Kargil War Hero PVC Yogendra Singh Yadav Interview
Kargil War Hero PVC Yogendra Singh Yadav Interview
ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव ( जन्म: 10 मई, 1980) परमवीर चक्र से सम्मानित भारतीय व्यक्ति है। इन्हें यह सम्मान सन 1999 में मिला। युद्ध के मोर्चे पर दुश्मन के छक्के छुड़ाते हुए अपने प्राणों की बलि देने वाले जवानों की सूची बड़ी लम्बी है, जिन्होंने राष्ट्र की उत्कृष्ट शौर्य परम्परा को जीवन्त किया। कारगिल युद्ध के बाद भारतीय सेना के चार शूरवीरों को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उन्हीं में एक ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव भी हैं।
टाइगर हिल पर तिरंगा
3-4 जुलाई 1999 की रात को 18 ग्रेनेडियर्स को यह जिम्मा सौंपा गया कि वह पूरब की तरफ से टाइगर हिल को कब्जे में करें। उसके लिए वह 8 सिख बटालियन को साथ ले लें। इसी तरह 8 सिह बटालियन को भी यय जिम्मा सौंपा गया कि वह हमले का दवाब दक्षिण तथा उत्तर से बनाए रखें और इस तरह टाइगर हिल को पश्चिम की तरफ से अलग-थलग कर दें। रात साढ़े 8 बजे टाइगर हिल पर आक्रमण का सिलसिला शुरू किया गया। 4 जुलाई 1999 को आधी रात के बाद डेढ़ बजे 18 ग्रेनेडियर्स ने टाइगर हिल के एक हिस्से पर अपना कब्जा जमा लिया। इसी तरह सुबह 4.00 बजे तक 8 सिख बटालियन ने भी अपने हमलों का दबाव बनाते हुए पश्चिमी छोर से टाइगर हिल के महत्त्वपूर्ण ठिकाने अपने काबू में कर लिए और 5 जुलाई को यह मोर्चा काफ़ी हद तक फ़तह हो गया। इस बीच 18 ग्रेनेडियर्स ने अपने हमले जारी रखे और भारी प्रतिरोध के बावजूद टाइगर हिल को पूरी तरह हथियाने का काम चलता रहा। 8 सिख बटालियन पाकिस्तानी फौजों के जवाबी हमले नाकामयाब करती रहीं और इस तरह 11 जुलाई को टाइगर हिल पूरी तरह भारत के कब्जे में आ गया।
भारत और पाकिस्तान की नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान समर्थित घुसपैठियों 1999 के प्रारम्भ में कारगिल क्षेत्र की 16 से 18 हजार फुट ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा जमा लिया था। मई 1999 के पहले सप्ताह में इन घुसपैठियों ने श्रीनगर को लेह से जोड़ने वाले महत्वपूर्ण राजमार्ग पर गोलीबारी आरंभ कर दी। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए भारत ने इन घुसपैठियों के विरुद्ध 'आपरेशन विजय' के तहत कार्रवाई आरंभ की। इसके बाद संघर्षों का सिलसिला आरंभ हो गया। हड्डी गला देने वाली ठंड में भी भारतीय सेना के रणबांकुरों ने दुश्मनों का डट कर मुकाबला किया। 2 जुलाई को कमांडिंग आफिसर कर्नल कुशल ठाकुर के नेतृत्व में 18 ग्रेनेडियर को टाइगर हिल पर कब्जा करने का आदेश मिला। इसके लिए पूरी बटालियन को तीन कंपनियों- ‘अल्फा’, ‘डेल्टा’ व ‘घातक’ कम्पनी में बांटा गया। ‘घातक’ कम्पनी में ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव सहित 7 कमांडो शामिल थे। 4 जुलाई की रात में पूर्व निर्धारित योजनानुसार कुल 25 सैनिकों का एक दल टाइगर हिल की ओर बढ़ा। चढ़ाई सीधी थी और कार्य काफ़ी मुश्किल। टाइगर हिल में घुसपैठियों की तीन चौकियां बनीं हुई थीं। एक मुठभेड़ के बाद पहली चौकी पर कब्जा कर लिया गया। इसके बाद केवल 7 कमांडो वाला दल आगे बढ़ा। यह दल अभी कुछ ही दूर आगे बढ़ा था की दुश्मन की ओर से अंधाधुंध गोलीबारी आरंभ हो गयी। इस गोलीबारी में दो सैनिक शहीद हो गए। इन दोनों शहीदों को वापस छोड़कर शेष 05 जाबांज सैनिक आगे बढ़े। किन्तु एक भीषण मुठभेड़ में इन पांचों में चार शहीद हो गए और बचे केवल ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव। हालाँकि वह बुरी तरह घायल हो गए थे, उनकी बाएं हाथ की हड्डी टूट गई थी और हाथ ने काम करना बन्द कर दिया था। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। योगेन्द्र सिंह ने हाथ को बेल्ट से बांधकर कोहनी के बल चलना आरंभ किया। इसी हालत में उन्होंने अपनी ए.के.-47 राइफल से 15-20 घुसपैठियों को मार गिराया। इस तरह दूसरी चौकी पर भी भारत का कब्जा हो गया। अब उनका लक्ष्य 17,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित चौकी पर कब्जा करना था। अत: वह धुआंधार गोलीबारी करते हुए आगे बढ़े, जिससे दुश्मन को लगने लगा कि काफ़ी संख्या में भारतीय सेना यहां पहुंच गई है। कुछ दुश्मन भाग खड़े हुए, तो कुछ चौकी में ही छिप गए, किन्तु ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव ने अपने अद्भुत साहस का परिचय देते हुए शेष बचे घुसपैठियों को भी मार गिराया और तीसरी चौकी पर कब्जा जमा लिया। इस संघर्ष में वह और अधिक घायल हो गए पर अपनी जांबाजी से अंतत: योगेन्द्र सिंह यादव टाइगर हिल पर तिरंगा फहराने में सफल रहे।
इसी बीच उन्होंने पाकिस्तानी कमाण्डर की आवाज सुनी, जो अपने सैनिकों को 500 फुट नीचे भारतीय चौकी पर हमला करने के लिए आदेश दे रहा था। इस हमले की जानकारी अपनी चौकी तक पहुंचाने के योगेन्द्र सिंह यादव ने अपनी जान की बाजी लगाकर पत्थरों पर लुढ़कना आरंभ किया और अंतत : जानकारी देने में सफल रहे। उनकी इस जानकारी से भारतीय सैनिकों को काफ़ी सहायता मिली और दुश्मन दुम दबाकर भाग निकले। योगेन्द्र सिंह यादव के जख्मी होने पर यह भी खबर फैली थी कि वे शहीद हो गए, पर जो देश की रक्षा करता है, उसकी रक्षा स्वयं ईश्वर ने ही की. भारत सरकार ने ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव के इस अदम्य साहस, वीरता और पराक्रम के मद्देनजर परमवीर चक्र से सम्मानित किया। सबसे कम मात्र 19 वर्ष कि आयु में ‘परमवीर चक्र’ प्राप्त करने वाले इस वीर योद्धा ने उम्र के इतने कम पड़ाव में जांबाजी का ऐसा इतिहास रच दिया कि आने वाली सदियाँ भी याद रखेंगीं।
Видео Kargil War Hero PVC Yogendra Singh Yadav Interview канала Black Panther - Para SF
ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव ( जन्म: 10 मई, 1980) परमवीर चक्र से सम्मानित भारतीय व्यक्ति है। इन्हें यह सम्मान सन 1999 में मिला। युद्ध के मोर्चे पर दुश्मन के छक्के छुड़ाते हुए अपने प्राणों की बलि देने वाले जवानों की सूची बड़ी लम्बी है, जिन्होंने राष्ट्र की उत्कृष्ट शौर्य परम्परा को जीवन्त किया। कारगिल युद्ध के बाद भारतीय सेना के चार शूरवीरों को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उन्हीं में एक ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव भी हैं।
टाइगर हिल पर तिरंगा
3-4 जुलाई 1999 की रात को 18 ग्रेनेडियर्स को यह जिम्मा सौंपा गया कि वह पूरब की तरफ से टाइगर हिल को कब्जे में करें। उसके लिए वह 8 सिख बटालियन को साथ ले लें। इसी तरह 8 सिह बटालियन को भी यय जिम्मा सौंपा गया कि वह हमले का दवाब दक्षिण तथा उत्तर से बनाए रखें और इस तरह टाइगर हिल को पश्चिम की तरफ से अलग-थलग कर दें। रात साढ़े 8 बजे टाइगर हिल पर आक्रमण का सिलसिला शुरू किया गया। 4 जुलाई 1999 को आधी रात के बाद डेढ़ बजे 18 ग्रेनेडियर्स ने टाइगर हिल के एक हिस्से पर अपना कब्जा जमा लिया। इसी तरह सुबह 4.00 बजे तक 8 सिख बटालियन ने भी अपने हमलों का दबाव बनाते हुए पश्चिमी छोर से टाइगर हिल के महत्त्वपूर्ण ठिकाने अपने काबू में कर लिए और 5 जुलाई को यह मोर्चा काफ़ी हद तक फ़तह हो गया। इस बीच 18 ग्रेनेडियर्स ने अपने हमले जारी रखे और भारी प्रतिरोध के बावजूद टाइगर हिल को पूरी तरह हथियाने का काम चलता रहा। 8 सिख बटालियन पाकिस्तानी फौजों के जवाबी हमले नाकामयाब करती रहीं और इस तरह 11 जुलाई को टाइगर हिल पूरी तरह भारत के कब्जे में आ गया।
भारत और पाकिस्तान की नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान समर्थित घुसपैठियों 1999 के प्रारम्भ में कारगिल क्षेत्र की 16 से 18 हजार फुट ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा जमा लिया था। मई 1999 के पहले सप्ताह में इन घुसपैठियों ने श्रीनगर को लेह से जोड़ने वाले महत्वपूर्ण राजमार्ग पर गोलीबारी आरंभ कर दी। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए भारत ने इन घुसपैठियों के विरुद्ध 'आपरेशन विजय' के तहत कार्रवाई आरंभ की। इसके बाद संघर्षों का सिलसिला आरंभ हो गया। हड्डी गला देने वाली ठंड में भी भारतीय सेना के रणबांकुरों ने दुश्मनों का डट कर मुकाबला किया। 2 जुलाई को कमांडिंग आफिसर कर्नल कुशल ठाकुर के नेतृत्व में 18 ग्रेनेडियर को टाइगर हिल पर कब्जा करने का आदेश मिला। इसके लिए पूरी बटालियन को तीन कंपनियों- ‘अल्फा’, ‘डेल्टा’ व ‘घातक’ कम्पनी में बांटा गया। ‘घातक’ कम्पनी में ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव सहित 7 कमांडो शामिल थे। 4 जुलाई की रात में पूर्व निर्धारित योजनानुसार कुल 25 सैनिकों का एक दल टाइगर हिल की ओर बढ़ा। चढ़ाई सीधी थी और कार्य काफ़ी मुश्किल। टाइगर हिल में घुसपैठियों की तीन चौकियां बनीं हुई थीं। एक मुठभेड़ के बाद पहली चौकी पर कब्जा कर लिया गया। इसके बाद केवल 7 कमांडो वाला दल आगे बढ़ा। यह दल अभी कुछ ही दूर आगे बढ़ा था की दुश्मन की ओर से अंधाधुंध गोलीबारी आरंभ हो गयी। इस गोलीबारी में दो सैनिक शहीद हो गए। इन दोनों शहीदों को वापस छोड़कर शेष 05 जाबांज सैनिक आगे बढ़े। किन्तु एक भीषण मुठभेड़ में इन पांचों में चार शहीद हो गए और बचे केवल ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव। हालाँकि वह बुरी तरह घायल हो गए थे, उनकी बाएं हाथ की हड्डी टूट गई थी और हाथ ने काम करना बन्द कर दिया था। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। योगेन्द्र सिंह ने हाथ को बेल्ट से बांधकर कोहनी के बल चलना आरंभ किया। इसी हालत में उन्होंने अपनी ए.के.-47 राइफल से 15-20 घुसपैठियों को मार गिराया। इस तरह दूसरी चौकी पर भी भारत का कब्जा हो गया। अब उनका लक्ष्य 17,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित चौकी पर कब्जा करना था। अत: वह धुआंधार गोलीबारी करते हुए आगे बढ़े, जिससे दुश्मन को लगने लगा कि काफ़ी संख्या में भारतीय सेना यहां पहुंच गई है। कुछ दुश्मन भाग खड़े हुए, तो कुछ चौकी में ही छिप गए, किन्तु ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव ने अपने अद्भुत साहस का परिचय देते हुए शेष बचे घुसपैठियों को भी मार गिराया और तीसरी चौकी पर कब्जा जमा लिया। इस संघर्ष में वह और अधिक घायल हो गए पर अपनी जांबाजी से अंतत: योगेन्द्र सिंह यादव टाइगर हिल पर तिरंगा फहराने में सफल रहे।
इसी बीच उन्होंने पाकिस्तानी कमाण्डर की आवाज सुनी, जो अपने सैनिकों को 500 फुट नीचे भारतीय चौकी पर हमला करने के लिए आदेश दे रहा था। इस हमले की जानकारी अपनी चौकी तक पहुंचाने के योगेन्द्र सिंह यादव ने अपनी जान की बाजी लगाकर पत्थरों पर लुढ़कना आरंभ किया और अंतत : जानकारी देने में सफल रहे। उनकी इस जानकारी से भारतीय सैनिकों को काफ़ी सहायता मिली और दुश्मन दुम दबाकर भाग निकले। योगेन्द्र सिंह यादव के जख्मी होने पर यह भी खबर फैली थी कि वे शहीद हो गए, पर जो देश की रक्षा करता है, उसकी रक्षा स्वयं ईश्वर ने ही की. भारत सरकार ने ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव के इस अदम्य साहस, वीरता और पराक्रम के मद्देनजर परमवीर चक्र से सम्मानित किया। सबसे कम मात्र 19 वर्ष कि आयु में ‘परमवीर चक्र’ प्राप्त करने वाले इस वीर योद्धा ने उम्र के इतने कम पड़ाव में जांबाजी का ऐसा इतिहास रच दिया कि आने वाली सदियाँ भी याद रखेंगीं।
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7 февраля 2018 г. 22:19:43
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