श्रीराधा के प्रादुर्भाव एवं महत्त्व आदिका वर्णन🙏 ब्रह्मवैवर्तपुराण🙏प्रकृतिखण्ड 💚 अध्याय 48
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🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡नारदजी बोले - भगवान् नारायणके ध्यानमें तत्पर रहनेवाले महाभाग मुनिवर नारायण! आप नारायणके ही अंश हैं। अतः भगवन्! आप नारायणसे सम्बन्ध रखनेवाली कथा कहिये। सुरभीका उपाख्यान अत्यन्त मनोहर है, उसे मैंने सुन लिया। वह समस्त पुराणोंमें गोपनीय कहा गया है। पुराणवेत्ताओंने उसकी बड़ी प्रशंसा की है। अब मैं श्रीराधाका परम उत्तम आख्यान सुनना चाहता हूँ। उनके प्रादुर्भावके प्रसङ्ग तथा उनके ध्यान, स्तोत्र और उत्तम कवचको भी सुननेकी मेरी प्रबल इच्छा है; अतः आप इन सबका वर्णन कीजिये। मुनिवर श्रीनारायणने कहा- नारद! पूर्वकालकी बात है, कैलास शिखरपर सनातन भगवान् शंकर, जो सर्वस्वरूप, सबसे श्रेष्ठ, सिद्धोंके स्वामी तथा सिद्धिदाता हैं, बैठे हुए थे। मुनिलोग भी उनकी स्तुति करके उनके पास ही बैठे थे। भगवान् शिवका मुखारविन्द प्रसन्नतासे खिलाहुआ था। उनके अधरोंपर मन्द मुस्कानकी छटा छा रही थी। वे कुमारको परमात्मा श्रीकृष्णके रासोत्सवका सरस आख्यान सुना रहे थे। उस प्रसङ्गके श्रवणमें कुमारकी बड़ी रुचि थी। रासमण्डलका वर्णन चल रहा था। जब इसआख्यानकी समाप्ति हुई और अपनी बात प्रस्तुत करनेका अवसर आया, उस समय सती-साध्वी पार्वती मन्द मुस्कानके साथ अपने प्राणवल्लभके समक्ष प्रश्न उपस्थित करनेको उद्यत हुई। पहले तो वे डरती हुई-सी स्वामीकी स्तुति करने लगीं फिर जब प्राणेश्वरने मधुर वचनोंद्वारा उन्हें प्रसन्न किया, तब वे देवेश्वरी महादेवी उमा महादेवजीके सामने वह अपूर्व राधिकोपाख्यान सुनानेके लिये अनुरोध करने लगीं, जो पुराणोंमें भी परम दुर्लभ है।श्रीपार्वती बोलीं- नाथ! मैंने आपके मुखारविन्दसे पाञ्चरात्र आदि सारे उत्तमोत्तम आगम, नीतिशास्त्र, योगियोंके योगशास्त्र, सिद्धोंके सिद्धि-शास्त्र, नाना प्रकारके मनोहर तन्त्रशास्त्र, परमात्मा श्रीकृष्णके भक्तोंके भक्तिशास्त्र तथा समस्त देवियोंके चरित्रका श्रवण किया। अब मैं श्रीराधाका उत्तम आख्यान सुनना चाहती हूँ। श्रुतिमें कण्वशाखाके भीतर श्रीराधाकी प्रशंसा संक्षेपसे की गयी है, उसे मैंने आपके मुखसे सुना है; अब व्यासद्वारा वर्णित श्रीराधाकी महत्ता सुनाइये। पहले आगमाख्यानके प्रसङ्गमें आपने मेरी इस प्रार्थनाको स्वीकार किया था। ईश्वरकी वाणी कभी मिथ्या नहीं हो सकती। अतः आप श्रीराधाके प्रादुर्भाव, ध्यान, उत्तम नाम-माहात्म्य, उत्तम पूजा-विधान, चरित्र, स्तोत्र, उत्तम कवच, आराधन-विधि तथा अभीष्ट पूजा-पद्धतिका इस समय वर्णन कीजिये। भक्तवत्सल! मैं आपकी भक्त हूँ, अतः मुझे ये सब बातें अवश्य बताइये। साथ ही, इस बातपर भी प्रकाश डालिये कि आपने आगमाख्यानसे पहले ही इस प्रसङ्गका वर्णन क्यों नहीं किया था ?पार्वतीका उपर्युक्त वचन सुनकर भगवान् पञ्चमुख शिवने अपना मस्तक नीचा कर लिया। अपना सत्य भङ्ग होनेके भयसे वे मौन हो गये- चिन्तामें पड़ गये। उस समय उन्होंने अपने इष्टदेव करुणानिधान भगवान् श्रीकृष्णका ध्यानद्वारास्मरण किया और उनकी आज्ञा पाकर वे अपनी अर्धाङ्गस्वरूपा पार्वतीसे इस प्रकार बोले-'देवि ! आगमाख्यानका आरम्भ करते समय मुझे परमात्मा भगवान् श्रीकृष्णने राधाख्यानके प्रसङ्गसे रोक दिया था, परंतु महेश्वरि ! तुम तो मेरा आधा अङ्ग हो; अतः स्वरूपतः मुझसे भिन्न नहीं हो। इसलिये भगवान् श्रीकृष्णने इस समय मुझे यह प्रसङ्ग तुम्हें सुनानेकी आज्ञा दे दी है। सतीशिरोमणे! मेरे इष्टदेवकी वल्लभा श्रीराधाका चरित्र अत्यन्त गोपनीय, सुखद तथा श्रीकृष्णभक्ति प्रदान करनेवाला है। दुर्गे ! वह सब पूर्वापर श्रेष्ठ प्रसङ्ग मैं जानता हूँ। मैं जिस रहस्यको जानता हूँ, उसे ब्रह्मा तथा नागराज शेष भी नहीं जानते। सनत्कुमार, सनातन, देवता, धर्म, देवेन्द्र, मुनीन्द्र, सिद्धेन्द्र तथा सिद्धपुङ्गवाँको भी उसका ज्ञान नहीं है। सुरेश्वरि! तुम मुझसे भी बलवती हो; क्योंकि इस प्रसङ्गको न सुनानेपर अपने प्राणोंका परित्याग कर देनेको उद्यत हो गयी थीं। अतः मैं इस गोपनीय विषयको भी तुमसे कहता हूँ दुर्गे ! यह परम अद्भुत रहस्य है। मैं इसका कुछ वर्णन करता हूँ, सुनो। श्रीराधाका चरित्र अत्यन्त पुण्यदायक तथा दुर्लभ है।एक समय रासेश्वरी श्रीराधाजी श्यामसुन्दर श्रीकृष्णसे मिलनेको उत्सुक हुईं। उस समय वे रत्नमय सिंहासनपर अमूल्य रत्नाभरणोंसे विभूषित होकर बैठी थीं। अग्रिशुद्ध दिव्य वस्त्र उनके श्रीअङ्गोंकी शोभा बढ़ा रहा था। उनकी मनोहर अङ्गकान्ति करोड़ों पूर्ण चन्द्रमाओंको लज्जित कर रही थी। उनकी प्रभा तपाये हुए सुवर्णके सदृश जान पड़ती थी। वे अपनी ही दीप्तिसे दमक रही थीं। शुद्धस्वरूपा श्रीराधाके अधरपर मन्द मुसकान खेल रही थी। उनकी दन्तपंक्ति बड़ी ही सुन्दर थी। उनका मुखारविन्द शरत्कालके प्रफुल्ल कमलोंकी शोभाको तिरस्कृत कर रहा था। वे मालती- सुमनोंकी मालासे मण्डित रमणीय केशपाश धारण करती थीं। उनके गलेकी रत्नमयी मालाग्रीष्म-ऋतुके सूर्यके समान दीप्तिमती थी। कण्ठमें प्रकाशित शुभ मुक्ताहार गङ्गाकी धवल धारके समान शोभा पा रहा था। रसिकशेखर श्यामसुन्दर श्रीकृष्णने मन्द मन्द मुस्कराती हुई अपनी उन प्रियतमाको देखा। प्राणवल्लभापर दृष्टि पड़ते ही विश्वकान्त श्रीकृष्ण मिलनके लिये उत्सुक हो गये। परम मनोहर कान्तिवाले प्राणवल्लभको देखते ही श्रीराधा उनके सामने दौड़ी गयीं। महेश्वरि! उन्होंने अपने प्राणारामकी ओर धावन किया, इसीलिये पुराणवेत्ता महापुरुषोंने उनका "राधा" यह सार्थक नाम निश्चित किया। राधा श्रीकृष्णकी आराधना करती हैं और श्रीकृष्ण श्रीराधाकी। वे दोनों परस्पर आराध्य और आराधक हैं। संतोंका कथन है कि उनमें सभी दृष्टियोंसे पूर्णतः समता है। महेश्वरि ! मेरे ईश्वर श्रीकृष्ण रासमें प्रियाजीके धावनकर्मका स्मरण करते हैं, इसीलिये वे उन्हें 'राधा' कहते हैं, ऐसा मेरा अनुमान है। दुर्गे! भक्त पुरुष 'रा' शब्दके उच्चारणमात्रसे परम दुर्लभ मुक्तिको पा लेता है और 'धा' शब्दके उच्चारणसे वह निश्चय ही श्रीहरिके चरणोंमें दौड़कर पहुँच जाता है। 'रा' का अर्थ है 'पाना' और 'धा' का अर्थ है 'निर्वाण' (मोक्ष)।
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🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡नारदजी बोले - भगवान् नारायणके ध्यानमें तत्पर रहनेवाले महाभाग मुनिवर नारायण! आप नारायणके ही अंश हैं। अतः भगवन्! आप नारायणसे सम्बन्ध रखनेवाली कथा कहिये। सुरभीका उपाख्यान अत्यन्त मनोहर है, उसे मैंने सुन लिया। वह समस्त पुराणोंमें गोपनीय कहा गया है। पुराणवेत्ताओंने उसकी बड़ी प्रशंसा की है। अब मैं श्रीराधाका परम उत्तम आख्यान सुनना चाहता हूँ। उनके प्रादुर्भावके प्रसङ्ग तथा उनके ध्यान, स्तोत्र और उत्तम कवचको भी सुननेकी मेरी प्रबल इच्छा है; अतः आप इन सबका वर्णन कीजिये। मुनिवर श्रीनारायणने कहा- नारद! पूर्वकालकी बात है, कैलास शिखरपर सनातन भगवान् शंकर, जो सर्वस्वरूप, सबसे श्रेष्ठ, सिद्धोंके स्वामी तथा सिद्धिदाता हैं, बैठे हुए थे। मुनिलोग भी उनकी स्तुति करके उनके पास ही बैठे थे। भगवान् शिवका मुखारविन्द प्रसन्नतासे खिलाहुआ था। उनके अधरोंपर मन्द मुस्कानकी छटा छा रही थी। वे कुमारको परमात्मा श्रीकृष्णके रासोत्सवका सरस आख्यान सुना रहे थे। उस प्रसङ्गके श्रवणमें कुमारकी बड़ी रुचि थी। रासमण्डलका वर्णन चल रहा था। जब इसआख्यानकी समाप्ति हुई और अपनी बात प्रस्तुत करनेका अवसर आया, उस समय सती-साध्वी पार्वती मन्द मुस्कानके साथ अपने प्राणवल्लभके समक्ष प्रश्न उपस्थित करनेको उद्यत हुई। पहले तो वे डरती हुई-सी स्वामीकी स्तुति करने लगीं फिर जब प्राणेश्वरने मधुर वचनोंद्वारा उन्हें प्रसन्न किया, तब वे देवेश्वरी महादेवी उमा महादेवजीके सामने वह अपूर्व राधिकोपाख्यान सुनानेके लिये अनुरोध करने लगीं, जो पुराणोंमें भी परम दुर्लभ है।श्रीपार्वती बोलीं- नाथ! मैंने आपके मुखारविन्दसे पाञ्चरात्र आदि सारे उत्तमोत्तम आगम, नीतिशास्त्र, योगियोंके योगशास्त्र, सिद्धोंके सिद्धि-शास्त्र, नाना प्रकारके मनोहर तन्त्रशास्त्र, परमात्मा श्रीकृष्णके भक्तोंके भक्तिशास्त्र तथा समस्त देवियोंके चरित्रका श्रवण किया। अब मैं श्रीराधाका उत्तम आख्यान सुनना चाहती हूँ। श्रुतिमें कण्वशाखाके भीतर श्रीराधाकी प्रशंसा संक्षेपसे की गयी है, उसे मैंने आपके मुखसे सुना है; अब व्यासद्वारा वर्णित श्रीराधाकी महत्ता सुनाइये। पहले आगमाख्यानके प्रसङ्गमें आपने मेरी इस प्रार्थनाको स्वीकार किया था। ईश्वरकी वाणी कभी मिथ्या नहीं हो सकती। अतः आप श्रीराधाके प्रादुर्भाव, ध्यान, उत्तम नाम-माहात्म्य, उत्तम पूजा-विधान, चरित्र, स्तोत्र, उत्तम कवच, आराधन-विधि तथा अभीष्ट पूजा-पद्धतिका इस समय वर्णन कीजिये। भक्तवत्सल! मैं आपकी भक्त हूँ, अतः मुझे ये सब बातें अवश्य बताइये। साथ ही, इस बातपर भी प्रकाश डालिये कि आपने आगमाख्यानसे पहले ही इस प्रसङ्गका वर्णन क्यों नहीं किया था ?पार्वतीका उपर्युक्त वचन सुनकर भगवान् पञ्चमुख शिवने अपना मस्तक नीचा कर लिया। अपना सत्य भङ्ग होनेके भयसे वे मौन हो गये- चिन्तामें पड़ गये। उस समय उन्होंने अपने इष्टदेव करुणानिधान भगवान् श्रीकृष्णका ध्यानद्वारास्मरण किया और उनकी आज्ञा पाकर वे अपनी अर्धाङ्गस्वरूपा पार्वतीसे इस प्रकार बोले-'देवि ! आगमाख्यानका आरम्भ करते समय मुझे परमात्मा भगवान् श्रीकृष्णने राधाख्यानके प्रसङ्गसे रोक दिया था, परंतु महेश्वरि ! तुम तो मेरा आधा अङ्ग हो; अतः स्वरूपतः मुझसे भिन्न नहीं हो। इसलिये भगवान् श्रीकृष्णने इस समय मुझे यह प्रसङ्ग तुम्हें सुनानेकी आज्ञा दे दी है। सतीशिरोमणे! मेरे इष्टदेवकी वल्लभा श्रीराधाका चरित्र अत्यन्त गोपनीय, सुखद तथा श्रीकृष्णभक्ति प्रदान करनेवाला है। दुर्गे ! वह सब पूर्वापर श्रेष्ठ प्रसङ्ग मैं जानता हूँ। मैं जिस रहस्यको जानता हूँ, उसे ब्रह्मा तथा नागराज शेष भी नहीं जानते। सनत्कुमार, सनातन, देवता, धर्म, देवेन्द्र, मुनीन्द्र, सिद्धेन्द्र तथा सिद्धपुङ्गवाँको भी उसका ज्ञान नहीं है। सुरेश्वरि! तुम मुझसे भी बलवती हो; क्योंकि इस प्रसङ्गको न सुनानेपर अपने प्राणोंका परित्याग कर देनेको उद्यत हो गयी थीं। अतः मैं इस गोपनीय विषयको भी तुमसे कहता हूँ दुर्गे ! यह परम अद्भुत रहस्य है। मैं इसका कुछ वर्णन करता हूँ, सुनो। श्रीराधाका चरित्र अत्यन्त पुण्यदायक तथा दुर्लभ है।एक समय रासेश्वरी श्रीराधाजी श्यामसुन्दर श्रीकृष्णसे मिलनेको उत्सुक हुईं। उस समय वे रत्नमय सिंहासनपर अमूल्य रत्नाभरणोंसे विभूषित होकर बैठी थीं। अग्रिशुद्ध दिव्य वस्त्र उनके श्रीअङ्गोंकी शोभा बढ़ा रहा था। उनकी मनोहर अङ्गकान्ति करोड़ों पूर्ण चन्द्रमाओंको लज्जित कर रही थी। उनकी प्रभा तपाये हुए सुवर्णके सदृश जान पड़ती थी। वे अपनी ही दीप्तिसे दमक रही थीं। शुद्धस्वरूपा श्रीराधाके अधरपर मन्द मुसकान खेल रही थी। उनकी दन्तपंक्ति बड़ी ही सुन्दर थी। उनका मुखारविन्द शरत्कालके प्रफुल्ल कमलोंकी शोभाको तिरस्कृत कर रहा था। वे मालती- सुमनोंकी मालासे मण्डित रमणीय केशपाश धारण करती थीं। उनके गलेकी रत्नमयी मालाग्रीष्म-ऋतुके सूर्यके समान दीप्तिमती थी। कण्ठमें प्रकाशित शुभ मुक्ताहार गङ्गाकी धवल धारके समान शोभा पा रहा था। रसिकशेखर श्यामसुन्दर श्रीकृष्णने मन्द मन्द मुस्कराती हुई अपनी उन प्रियतमाको देखा। प्राणवल्लभापर दृष्टि पड़ते ही विश्वकान्त श्रीकृष्ण मिलनके लिये उत्सुक हो गये। परम मनोहर कान्तिवाले प्राणवल्लभको देखते ही श्रीराधा उनके सामने दौड़ी गयीं। महेश्वरि! उन्होंने अपने प्राणारामकी ओर धावन किया, इसीलिये पुराणवेत्ता महापुरुषोंने उनका "राधा" यह सार्थक नाम निश्चित किया। राधा श्रीकृष्णकी आराधना करती हैं और श्रीकृष्ण श्रीराधाकी। वे दोनों परस्पर आराध्य और आराधक हैं। संतोंका कथन है कि उनमें सभी दृष्टियोंसे पूर्णतः समता है। महेश्वरि ! मेरे ईश्वर श्रीकृष्ण रासमें प्रियाजीके धावनकर्मका स्मरण करते हैं, इसीलिये वे उन्हें 'राधा' कहते हैं, ऐसा मेरा अनुमान है। दुर्गे! भक्त पुरुष 'रा' शब्दके उच्चारणमात्रसे परम दुर्लभ मुक्तिको पा लेता है और 'धा' शब्दके उच्चारणसे वह निश्चय ही श्रीहरिके चरणोंमें दौड़कर पहुँच जाता है। 'रा' का अर्थ है 'पाना' और 'धा' का अर्थ है 'निर्वाण' (मोक्ष)।
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14 ноября 2022 г. 10:54:23
00:10:49
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