✨ भगवद गीता श्लोक 1.17 | अन्य पांडव पक्षीय योद्धाओं का शंखनाद ✨

श्लोक:
"काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः॥"

श्लोक का अर्थ:
"काशिराज, जो श्रेष्ठ धनुर्धारी हैं; महारथी शिखण्डी; धृष्टद्युम्न, विराट और अपराजित सात्यकि – इन सभी वीरों ने भी अपने-अपने शंख बजाए।"

व्याख्या:
इस श्लोक में श्रीकृष्ण और पांडवों के शंखनाद के बाद अन्य महान योद्धाओं द्वारा युद्ध उद्घोष करने वाले शंखनाद का वर्णन है। यह सभी योद्धा पांडवों की ओर से युद्धभूमि में उपस्थित हैं।

"काश्यः च परमेष्वासः"

काशिराज (काशी राज्य के राजा) – अत्यंत कुशल धनुर्धारी।

"परमेष्वासः" = श्रेष्ठतम धनुषधारी योद्धा।

उनका युद्ध में होना पांडवों की सैन्य-शक्ति को और बल देता है।

"शिखण्डी च महारथः"

शिखण्डी – राजा द्रुपद का पुत्र, पूर्व जन्म में अम्बा, और भीष्म-वध के कारण युद्ध में अत्यंत महत्वपूर्ण पात्र।

"महारथ" का अर्थ है ऐसे योद्धा जो अकेले हजारों योद्धाओं से युद्ध कर सकते हैं।

"धृष्टद्युम्नः"

धृष्टद्युम्न – द्रौपदी के भाई, अग्निकुंड से उत्पन्न, और पांडवों की सेना के सेनापति।

उनका जन्म ही भीष्म के वध के लिए हुआ था।

"विराटः च"

राजा विराट – मत्स्यदेश के राजा, जहाँ पांडवों ने अज्ञातवास बिताया।

उनका पुत्र उत्तर भी इस युद्ध में भाग लेता है।

वे पांडवों के सहयोगी और मित्र राजा हैं।

"सात्यकिः च अपराजितः"

सात्यकि – यादव वंश के योद्धा, श्रीकृष्ण के परम भक्त और महान धनुर्धारी।

"अपराजितः" = जिन्हें कभी कोई हरा नहीं सका – अजेय योद्धा।

वे युद्ध में शौर्य और निष्ठा का प्रतीक हैं।

मुख्य भाव:
यह श्लोक दिखाता है कि पांडव पक्ष केवल संख्या में नहीं, बल्कि गुणवत्ता और निष्ठा में भी समृद्ध था।

इन योद्धाओं का शंखनाद युद्ध के लिए उत्साह, धैर्य और धर्म के प्रति समर्पण का प्रतीक है।

हर योद्धा की अपनी विशेष भूमिका है, और वे एक लक्ष्य – धर्म की स्थापना – के लिए संगठित हैं।

उदाहरण:
जैसे किसी युद्ध में नेतृत्व के साथ-साथ हर प्रमुख योद्धा की उपस्थिति आवश्यक होती है, वैसे ही ये सारे महापुरुष पांडवों की शक्ति को दर्शाते हैं।

शिखण्डी और धृष्टद्युम्न जैसे योद्धा तो रणनीतिक रूप से भी अत्यंत निर्णायक साबित हुए।

संदेश:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि धर्म के मार्ग पर चलने के लिए केवल एक महानायक ही नहीं, बल्कि अनेक समर्थ और निष्ठावान सहयोगियों की भी आवश्यकता होती है।
हर योद्धा की अपनी महत्ता है, और जब सभी एकजुट होते हैं, तो अधर्म पर विजय सुनिश्चित होती है।

🙏 जय श्री कृष्णा! 🙏
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🙏 हरि ओम! 🙏

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