रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 83 - पाण्डवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ का निर्माण
https://youtu.be/6NmX-ActJ20
बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏
Watch the video song of ''Darshan Do Bhagwaan'' here - https://youtu.be/j7EQePGkak0
Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 83 - Pandavon Ki Rajdhani Indraprasth Ki Nirmaan.
पांचाल राज्य में पाण्डव ब्राह्मण के छद्मवेश में रहते हैं और राजकुमारी द्रौपदी के स्वयंवर में जाते हैं। वहाँ अर्जुन बाण से मछली की आँख भेदकर स्वयंवर की शर्त पूरी करते हैं और द्रौपदी का वरण करते हैं। इसके बाद पाण्डव के लाक्षागृह की आग से सुरक्षित बच निकलने और जीवित होने का समाचार चारों ओर फैल जाता है। महाराज धृतराष्ट्र और महारानी गांधारी पुत्रवधू द्रौपदी समेत कुन्ती, पाण्डवों व श्रीकृष्ण को हस्तिनापुर आने का न्यौता भेजते हैं। हस्तिनापुर अपनी नयी रानी द्रौपदी का स्वागत करता है। महाराज धृतराष्ट्र से भेंट में पांचाल राजकुमार धृष्टद्युम्न पाण्डवों और कौरवों के बीच हस्तिनापुर राज्य बाँटने की माँग उठाता है। इस पर धृतराष्ट्र उपहास पूर्वक कहता है कि तो पांचाल के राजकुमार हमारे राज्य का बँटवारा कराने आये हैं। श्रीकृष्ण बात सम्भालते हुए कहते हैं कि राजकुमार धृष्टद्युम्न पाण्डवों को एक स्वतन्त्र राज्य का राजा देखना चाहते हैं और अपनी बहन द्रौपदी को पटरानी। आप पाण्डवों को कोई भी भूभाग सौंप दीजिये, वह उन्हें स्वीकार होगा। धृतराष्ट्र शकुनि के धूर्ततापूर्ण परामर्श पर कुरुवंश के पूर्वजों के खण्डहर हो चुके पुराने महल खाण्डवा वन और उससे लगा अनुपयोगी भूभाग पाण्डवों को देने की घोषणा कर देता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि हमें आपका यह निर्णय स्वीकार है क्योंकि इतिहास साक्षी है कि शौर्यवान राजाओं ने अपनी भुजाओं के बल से नयी-नयी राजधानियों का निर्माण किया है। अर्जुन खण्डहर में बदल चुके खाण्डवप्रस्थ की बदहाली देखकर निराश होता है किन्तु श्रीकृष्ण देव शिल्पी विश्वकर्मा का आह्वान करते हैं और उनसे पाण्डवों के लिये एक भव्य राजधानी का निर्माण करने को कहते हैं। विश्वकर्मा बताते हैं कि पूर्वकाल में दानवों के शिल्पी मय दानव ने ही खाण्डवप्रस्थ को बनाया था। वे इस भूमि के चप्पे चप्पे से परिचित हैं। वह मेरे मित्र भी हैं। देवशिल्पी विश्वकर्मा दैत्य शिल्पी मय दानव को बुलाते हैं। मयदानव उन्हें बताता है कि सबसे पहले दैत्यराज वृषपर्वा के लिये मैंने ही खाण्डवप्रस्थ का निर्माण किया था और बाद में अनेक वर्षों तक यहाँ सूर्यवंशी राजाओं का शासन रहा। इस धरती के गर्भ में दैत्यवंश की अकूत सम्पदा छिपी है। यदि वह सम्पदा मिल जाये तो इस खण्डहर में भी एक भव्य नगर का निर्माण हो सकता है। किन्तु उस खजाने की रक्षा नाराज तक्षक करते हैं। श्रीकृष्ण के आदेश पर मय दानव उन सभी को तलघर के गुप्त मार्ग से ले जाता है। एक स्थान पर तक्षक नाग उनका रास्ता रोकता है और अपनी फुंकार से अर्जुन को पीछे ढकेल देता है किन्तु उसे कोई क्षति नहीं पहुँचाता। मय दानव बताता है कि तक्षक इन्द्रदेव के मित्र हैं। वह इन्द्र के अतिरिक्त किसी अन्य की बात नहीं मानेंगे। तब श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि नागराज ने तुम्हें इसलिये आघात नहीं पहुँचाया कि वे इन्द्र के मित्र हैं और तुम इन्द्र के औरस पुत्र हो। इसके बाद श्रीकृष्ण इन्द्र का आह्वान करते हैं। इन्द्र के प्रकट होने पर अर्जुन अपने धर्म पिता के चरण स्पर्श करता है। इन्द्र नागराज तक्षक से खाण्डवप्रस्थ छोड़कर परिवार सहित कुरुक्षेत्र में रहने का अनुरोध करते हैं। तक्षक वहाँ से चला जाता है। इन्द्र खाण्डवप्रस्थ श्रीकृष्ण को सौंपते हैं। श्रीकृष्ण इन्द्र के इस सहयोग के बदले में घोषणा करते हैं कि पाण्डवों की इस नयी राजधानी का नाम अब इन्द्रप्रस्थ होगा। इन्द्र भी वचन देते हैं कि मैं पाण्डवों की राजधानी में कभी सूखा या अकाल नहीं पड़ने दूँगा। तत्पश्चात मय दानव सबको दैत्यों के खजाने तक ले जाता है। वह पूर्वकाल के महाराजा सोम का स्वर्ण रथ भी दिखाता है। यह स्वर्ण रथ अपने सवार को किसी भी मनचाही स्थान पर ले जाने में समर्थ है। रथ पर अद्भुत प्रहार की क्षमता वाली कौमुक गदा भी रखी है। मयदानव कहता है कि इस समय केवल भीम के पास इस गदा को उठाने की शक्ति है। मयदानव गाण्डीव धनुष भी दिखाता है जिसे दैत्यराज वृषपर्वा ने भगवान शंकर को प्रसन्न कर वरदान में प्राप्त किया था। इस धनुष के साथ कभी खत्म न होने वाले बाणों से भरा तरकस भी है जिसे अग्निदेव ने दिया था। श्रीकृष्ण अर्जुन से गाण्डीव धारण करने को कहते हैं। मयदानव सारी सम्पदा पाण्डवों के लिये सौंपता है। इसके बाद देवशिल्पी विश्वकर्मा और दैत्यशिल्पी मय मिलकर खाण्डवप्रस्थ का कायाकल्प करते हैं। स्वयं माँ सरस्वती दोनों शिल्पियों के मानस में आ विराजती हैं और नये इन्द्रप्रस्थ की वास्तुकला को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करती हैं। रात्रि में श्रीकृष्ण और अर्जुन नवनिर्मित नगरी का अवलोकन करने निकलते हैं और इसकी भव्यता देखकर अत्यन्त मुदित होते हैं।
In association with Divo - our YouTube Partner
#SriKrishna #SriKrishnaonYouTube
Видео रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 83 - पाण्डवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ का निर्माण канала Tilak
बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏
Watch the video song of ''Darshan Do Bhagwaan'' here - https://youtu.be/j7EQePGkak0
Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 83 - Pandavon Ki Rajdhani Indraprasth Ki Nirmaan.
पांचाल राज्य में पाण्डव ब्राह्मण के छद्मवेश में रहते हैं और राजकुमारी द्रौपदी के स्वयंवर में जाते हैं। वहाँ अर्जुन बाण से मछली की आँख भेदकर स्वयंवर की शर्त पूरी करते हैं और द्रौपदी का वरण करते हैं। इसके बाद पाण्डव के लाक्षागृह की आग से सुरक्षित बच निकलने और जीवित होने का समाचार चारों ओर फैल जाता है। महाराज धृतराष्ट्र और महारानी गांधारी पुत्रवधू द्रौपदी समेत कुन्ती, पाण्डवों व श्रीकृष्ण को हस्तिनापुर आने का न्यौता भेजते हैं। हस्तिनापुर अपनी नयी रानी द्रौपदी का स्वागत करता है। महाराज धृतराष्ट्र से भेंट में पांचाल राजकुमार धृष्टद्युम्न पाण्डवों और कौरवों के बीच हस्तिनापुर राज्य बाँटने की माँग उठाता है। इस पर धृतराष्ट्र उपहास पूर्वक कहता है कि तो पांचाल के राजकुमार हमारे राज्य का बँटवारा कराने आये हैं। श्रीकृष्ण बात सम्भालते हुए कहते हैं कि राजकुमार धृष्टद्युम्न पाण्डवों को एक स्वतन्त्र राज्य का राजा देखना चाहते हैं और अपनी बहन द्रौपदी को पटरानी। आप पाण्डवों को कोई भी भूभाग सौंप दीजिये, वह उन्हें स्वीकार होगा। धृतराष्ट्र शकुनि के धूर्ततापूर्ण परामर्श पर कुरुवंश के पूर्वजों के खण्डहर हो चुके पुराने महल खाण्डवा वन और उससे लगा अनुपयोगी भूभाग पाण्डवों को देने की घोषणा कर देता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि हमें आपका यह निर्णय स्वीकार है क्योंकि इतिहास साक्षी है कि शौर्यवान राजाओं ने अपनी भुजाओं के बल से नयी-नयी राजधानियों का निर्माण किया है। अर्जुन खण्डहर में बदल चुके खाण्डवप्रस्थ की बदहाली देखकर निराश होता है किन्तु श्रीकृष्ण देव शिल्पी विश्वकर्मा का आह्वान करते हैं और उनसे पाण्डवों के लिये एक भव्य राजधानी का निर्माण करने को कहते हैं। विश्वकर्मा बताते हैं कि पूर्वकाल में दानवों के शिल्पी मय दानव ने ही खाण्डवप्रस्थ को बनाया था। वे इस भूमि के चप्पे चप्पे से परिचित हैं। वह मेरे मित्र भी हैं। देवशिल्पी विश्वकर्मा दैत्य शिल्पी मय दानव को बुलाते हैं। मयदानव उन्हें बताता है कि सबसे पहले दैत्यराज वृषपर्वा के लिये मैंने ही खाण्डवप्रस्थ का निर्माण किया था और बाद में अनेक वर्षों तक यहाँ सूर्यवंशी राजाओं का शासन रहा। इस धरती के गर्भ में दैत्यवंश की अकूत सम्पदा छिपी है। यदि वह सम्पदा मिल जाये तो इस खण्डहर में भी एक भव्य नगर का निर्माण हो सकता है। किन्तु उस खजाने की रक्षा नाराज तक्षक करते हैं। श्रीकृष्ण के आदेश पर मय दानव उन सभी को तलघर के गुप्त मार्ग से ले जाता है। एक स्थान पर तक्षक नाग उनका रास्ता रोकता है और अपनी फुंकार से अर्जुन को पीछे ढकेल देता है किन्तु उसे कोई क्षति नहीं पहुँचाता। मय दानव बताता है कि तक्षक इन्द्रदेव के मित्र हैं। वह इन्द्र के अतिरिक्त किसी अन्य की बात नहीं मानेंगे। तब श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि नागराज ने तुम्हें इसलिये आघात नहीं पहुँचाया कि वे इन्द्र के मित्र हैं और तुम इन्द्र के औरस पुत्र हो। इसके बाद श्रीकृष्ण इन्द्र का आह्वान करते हैं। इन्द्र के प्रकट होने पर अर्जुन अपने धर्म पिता के चरण स्पर्श करता है। इन्द्र नागराज तक्षक से खाण्डवप्रस्थ छोड़कर परिवार सहित कुरुक्षेत्र में रहने का अनुरोध करते हैं। तक्षक वहाँ से चला जाता है। इन्द्र खाण्डवप्रस्थ श्रीकृष्ण को सौंपते हैं। श्रीकृष्ण इन्द्र के इस सहयोग के बदले में घोषणा करते हैं कि पाण्डवों की इस नयी राजधानी का नाम अब इन्द्रप्रस्थ होगा। इन्द्र भी वचन देते हैं कि मैं पाण्डवों की राजधानी में कभी सूखा या अकाल नहीं पड़ने दूँगा। तत्पश्चात मय दानव सबको दैत्यों के खजाने तक ले जाता है। वह पूर्वकाल के महाराजा सोम का स्वर्ण रथ भी दिखाता है। यह स्वर्ण रथ अपने सवार को किसी भी मनचाही स्थान पर ले जाने में समर्थ है। रथ पर अद्भुत प्रहार की क्षमता वाली कौमुक गदा भी रखी है। मयदानव कहता है कि इस समय केवल भीम के पास इस गदा को उठाने की शक्ति है। मयदानव गाण्डीव धनुष भी दिखाता है जिसे दैत्यराज वृषपर्वा ने भगवान शंकर को प्रसन्न कर वरदान में प्राप्त किया था। इस धनुष के साथ कभी खत्म न होने वाले बाणों से भरा तरकस भी है जिसे अग्निदेव ने दिया था। श्रीकृष्ण अर्जुन से गाण्डीव धारण करने को कहते हैं। मयदानव सारी सम्पदा पाण्डवों के लिये सौंपता है। इसके बाद देवशिल्पी विश्वकर्मा और दैत्यशिल्पी मय मिलकर खाण्डवप्रस्थ का कायाकल्प करते हैं। स्वयं माँ सरस्वती दोनों शिल्पियों के मानस में आ विराजती हैं और नये इन्द्रप्रस्थ की वास्तुकला को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करती हैं। रात्रि में श्रीकृष्ण और अर्जुन नवनिर्मित नगरी का अवलोकन करने निकलते हैं और इसकी भव्यता देखकर अत्यन्त मुदित होते हैं।
In association with Divo - our YouTube Partner
#SriKrishna #SriKrishnaonYouTube
Видео रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 83 - पाण्डवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ का निर्माण канала Tilak
Показать
Комментарии отсутствуют
Информация о видео
Другие видео канала
श्री हनुमान दादा- स्वामीनारायण मंदिर बिलिया। Hanuman Dada Mandir। Gujarat Hanuman Mandir। 4K। दर्शनआज धर्म और पाप की लड़ायी है - Lyrical | Aaj Dharam Aur Paap Ki Ladayi Hai - Part 1 | Tilakविजया विष से भरा ये फल जब खायेगी तब पता चलेगा कि ये प्रसाद क्या है | Jai Mahalaxmi Samvadअयि गिरिनन्दिनि- महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र | मधुबंती बागची - 4 #shortsShiv Parvati Vivah | Ravindra Jain | Bhajan | Tilakमैं एक माँ हूँ, केवल एक अभागन माँ, जिसके आँचल के फूल को उसी बगिया के माली ने अपने हाथों से नोच डालाइक दिन शिव ही मनावन लागे, गिरी कैलाश उठावन लागे | रामायण | तिलक 🙏#shortsप्रेम तो किसी दूसरे से किया जाता है | Shree Krishna Samvad | श्री कृष्ण संवादजो जिस रूप में प्रभु को ध्याता है उसी रूप में प्रभु प्राप्त होते हैं | Shree Krishna Samvadअगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी- रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् | शिव तांडव स्तोत्र | तिलक 🙏जो होता है वह अच्छे के लिए होता है | Ramayan Dialogues | रामायण डायलोग #Shortsमन को वश में करने हेतु अभ्यास और वैराग्य को अपना पड़ता है | Shree Krishna | Geeta Updesh #Shortsमनुष्य के दृढ़ संकल्प के आगे कुछ भी असंभव नहीं | Shree Krishna Samvad | श्री कृष्ण संवादRamayan Dialogue Status । रामायण डायलॉग | Raavan | रावणPowerful Krishna Mantra Krishnaye Vasudevaye Peaceful Lofi Version। कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मनेब्रह्मन् यह जानते हुए कि सीता सर्वथा निष्पाप है, मैने समाज के भय से इन्हे छोड़ दिया | श्री रामराम जिसके ईश्वर हैं वही रामेश्वर हैं | Ramayan Samvad | रामायण संवादइस सृष्टि के अच्छे बुरे हर प्राणी में हम ही हैं | Shree Krishna Samvad | श्री कृष्ण संवादजय गंगा मैया कथा | ब्रह्म जी ने असुरों से धर्म की रक्षा के लिए विष्णु जी से की प्रार्थनावही सुरक्षित है जिसकी सुरक्षा धर्म के द्वारा हो | Shree Krishna Samvad | श्री कृष्ण संवाददुर्भाग्य की संक्षिप्त व्याख्या | Shree Krishna Samvad | श्री कृष्ण संवाद