Mewar History Part 3 | Mewar Ka Itihas | Mysterious History about Mewar | Indian Mysteries
Mewar History Part 3 | Mewar Ka Itihas | Mysterious History about Mewar | Indian Mysteries
नमस्कार दोस्तों, Mewar History part 3 में आपका स्वागत है।
रावल रतनसिंह ( १३०१-1303 ईस्वीसन्) -
रावल रतनसिंह रावल शाखा का अंतिम शासक था।
रावल रतनसिंह के समकालीन दिल्ली सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी ने साम्राज्यवादी नीति के तहत चित्तौड पर 1303 में आक्रमण किया। इस युद्ध में 26 अगस्त, 1303 ईस्वीसन् को रतनसिंह, गोरा, एवं बादल हुये मारे गये तथा महारानी पद्मिनी व अन्य रानियों ने 1600 महिलाओं के साथ जौहर किया। यह चित्तौड़ का प्रथम साका था। मलिक मुहम्मद जायसी के 'पद्मावत' ग्रंथ' के अनुसार यह युद्ध राघव चेतन के कहने पर रावल रतनसिंह की रूपवती महारानी पद्मिनी की चाह में किया गया।
इस युद्ध का सजीव चित्रण प्रसिद्ध इतिहासकार एवं कवि अमीर खुसरो ने किया क्योंकि अमीर खुसरो इस युद्ध के समय खिलजी के साथ था।
अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का नाम अपने पुत्र खिज्र खाँ के नाम पर 'खिज्राबाद' रखकर उसे वहाँ का शासक अपने पुत्र खिज्र खाँ को बनाया और चित्तौड़गढ़, पुत्र खिज्र खां को सौप कर दिल्ली चले गए। अलाउद्दीन खिलजी के बीमार हो जाने पर खिज्र खां दुर्ग की जिम्मेदारी मुछला मालदेव को सौपकर दिल्ली चला गया। मालदेव ने दुर्ग की जिम्मेदारी अपने पुत्र जयसिंह को सौंप दी।
राणा हम्मीर देव (1326-1363 ईस्वीसन्) -
राणा हम्मीर देव ने मालदेव के पुत्र जयसिंह को 1326 में हराकर मेवाड़ में सिसोदिया वंश की स्थापना की थी, इसलिए राणा हम्मीर देव को 'मेवाड़ का उद्दारक, सिसोदिया साम्राज्य का संस्थापक' कहते हैं।
कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति में राणा हम्मीर देव को विषम घाटी पंचानन कुम्भा द्वारा निर्मित गीत गोविन्द पुस्तक की टीका 'रसिक प्रिया' में इसे 'वीर राजा' की उपाधि दी गई है। राणा हम्मीर देव के समय से चित्तौड़ पर राणा शाखा ने शासन करना शुरू किया। हम्मीर सिसोदिया ने 'सिंगोली के युद्ध' दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक को पराजित किया। राणा हम्मीर देव ने चित्तौड़ में अन्नपूर्णा मंदिर का निर्माण करवाया था।
राणा लाखा (1382-1421 ईस्वीसन्) -
इसकी शादी वृद्धावस्था में मारवाड़ के रावचूड़ा की पुत्री व रणमल राठौड़ की बहन हंसाबाई से सशर्त हुई थी। महाराणा लाखा का बड़ा पुत्र व हंसाबाई का सौतेला पुत्र राणा चूंडा था। राणा चूंडा ने मेवाड़ का राज्य हंसा बाई के होने वाले पुत्र को देने व जीवन भर कुँवारा रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की थी, इसलिए राणा चूड़ा को 'मेवाड़ का भीष्म पितामहm या राजस्थान का भीष्म' कहा जाता है। महाराणा लाखा एवं हंसाबाई के मोकल नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। राणा लाखा के शासन काल में जावर में चांदी की खान निकली थी। राणा लाखा के शासन काल में छीतर यानी (पिच्छू) नामक बंजारे ने पिछोला झील का निर्माण करवाया था।
राणा मोकल (1421-1433 ईस्वीसन्) -
राणा मोकल की राजमाता हंसाबाई तथा इसका संरक्षक चूड़ा था। 1433 ईस्वीसन् में अहमद खाँ के साथ हो रहे जीलवाड़ा युद्ध के मैदान में महपा पंवार के कहने पर चाचा ने इनकी हत्या कर दी। मोकल की रानी कमलावती ने युद्ध में अहमदशाह के सामना किया था तथा रानी सौभाग्यवती कुम्भा को लेकर चित्तोड़ चली गयी। महाराणा मोकल ने समिद्धेश्वर मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया तथा द्वारिकानाथ मंदिर का निर्माण करवाया था।
तो आज के वीडियो में इतना ही, मिलते है अगले वीडियो में तब तक के लिए धन्यवाद।
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रावल रतनसिंह ( १३०१-1303 ईस्वीसन्) -
रावल रतनसिंह रावल शाखा का अंतिम शासक था।
रावल रतनसिंह के समकालीन दिल्ली सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी ने साम्राज्यवादी नीति के तहत चित्तौड पर 1303 में आक्रमण किया। इस युद्ध में 26 अगस्त, 1303 ईस्वीसन् को रतनसिंह, गोरा, एवं बादल हुये मारे गये तथा महारानी पद्मिनी व अन्य रानियों ने 1600 महिलाओं के साथ जौहर किया। यह चित्तौड़ का प्रथम साका था। मलिक मुहम्मद जायसी के 'पद्मावत' ग्रंथ' के अनुसार यह युद्ध राघव चेतन के कहने पर रावल रतनसिंह की रूपवती महारानी पद्मिनी की चाह में किया गया।
इस युद्ध का सजीव चित्रण प्रसिद्ध इतिहासकार एवं कवि अमीर खुसरो ने किया क्योंकि अमीर खुसरो इस युद्ध के समय खिलजी के साथ था।
अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का नाम अपने पुत्र खिज्र खाँ के नाम पर 'खिज्राबाद' रखकर उसे वहाँ का शासक अपने पुत्र खिज्र खाँ को बनाया और चित्तौड़गढ़, पुत्र खिज्र खां को सौप कर दिल्ली चले गए। अलाउद्दीन खिलजी के बीमार हो जाने पर खिज्र खां दुर्ग की जिम्मेदारी मुछला मालदेव को सौपकर दिल्ली चला गया। मालदेव ने दुर्ग की जिम्मेदारी अपने पुत्र जयसिंह को सौंप दी।
राणा हम्मीर देव (1326-1363 ईस्वीसन्) -
राणा हम्मीर देव ने मालदेव के पुत्र जयसिंह को 1326 में हराकर मेवाड़ में सिसोदिया वंश की स्थापना की थी, इसलिए राणा हम्मीर देव को 'मेवाड़ का उद्दारक, सिसोदिया साम्राज्य का संस्थापक' कहते हैं।
कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति में राणा हम्मीर देव को विषम घाटी पंचानन कुम्भा द्वारा निर्मित गीत गोविन्द पुस्तक की टीका 'रसिक प्रिया' में इसे 'वीर राजा' की उपाधि दी गई है। राणा हम्मीर देव के समय से चित्तौड़ पर राणा शाखा ने शासन करना शुरू किया। हम्मीर सिसोदिया ने 'सिंगोली के युद्ध' दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक को पराजित किया। राणा हम्मीर देव ने चित्तौड़ में अन्नपूर्णा मंदिर का निर्माण करवाया था।
राणा लाखा (1382-1421 ईस्वीसन्) -
इसकी शादी वृद्धावस्था में मारवाड़ के रावचूड़ा की पुत्री व रणमल राठौड़ की बहन हंसाबाई से सशर्त हुई थी। महाराणा लाखा का बड़ा पुत्र व हंसाबाई का सौतेला पुत्र राणा चूंडा था। राणा चूंडा ने मेवाड़ का राज्य हंसा बाई के होने वाले पुत्र को देने व जीवन भर कुँवारा रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की थी, इसलिए राणा चूड़ा को 'मेवाड़ का भीष्म पितामहm या राजस्थान का भीष्म' कहा जाता है। महाराणा लाखा एवं हंसाबाई के मोकल नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। राणा लाखा के शासन काल में जावर में चांदी की खान निकली थी। राणा लाखा के शासन काल में छीतर यानी (पिच्छू) नामक बंजारे ने पिछोला झील का निर्माण करवाया था।
राणा मोकल (1421-1433 ईस्वीसन्) -
राणा मोकल की राजमाता हंसाबाई तथा इसका संरक्षक चूड़ा था। 1433 ईस्वीसन् में अहमद खाँ के साथ हो रहे जीलवाड़ा युद्ध के मैदान में महपा पंवार के कहने पर चाचा ने इनकी हत्या कर दी। मोकल की रानी कमलावती ने युद्ध में अहमदशाह के सामना किया था तथा रानी सौभाग्यवती कुम्भा को लेकर चित्तोड़ चली गयी। महाराणा मोकल ने समिद्धेश्वर मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया तथा द्वारिकानाथ मंदिर का निर्माण करवाया था।
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