत्र थे। जब जोधपुर कि राजकुमारी जो कि आमेर के राजा भारमल की रानी बनी, ने प्रथम मिलन की रात्रि को ही राजा भारमल से वचन ले लिया कि हरखू को मैंने अपनी धर्म बेटी बनाया हुआ है और मै चाहती हूँ कि उसका विवाह किसी राजपरिवार में हो, राजा भारमल ने जोधपुर की राजकुमारी को वचन दे दिया कि वह उसका विवाह किसी राजपरिवार में करेंगे। किन्तु यह आसान कार्य नहीं था क्योंकि किसी भी राजपूत परिवार ने हरखू से विवाह करना उचित नहीं समझा इस कारण उसकी उम्र काफी हो गई।
दरअसल, जिसे हम सब लोग आज जोधा के नाम से जानते हैं मैं वो “मरियम- उल-जमानी” (उम्र में भी अकबर से बड़ी) थी, जो कि जोधपुर से राजा भारमल के विवाह के दहेज में आई दासी की पुत्री थी उसका लालन पालन राजपुताना में हुआ था इसलिए वह राजपूती रीती रिवाजों को भली भाँती जान्ती थी और राजपूतों में उसे हीरा कुँवरनी (हरका) कहते थे।
यह राजा भारमल की कूटनीतिक चाल थी, राजा भारमल जानते थे की अकबर की सेना जंसंख्या में उनकी सेना से बहुत बड़ी है तो राजा भारमल ने हवसी अकबर बेवकूफ बनाकर उस्से संधी करना ठीक समझा, इससे पूर्व में अकबर ने एक बार राजा भारमल की पुत्री (मरियम- उल-जमानी) से विवाह करने का प्रस्ताव रखा था, जिस पर भारमल ने कड़े शब्दों में क्रोधित होकर प्रस्ताव ठुकरा दिया था, परंतु बाद में राजा के दिमाग में युक्ती सूझी, उन्होने अकबर के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और परसियन दासी को हरका बाइ बनाकर उसका विवाह रचा दिया, क्योकी राजा भारमल ने उसका कन्यादान किया था इसलिये वह राजा भारमल की पुत्री हुई लेकिन वह कचछ्वाहा राजकुमारी नही थी। उन्होंने यह प्रस्ताव को एक संधि की तरह या राजपूती भाषा में कहें तो हल्दी-चन्दन किया था।
जोधाबाई” जयपुर के राजा भारमल की वास्तविक बेटी और राजा मानसिंह की बहन थी। यह भेद बहुत कम लोगों को ही ज्ञात था। इस प्रकरण में मेड़ता के राव दूदा, राजा मानसिंह (भारमल के बेटे) के पूरे सहयोगी और परामर्शक रहे थे। राव दूदा के परामर्श से जोधाबाई को जोधपुर भेज दिया गया। इसके साथ हिम्मत सिंह और उसकी पत्नी मूलीबाई को जोधाबाई के धर्म के पिता-माता बनाकर भेजा गया, परन्तु बाद में भेद खुल जाने के डर से दूदा इन्हें मेड़ता ले जाया गया, मेड़ता नगर राजस्थान राज्य के मध्यवर्ती नगर जोधपुर से 100 मील दूर है।
जोधाबाई का नाम जगत कुंवर कर दिया गया था और राव दूदा ने उससे अपने पुत्र का विवाह रचा दिया। इस प्रकार जयपुर के राजा भारमल की बेटी जोधाबाई उर्फ जगत कुंवर का विवाह तो मेड़ता के राव दूदा के बेटे रतन सिंह के साथ हुआ था। विवाह के एक वर्ष बाद जगत कुंवर ने एक बालिका को जन्म दिया। यही बालिका मीराबाई थी। आप सभी जानते हैं कि मेड़ता प्रसिद्ध कृष्ण भक्त-कवयित्री मीरांबाई का जन्म स्थान है।
विन्सेंट स्मिथ ने किताब यहाँ से शुरू की है कि “अकबर भारत में एक विदेशी था. उसकी नसों में एक बूँद खून भी भारतीय नहीं था…. अकबर मुग़ल से ज्यादा एक तुर्क था” पर देखिये! हमारे झूठे और मक्कार इतिहासकारों और कहानीकारों ने अकबर को एक भारतीय के रूप में पेश किया है।
तुजुक-ए-जहांगिरी में भी जोधा का कहीं कोई उल्लेख नही है जब की एतिहासिक दावे और झूठे सीरियल यह कहते हैं की जोधा बाई अकबर की पत्नि व जहांगीर की माँ थी जब की हकीकत यह है की “जोधा बाई” का पूरे इतिहास में कहीं कोइ नाम नहीं है। वैसे तो कई कोशिशें की दुनिया ने हमें बदनाम करने के लिये लेकिन एक सच ये भी है, अबुल फज्ल के अकबरनामा तक में अकबर की रानियों में से किसी का भी नाम जोधाबाई नहीं था, वहीं जांहगिर की आत्मकथा के अंदर भी जौधा का उल्लेख नहीं मिलता है। तो ये टीवी सीरियल कौन सा नया अकबरनामा लिखने की कोशिश कर रहे हैं? इन सभी तथ्यों का अध्ययन करने के बाद सवाल खड़ा होता है की जोधा अकबर का झूठ आखिर और कब तक ?
अरब में बहुत सी किताबों में लिखा है:- “हम यकीन नहीं करते इस निकाह पर हमें संदेह है।।” ईरान के मल्लिक नेशनल संग्रहालय एन्ड लाइब्रेरी में रखी किताबों में इन्डियन मुघलों का विवाह एक परसियन दासी से करवाए जाने की बात लिखी है। अकबर-ए-महुरियत में यह साफ-साफ लिखा है कि :- “हमें इस हिन्दू निकाह पर संदेह है क्यौकी निकाह के वक्त राजभवन में किसी की आखों में आँसू नही थे और ना ही हिन्दू गोद भरई की रस्म हुई थी।।” सिक्ख धर्म के गुरू अर्जुन और गुरू गोविन्द सिंह ने इस विवाह के समय यह बात स्वीकारी थी कि:- “क्षत्रीय , ने अब तलवारों और बुद्धी दोनो का इस्तेमाल करना सीख लिया है, मत्लब राजपुताना अब तलवारों के साथ-साथ बुद्धी का भी काम लेने लगा है।”
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