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Durga visarjan2022:सिंदूर खेला 'कोलकाता के सबसे प्रसिद्ध रसम जो की नवरात्रि के बाद मनाई जाती #viral

क्यों करते हैं दुर्गा विसर्जन ?

कहते हैं बेटी पराया धन होती है। उसे एक ना एक दिन अपना मायका यानी मां-बाप का घर छोड़ कर अपने ससुराल यानी पति के घर जाना ही पड़ता है। विवाह के बाद बेटियां अपने मायके मेहमान की तरह आती हैं और चली जाती हैं यह परंपरा सदियों पुरानी नहीं बल्कि युगों पुरानी है, मां दुर्गा भी अपने बच्चों सहित इस पृथ्वी पर अर्थात् अपने मायके आती हैं और कुछ दिन बिताकर वापस अपने ससुराल शिव के पास चली जाती हैं।

भारत के कोने-कोने में आज भी कई परंपराएं एवं मान्यताएं पूर्ण रूप से मौजूद हैं जिन्हें हम कई त्योहारों एवं पर्वों के रूप में मनाते हैं। उन्हीं में से एक है दुर्गोत्सव। शहद ऋतु के आगमन पर बंगाल में यह उत्सव पूरे हर्षोल्लास से मनाया जाता है। चार दिन तक चलने वाला यह उत्सव पांचवें दिन मां दुर्गा की विदाई (विसर्जन) के साथ संपन्न होता है। प्राचीन परंपराओं एवं व्यवस्थाओं में झांके तो हमें इस पर्व का मर्म समझ में आता है। बारिश के ठीक बाद सितंबर-अक्टूबर में फसल पककर तैयार हो जाती है जिसे किसान वर्ग घरों में लाकर, साफ-सफाई कर काठियों एवं गोदामों आदि में भरकर अपने वर्ष भर की मेहनत एवं जिम्मेदारियों से मुक्ति पाते हैं। ऐसे खाली समय में महिलाएं (उनकी पत्नियां) अपने बाल-बच्चों सहित मायके आती हैं और कुछ समय बिताकर, घर में खुशहाली का वातावरण पैदा करके पुन: अपने ससुराल लौट जाती हैं, जिसे पूरा परिवार भारी मन से सजा धजाकर मंगलकामनाओं एवं आशीर्वाद के साथ विदा करता है।

इसी तरह मां दुर्गा भी अपने बच्चों, लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिक और गणेश के साथ इस पर चार दिन के लिए खुशी बिखेरने अपने मायके यानी धरती आती हैं और फिर वह अपने ससुराल भगवान शिव के पास चली जाती हैं।सिंदूर खेला का शाब्दिक अर्थ है 'सिंदूर का खेल'. इसे खासतौर से बंगाली हिंदू महिलाएं नवरात्रि के आखिरी दिन मनाती हैं. परंपरागत रूप से, यह अनुष्ठान विवाहित महिलाओं के लिए होता है, जिन्हें सिंदूर खेला खेलते समय एक निर्धारित रिवाज और प्रोटोकॉल का पालन करना होता है, यह मानते हुए कि यह उनके लिए सौभाग्य और उनके पति के लिए लंबी उम्र लाएगा.

क्या है सिंदूर खेला का महत्व?
दुर्गा पूजा भारत में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है और विजया दशमी दुर्गा पूजा उत्सव के अंत का प्रतीक है. पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा सबसे बड़ा त्योहार है. शादीशुदा महिलाओं के लिए यह दिन खास होता है, जो साल भर इस दिन का इंतजार करती हैं. इस दिन बंगाली समुदाय के लोग मां दुर्गा को सिंदूर चढ़ाते हैं. इसके साथ ही भव्य पंडाल में मौजूद सभी लोग सिंदूर लगाते हैं और दुर्गा पूजा की कामना करते हैं. इस परंपरा को 'सिंदूर खेला' के नाम से जाना जाता है. इसके बाद शुरू होता है सिंदूर खेला. इसमें महिलाएं एक-दूसरे पर सिंदूर लगाती हैं
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सिंदूर खेला की शुरुआत कैसे हुई?
दुर्गा महोत्सव पर सिंदूर खेला का इतिहास करीब 450 साल पुराना है. बंगाली समुदाय में विजयादशमी के दिन सिंदूर खेल के साथ-साथ धुनुची नृत्य की परंपरा भी निभाई जाती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार धुनुची नृत्य करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं. इसे मनाने के पीछे मान्यता यह है कि मां दुर्गा प्रसन्न होंगी और अपने बच्चे की रक्षा करेंगी.
Durga visarjan 2022/ सिंदूर खेला का full video "ख़ूब धूमधाम से हुआ मूर्ति विसर्जन #kolkata #dancehttps://youtube.com/channel/UCMkrAt4mWJpOBbyXHM4HbHg
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Видео Durga visarjan2022:सिंदूर खेला 'कोलकाता के सबसे प्रसिद्ध रसम जो की नवरात्रि के बाद मनाई जाती #viral канала CRAZY Barsha
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