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रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 54 - जरासंध का मथुरा पर युद्ध के लिए कूच करना

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बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏

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Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 54 - Killing of Jarasandha for war on Mathura

गुरुकुल में शिक्षा प्राप्ति तक श्रीकृष्ण लीला का प्रथम भाग समाप्त होता है। यह लीलाऐं भक्तों को रिझाने के लिये थीं। वह ऐसे पूर्ण अवतार हैं जिन्होंने हर कदम पर यह घोषणा की है कि वह स्वयं भगवान हैं। चाहे यह कंस के कारागार में उनका अवतरित होकर देवकी के गर्भ में स्थापित होना हो अथवा पूतना राक्षसी का वध। चाहे यह बकासुर का वध हो या कालिया नाग का मर्दन। गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठाना हो या ब्रह्माजी का मान मर्दन। इन लीलाओं को करके उन्होंने धरती के प्राणियों को जता दिया कि वह स्वयं भगवान हैं। अपने मुख में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के दर्शन करा कर उन्होंने अपनी माता यशोदा को भी अपने अलौकिक होने का भान दिया। राधा के साथ प्रेमलीला करने वाले कृष्ण अब जीवन का दूसरा पहलू दिखाने जा रहे हैं। वह धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करने के लिये युद्ध के मैदान में उतारने जा रहे हैं। यह उनके अवतार लेने का दूसरा कारण है जिसे अब वे पूर्ण करने जा रहे हैं। श्रीकृष्ण अब मुरली छोड़ सुदर्शन चक्र धारण करने जा रहे हैं। इसके लिये कंस के बाद अब जरासंध की बारी है। कंस की दोनों पत्नियाँ विधवा होने के बाद अपने पिता जरासंध के पास मगध पहुँचती हैं और कृष्ण के हाथों कंस के मारे जाने का समाचार सुनाती हैं। इस समाचार के बाद जरासंध कृष्ण को मारने का वचन अपनी पुत्रियों को देता है। वह अपने सेनापति को पन्द्रह दिनों के भीतर समस्त सेना एकत्रित कर मथुरा कूच करने का आदेश देता है। वह कहता है कि मथुरा की सेना को हराने के लिये उसकी सेना की एक टुकड़ी ही काफी है लेकिन वह अपने जमाई कंस की हत्या का बदला समस्त मथुरावासियों की हत्या करके लेना चाहता है इसलिये उसे विशाल सेना की आवश्यकता है। जरासंध कहता है कि वो यमुना के जल को यादवों के रक्त से लाल करके यदुवंश को ही खत्म कर देगा। जरासंध अपनी विशालकाय सेना के साथ मथुरा को कूच करता है। मार्ग में मद्रदेश के राजा शल्य की सेना भी उससे आ मिलती है। इसी प्रकार उसके कई अन्य मित्र राजाओं की सेनाऐं भी उससे मिलती रहती हैं। उधर अक्रूर के गुप्तचर अपने राजा शूरसेन को जरासंध के मथुरा की ओर बढ़ने की सूचना पहुँचाते हैं। महाराज शूरसेन सभासदों की आपात् बैठक बुलाते हैं। वह कहते हैं कि वर्षों कारगार में रहने के कारण मथुरा नरेश उग्रसेन के अंग शिथिल पड़ चुके हैं। वे जरासंध का मुकाबला नहीं कर पायेंगे। इसलिये मथुरा की रक्षा के लिये रणनीति बनानी होगी। तब उनका एक मंत्री पड़ोसी राज्यों से सहायता माँगने का परामर्श देता है। एक अन्य मंत्री का कथन है कि पड़ोसी राजा बाणासुर और भामासुर कंस के मित्र थे। वह कभी मथुरा के हितचिन्तक नहीं हो सकते। बल्कि मथुरा के पराजित होने पर वह जरासंध के साथ मथुरा लूटने में शामिल हो जायेंगे। एक अन्य मंत्री युद्ध के परिणाम विपरीत रहने की चिन्ता व्यक्त करता है। तब श्रीकृष्ण अपने स्थान से उठ खड़े होते हैं और उर्जा का संचार करते हुए कहते हैं कि जो योद्धा पहले से परिणाम की चिन्ता करके रणक्षेत्र में जाता है, वो कभी युद्ध नहीं जीत सकता। इसलिये क्षत्रिय को एक ही धर्म सिखाया जाता है कि जब देश की रक्षा का प्रश्न हो तो वह उसे अपना कर्तव्य समझकर रण में कूद जाये, फिर भले ही परिणाम कुछ भी हो। यदि वो वीरगति को प्राप्त होता है तो उसे स्वर्ग में स्थान मिलता है। एक अन्य मंत्री कहता है कि इस तरह की वीरगति बलिदान नहीं, आत्महत्या कहलायेगी। वह महाराज शूरसेन को परामर्श देता है कि जरासंध के पास महामंत्री को भेजकर उससे संधि कर ली जाये। तब श्रीकृष्ण सबके मन से भय निकालने के लिये भगवान श्रीराम का उदाहरण देते हैं कि उन्होंने केवल कुछ वानरों को साथ लेकर त्रिलोक विजयी रावण को अपनी वीरता के बलबूते पराजित कर दिया था। वह कहते हैं कि श्रीराम का इतिहास यही सिखाता है कि हमें अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिये। श्रीकृष्ण के वचन सुनकर सभी अपनी तलवारें म्यान से बाहर निकाल लेते हैं और मथुरा की रक्षा का संकल्प लेते हैं। इसके बाद महामंत्री सुझाव देता है कि निकट ही एक अन्य साम्राज्य है, कौरवों का साम्राज्य हस्तिनापुर। वहा भीष्म पितामह और आचार्य द्रोण जैसे महारथी हैं। हमें उनसे सहायता माँगनी चाहिये। वह महाराज शूरसेन से कहता है कि आपकी पुत्री कुन्ती वहाँ की रानी हैं। यदि अक्रूर जी को वहाँ भेजा जाय तो उनकी सैन्य सहायता सही समय पर मथुरा पहुँच सकती है। महाराज शूरसेन कहते हैं कि उनके दामाद महाराज पाण्डु की मृत्यु हो चुकी है और उनकी पुत्री कुन्ती विधवा हो चुकी है इसलिये उन्हें नहीं पता कि उसका कितना प्रभाव शेष है किन्तु फिर भी आशा की जा सकती है कि महाराज धृतराष्ट्र उनकी सहायता अवश्य करेंगे। महाराज शूरसेन अक्रूर को हस्तिनापुर जाने का आदेश देते हैं। श्रीकृष्ण अक्रूर जी से कहते हैं कि वह हस्तिनापुर में उनकी बुआ कुन्ती से अवश्य मिलें और उनके पाँचों पुत्रो का भी हालचाल लेकर आयें। इसके अतिरिक्त उन्हें यह सन्देश भी दें कि पिता की मृत्यु के बाद वे स्वयं को कमजोर न समझें। कहना कि उनकी रक्षा का भार अब कृष्ण पर है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि वह देवराज इन्द्र को अर्जुन की रक्षा का वचन दे चुके हैं। हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र की राजसभा में महामंत्री विदुर सूचना देते हैं कि मथुरा के सेनापति अक्रूर राजदूत के रूप में कोई सन्देश लेकर आये हैं और महाराज धृतराष्ट्र से मिलना चाहते हैं।
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12 декабря 2020 г. 18:30:04
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