भारत के होयसलेस्वरा मंदिर में प्राचीन इजिप्शियन की नक्काशी- क्या प्राचीन सभ्यताएं जुड़ी थीं ?
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हैलो दोस्तों! ये है होयसालेश्वर मंदिर और यहाँ हम एक हैरतअंगेज़ नक्काशी देख सकते है : एक प्राचीन इजिप्शियन. आप देख सकते हैं की उसने जो कपड़े पहने हैं और हाथों में जो औज़ार पकड़े है वो, इस मंदिर के दूसरे सारे शिल्पों से पूरी तरह से अलग है। वास्तव में, बहुत से इतिहासकार सहमत है की ये एक इजिप्शियन आकृति है मगर, किसी को नहीं पता कि ये यहाँ भारत में कैसे उकेरी गई, जो की पूरी तरह से एक अलग महाद्वीप में है। मुख्यधारा के पुरातात्विद कहते हैं की ये मंदिर ९०० साल पहले बनाया गया था, जबकि स्थानीय लोगों का कहना है कि ये हज़ारों सालों से इसी जगह पर है।
अगर हम इस मंदिर के दूसरे भारतीय मनुष्यों और देवताओं की नक्काशियों की तुलना इस नक्काशी से करें, तो इसमें काफ़ी अलग विशेषताएं हैं। सारे भारतीय आकृतियों को उनके शरीर के ऊपरी हिस्से में बगैर कपड़ों के मगर, बहुत सारे गहनों के साथ दिखाया गया है। ये आकृति उनसे बिलकुल विरुद्ध है, ये एक बड़ा सा चोला पहने हुए न के बराबर गहनों में दिखाई गई है। ज़्यादातर भारतीय आकृतियां पैरों में पादत्राणें पहने हुए दिखाई गई है, मगर ये आकृति नंगे पैर दिखाई गई है, बिल्कुल जैसे प्राचीन इजिप्शियन चित्रों और नक्काशियों में दिखाए जाते हैं।
अब, अगर आप इस इजिप्शियन आकृति को देखें, तो आप देख सकते हैं की चोले के भीतर, उसने एक लंगोट पहन रखी है, और ये नक्काशी भी हूबहू वही दर्शाता है: चोले के भीतर एक साधारण लंगोट। अब, अगर हम इस शिल्प को नज़दीक से देखें, तो हम देख सकते हैं की उसने हेड ड्रेस पहन रखा है, जो उसके कंधों तक पहुंचता है। हम जानते हैं की ये एक हेड ड्रेस है, क्योंकि हम उस हेड ड्रेस के नीचे उसके असली बाल को देख सकते हैं। और ये हेड ड्रेस भी उल्लेखनीय रूप से प्राचीन इजिप्शियन जैसा दिखता है, जब की इसी मंदिर के भारतीय आकृतियों के बाल बनाने का तरीका पूरी तरह से अलग है।
सारी इतिहास की पुस्तकें हमें बताती हैं की प्राचीन भारत और प्राचीन मिस्र किसी तरह से जुड़े नहीं थे, फिर भी हम इस इजिप्शियन को इस मंदिर में देख रहे हैं। ये कैसे संभव है? याद रखिए, विशेषज्ञ हमें कह रहे हैं की भारत बाकी दुनिया से कटा हुआ था, वो दूसरें देशों के संपर्क में नहीं था। फिर भी, एक अलग वीडियो में, मैंने आपको प्राचीन बृहदेश्वर मंदिर में एक यूरोपीय नक्काशी दिखाई है।
सारे इतिहासकार बार बार हमें बताते हैं की भारत अफ्रीका के संपर्क में नहीं था, फिर भी मैंने आपको कोणार्क के सूर्य मन्दिर में जिराफ़ की नक्काशी दिखाई है, और जिराफ़ तो सिर्फ दक्षिण अफ्रीका में पाए जाते हैं। इन सारे सबूतों से, क्या ये संभव है की सारी दुनिया की प्राचीन संस्कृतियां जुड़ी हुई थी, जैसे की आज हम सब जुड़े हुए है ? क्या वे आधुनिक तकनीक, जैसे टेलिस्कोप और संपर्कयंत्रों का भी उपयोग करते थे? और कैसे हम प्राचीन भारतीय मंदिरों में बाकी नक्काशियों के साथ इस इजिप्शियन की नक्काशी को समझाएंगे?
#हिन्दू #praveenmohanhindi #प्रवीणमोहन
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अगर हम इस मंदिर के दूसरे भारतीय मनुष्यों और देवताओं की नक्काशियों की तुलना इस नक्काशी से करें, तो इसमें काफ़ी अलग विशेषताएं हैं। सारे भारतीय आकृतियों को उनके शरीर के ऊपरी हिस्से में बगैर कपड़ों के मगर, बहुत सारे गहनों के साथ दिखाया गया है। ये आकृति उनसे बिलकुल विरुद्ध है, ये एक बड़ा सा चोला पहने हुए न के बराबर गहनों में दिखाई गई है। ज़्यादातर भारतीय आकृतियां पैरों में पादत्राणें पहने हुए दिखाई गई है, मगर ये आकृति नंगे पैर दिखाई गई है, बिल्कुल जैसे प्राचीन इजिप्शियन चित्रों और नक्काशियों में दिखाए जाते हैं।
अब, अगर आप इस इजिप्शियन आकृति को देखें, तो आप देख सकते हैं की चोले के भीतर, उसने एक लंगोट पहन रखी है, और ये नक्काशी भी हूबहू वही दर्शाता है: चोले के भीतर एक साधारण लंगोट। अब, अगर हम इस शिल्प को नज़दीक से देखें, तो हम देख सकते हैं की उसने हेड ड्रेस पहन रखा है, जो उसके कंधों तक पहुंचता है। हम जानते हैं की ये एक हेड ड्रेस है, क्योंकि हम उस हेड ड्रेस के नीचे उसके असली बाल को देख सकते हैं। और ये हेड ड्रेस भी उल्लेखनीय रूप से प्राचीन इजिप्शियन जैसा दिखता है, जब की इसी मंदिर के भारतीय आकृतियों के बाल बनाने का तरीका पूरी तरह से अलग है।
सारी इतिहास की पुस्तकें हमें बताती हैं की प्राचीन भारत और प्राचीन मिस्र किसी तरह से जुड़े नहीं थे, फिर भी हम इस इजिप्शियन को इस मंदिर में देख रहे हैं। ये कैसे संभव है? याद रखिए, विशेषज्ञ हमें कह रहे हैं की भारत बाकी दुनिया से कटा हुआ था, वो दूसरें देशों के संपर्क में नहीं था। फिर भी, एक अलग वीडियो में, मैंने आपको प्राचीन बृहदेश्वर मंदिर में एक यूरोपीय नक्काशी दिखाई है।
सारे इतिहासकार बार बार हमें बताते हैं की भारत अफ्रीका के संपर्क में नहीं था, फिर भी मैंने आपको कोणार्क के सूर्य मन्दिर में जिराफ़ की नक्काशी दिखाई है, और जिराफ़ तो सिर्फ दक्षिण अफ्रीका में पाए जाते हैं। इन सारे सबूतों से, क्या ये संभव है की सारी दुनिया की प्राचीन संस्कृतियां जुड़ी हुई थी, जैसे की आज हम सब जुड़े हुए है ? क्या वे आधुनिक तकनीक, जैसे टेलिस्कोप और संपर्कयंत्रों का भी उपयोग करते थे? और कैसे हम प्राचीन भारतीय मंदिरों में बाकी नक्काशियों के साथ इस इजिप्शियन की नक्काशी को समझाएंगे?
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