DAY 42 | क्या आपने ईश्वर के नेत्रों से अपने जीवन को देखा है ?| रामचरितमानस के सिद्ध दोहे और चौपाईयाँ
Key Points:
Main topic: "क्या आपने ईश्वर के नेत्रों से अपने जीवन को देखा है ?" (Balakand Chaupai 223.4)
१) भगवान् का सुन्दर रूप जनपुर के वासियों ने देखा
- भगवान् अनंत हैं और सबसे सुन्दर हैं, उनका मन भी सुन्दर है, बुद्धि भी सुन्दर है, और शरीर भी सुन्दर है
- भगवान् की सुंदरता वासनात्मक नहीं होती है, वास्तविक होती है
- भगवान् सुन्दर हैं और साथ ही उनमें अपनापन है; उन्हें हम 'अपना' बना सकते हैं
- जब भगवान् राम जनकपुर गए लक्ष्मणजी के साथ तब सभी नगर वासियों के उनका दर्शन किया
- तीन प्रकार के नगरवासी थे :
० पहले वह थे जो भगवान् को देखकर सब काम छोड़कर भागे और साथ चलने लगे (ब्रह्मचारी, सन्यासी, ज्ञानी)
० दूसरीं थीं वह स्त्रियाँ जिन्होंने घर के झरोंखों से भगवान् को देखा (भक्ति मार्ग)
० तीसरे थे छोटे बच्चे जो भगवान् के पास गए और उनको अपने घर बुलाने का आग्रह किया (कर्मयोगी)
- ईश्वर के पास जाने के यही तीन तरीके होते हैं
२) ब्रह्मचारी/सन्यासी का जीवन
- अगर आपके पास वैराग्य है और प्रारब्ध है तो आप सब छोड़कर भगवान् के पास जाते हैं
- आप ऐसी स्थिति चाहते हैं कि हर समय भगवान का चिंतन मनन हो, कुछ और दूसरा काम न हो
- सन्यासी के मन में केवल रामाकार वृत्ति रहती है
३) भक्ति मार्गी का जीवन
- जो घर में स्त्रियाँ भी, वह भगवान् के रूप से मोहित हुई पर अपना काम करती रहीं
- सारी स्त्रियों की इच्छा थी कि सीताजी को बहुत अच्छा वर मिले (भगवान् राम मिलें) और सीताजी बहुत प्रसन्न रहें
- अंदर की भक्ति बहुत खुश रहे, हमारी यही इच्छा होनी चाहिये
- भक्ति की आत्मा है स्वयं का विस्मरण और ईश्वर के सुख का तीव्र स्मरण
- ईश्वर को सुख देने की इच्छा और अपने आपको मिटाने की इच्छा हो तभी भक्ति हो सकती है
- स्त्रियाँ छत पर गईं और उन्होंने फूलों की वर्षा की; तात्पर्य यह कि उन्होंने अपना मन भगवान् को अर्पित किया (सुमन मतलब सुन्दर मन)
- भक्ति = बैद्धिक निष्ठा जो भावनात्मक द्रवता के रूप में प्रगट होती है
- भक्ति मतलब यह commitment होना कि, 'आज से हम सुखी-दुखी ईश्वर से ही होंगे'
४) कर्मयोगी का जीवन
- सबसे अच्छा सम्बन्ध बच्चों का बना भगवान् राम के साथ; वे बहुत उत्सुक थे भगवान् को कुछ देने के लिए, कुछ दिखाने के लिए
- छोटे बच्चों ने भगवान् को स्पर्श किया और स्पर्श करने के बाद उनकी आँखों से आँसू आ गए
- भगवान् को स्पर्श करने से और कुछ देने से सम्बन्ध गाढ़ा बनता है
- भगवान् के सामने हमें भी बच्चे बन जाना चाहिये
- बच्चों ने भगवान् राम को उनके घर आने का निमंत्रण दिया
- ईश्वर को अपने अंदर का जीवन दिखाने की प्यास भक्ति है
- भगवान् राम बच्चों के घर गए, फिर बच्चों ने भगवान् को पकड़ लिया और जाने नहीं दिया; इसका तात्पर्य है कि हमें ईश्वर का स्मरण नहीं छोड़ना चाहिये
- भगवान् राम सभी बालकों की बात बहुत प्रेम से सुन रहे थे
- अगर भगवान् हमारे श्रोता नहीं बने मतलब हमारी भक्ति नहीं बढ़ी
- सभी जनकपुरी वासियों में से बच्चों में सबसे अधिक प्यास थी भगवान् राम की
- हम भगवान् के पास बच्चे बनकर नहीं जा पाते हैं, हम बड़े बुद्धिमान और चतुर बनकर जाते हैं
- हमारे अंदर वो विश्वास नहीं होता है कि भगवान् को सब दे दें, हमारे अंदर अनन्यता नहीं होती है
- हमारे अंदर दृढ़ विश्वास, अनन्यता व शरणागति होनी चाहिये
- पूरी तरह ईश्वर के हो जाना ही भक्ति है
५) भगवान् राम अपने गुरु की सेवा करते हैं
- जिसकी चरण की सेवा लक्ष्मीजी करती हैं, वे (भगवान्) आज गुरु विश्वामित्रजी के चरण की सेवा कर रहे थे
- गुरु के सामने बोलने में संकोची होना चाहिए लेकिन सेवा करने में संकोची नहीं होना चाहिये
- गुरु और शिष्य का संबंध सबसे मधुरतम होता है
- गुरु शिष्य को ईश्वर का प्रेम दिखता है; ज्ञान, मोक्ष और शान्ति देता है; पूजा, जप और कथा देता है
- शिष्य का यह अनुभव होना चाहिये कि हमें गुरु से बहुत मिला है, बिना कुछ दिए मिला है
- शिष्य अपनी विनम्रता देता है, सेवा देता है गुरु को
- गुरु और शिष्य का सम्बन्ध ईश्वरीय होता है
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Main topic: "क्या आपने ईश्वर के नेत्रों से अपने जीवन को देखा है ?" (Balakand Chaupai 223.4)
१) भगवान् का सुन्दर रूप जनपुर के वासियों ने देखा
- भगवान् अनंत हैं और सबसे सुन्दर हैं, उनका मन भी सुन्दर है, बुद्धि भी सुन्दर है, और शरीर भी सुन्दर है
- भगवान् की सुंदरता वासनात्मक नहीं होती है, वास्तविक होती है
- भगवान् सुन्दर हैं और साथ ही उनमें अपनापन है; उन्हें हम 'अपना' बना सकते हैं
- जब भगवान् राम जनकपुर गए लक्ष्मणजी के साथ तब सभी नगर वासियों के उनका दर्शन किया
- तीन प्रकार के नगरवासी थे :
० पहले वह थे जो भगवान् को देखकर सब काम छोड़कर भागे और साथ चलने लगे (ब्रह्मचारी, सन्यासी, ज्ञानी)
० दूसरीं थीं वह स्त्रियाँ जिन्होंने घर के झरोंखों से भगवान् को देखा (भक्ति मार्ग)
० तीसरे थे छोटे बच्चे जो भगवान् के पास गए और उनको अपने घर बुलाने का आग्रह किया (कर्मयोगी)
- ईश्वर के पास जाने के यही तीन तरीके होते हैं
२) ब्रह्मचारी/सन्यासी का जीवन
- अगर आपके पास वैराग्य है और प्रारब्ध है तो आप सब छोड़कर भगवान् के पास जाते हैं
- आप ऐसी स्थिति चाहते हैं कि हर समय भगवान का चिंतन मनन हो, कुछ और दूसरा काम न हो
- सन्यासी के मन में केवल रामाकार वृत्ति रहती है
३) भक्ति मार्गी का जीवन
- जो घर में स्त्रियाँ भी, वह भगवान् के रूप से मोहित हुई पर अपना काम करती रहीं
- सारी स्त्रियों की इच्छा थी कि सीताजी को बहुत अच्छा वर मिले (भगवान् राम मिलें) और सीताजी बहुत प्रसन्न रहें
- अंदर की भक्ति बहुत खुश रहे, हमारी यही इच्छा होनी चाहिये
- भक्ति की आत्मा है स्वयं का विस्मरण और ईश्वर के सुख का तीव्र स्मरण
- ईश्वर को सुख देने की इच्छा और अपने आपको मिटाने की इच्छा हो तभी भक्ति हो सकती है
- स्त्रियाँ छत पर गईं और उन्होंने फूलों की वर्षा की; तात्पर्य यह कि उन्होंने अपना मन भगवान् को अर्पित किया (सुमन मतलब सुन्दर मन)
- भक्ति = बैद्धिक निष्ठा जो भावनात्मक द्रवता के रूप में प्रगट होती है
- भक्ति मतलब यह commitment होना कि, 'आज से हम सुखी-दुखी ईश्वर से ही होंगे'
४) कर्मयोगी का जीवन
- सबसे अच्छा सम्बन्ध बच्चों का बना भगवान् राम के साथ; वे बहुत उत्सुक थे भगवान् को कुछ देने के लिए, कुछ दिखाने के लिए
- छोटे बच्चों ने भगवान् को स्पर्श किया और स्पर्श करने के बाद उनकी आँखों से आँसू आ गए
- भगवान् को स्पर्श करने से और कुछ देने से सम्बन्ध गाढ़ा बनता है
- भगवान् के सामने हमें भी बच्चे बन जाना चाहिये
- बच्चों ने भगवान् राम को उनके घर आने का निमंत्रण दिया
- ईश्वर को अपने अंदर का जीवन दिखाने की प्यास भक्ति है
- भगवान् राम बच्चों के घर गए, फिर बच्चों ने भगवान् को पकड़ लिया और जाने नहीं दिया; इसका तात्पर्य है कि हमें ईश्वर का स्मरण नहीं छोड़ना चाहिये
- भगवान् राम सभी बालकों की बात बहुत प्रेम से सुन रहे थे
- अगर भगवान् हमारे श्रोता नहीं बने मतलब हमारी भक्ति नहीं बढ़ी
- सभी जनकपुरी वासियों में से बच्चों में सबसे अधिक प्यास थी भगवान् राम की
- हम भगवान् के पास बच्चे बनकर नहीं जा पाते हैं, हम बड़े बुद्धिमान और चतुर बनकर जाते हैं
- हमारे अंदर वो विश्वास नहीं होता है कि भगवान् को सब दे दें, हमारे अंदर अनन्यता नहीं होती है
- हमारे अंदर दृढ़ विश्वास, अनन्यता व शरणागति होनी चाहिये
- पूरी तरह ईश्वर के हो जाना ही भक्ति है
५) भगवान् राम अपने गुरु की सेवा करते हैं
- जिसकी चरण की सेवा लक्ष्मीजी करती हैं, वे (भगवान्) आज गुरु विश्वामित्रजी के चरण की सेवा कर रहे थे
- गुरु के सामने बोलने में संकोची होना चाहिए लेकिन सेवा करने में संकोची नहीं होना चाहिये
- गुरु और शिष्य का संबंध सबसे मधुरतम होता है
- गुरु शिष्य को ईश्वर का प्रेम दिखता है; ज्ञान, मोक्ष और शान्ति देता है; पूजा, जप और कथा देता है
- शिष्य का यह अनुभव होना चाहिये कि हमें गुरु से बहुत मिला है, बिना कुछ दिए मिला है
- शिष्य अपनी विनम्रता देता है, सेवा देता है गुरु को
- गुरु और शिष्य का सम्बन्ध ईश्वरीय होता है
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11 февраля 2021 г. 18:13:22
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