गोचर से फलादेश,6 विधियाँ जिनके बिना फलादेश संभव नहीं, PREDICTION THROUGH TRANSITS,
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गोचर से फलादेश की सभी 6 विधियाँ जिनको जानें बिना फलादेश संभव नहीं, PREDICTION THROUGH TRANSITS,
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गोचर का अर्थ होता है गमन यानी चलना. गो अर्थात तारा जिसे आप नक्षत्र या ग्रह के रूप में समझ सकते हैं और चर का मतलब होता है चलना. इस तरह गोचर का सम्पूर्ण अर्थ निकलता है ग्रहों का चलना. ज्योतिष की दृष्टि में सूर्य से लेकर राहु केतु तक सभी ग्रहों की अपनी गति है। अपनी-अपनी गति के अनुसार ही सभी ग्रह राशिचक्र में गमन करने में अलग-अलग समय लेते हैं। नवग्रहों में चन्द्र का गोचर सबसे कम अवधि का होता है क्योंकि इसकी गति तेज है। जबकि, शनि की गति मंद होने के कारण शनि का गोचर सबसे अधिक समय का होता है।
गोचर से फल ज्ञात करना:-
ग्रह विभिन्न राशियों में भ्रमण करते हैं। ग्रहों के भ्रमण का जो प्रभाव राशियों पर पड़ता है उसे गोचर का फल या गोचर फल कहते हैं। गोचर फल ज्ञात करने के लिए एक सामान्य नियम यह है कि जिस राशि में जन्म समय चन्द्र हो यानी आपकी अपनी जन्म राशि को पहला घर मान लेना चाहिए उसके बाद क्रमानुसार राशियों को बैठाकर कुण्डली तैयार कर लेनी चाहिए. इस कुण्डली में जिस दिन का फल देखना हो उस दिन ग्रह जिस राशि में हों उस अनुरूप ग्रहों को बैठा देना चाहिए. इसके पश्चात ग्रहों की दृष्टि एवं युति के आधार पर उस दिन का गोचर फल ज्ञात किया जा सकता है।
ग्रहों का राशियों में भ्रमण काल-
सूर्य, शुक्र, बुध का भ्रमण काल 1 माह, चंद्र का सवा दो दिन, मंगल का 57 दिन, गुरू का 1 वर्ष, राहु-केतु का 1-1/2 (डेढ़ वर्ष) व शनि का भ्रमण का - 2-1/2 (ढ़ाई वर्ष) होता है
जब हमें भाव का प्रभाव देखना है तो हमेशा लग्न से गोचर देखें। जैसे अगर आपकी सिंह लग्न और कन्या राशि हो और शनि तुला में हो तो तीसरे भाव का फल ज्यादा मिलेगा क्योंकि शनि लग्न से तीसरे भाव में है।
अगर यह देखना है कि शुभ फल मिलेगा कि अशुभ तो चंद्र से देखें। सामान्य तौर पर पाप ग्रह और चंद्र खुद जन्म चंद्र से उपाच्य भावों में सबसे बढिया फल देते हैं। सभी ग्रहो की चंद्र से गोचर करने पर शुभ और अशुभ स्थिति ब्लैक बोर्ड पर देखें और नोट कर लें।
सूर्य, मंगल, गुरु और शनि का चंद्र से 12 वें भाव पर, आठवें भाव पर और पहले भाव पर गोचर विशेषकर अशुभ होता है। चंद्र से 12वें, पहले और दूसरे भाव में शनि के गोचर को साढे साती कहा जाता है।
ग्रह न सिर्फ उन भावों का फल देते हैं जहां वे लग्न से बैठे होते हैं बल्कि उन भावों का भी फल देते हैं जिन जिन भावों को वे देखते हैं।
अगर कोई ग्रह उस राशि में गोचर करे जिसमें वह जन्म कुण्डली में हो तो अपने फल को बढा देता है।
दशा गोचर से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। अगर किसी फल के बारे में दशा न बताए तो सिर्फ गोचर से फल नहीं मिल सकता। इसलिए बिना दशा देखे सिर्फ गोचर देखकर कभी भविष्यवाणि नहीं करनी चाहिए।
अगर दशा प्रारम्भ होने के समय गोचर बढिया न हो तो दशा से शुभ फल नहीं मिलता।
Видео गोचर से फलादेश,6 विधियाँ जिनके बिना फलादेश संभव नहीं, PREDICTION THROUGH TRANSITS, канала नक्षत्र तक
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गोचर से फल ज्ञात करना:-
ग्रह विभिन्न राशियों में भ्रमण करते हैं। ग्रहों के भ्रमण का जो प्रभाव राशियों पर पड़ता है उसे गोचर का फल या गोचर फल कहते हैं। गोचर फल ज्ञात करने के लिए एक सामान्य नियम यह है कि जिस राशि में जन्म समय चन्द्र हो यानी आपकी अपनी जन्म राशि को पहला घर मान लेना चाहिए उसके बाद क्रमानुसार राशियों को बैठाकर कुण्डली तैयार कर लेनी चाहिए. इस कुण्डली में जिस दिन का फल देखना हो उस दिन ग्रह जिस राशि में हों उस अनुरूप ग्रहों को बैठा देना चाहिए. इसके पश्चात ग्रहों की दृष्टि एवं युति के आधार पर उस दिन का गोचर फल ज्ञात किया जा सकता है।
ग्रहों का राशियों में भ्रमण काल-
सूर्य, शुक्र, बुध का भ्रमण काल 1 माह, चंद्र का सवा दो दिन, मंगल का 57 दिन, गुरू का 1 वर्ष, राहु-केतु का 1-1/2 (डेढ़ वर्ष) व शनि का भ्रमण का - 2-1/2 (ढ़ाई वर्ष) होता है
जब हमें भाव का प्रभाव देखना है तो हमेशा लग्न से गोचर देखें। जैसे अगर आपकी सिंह लग्न और कन्या राशि हो और शनि तुला में हो तो तीसरे भाव का फल ज्यादा मिलेगा क्योंकि शनि लग्न से तीसरे भाव में है।
अगर यह देखना है कि शुभ फल मिलेगा कि अशुभ तो चंद्र से देखें। सामान्य तौर पर पाप ग्रह और चंद्र खुद जन्म चंद्र से उपाच्य भावों में सबसे बढिया फल देते हैं। सभी ग्रहो की चंद्र से गोचर करने पर शुभ और अशुभ स्थिति ब्लैक बोर्ड पर देखें और नोट कर लें।
सूर्य, मंगल, गुरु और शनि का चंद्र से 12 वें भाव पर, आठवें भाव पर और पहले भाव पर गोचर विशेषकर अशुभ होता है। चंद्र से 12वें, पहले और दूसरे भाव में शनि के गोचर को साढे साती कहा जाता है।
ग्रह न सिर्फ उन भावों का फल देते हैं जहां वे लग्न से बैठे होते हैं बल्कि उन भावों का भी फल देते हैं जिन जिन भावों को वे देखते हैं।
अगर कोई ग्रह उस राशि में गोचर करे जिसमें वह जन्म कुण्डली में हो तो अपने फल को बढा देता है।
दशा गोचर से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। अगर किसी फल के बारे में दशा न बताए तो सिर्फ गोचर से फल नहीं मिल सकता। इसलिए बिना दशा देखे सिर्फ गोचर देखकर कभी भविष्यवाणि नहीं करनी चाहिए।
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