कंकालेश्वर मंदिर | यहाँ यमराज ने किया इतना घोर तप, शरीर बन गया कंकाल | उत्तराखंड | 4K | दर्शन 🙏
भक्तो नमस्कार, हर हर महादेव आप सभी का हमारे कार्यक्रम दर्शन में हार्दिक अभिनन्दन. भक्तो, भारत की देव भूमि उत्तराखंड में ऐसे बहुत से देव स्थान हैं जहाँ अनेको चत्मकार एवं शक्ति प्रदर्शन आज भी हो रहे है, भक्तो इस कलिकाल में श्रद्धालु जन एवं विश्वासी भक्तो को अंतिम और चतुर्थ पुरुषार्थ अर्थात मुक्ति यदि सहज ही मिल जाये तो कैसा हो, हाँ ये सत्य है इस कलिकाल में मुक्तिदाता भगवान् शिव भक्तों पर भक्ति एवं मुक्ति की कृपा करने के लिए स्वयं जिस स्थान पर प्रकट हुए हैं, वो स्थान है ""कंकालेश्वर महादेव मंदिर"" में.
मंदिर के बारे में:
भक्तो उत्तराखंड के गढ़वाल मुख्यालय पौड़ी में लगभग २२०० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है ""कंकालेश्वर महादेव मंदिर"" ये एक प्राचीन एवं दिव्य मंदिर है, जो आस्थावान श्रादूलुओं को देव दुर्लभ मुक्ति प्रदान करने वाला है, भक्तो इस मंदिर में भगवान शिव की उपासना करने वालो का निश्चित ही कल्याण हो जाता है, अतः इस अति दिव्य और शिव कृपा से ओत-प्रोत मंदिर में भगवान कंकालेश्वर के दर्शन और पूजन करने को दूर दूर से भक्तगण आते हैं.
मंदिर का इतिहास:
अगर कंकालेश्वर मंदिर के इतिहास की बात करें तो यह एक अति प्राचीन मंदिर है, स्कन्द पुराण के केदार खंड के अनुसार , ताड़कासुर दैत्य ने तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया, ताड़कासुर जानता था कि ब्रह्मा जी उसे अमरता का वरदान नहीं देंगे. इसलिए उसने अपनी बुद्धि से वरदान माँगा कि मेरी मृत्यु शिव जी के पुत्र के हाथो हो, ब्रह्मा जी ने उसको तथास्तु कहा, उसके बाद ताड़कासुर ने देवता, मानव एवं तीनो लोकों को जीत कर हर जगह अपना अधिकार कर लिया, एक बार उसने मृत्यु के देव यमराज को भी युद्ध के लिए ललकारा परन्तु यमराज भी उसका सामना नहीं कर सके, अतः यमराज सब कुछ छोड़कर इसी स्थान पर भगवान् शिव की प्रसन्नता के लिए तप करने लगे, उस समय माँ सती ने भी पार्वती के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर जन्म ले लिया था. तथा देवी पार्वती भी शिव जी को प्राप्त करने के लिए उमा मंदिर कर्ण प्रयाग में तपस्या कर रही थी, भक्तो, घोर तपस्या करते करते जब यमराज का शरीर सूखकर कंकाल रह गया तब भगवान् शिव प्रकट हुए और यमराज जी का संकट हरण करने का वर दिया तथा ये भी वर दिया कि कलयुग में मै गुप्त रूप से इसी स्थान पर प्रकट होकर भक्तो को मुक्ति प्रदान करेंगा. इस तरह से अब से लगभग दो सौ वर्ष पूर्व हरि शर्मा एवं बुद्ध शर्मा नामक दो महान ऋषि इस स्थान के समीप ही तपस्या करने आये थे, कुछ समय बाद उन्हें स्वप्न में भगवान शिव के दर्शन हुए, भगवान् ने उन्हें बताया कि जिस स्थान पर तुम पानी लेने जाते हो वहां किसी समय यमराज ने तपस्या की थी, तुम वहां पर एक मंदिर का निर्माण करो मै स्वयं उसमे शिवलिंग की स्थापना का प्रबंध कर दूंगा, भक्तो इस स्वप्न के बाद उन ऋषियों ने मंदिर निर्माण का कार्य प्रांरभ कर दिया, इधर भगवान शिव ने केदारनाथ के पुजारी रावल जी को दर्शन दिए और कहा कि आपकी कुटिया के बाहर जो द्वादश समूल का शिवलिंग है इसे पौड़ी गढ़वाल में भिजवा दें वहां एक मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है. अतः प्रातः ही उठकर रावल जी ने पौड़ी एक पत्र लिखा वहां किसी मंदिर के निर्माण के बारे में पता करवाया, जब उन्हें पता चला कि मंदिर निर्माण कार्य प्रगति पर है तो उन्होंने शिवलिंग को पौड़ी भेज दिया, भक्तो आज भी वो पत्र सुरक्षित रखे गये हैं, इस प्रकार कंकालेश्वर मंदिर का निर्माण कार्य 1843 में पूर्ण हुआ और शिवलिंग की स्थापना स्वयं भगवान् शिव जी की इच्छा से हुयी, यमराज के कंकाल शरीर के नाम पर ही यहाँ स्थापित भगवान् के शिवलिंग का नाम कंकालेश्वर हुआ, कुछ लोग नाम को अपभ्रंश करके क्यूंकालेश्वर भी कहते हैं, भक्तो मुक्ति दाता होने के कारण यहाँ विराजित भगवान् भोलेनाथ को यहाँ मुक्तेश्वर महादेव भी कहते हैं।
मंदिर परिसर:
मंदिर के प्रवेश द्वार पर भगवान् भोलेनाथ की मूर्ति और सुन्दर घंटा लगा हुआ है, मंदिर में प्रवेश करने के लिए जैसे ही सीढियाँ चढ़ना प्रांरभ करते हैं एक दिव्य ऊर्जा के स्पर्श से शरीर के रोम-रोम आह्लादित हो जाते हैं, मंदिर में जाने का मार्ग ही इतना सुन्दर और मनमोहक है कि मन स्वतः ही शिव जी के चरणों में बंध जाता है, मंदिर का प्रांगण और आस-पास के दृश्य का सौंदर्य देखते ही बनता है। मंदिर की दीवारों पर देवताओ की मूर्तियां उकेरी गयीं हैं, जो बहुत ही मोहक हैं ,मंदिर का प्रांगण बहुत ही विशाल है यहाँ भजन संकीर्तन कथा के लिए भी प्रयाप्त स्थान है, मन्दिर में भगवान् शिव के साथ ही माँ पार्वती जी, गणेश भगवान्, कार्तिकेय भगवान्, एवं कई प्रतिमाएं नंदी जी महाराज की हैं. समीप में ही स्थित दूसरा मंदिर भगवान श्री लक्ष्मी नारायण जी का है यहाँ हनुमान जी भी विराजमान हैं।
गर्भ गृह व अन्य देव मूर्तियां:
भक्तो गर्भ गृह में भगवान् शिव और माँ पार्वती जी की पूजा होती है, मंदिर के मुख्य देव माँ पार्वती, भगवान शिव ,गणेश जी और कार्तिकेय जी हैं, यहाँ आनेवाले श्रद्धालुजन सभी विग्रहो की पूजा बड़ी ही श्रद्धा और भक्ति के साथ करते हैं। गर्भ गृह के सामने ही नंदी जी महाराज विराजमान हैं, और मुख्य मंदिर के पीछे भगवान् श्री लक्ष्मी नारायण जी, श्री राम, सीता जी, लक्ष्मण जी और हनुमान जी के अति सुन्दर विग्रह भी विराजमान हैं, कंकालेश्वर महादेव की पूजा करने वाले श्रद्धालु यहाँ स्थित अन्य सभी देवी देवताओं की पूजा भी बड़े ही श्रद्धा - भाव से करते हैं।
श्रेय:
लेखक - याचना अवस्थी
Disclaimer: यहाँ मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहाँ यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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मंदिर के बारे में:
भक्तो उत्तराखंड के गढ़वाल मुख्यालय पौड़ी में लगभग २२०० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है ""कंकालेश्वर महादेव मंदिर"" ये एक प्राचीन एवं दिव्य मंदिर है, जो आस्थावान श्रादूलुओं को देव दुर्लभ मुक्ति प्रदान करने वाला है, भक्तो इस मंदिर में भगवान शिव की उपासना करने वालो का निश्चित ही कल्याण हो जाता है, अतः इस अति दिव्य और शिव कृपा से ओत-प्रोत मंदिर में भगवान कंकालेश्वर के दर्शन और पूजन करने को दूर दूर से भक्तगण आते हैं.
मंदिर का इतिहास:
अगर कंकालेश्वर मंदिर के इतिहास की बात करें तो यह एक अति प्राचीन मंदिर है, स्कन्द पुराण के केदार खंड के अनुसार , ताड़कासुर दैत्य ने तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया, ताड़कासुर जानता था कि ब्रह्मा जी उसे अमरता का वरदान नहीं देंगे. इसलिए उसने अपनी बुद्धि से वरदान माँगा कि मेरी मृत्यु शिव जी के पुत्र के हाथो हो, ब्रह्मा जी ने उसको तथास्तु कहा, उसके बाद ताड़कासुर ने देवता, मानव एवं तीनो लोकों को जीत कर हर जगह अपना अधिकार कर लिया, एक बार उसने मृत्यु के देव यमराज को भी युद्ध के लिए ललकारा परन्तु यमराज भी उसका सामना नहीं कर सके, अतः यमराज सब कुछ छोड़कर इसी स्थान पर भगवान् शिव की प्रसन्नता के लिए तप करने लगे, उस समय माँ सती ने भी पार्वती के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर जन्म ले लिया था. तथा देवी पार्वती भी शिव जी को प्राप्त करने के लिए उमा मंदिर कर्ण प्रयाग में तपस्या कर रही थी, भक्तो, घोर तपस्या करते करते जब यमराज का शरीर सूखकर कंकाल रह गया तब भगवान् शिव प्रकट हुए और यमराज जी का संकट हरण करने का वर दिया तथा ये भी वर दिया कि कलयुग में मै गुप्त रूप से इसी स्थान पर प्रकट होकर भक्तो को मुक्ति प्रदान करेंगा. इस तरह से अब से लगभग दो सौ वर्ष पूर्व हरि शर्मा एवं बुद्ध शर्मा नामक दो महान ऋषि इस स्थान के समीप ही तपस्या करने आये थे, कुछ समय बाद उन्हें स्वप्न में भगवान शिव के दर्शन हुए, भगवान् ने उन्हें बताया कि जिस स्थान पर तुम पानी लेने जाते हो वहां किसी समय यमराज ने तपस्या की थी, तुम वहां पर एक मंदिर का निर्माण करो मै स्वयं उसमे शिवलिंग की स्थापना का प्रबंध कर दूंगा, भक्तो इस स्वप्न के बाद उन ऋषियों ने मंदिर निर्माण का कार्य प्रांरभ कर दिया, इधर भगवान शिव ने केदारनाथ के पुजारी रावल जी को दर्शन दिए और कहा कि आपकी कुटिया के बाहर जो द्वादश समूल का शिवलिंग है इसे पौड़ी गढ़वाल में भिजवा दें वहां एक मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है. अतः प्रातः ही उठकर रावल जी ने पौड़ी एक पत्र लिखा वहां किसी मंदिर के निर्माण के बारे में पता करवाया, जब उन्हें पता चला कि मंदिर निर्माण कार्य प्रगति पर है तो उन्होंने शिवलिंग को पौड़ी भेज दिया, भक्तो आज भी वो पत्र सुरक्षित रखे गये हैं, इस प्रकार कंकालेश्वर मंदिर का निर्माण कार्य 1843 में पूर्ण हुआ और शिवलिंग की स्थापना स्वयं भगवान् शिव जी की इच्छा से हुयी, यमराज के कंकाल शरीर के नाम पर ही यहाँ स्थापित भगवान् के शिवलिंग का नाम कंकालेश्वर हुआ, कुछ लोग नाम को अपभ्रंश करके क्यूंकालेश्वर भी कहते हैं, भक्तो मुक्ति दाता होने के कारण यहाँ विराजित भगवान् भोलेनाथ को यहाँ मुक्तेश्वर महादेव भी कहते हैं।
मंदिर परिसर:
मंदिर के प्रवेश द्वार पर भगवान् भोलेनाथ की मूर्ति और सुन्दर घंटा लगा हुआ है, मंदिर में प्रवेश करने के लिए जैसे ही सीढियाँ चढ़ना प्रांरभ करते हैं एक दिव्य ऊर्जा के स्पर्श से शरीर के रोम-रोम आह्लादित हो जाते हैं, मंदिर में जाने का मार्ग ही इतना सुन्दर और मनमोहक है कि मन स्वतः ही शिव जी के चरणों में बंध जाता है, मंदिर का प्रांगण और आस-पास के दृश्य का सौंदर्य देखते ही बनता है। मंदिर की दीवारों पर देवताओ की मूर्तियां उकेरी गयीं हैं, जो बहुत ही मोहक हैं ,मंदिर का प्रांगण बहुत ही विशाल है यहाँ भजन संकीर्तन कथा के लिए भी प्रयाप्त स्थान है, मन्दिर में भगवान् शिव के साथ ही माँ पार्वती जी, गणेश भगवान्, कार्तिकेय भगवान्, एवं कई प्रतिमाएं नंदी जी महाराज की हैं. समीप में ही स्थित दूसरा मंदिर भगवान श्री लक्ष्मी नारायण जी का है यहाँ हनुमान जी भी विराजमान हैं।
गर्भ गृह व अन्य देव मूर्तियां:
भक्तो गर्भ गृह में भगवान् शिव और माँ पार्वती जी की पूजा होती है, मंदिर के मुख्य देव माँ पार्वती, भगवान शिव ,गणेश जी और कार्तिकेय जी हैं, यहाँ आनेवाले श्रद्धालुजन सभी विग्रहो की पूजा बड़ी ही श्रद्धा और भक्ति के साथ करते हैं। गर्भ गृह के सामने ही नंदी जी महाराज विराजमान हैं, और मुख्य मंदिर के पीछे भगवान् श्री लक्ष्मी नारायण जी, श्री राम, सीता जी, लक्ष्मण जी और हनुमान जी के अति सुन्दर विग्रह भी विराजमान हैं, कंकालेश्वर महादेव की पूजा करने वाले श्रद्धालु यहाँ स्थित अन्य सभी देवी देवताओं की पूजा भी बड़े ही श्रद्धा - भाव से करते हैं।
श्रेय:
लेखक - याचना अवस्थी
Disclaimer: यहाँ मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहाँ यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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