सफेद मूसली की खेती कैसे करें ll How to Grow Safed Musli ll Farmer of India
Safed Musli Ki Kheti // सफेद मूसली की खेती कैसे करें ll सफेद मुसली की खेती की पूरी जानकारी खेत से बाजार तक
नमस्कार किसान भाइयों
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सफेद मूसली (Planting material) लेने के लिए संपर्क करें
Name - Pradeep Gangwar
Contact No. - 8743072612
WhatsApp No. - 8743072612
White Musli (सफेद मूसली)
सफेद मूसली की जड़ों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक और यूनानी दवाएं बनाने में किया जाता है। खासतौर पर इस का इस्तेमाल सेक्स कूवत बढ़ाने वाली दवा के तौर पर किया जाता है। सफेद मूसली की सूखी जड़ों का इस्तेमाल यौवनवर्धक, शक्तिवर्धक और वीर्यवर्धक दवाएं बनाने में करते हैं।, जिसमें किसी भी कारण से मानव मात्र में आई कमजोरी को दूर करने की क्षमता होती है। सफेद मूसली फसल लाभदायक खेती है। इस की इसी खासीयत के चलते इस की मांग पूरे साल खूब बनी रहती है, जिस का अच्छा दाम भी मिलता है।
जलवायु - सफेद मूसली मूलतः गर्म तथा आर्द्र प्रदेशों का पौधा है। उंत्तरांचल, हिमालय प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर के ऊपर क्षेत्रों में यह सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है।
रासायनिक संगठन - सूखी जड़ों में पानी की मात्रा 5 % से कम होती है, इसमें कार्बोहइड्रेट 42 % प्रोटीन 8 - 9 %, रुट फाइबर 3 %, ग्लोकोसाइडल सेपोनिन 2 - 17 % के साथ साथ सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, जिंक एवं कॉपर जैसे खनिज लवण भी पाए जाते है !
भूमि का चयन एवं खेत की तैयारी - वैसे तो सभी प्रकार की मिट्टी में इसकी पैदावार की जा सकती है। इस के लिए दोमट, रेतीली दोमट, लाल दोमट और कपास वाली लाल मिट्टी जिस में जीवाश्म काफी मात्रा में हों, अच्छी मानी जाती है. उम्दा क्वालिटी की जड़ों को हासिल करने के लिए खेत की मिट्टी का पीएच मान 7.5 तक ठीक रहता है (भूमि का pH मान 6.5 से 8.5 के बीच होना चाहिए।). ज्यादा पीएच यानी 8 पीएच से ज्यादा वैल्यू वाले खेत में सफेद मूसली की खेती नहीं करनी चहिए. सफेद मूसली के लिए ऐसे खेतों का चुनाव न करें, जिन में कैल्शियम कार्बोनेट की मात्रा ज्यादा हो.
RC-2, RC-16, RC-36, RC-20, RC-23, RC-37 and CT-1: These varieties are maintained and collected by RAU, Udaipur. They are found to give good yield and high saponin content.
MDB-13 and MDB-14: Developed by Maa Danteshwari Herbal Research centre, Chikalputi.
This variety contains high yield, disease/fungal resistance, maximum saponin and alkaloid content.
Jawahar Safed Musli 405 and Rajvijay Safed Musli 414: Released by Rajmata Vijayaraje Scindia Krishi Vishwa Vidyalaya, Mandsaur, Madhya Pradesh .
बुवाई करते समय यह ध्यान रखें की यदि कन्द का आकार बड़ा है (ज्यादा फिंगर है ) तो उसे चाकू की सहायता से छोटा कर लेना चाहिए, ध्यान रहे की कन्द में कम से कम 2 - 3 फिंगर अवश्य होनी चाहिए, मूसली की बुवाई हेतु 5 - 10 ग्राम की अंकुरित फिंगर सर्वाधिक उपयुक्त रहती है, एक एकड़ खेत मे औसतन 4 कुंतल प्रति एकड़ पर्याप्त होती है
कंदों को बनाये गए बेड्स पर 6 - 6 इंच की दूरी पर लगाना चाहिए तथा इनकी बुवाई 2 इंच की गहराई पर करना उपयुक्त रहता है, रोपाई के उपरांत यदि वर्षा न हो तो सिंचाई करना आवश्यक होता है, मूसली के कन्द लगाने के 5 - 6 दिन के उपरांत इनका अंकुरण प्रारम्भ हो जाता है, अंकुरण प्रारम्भ होने के 15 दिन के उपरांत इनकी निराई गुड़ाई करना आवश्यक होता है, निराई गुड़ाई करते समय यह ध्यान देना चाहिए की मुख्य फसल को कोई नुकसान न पहुंचे ! इसके उपरांत 15 - 20 दिन के अंतराल पर बायोएंजाइम, गौमूत्र, वर्मी वाश के पानी का छिड़काव करना चाहिए -
प्रति 15 लीटर पानी में गौमूत्र - 1 - 1.5 किलोग्राम ,बायोएंजाइम - 30 ग्राम ,वर्मी वाश - 1 किलोग्राम
सिंचाई एवं निकाई-गुड़ाई - रोपाई के बाद ड्रिप द्वारा सिंचाई करें। बुआई के 7 से 10 दिन के अन्दर यह उगना प्रारम्भ हो जाता हैं। उगने के 75 से 80 दिन तक अच्छी प्रकार बढ़ने के बाद सितम्बर के अंत में पत्ते पीले होकर सुखने लगते हैं तथा 100 दिन के उपरान्त पत्ते गिर जाते हैं। फिर जनवरी फरवरी में जड़ें उखाड़ी जाती हैं।
मूसली खोदने (Harvesting) - मूसली को जमीन से खोदने का सर्वाधिक उपयुक्त समय नवम्बर के बाद का होता है। जब तक मूसली का छिलका कठोर न हो जाए तथा इसका सफेद रंग बदलकर गहरा भूरा न हो तब तक जमीन से नहीं निकालें। मूसली को उखाडने का समय फरवरी के अंत तक है।
रोग एवं उपचार (Disease and Treatment) - इसमें कोई बीमारी नहीं लगती है। कभी-कभी कैटरपीलर लग जाता है जो पत्तों को नुकसान पहुँचाता है। सफेद मूसली के पौधों को दीमक से बचना बहुत जरूरी होता है। इसलिए खेत में नीम से बने दीमक नाशक उत्पाद डालना जरूरी होता है।
प्रत्येक पौधों से विकसित कंदों की संख्या 10-12 होती है। इस प्रकार उपयोग किये गये प्लांटिंग मेटेरियल से 6-10 गुना पौदावार प्राप्त कर सकते हैं।
अंतर्वर्ती फसलें (Inter-cropping) - सफेद मूसली को पॉपुलर, पपीता, अरंडी या अरहर की फसलों के बीच अंतर्वर्ती फसल के रूप में लगाया जा सकता है, आवंला, आम, नीम्बू आदि फल वृक्षों के कतार के बीच में भी इसकी खेती की जा सकती है
उत्पादन (Yield) - जहाँ तक इसके उत्पादन की बात है तो यदि आप सिंगल फिंगर्स लगाए है तो लगभग 15 क्विंटल का उत्पादन प्रति एकड़ प्राप्त होता है और यदि आप ने 2 - 3 फिंगर्स वाले कंदों की बुवाई की है तो लगभग 20 - 25 कुंतल प्रति एकड़ उत्पादन प्राप्त होता है।
औसत रेट - 900 -1200 रुपये/किलो
investment - 150000 rupee approx
Total Income - 500000 रुपये
Mandi - Amritsar, Bengaluru, Chennai, Dehradun, Delhi, Jaipur, Kolkata, Lucknow, Mumbai and Neemuch
#Safed_Musli_Ki_Kheti #Musli #सफेदमूसली
Видео सफेद मूसली की खेती कैसे करें ll How to Grow Safed Musli ll Farmer of India канала Enviro Green FPO
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White Musli (सफेद मूसली)
सफेद मूसली की जड़ों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक और यूनानी दवाएं बनाने में किया जाता है। खासतौर पर इस का इस्तेमाल सेक्स कूवत बढ़ाने वाली दवा के तौर पर किया जाता है। सफेद मूसली की सूखी जड़ों का इस्तेमाल यौवनवर्धक, शक्तिवर्धक और वीर्यवर्धक दवाएं बनाने में करते हैं।, जिसमें किसी भी कारण से मानव मात्र में आई कमजोरी को दूर करने की क्षमता होती है। सफेद मूसली फसल लाभदायक खेती है। इस की इसी खासीयत के चलते इस की मांग पूरे साल खूब बनी रहती है, जिस का अच्छा दाम भी मिलता है।
जलवायु - सफेद मूसली मूलतः गर्म तथा आर्द्र प्रदेशों का पौधा है। उंत्तरांचल, हिमालय प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर के ऊपर क्षेत्रों में यह सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है।
रासायनिक संगठन - सूखी जड़ों में पानी की मात्रा 5 % से कम होती है, इसमें कार्बोहइड्रेट 42 % प्रोटीन 8 - 9 %, रुट फाइबर 3 %, ग्लोकोसाइडल सेपोनिन 2 - 17 % के साथ साथ सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, जिंक एवं कॉपर जैसे खनिज लवण भी पाए जाते है !
भूमि का चयन एवं खेत की तैयारी - वैसे तो सभी प्रकार की मिट्टी में इसकी पैदावार की जा सकती है। इस के लिए दोमट, रेतीली दोमट, लाल दोमट और कपास वाली लाल मिट्टी जिस में जीवाश्म काफी मात्रा में हों, अच्छी मानी जाती है. उम्दा क्वालिटी की जड़ों को हासिल करने के लिए खेत की मिट्टी का पीएच मान 7.5 तक ठीक रहता है (भूमि का pH मान 6.5 से 8.5 के बीच होना चाहिए।). ज्यादा पीएच यानी 8 पीएच से ज्यादा वैल्यू वाले खेत में सफेद मूसली की खेती नहीं करनी चहिए. सफेद मूसली के लिए ऐसे खेतों का चुनाव न करें, जिन में कैल्शियम कार्बोनेट की मात्रा ज्यादा हो.
RC-2, RC-16, RC-36, RC-20, RC-23, RC-37 and CT-1: These varieties are maintained and collected by RAU, Udaipur. They are found to give good yield and high saponin content.
MDB-13 and MDB-14: Developed by Maa Danteshwari Herbal Research centre, Chikalputi.
This variety contains high yield, disease/fungal resistance, maximum saponin and alkaloid content.
Jawahar Safed Musli 405 and Rajvijay Safed Musli 414: Released by Rajmata Vijayaraje Scindia Krishi Vishwa Vidyalaya, Mandsaur, Madhya Pradesh .
बुवाई करते समय यह ध्यान रखें की यदि कन्द का आकार बड़ा है (ज्यादा फिंगर है ) तो उसे चाकू की सहायता से छोटा कर लेना चाहिए, ध्यान रहे की कन्द में कम से कम 2 - 3 फिंगर अवश्य होनी चाहिए, मूसली की बुवाई हेतु 5 - 10 ग्राम की अंकुरित फिंगर सर्वाधिक उपयुक्त रहती है, एक एकड़ खेत मे औसतन 4 कुंतल प्रति एकड़ पर्याप्त होती है
कंदों को बनाये गए बेड्स पर 6 - 6 इंच की दूरी पर लगाना चाहिए तथा इनकी बुवाई 2 इंच की गहराई पर करना उपयुक्त रहता है, रोपाई के उपरांत यदि वर्षा न हो तो सिंचाई करना आवश्यक होता है, मूसली के कन्द लगाने के 5 - 6 दिन के उपरांत इनका अंकुरण प्रारम्भ हो जाता है, अंकुरण प्रारम्भ होने के 15 दिन के उपरांत इनकी निराई गुड़ाई करना आवश्यक होता है, निराई गुड़ाई करते समय यह ध्यान देना चाहिए की मुख्य फसल को कोई नुकसान न पहुंचे ! इसके उपरांत 15 - 20 दिन के अंतराल पर बायोएंजाइम, गौमूत्र, वर्मी वाश के पानी का छिड़काव करना चाहिए -
प्रति 15 लीटर पानी में गौमूत्र - 1 - 1.5 किलोग्राम ,बायोएंजाइम - 30 ग्राम ,वर्मी वाश - 1 किलोग्राम
सिंचाई एवं निकाई-गुड़ाई - रोपाई के बाद ड्रिप द्वारा सिंचाई करें। बुआई के 7 से 10 दिन के अन्दर यह उगना प्रारम्भ हो जाता हैं। उगने के 75 से 80 दिन तक अच्छी प्रकार बढ़ने के बाद सितम्बर के अंत में पत्ते पीले होकर सुखने लगते हैं तथा 100 दिन के उपरान्त पत्ते गिर जाते हैं। फिर जनवरी फरवरी में जड़ें उखाड़ी जाती हैं।
मूसली खोदने (Harvesting) - मूसली को जमीन से खोदने का सर्वाधिक उपयुक्त समय नवम्बर के बाद का होता है। जब तक मूसली का छिलका कठोर न हो जाए तथा इसका सफेद रंग बदलकर गहरा भूरा न हो तब तक जमीन से नहीं निकालें। मूसली को उखाडने का समय फरवरी के अंत तक है।
रोग एवं उपचार (Disease and Treatment) - इसमें कोई बीमारी नहीं लगती है। कभी-कभी कैटरपीलर लग जाता है जो पत्तों को नुकसान पहुँचाता है। सफेद मूसली के पौधों को दीमक से बचना बहुत जरूरी होता है। इसलिए खेत में नीम से बने दीमक नाशक उत्पाद डालना जरूरी होता है।
प्रत्येक पौधों से विकसित कंदों की संख्या 10-12 होती है। इस प्रकार उपयोग किये गये प्लांटिंग मेटेरियल से 6-10 गुना पौदावार प्राप्त कर सकते हैं।
अंतर्वर्ती फसलें (Inter-cropping) - सफेद मूसली को पॉपुलर, पपीता, अरंडी या अरहर की फसलों के बीच अंतर्वर्ती फसल के रूप में लगाया जा सकता है, आवंला, आम, नीम्बू आदि फल वृक्षों के कतार के बीच में भी इसकी खेती की जा सकती है
उत्पादन (Yield) - जहाँ तक इसके उत्पादन की बात है तो यदि आप सिंगल फिंगर्स लगाए है तो लगभग 15 क्विंटल का उत्पादन प्रति एकड़ प्राप्त होता है और यदि आप ने 2 - 3 फिंगर्स वाले कंदों की बुवाई की है तो लगभग 20 - 25 कुंतल प्रति एकड़ उत्पादन प्राप्त होता है।
औसत रेट - 900 -1200 रुपये/किलो
investment - 150000 rupee approx
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