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✨ भगवद गीता श्लोक 2.48 | समत्व योग का मार्ग ✨

🔹 श्लोक:
योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥

🔹 अर्थ:
हे धनंजय (अर्जुन)! योग में स्थित होकर अपने कर्तव्यों का पालन करो और फल की आसक्ति को त्याग दो। सफलता और असफलता में समान भाव रखते हुए कार्य करो, यही समत्व योग कहलाता है।

🌿 शिक्षा:
✔ अपने कर्म को पूरी निष्ठा से करें, लेकिन फल की चिंता न करें।
✔ सफलता और असफलता में समान रहें, यही सच्चा योग है।
✔ निष्काम कर्मयोग अपनाकर मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त करें।

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