|| Bada Imambara || Lucknow नवाब असफउद्दौला के आदेश से दिन में बनवाया जाता और रात में तोड़ा जाता था
#BaraImambara #Lucknow #Gyanvikvlogs #AsafudDaulah #Awadh #NawabofLucknow #Faizabad #HeritageofuttarPardesh #बड़ाइमामबाड़ाकाइतिहास
You can join us other social media 👇👇👇
💎Instagram ID 👉https://www.instagram.com/vedanshroy3393/
💎FB Page Link 👉https://www.facebook.com/Gyanvikvlogs/
जिसे न दे मौला, उसे दे असफउद्दौला’
ये कहावत पुराने नवाबी लखनऊ की है। लखनऊ के लोग अपने उदार और दरियादिल नवाबों के बारे कुछ ऐसा ही कहा करते थे। अब लखनऊ में न तो नवाब हैं और न ही उनकी शान-ओ-शौक़त लेकिन जो बचा रह गया है वो हैं उनकी बनवाई गईं शानदार इमारतें। नवाबों के समय की इमारतों में सबसे शानदार इमारत है बड़ा इमामबाड़ा जो नवाब असफ़उद्दौला ने अकाल से लोगों को राहत पहुंचाने के मक़सद से सन 1784 में बनवाया था।
बड़ा इमामबाड़ा सैलानियों के लिये एक बड़ा आकर्षण है। इमामबाड़े की सबसे बड़ी ख़ासियत है उसका मुख्य सभागार। अमूमन सभागर खंबों पर टिके रहते हैं लेकिन यहां मेहराबदार पचास फुट ऊंची छत वाले सभागार में कोई खंबा नहीं है। ये अपने आप में विश्व के सबसे बड़े सभागारों में से एक है और बेमिसाल इंजीनियरिंग का एक नमूना है।
अवध के शाही ख़ानदान की शुरुआत होती है सआदत ख़ान बुरहान-उल-मुल्क (1680-1739) से जिन्हें मुग़ल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीले ने 1722 में अवध का सूबेदार नियुक्त किया था। नवाबों की राजधानी पहले फ़ैज़ाबाद हुआ करती थी जो अयोध्या के पास है। नवाब का रिशता ईरान के सफ़वाबी राजवंश से था। वह निशापुर के रहनेवाले थे और वे शिया संप्रदाय से थे।
सन 1775 में नवाब असफ़उद्दौला ने फ़ैज़ाबाद के बजाय लखनऊ को अवध की राजधानी बनाया और इसके साथ ही शहर में सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विकास हुआ। नवाब असफ़उद्दौला को लखनऊ का आर्किटेक्ट जनरल माना जाता है। शहर को ख़ूबसूरत और वैभवशाली बनाने का श्रेय उन्हीं को जाता है।
नवाब असफ़उद्दौला ने सन 1775 से सन 1797 के दौरान अपने शासनकाल में कई सुंदर महल, बाग़, धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष इमारतें बनवाईं थीं। ऐसा करने वाले वह पहले नवाब थे। उन्होंने मुग़ल वास्तुकला को टक्कर देने के इरादे से कई इमारतें बनवाईं और बहुत कम समय में लखनऊ को वास्तुकला की दुनिया में एक ऊंचे मुक़ाम पर पहुंचा दिया था।
असफ़उद्दौला की बनवाई गईं आरंभिक और सबसे बड़ी इमारतों में बड़ा इमामबाड़े को शुमार किया जाता है। ये इमारत पुराने शहर में इसे बनवानेवाले के सम्मान में बनवाई गई थी जिसे इमामबाड़ा-ए-असफ़ी के नाम से जाना जाता था। नवाब ने 1783-84 में पड़े भीषण अकाल में लोगों की मदद के लिये ये इमामबाड़ा बनवाया था। माना जाता है कि इसके निर्माण कार्य में 22 हज़ार लोगों को लगाया गया था।
नवाब ने आदेश दिया था कि निर्माण का काम सूर्यास्त के बाद रात भर चलेगा ताकि अंधेरे में उन लोगों को पहचाना न जा सके जो संभ्रांत घरों से ताल्लुक़ रखते थे और जिन्हें दिन में मज़दूरी करने में शर्म आती थी। रात को काम करने वाले ज़्यादातर लोग दक्ष नहीं थे और इसलिये काम भी अच्छा नहीं होता था। इस दोयम दर्जे के काम को दिन में गिरा दिया जाता था और दक्ष लोग इसे फिर बनाते थे। ऐसे में ये अंदाज़ा लगाना लाज़िमी है कि इससे बहुत बरबादी हुई होगी लेकिन ऐसा था नहीं। निर्माण की अनुमानित लागत पांच से दस लाख रुपये थी। नवाब इमामबाड़ा बन जाने के बाद भी इसकी साजसज्जा पर सालाना पांच हज़ार रुपये ख़र्च करते थे।
इमामबाड़ा का मुख्य सभागार 162 फुट लंबा और 53 फ़ुट चौड़ा है। सभागार की छत मेहराबदार है जो शानदार वास्तुशिल्प का उदाहरण है। 16 फुट मोटे पत्थर को संभालने के लिये कोई खंबा नही है। इस पत्थर (स्लैब) का वज़न दो लाख टन है। साभागार की छत ज़मीन से 50 फ़ुट ऊंची है।
मुख्य सभागार में अन्य दो तरफ़ अष्टकोणीय कमरे हैं जिनका व्यास क़रीब 53 फ़ुट है। पूर्व की दिशा में बने कमरों की खिड़कियां और बालकनी राजपूत शैली की हैं।
पश्चिम दिशा के कमरे को ख़रबूज़ावाला कमरा कहते हैं। ख़रबूज़े की तरह ही, इस कमरे की छत पर भी धारियां बनी हुई हैं। ऐसा माना जाता है ये कमरा एक बूढ़ी औरत के सम्मान में बनवाया गया था जो ख़रबूज़ बेचकर गुज़र बसर करती थी।
यहां आने वाले ज़्यादातर सैलानियों को ये नहीं पता कि इमामाबाड़े का धार्मिक महत्व भी है। 61 हिजरी ( सन 680) को करबला में इमाम हुसैन की शहादत की याद में मोहर्रम के दसवें दिन यहां शिया मुसलमान जमा होते हैं। इमाम हुसैन ने यज़ीद की नाजायज़ मांगों को मानने से इंकार कर दिया था और उसकी सेना से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। इसीलिये मोहर्रम के महीने में इमामबाड़े में धार्मिक गतिविधियां होती हैं। मोहर्रम के पहले दिन इमामबाड़े के ऊपर एक काला झंडा लगाया जाता है और दोपहर को इमामबाड़ा परिसर के आसपास बड़े-बड़े ताज़िये निकाले जाते हैं और जुलूस भी निकाला जाता है। मोहर्रम की सातवीं तारीख़ को इमाम हुसैन के अनुयायी इमामबाड़े के मैदान पर जलते कोयले पर “ या हुसैन...या हुसैन ”कहते हुए नंगे पांव चलते हैं।
इमामबाड़े के मुख्य सभागार में नवाब आसफ़ुद्दौला की क़ब्र है। असफ़उद्दौला की अंतिम इच्छा के मुताबिक़ उन्हें इमारत के भू-तल में दफ़्न किया गया था। बाद में उनकी ख़ास बेगम शम्सुन्निसा को भी वही दफ़्न किया गया था। मुख्य सभागार बड़े-बड़े शीशों, फ़ानूस, लैंप और अन्य क़ीमती चीज़ों से सुसज्जित है जो नवाब ने यूरोपीय व्यापारियों से ख़रीदी थीं
#Khurbuzwala_room #Imam_Hussein_at_Karbala #Moharram #BhulBhulaiya #आसफउद्दौला #bada_imambara_lucknow
#bada_imambara_lucknow_history_in_hindi #bada_imambara_bhool_bhulaiya
Видео || Bada Imambara || Lucknow नवाब असफउद्दौला के आदेश से दिन में बनवाया जाता और रात में तोड़ा जाता था канала Gyanvik vlogs
You can join us other social media 👇👇👇
💎Instagram ID 👉https://www.instagram.com/vedanshroy3393/
💎FB Page Link 👉https://www.facebook.com/Gyanvikvlogs/
जिसे न दे मौला, उसे दे असफउद्दौला’
ये कहावत पुराने नवाबी लखनऊ की है। लखनऊ के लोग अपने उदार और दरियादिल नवाबों के बारे कुछ ऐसा ही कहा करते थे। अब लखनऊ में न तो नवाब हैं और न ही उनकी शान-ओ-शौक़त लेकिन जो बचा रह गया है वो हैं उनकी बनवाई गईं शानदार इमारतें। नवाबों के समय की इमारतों में सबसे शानदार इमारत है बड़ा इमामबाड़ा जो नवाब असफ़उद्दौला ने अकाल से लोगों को राहत पहुंचाने के मक़सद से सन 1784 में बनवाया था।
बड़ा इमामबाड़ा सैलानियों के लिये एक बड़ा आकर्षण है। इमामबाड़े की सबसे बड़ी ख़ासियत है उसका मुख्य सभागार। अमूमन सभागर खंबों पर टिके रहते हैं लेकिन यहां मेहराबदार पचास फुट ऊंची छत वाले सभागार में कोई खंबा नहीं है। ये अपने आप में विश्व के सबसे बड़े सभागारों में से एक है और बेमिसाल इंजीनियरिंग का एक नमूना है।
अवध के शाही ख़ानदान की शुरुआत होती है सआदत ख़ान बुरहान-उल-मुल्क (1680-1739) से जिन्हें मुग़ल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीले ने 1722 में अवध का सूबेदार नियुक्त किया था। नवाबों की राजधानी पहले फ़ैज़ाबाद हुआ करती थी जो अयोध्या के पास है। नवाब का रिशता ईरान के सफ़वाबी राजवंश से था। वह निशापुर के रहनेवाले थे और वे शिया संप्रदाय से थे।
सन 1775 में नवाब असफ़उद्दौला ने फ़ैज़ाबाद के बजाय लखनऊ को अवध की राजधानी बनाया और इसके साथ ही शहर में सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विकास हुआ। नवाब असफ़उद्दौला को लखनऊ का आर्किटेक्ट जनरल माना जाता है। शहर को ख़ूबसूरत और वैभवशाली बनाने का श्रेय उन्हीं को जाता है।
नवाब असफ़उद्दौला ने सन 1775 से सन 1797 के दौरान अपने शासनकाल में कई सुंदर महल, बाग़, धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष इमारतें बनवाईं थीं। ऐसा करने वाले वह पहले नवाब थे। उन्होंने मुग़ल वास्तुकला को टक्कर देने के इरादे से कई इमारतें बनवाईं और बहुत कम समय में लखनऊ को वास्तुकला की दुनिया में एक ऊंचे मुक़ाम पर पहुंचा दिया था।
असफ़उद्दौला की बनवाई गईं आरंभिक और सबसे बड़ी इमारतों में बड़ा इमामबाड़े को शुमार किया जाता है। ये इमारत पुराने शहर में इसे बनवानेवाले के सम्मान में बनवाई गई थी जिसे इमामबाड़ा-ए-असफ़ी के नाम से जाना जाता था। नवाब ने 1783-84 में पड़े भीषण अकाल में लोगों की मदद के लिये ये इमामबाड़ा बनवाया था। माना जाता है कि इसके निर्माण कार्य में 22 हज़ार लोगों को लगाया गया था।
नवाब ने आदेश दिया था कि निर्माण का काम सूर्यास्त के बाद रात भर चलेगा ताकि अंधेरे में उन लोगों को पहचाना न जा सके जो संभ्रांत घरों से ताल्लुक़ रखते थे और जिन्हें दिन में मज़दूरी करने में शर्म आती थी। रात को काम करने वाले ज़्यादातर लोग दक्ष नहीं थे और इसलिये काम भी अच्छा नहीं होता था। इस दोयम दर्जे के काम को दिन में गिरा दिया जाता था और दक्ष लोग इसे फिर बनाते थे। ऐसे में ये अंदाज़ा लगाना लाज़िमी है कि इससे बहुत बरबादी हुई होगी लेकिन ऐसा था नहीं। निर्माण की अनुमानित लागत पांच से दस लाख रुपये थी। नवाब इमामबाड़ा बन जाने के बाद भी इसकी साजसज्जा पर सालाना पांच हज़ार रुपये ख़र्च करते थे।
इमामबाड़ा का मुख्य सभागार 162 फुट लंबा और 53 फ़ुट चौड़ा है। सभागार की छत मेहराबदार है जो शानदार वास्तुशिल्प का उदाहरण है। 16 फुट मोटे पत्थर को संभालने के लिये कोई खंबा नही है। इस पत्थर (स्लैब) का वज़न दो लाख टन है। साभागार की छत ज़मीन से 50 फ़ुट ऊंची है।
मुख्य सभागार में अन्य दो तरफ़ अष्टकोणीय कमरे हैं जिनका व्यास क़रीब 53 फ़ुट है। पूर्व की दिशा में बने कमरों की खिड़कियां और बालकनी राजपूत शैली की हैं।
पश्चिम दिशा के कमरे को ख़रबूज़ावाला कमरा कहते हैं। ख़रबूज़े की तरह ही, इस कमरे की छत पर भी धारियां बनी हुई हैं। ऐसा माना जाता है ये कमरा एक बूढ़ी औरत के सम्मान में बनवाया गया था जो ख़रबूज़ बेचकर गुज़र बसर करती थी।
यहां आने वाले ज़्यादातर सैलानियों को ये नहीं पता कि इमामाबाड़े का धार्मिक महत्व भी है। 61 हिजरी ( सन 680) को करबला में इमाम हुसैन की शहादत की याद में मोहर्रम के दसवें दिन यहां शिया मुसलमान जमा होते हैं। इमाम हुसैन ने यज़ीद की नाजायज़ मांगों को मानने से इंकार कर दिया था और उसकी सेना से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। इसीलिये मोहर्रम के महीने में इमामबाड़े में धार्मिक गतिविधियां होती हैं। मोहर्रम के पहले दिन इमामबाड़े के ऊपर एक काला झंडा लगाया जाता है और दोपहर को इमामबाड़ा परिसर के आसपास बड़े-बड़े ताज़िये निकाले जाते हैं और जुलूस भी निकाला जाता है। मोहर्रम की सातवीं तारीख़ को इमाम हुसैन के अनुयायी इमामबाड़े के मैदान पर जलते कोयले पर “ या हुसैन...या हुसैन ”कहते हुए नंगे पांव चलते हैं।
इमामबाड़े के मुख्य सभागार में नवाब आसफ़ुद्दौला की क़ब्र है। असफ़उद्दौला की अंतिम इच्छा के मुताबिक़ उन्हें इमारत के भू-तल में दफ़्न किया गया था। बाद में उनकी ख़ास बेगम शम्सुन्निसा को भी वही दफ़्न किया गया था। मुख्य सभागार बड़े-बड़े शीशों, फ़ानूस, लैंप और अन्य क़ीमती चीज़ों से सुसज्जित है जो नवाब ने यूरोपीय व्यापारियों से ख़रीदी थीं
#Khurbuzwala_room #Imam_Hussein_at_Karbala #Moharram #BhulBhulaiya #आसफउद्दौला #bada_imambara_lucknow
#bada_imambara_lucknow_history_in_hindi #bada_imambara_bhool_bhulaiya
Видео || Bada Imambara || Lucknow नवाब असफउद्दौला के आदेश से दिन में बनवाया जाता और रात में तोड़ा जाता था канала Gyanvik vlogs
Показать
Комментарии отсутствуют
Информация о видео
Другие видео канала
| Bhul Bhulaiya |Lucknow के नवाब आसफउद्दौला की इस भूलभुलैया में फंसे, तो घर जाने के लिए भी तरस जाओगे|| Zafar Mahal || यहां दफन होने की ख्वाहिश आखिरकार तमन्ना ही रह गई बहादुर शाह जफर के दिल में !!20 Interesting Facts about Amer Fort | आमेर किले के 20 आश्चर्यजनक तथ्य | GOLDEN TRIANGLE #14Nawab Jafar Mir Abdullah से सुनिए Lakshmanpur से Lucknow बनने की कहानी।Old Lucknow Vs Modern Lucknow|| Rampur Nawab ki Train || रामपुर नवाब खानदान का था अपना रेलवे स्टेशन,बिछाई गई थी 40 किमी लंबी लाइन|| Moosi Maharani ki Chhatri || राजा की मौत के बाद रानी हुई सती, रहस्यकारी और चौकाने वाला तथ्य ।।Bada Imambara Bawdi आखिरकार कब मिलेगा वह नक्शा और चाबी जिससे खुल सकते हैं करोड़ों के खजाने के राज!!|| Razia Sultan Tomb || रजिया की कब्र बनी आज साँपों का डेरा (Kaithal Haryana)भारत की सबसे प्राचीन और पुरानी मस्जिदे || India's Oldest and Ancient Mosques|| Tuti ka Makbara || Rampur UttarPradesh इस वीराने मकबरे में अक्सर कोई क्यों नहीं जाता ??भूलभुलैया || LUCKNOW ||
बड़ा इमामबाड़ा | tourist guide | Bhool Bhulaiya in Lucknow || Monty Vlogs।। बाबरी मस्जिद ।। Babri Masjid ll काबुली बाग मस्जिद(पानीपत) ll “खंडर हुई बाबरी मस्जिद”अब हुआ ये हाल|| Rampur Nawab Tomb || रामपुर नवाब की इस भूलभुलैया के दरवाजों की गिनती आखिर कोई क्यों नहीं कर पाता?Antique Collection पुराने जमाने के लोगों के पूरे परिवार के बर्तनों का खजाना | Ramgarh Shekhawati |यही है वो महाभारतकाल से जुड़ा अश्वथामागिरी किला जहा अश्वथामा रोज आते है , जीसके सबूत भी यहाँ मौजूद हैGolconda Fort & Gol Gumbaz| Farhat Bakhsh Kothi | Lucknow खुदाई में मिली 31 दरवाजे वाली सुरंग, सामने आई चौंकाने वाली बातें!!काँच से बना हुआ आलीशान शीश महल, आमेर महल-जयपुर, AMER MAHAL PART 02, Glimpse of Indian HistoryLucknow Part 1: Rumi gate, Imambada से जुड़े किस्से, जब Hindu-Muslim साथ मनाते थे Muharram और Holi|| मौत का कुआं || Raani Ka Kuan Machari Alwar Rajastan रानी का कुआं देखकर तो हमारी भी सांसे थम गई!!