| Farhat Bakhsh Kothi | Lucknow खुदाई में मिली 31 दरवाजे वाली सुरंग, सामने आई चौंकाने वाली बातें!!
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फरहत बख्श कोठी का इतिहास ;--
फरहत बख्श कोठी का मूल नाम “मार्टिन विला” था। इसका निर्माण मेजर जनरल क्लाउड मार्टिन ने सन् 1781 में करवाया था। यह इंडो – फ्रेंच वास्तुकला का अद्भुत नमूना पेश करता है। कहा जाता है कि यह उनका निवास स्थान हुआ करता था। यह दोमंजिला इमारत थी, जिसका निचला हिस्सा गोमती नदी को छूता था, जिसकी वज़ह से बरसात के मौसम में नीचे का हिस्सा पानी में डूब जाया करता था। इसके अंदर हवा का संचालन और अंदर के माहौल को ठंडा रखने के लिए गोमती किनारे बनवाया गया था। ऊपरी मंजिल में एक बड़ा हॉल था, जहां 4000 किताबें अंग्रेजी और फ्रेंच भाषा की रखी गई थी। साथ ही 500 हस्तलिखित प्रतिलिपियाँ भी संकलित थीं। क्लाउड मार्टिन को पढ़ने बहुत शौक था। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनकी मृत्यु के बाद उनको ला मार्टीनियर में दफनाया जाए। और हुआ भी ऐसा ही।
मान्यता है कि मई 1781 में ही जब यह इमारत पूर्ण होने वाली थी, तभी बनारस के राजा छेत सिंह ने इसपर आक्रमण कर दिया और किसी तरह इसकी हिफाज़त हो सकी। युद्ध के उपरांत क्लाउड मार्टिन ने इसके तीनों तरफ बड़ी खाई बनवाई और चौथा भाग जो गोमती से जुड़ा था, उसपर पुल बनवाया। यही से अंदर प्रवेश का द्वार बनवाया। अपनी अंतिम सांस तक क्लाउड मार्टिन इसी इमारत में रहे।
नवाब द्वारा खरीदा जाना:---
क्लाउड मार्टिन सम्पूर्ण जीवन अविवाहित रहे इसलिए उनकी मृत्यु के पश्चात इस विला का कोई भी वारिस नहीं था। अतः इस इमारत को बेचने के लिए बोली लगाने का आयोजन किया गया, जहां नवाब सादत अली खान को बोली में मात देते हुए एक स्पेनिश व्यक्ति, जोसेफ क्वेरोस ने इस इमारत को अपने नाम कर लिया। उन्होंने इसको 40 हजार रूपए में खरीदा।
कुछ समय बाद नवाब सादत अली खान की तबीयत थोड़ी बिगड़ी और हवा पानी बदलने के लिए वो यहां रहने के लिए आए। यहां की आबोहवा और खुशनुमा माहौल ने जल्दी ही नवाब साहब को ठीक कर दिया। इसके पश्चात उन्होंने जोसेफ क्वेरोस पर थोड़ा दबाव डाला और इस इमारत को उनसे खरीद कर अपने नाम कर लिया। ये सादत अली खान ही थे जिन्होंने इस इमारत का नाम बदलकर “फरहत बख्श कोठी” ( बेस्टोअर ऑफ हैप्पीनेस) रखा। नवाब सादत अली खान से लेकर वाजिद अली शाह से पहले तक के सभी नवाब और अवध के राजाओं का यह निवास स्थान हुआ करता था। वाजिद अली शाह ने अपने निवास स्थान के रूप में कैसरबाग महल को चुना।
संशोधन का स्वरूप बना छत्तर मंजिल:--
फरहत बख्श कोठी में परिवर्तन किए गए और इमारत का विस्तार किया गया। इसका विस्तार स्वरूप ही छत्तर मंजिल बना। सादत अली खान (1798-1814) ने ही इसके विस्तार स्वरूप का निर्माण अपनी मां “छत्तर कुंवर” के नाम पर करवाना आरंभ करवाया, परन्तु उनकी मृत्यु के उपरांत इसके निर्माण का जिम्मा उनके पुत्र और अवध के पहले राजा गाज़ी उद दीन हैदर (1814-1827) ने लिया और इमारत के निर्माण को अंतिम रूप दिया। बाद में नसीर उद दीन हैदर (1827-1837) ने इसको और भी अलंकृत किया। इसके किनारे मूर्तियों और फूलों की क्यारियां उसकी खूबसूरती में चार चांद लगाती थी जिसे गुलिस्तान-ए-इरम (गार्डेन ऑफ पैराडाइज) के नाम से जाना जाता था।
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फरहत बख्श कोठी का इतिहास ;--
फरहत बख्श कोठी का मूल नाम “मार्टिन विला” था। इसका निर्माण मेजर जनरल क्लाउड मार्टिन ने सन् 1781 में करवाया था। यह इंडो – फ्रेंच वास्तुकला का अद्भुत नमूना पेश करता है। कहा जाता है कि यह उनका निवास स्थान हुआ करता था। यह दोमंजिला इमारत थी, जिसका निचला हिस्सा गोमती नदी को छूता था, जिसकी वज़ह से बरसात के मौसम में नीचे का हिस्सा पानी में डूब जाया करता था। इसके अंदर हवा का संचालन और अंदर के माहौल को ठंडा रखने के लिए गोमती किनारे बनवाया गया था। ऊपरी मंजिल में एक बड़ा हॉल था, जहां 4000 किताबें अंग्रेजी और फ्रेंच भाषा की रखी गई थी। साथ ही 500 हस्तलिखित प्रतिलिपियाँ भी संकलित थीं। क्लाउड मार्टिन को पढ़ने बहुत शौक था। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनकी मृत्यु के बाद उनको ला मार्टीनियर में दफनाया जाए। और हुआ भी ऐसा ही।
मान्यता है कि मई 1781 में ही जब यह इमारत पूर्ण होने वाली थी, तभी बनारस के राजा छेत सिंह ने इसपर आक्रमण कर दिया और किसी तरह इसकी हिफाज़त हो सकी। युद्ध के उपरांत क्लाउड मार्टिन ने इसके तीनों तरफ बड़ी खाई बनवाई और चौथा भाग जो गोमती से जुड़ा था, उसपर पुल बनवाया। यही से अंदर प्रवेश का द्वार बनवाया। अपनी अंतिम सांस तक क्लाउड मार्टिन इसी इमारत में रहे।
नवाब द्वारा खरीदा जाना:---
क्लाउड मार्टिन सम्पूर्ण जीवन अविवाहित रहे इसलिए उनकी मृत्यु के पश्चात इस विला का कोई भी वारिस नहीं था। अतः इस इमारत को बेचने के लिए बोली लगाने का आयोजन किया गया, जहां नवाब सादत अली खान को बोली में मात देते हुए एक स्पेनिश व्यक्ति, जोसेफ क्वेरोस ने इस इमारत को अपने नाम कर लिया। उन्होंने इसको 40 हजार रूपए में खरीदा।
कुछ समय बाद नवाब सादत अली खान की तबीयत थोड़ी बिगड़ी और हवा पानी बदलने के लिए वो यहां रहने के लिए आए। यहां की आबोहवा और खुशनुमा माहौल ने जल्दी ही नवाब साहब को ठीक कर दिया। इसके पश्चात उन्होंने जोसेफ क्वेरोस पर थोड़ा दबाव डाला और इस इमारत को उनसे खरीद कर अपने नाम कर लिया। ये सादत अली खान ही थे जिन्होंने इस इमारत का नाम बदलकर “फरहत बख्श कोठी” ( बेस्टोअर ऑफ हैप्पीनेस) रखा। नवाब सादत अली खान से लेकर वाजिद अली शाह से पहले तक के सभी नवाब और अवध के राजाओं का यह निवास स्थान हुआ करता था। वाजिद अली शाह ने अपने निवास स्थान के रूप में कैसरबाग महल को चुना।
संशोधन का स्वरूप बना छत्तर मंजिल:--
फरहत बख्श कोठी में परिवर्तन किए गए और इमारत का विस्तार किया गया। इसका विस्तार स्वरूप ही छत्तर मंजिल बना। सादत अली खान (1798-1814) ने ही इसके विस्तार स्वरूप का निर्माण अपनी मां “छत्तर कुंवर” के नाम पर करवाना आरंभ करवाया, परन्तु उनकी मृत्यु के उपरांत इसके निर्माण का जिम्मा उनके पुत्र और अवध के पहले राजा गाज़ी उद दीन हैदर (1814-1827) ने लिया और इमारत के निर्माण को अंतिम रूप दिया। बाद में नसीर उद दीन हैदर (1827-1837) ने इसको और भी अलंकृत किया। इसके किनारे मूर्तियों और फूलों की क्यारियां उसकी खूबसूरती में चार चांद लगाती थी जिसे गुलिस्तान-ए-इरम (गार्डेन ऑफ पैराडाइज) के नाम से जाना जाता था।
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