किस मुग़ल बादशाह ने टेके श्रीनाथजी के आगे घुटने? | Story of ShriNath ji | | श्री नाथ जी की कहानी |
नाथद्वारा स्थित श्रीनाथ जी का मंदिर पुरे विश्वभर में अपनी एक अलग छवि रखता है। हर साल लाखो-करोड़ो लोग श्रीनाथ जी के दर्शन हेतु नाथद्वारा आते है। यहां श्रीनाथजी कृष्ण का एक रूप हैं, जो सात साल के बालक के रूप में प्रकट होते हैं। श्रीनाथजी का ये मंदिर राजस्थान के उदयपुर शहर से 48 किलोमीटर दूर नाथद्वारा शहर में स्थित है। श्रीनाथजी असल में वैष्णव सम्प्रदाय के मुख्य देवता हैं जिन्हें पुष्टिमार्ग या वल्लभाचार्य द्वारा स्थापित वल्लभ सम्प्रदाय के रूप में जाना जाता है।
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श्रीनाथजी श्रीकृष्ण भगवान के ७ वर्ष की अवस्था के रूप हैं। श्रीनाथजी हिंदू भगवान कृष्ण का एक रूप हैं, जो सात साल के बच्चे (बालक) के रूप में प्रकट होते हैं।श्रीनाथजी का प्रमुख मंदिर राजस्थान के उदयपुर शहर से 48 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित नाथद्वारा के मंदिर शहर में स्थित है। श्रीनाथजी वैष्णव सम्प्रदाय के केंद्रीय पीठासीन देव हैं जिन्हें पुष्टिमार्ग (कृपा का मार्ग) या वल्लभाचार्य द्वारा स्थापित वल्लभ सम्प्रदाय के रूप में जाना जाता है। श्रीनाथजी को मुख्य रूप से भक्ति योग के अनुयायियों और गुजरात और राजस्थान में वैष्णव और भाटिया एवं अन्य लोगों द्वारा पूजा जाता है।[
वल्लभाचार्य के पुत्र विठ्ठलनाथजी ने नाथद्वारा में श्रीनाथजी की पूजा को संस्थागत रूप दिया। श्रीनाथजी की लोकप्रियता के कारण, नाथद्वारा शहर को 'श्रीनाथजी' के नाम से जाना जाता है। लोग इसे बावा की (श्रीनाथजी बावा) नगरी भी कहते हैं। प्रारंभ में, बाल कृष्ण रूप को देवदमन (देवताओं का विजेता - कृष्ण द्वारा गोवर्धन पहाड़ी के उठाने में इंद्र की अति-शक्ति का उल्लेख) के रूप में संदर्भित किया गया था। वल्लभाचार्य ने उनका नाम गोपाल रखा और उनकी पूजा का स्थान 'गोपालपुर' रखा। बाद में, विट्ठलनाथजी ने उनका नाम श्रीनाथजी रखा। श्रीनाथजी की सेवा दिन के 8 भागों में की जाती है।
यहां कृष्ण भगवान के एक अद्भुत स्वरूप के दर्शन भक्तों को होतें है। यहां विराजित विग्रह की सबसे खास बात है श्रीनाथ जी दाड़ी में जड़ा बेशकीमती हीरा। दर्शन के दौरान श्रद्धालु श्रीनाथ जी की दाढ़ी में लगे हीरे को देखते ही रह जाते है। ये हीरा भगवान की दाढ़ी तक कैसे पहुंचा इसे लेकर एक रोचक किस्सा सुनाया जाता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार जब औरंगजेब श्रीनाथ जी की मूर्ति को खंडित करने मंदिर में आया था तो मंदिर की सीढ़ियां चढ़ते ही अँधा हो गया था। उसकी आँखों की रोशनी जब किसी भी प्रयास से वापस नही लौटी तब किसी संतन ने उसे बताया कि श्रीनाथ से जाकर क्षमा मांगो तभी आँखों में रोशनी लौट सकती है। यब उसने मंदिर में जाकर भगवान से क्षमायाचना की और मंदिर की सीढ़ियों कोअपनी दाड़ी से साफ किया। जैसे ही उसने आखिरी सीडी को साफ किया उसकी आँखो की रोशनी लौट आयी।
नाथद्वारा में भगवान श्री कृष्ण के पधारने को लेकर भी एक रोचक कहानी सुनाई जाती है।
कहतें है श्रीनाथ जी मेवाड़ पधारने से पहले गोवर्धन में गिरिराज पर्वत पर निवास करते थे। एक दिन श्रीनाथजी पर्वत पर बैठकर मुरली बजा रहे थे और उनके एक भक्त गोविंदस्वामी दूर से ये दृश्य देख रहे थे। उस समय मंदिर के पट खुलने का समय हो गया। श्रीनाथ जी ने देखा कि पुजारी मन्दिर की तरफ पट खोलने जा रहे हैं। ये देखकर श्रीनाथ वहां से कूदकर तेजी से मंदिर की तरफ दौड़े। इसी जल्दबाजी में उनके दामन का एक टुकड़ा वहीं झाड़ पर उलझकर लटका रह गया। वे मंदिर में जाकर खड़े हो गए। पुजारी ने जब दर्शन के लिए पट खोले तो देखा कि श्रीनाथ जी का दुपट्टा फटा हुआ है। उन्होंने सब से पूछा कोई मंदिर के भीतर गया था क्या? तो सबने कहा नहीं महाराज, पट बंद थे तो कोई भीतर कैसे जा सकता है?
श्रीनाथजी के अनुयायियों का हिंदू कलाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव है, उनके द्वारा विकसित की गईं पिछवाई चित्रों के रूप में। ये चित्र कपड़े,कागज, दीवारों या मंदिरों की झूलन के रूप में हो सकती हैं। ये बारीक एवं रंगीन भक्ति वस्त्र हैं जो श्रीनाथजी की छवि पर केन्द्रित हैं। नाथद्वारा पिचवाई कला, नाथद्वारा पेंटिंग का केंद्र है। नाथद्वारा शहर की राजस्थानी शैली के लिए जाना जाता है, जिसे "पिचवाई पेंटिंग" कहा जाता है। इन पिचवाइ चित्रों को नाथद्वारा के प्रसिद्ध समकालीन कलाकारों द्वारा नाथद्वारा मंदिर के चारों ओर की दीवार पर चित्रित किया गया है।
तब गोविन्द स्वामी आकर बोले बिहारी जी तो वहां खेलते खेलते बंसी बजा रहे थे, विश्वास ना हो तो आकर देखलो। इनके दुपट्टे का टुकड़ा वहीं लटका है। जब पुजारी ने खुद वहां जाकर देखा तो टुकड़ा वहीं था। उन्होंने पुनः आकर श्रीनाथ जी से पूछा की प्रभु! इतना उतावलापन क्यों किया। तब श्रीनाथ जी ने कहा कि मैं तो वहा बैठा था। आपको स्नान करके मन्दिर आते देखा तो दौड़ लगानी पड़ी। वहीं गिरते गिरते बचा और दुपट्टे का टुकड़ा वहीं रह गया। तब तब से पुजारी ने ऐसी व्यवस्था कर दी कि तीन बार घंटा बजाने, तीन बार शंखनाद कर और कुछ देर रुककर ही ठाकुरजी का द्वार खोला जाए जिससे ठाकुर जी जहां कहीं भी हों, आराम से आ सकें। इसी कारण आज भी नाथद्वारा में श्रीनाथ जी के पट खोलने के कुछ देर पहले शंखनाद होता है, फिर कुछ घड़ी रुककर दर्शन के लिए पट खोले जाते हैं।
पूरी दुनियाभर में कृष्ण का ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां श्रीकृष्ण को 21 टोपों की सलामी दी जाती है। ऐसी मान्यता है कि यहां के पूरे इलाके में ये इकलौता ऐसा शहर है जिसके राजा कोई और नहीं बल्कि खुद श्रीनाथ जी हैं। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है कि यहां चावल के दानों में भक्तों को श्रीनाथजी के दर्शन होते हैं। इसलिए लोग यहां से चावलों के दाने लेकर जाते हैं और अपने घरों की तिज़ोरी में रखते हैं। आप भी भगवान कृष्ण के इस अद्भुत धाम के दर्शन अवश्य करें और वीडियो पसन्द आये तो इसे आगे शेयर कीजिये, धन्यवाद!!
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श्रीनाथजी श्रीकृष्ण भगवान के ७ वर्ष की अवस्था के रूप हैं। श्रीनाथजी हिंदू भगवान कृष्ण का एक रूप हैं, जो सात साल के बच्चे (बालक) के रूप में प्रकट होते हैं।श्रीनाथजी का प्रमुख मंदिर राजस्थान के उदयपुर शहर से 48 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित नाथद्वारा के मंदिर शहर में स्थित है। श्रीनाथजी वैष्णव सम्प्रदाय के केंद्रीय पीठासीन देव हैं जिन्हें पुष्टिमार्ग (कृपा का मार्ग) या वल्लभाचार्य द्वारा स्थापित वल्लभ सम्प्रदाय के रूप में जाना जाता है। श्रीनाथजी को मुख्य रूप से भक्ति योग के अनुयायियों और गुजरात और राजस्थान में वैष्णव और भाटिया एवं अन्य लोगों द्वारा पूजा जाता है।[
वल्लभाचार्य के पुत्र विठ्ठलनाथजी ने नाथद्वारा में श्रीनाथजी की पूजा को संस्थागत रूप दिया। श्रीनाथजी की लोकप्रियता के कारण, नाथद्वारा शहर को 'श्रीनाथजी' के नाम से जाना जाता है। लोग इसे बावा की (श्रीनाथजी बावा) नगरी भी कहते हैं। प्रारंभ में, बाल कृष्ण रूप को देवदमन (देवताओं का विजेता - कृष्ण द्वारा गोवर्धन पहाड़ी के उठाने में इंद्र की अति-शक्ति का उल्लेख) के रूप में संदर्भित किया गया था। वल्लभाचार्य ने उनका नाम गोपाल रखा और उनकी पूजा का स्थान 'गोपालपुर' रखा। बाद में, विट्ठलनाथजी ने उनका नाम श्रीनाथजी रखा। श्रीनाथजी की सेवा दिन के 8 भागों में की जाती है।
यहां कृष्ण भगवान के एक अद्भुत स्वरूप के दर्शन भक्तों को होतें है। यहां विराजित विग्रह की सबसे खास बात है श्रीनाथ जी दाड़ी में जड़ा बेशकीमती हीरा। दर्शन के दौरान श्रद्धालु श्रीनाथ जी की दाढ़ी में लगे हीरे को देखते ही रह जाते है। ये हीरा भगवान की दाढ़ी तक कैसे पहुंचा इसे लेकर एक रोचक किस्सा सुनाया जाता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार जब औरंगजेब श्रीनाथ जी की मूर्ति को खंडित करने मंदिर में आया था तो मंदिर की सीढ़ियां चढ़ते ही अँधा हो गया था। उसकी आँखों की रोशनी जब किसी भी प्रयास से वापस नही लौटी तब किसी संतन ने उसे बताया कि श्रीनाथ से जाकर क्षमा मांगो तभी आँखों में रोशनी लौट सकती है। यब उसने मंदिर में जाकर भगवान से क्षमायाचना की और मंदिर की सीढ़ियों कोअपनी दाड़ी से साफ किया। जैसे ही उसने आखिरी सीडी को साफ किया उसकी आँखो की रोशनी लौट आयी।
नाथद्वारा में भगवान श्री कृष्ण के पधारने को लेकर भी एक रोचक कहानी सुनाई जाती है।
कहतें है श्रीनाथ जी मेवाड़ पधारने से पहले गोवर्धन में गिरिराज पर्वत पर निवास करते थे। एक दिन श्रीनाथजी पर्वत पर बैठकर मुरली बजा रहे थे और उनके एक भक्त गोविंदस्वामी दूर से ये दृश्य देख रहे थे। उस समय मंदिर के पट खुलने का समय हो गया। श्रीनाथ जी ने देखा कि पुजारी मन्दिर की तरफ पट खोलने जा रहे हैं। ये देखकर श्रीनाथ वहां से कूदकर तेजी से मंदिर की तरफ दौड़े। इसी जल्दबाजी में उनके दामन का एक टुकड़ा वहीं झाड़ पर उलझकर लटका रह गया। वे मंदिर में जाकर खड़े हो गए। पुजारी ने जब दर्शन के लिए पट खोले तो देखा कि श्रीनाथ जी का दुपट्टा फटा हुआ है। उन्होंने सब से पूछा कोई मंदिर के भीतर गया था क्या? तो सबने कहा नहीं महाराज, पट बंद थे तो कोई भीतर कैसे जा सकता है?
श्रीनाथजी के अनुयायियों का हिंदू कलाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव है, उनके द्वारा विकसित की गईं पिछवाई चित्रों के रूप में। ये चित्र कपड़े,कागज, दीवारों या मंदिरों की झूलन के रूप में हो सकती हैं। ये बारीक एवं रंगीन भक्ति वस्त्र हैं जो श्रीनाथजी की छवि पर केन्द्रित हैं। नाथद्वारा पिचवाई कला, नाथद्वारा पेंटिंग का केंद्र है। नाथद्वारा शहर की राजस्थानी शैली के लिए जाना जाता है, जिसे "पिचवाई पेंटिंग" कहा जाता है। इन पिचवाइ चित्रों को नाथद्वारा के प्रसिद्ध समकालीन कलाकारों द्वारा नाथद्वारा मंदिर के चारों ओर की दीवार पर चित्रित किया गया है।
तब गोविन्द स्वामी आकर बोले बिहारी जी तो वहां खेलते खेलते बंसी बजा रहे थे, विश्वास ना हो तो आकर देखलो। इनके दुपट्टे का टुकड़ा वहीं लटका है। जब पुजारी ने खुद वहां जाकर देखा तो टुकड़ा वहीं था। उन्होंने पुनः आकर श्रीनाथ जी से पूछा की प्रभु! इतना उतावलापन क्यों किया। तब श्रीनाथ जी ने कहा कि मैं तो वहा बैठा था। आपको स्नान करके मन्दिर आते देखा तो दौड़ लगानी पड़ी। वहीं गिरते गिरते बचा और दुपट्टे का टुकड़ा वहीं रह गया। तब तब से पुजारी ने ऐसी व्यवस्था कर दी कि तीन बार घंटा बजाने, तीन बार शंखनाद कर और कुछ देर रुककर ही ठाकुरजी का द्वार खोला जाए जिससे ठाकुर जी जहां कहीं भी हों, आराम से आ सकें। इसी कारण आज भी नाथद्वारा में श्रीनाथ जी के पट खोलने के कुछ देर पहले शंखनाद होता है, फिर कुछ घड़ी रुककर दर्शन के लिए पट खोले जाते हैं।
पूरी दुनियाभर में कृष्ण का ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां श्रीकृष्ण को 21 टोपों की सलामी दी जाती है। ऐसी मान्यता है कि यहां के पूरे इलाके में ये इकलौता ऐसा शहर है जिसके राजा कोई और नहीं बल्कि खुद श्रीनाथ जी हैं। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है कि यहां चावल के दानों में भक्तों को श्रीनाथजी के दर्शन होते हैं। इसलिए लोग यहां से चावलों के दाने लेकर जाते हैं और अपने घरों की तिज़ोरी में रखते हैं। आप भी भगवान कृष्ण के इस अद्भुत धाम के दर्शन अवश्य करें और वीडियो पसन्द आये तो इसे आगे शेयर कीजिये, धन्यवाद!!
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3 июня 2020 г. 19:54:59
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