वर्षा विगत शरद ऋतु आई | शरद ऋतु वर्णन | Sri Ram Charitmanas | Madhvi Madhukar
वर्षा विगत शरद ऋतु आई | शरद ऋतु वर्णन :
बरषा बिगत सरद रितु आई।
लछमन देखहु परम सुहाई॥
फूलें कास सकल महि छाई।
जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥1॥
हे लक्ष्मण! देखो, वर्षा बीत गई और परम सुंदर शरद् ऋतु आ गई। फूले हुए कास से सारी पृथ्वी छा गई। मानो वर्षा ऋतु ने (कास रूपी सफेद बालों के रूप में) अपना बुढ़ापा प्रकट किया है॥1॥
उदित अगस्ति पंथ जल सोषा।
जिमि लोभहिं सोषइ संतोषा॥
सरिता सर निर्मल जल सोहा।
संत हृदय जस गत मद मोहा॥2॥
अगस्त्य के तारे ने उदय होकर मार्ग के जल को सोख लिया, जैसे संतोष लोभ को सोख लेता है। नदियों और तालाबों का निर्मल जल ऐसी शोभा पा रहा है जैसे मद और मोह से रहित संतों का हृदय!॥2॥
रस रस सूख सरित सर पानी।
ममता त्याग करहिं जिमि ग्यानी॥
जानि सरद रितु खंजन आए।
पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए॥3॥
नदी और तालाबों का जल धीरे-धीरे सूख रहा है। जैसे ज्ञानी (विवेकी) पुरुष ममता का त्याग करते हैं। शरद ऋतु जानकर खंजन पक्षी आ गए। जैसे समय पाकर सुंदर सुकृत आ सकते हैं। (पुण्य प्रकट हो जाते हैं)॥3॥
पंक न रेनु सोह असि धरनी।
नीति निपुन नृप कै जसि करनी॥
जल संकोच बिकल भइँ मीना।
अबुध कुटुंबी जिमि धनहीना॥4॥
न कीचड़ है न धूल? इससे धरती (निर्मल होकर) ऐसी शोभा दे रही है जैसे नीतिनिपुण राजा की करनी! जल के कम हो जाने से मछलियाँ व्याकुल हो रही हैं, जैसे मूर्ख (विवेक शून्य) कुटुम्बी (गृहस्थ) धन के बिना व्याकुल होता है॥4॥
बिनु घन निर्मल सोह अकासा।
हरिजन इव परिहरि सब आसा॥
कहुँ कहुँ बृष्टि सारदी थोरी।
कोउ एक भाव भगति जिमि मोरी॥5॥
बिना बादलों का निर्मल आकाश ऐसा शोभित हो रहा है जैसे भगवद्भक्त सब आशाओं को छोड़कर सुशोभित होते हैं। कहीं-कहीं (विरले ही स्थानों में) शरद् ऋतु की थोड़ी-थोड़ी वर्षा हो रही है। जैसे कोई विरले ही मेरी भक्ति पाते हैं॥5॥
चले हरषि तजि नगर
नृप तापस बनिक भिखारि।
जिमि हरिभगति पाइ श्रम
तजहिं आश्रमी चारि॥6॥
(शरद् ऋतु पाकर) राजा, तपस्वी, व्यापारी और भिखारी (क्रमशः विजय, तप, व्यापार और भिक्षा के लिए) हर्षित होकर नगर छोड़कर चले। जैसे श्री हरि की भक्ति पाकर चारों आश्रम वाले (नाना प्रकार के साधन रूपी) श्रमों को त्याग देते हैं॥6॥
Song Credit:
Song: Varsha Vigat Sharad Ritu Aayi(Sri Ramcharitmanas)
Singer: Madhvi Madhukar
Music Label: SubhNir Productions
Music Director: Nikhil Bisht, Rajkumar
Music: Pawan Kumar
Flute: Ajay Prasanna
Video Editing: Vishal
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बरषा बिगत सरद रितु आई।
लछमन देखहु परम सुहाई॥
फूलें कास सकल महि छाई।
जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥1॥
हे लक्ष्मण! देखो, वर्षा बीत गई और परम सुंदर शरद् ऋतु आ गई। फूले हुए कास से सारी पृथ्वी छा गई। मानो वर्षा ऋतु ने (कास रूपी सफेद बालों के रूप में) अपना बुढ़ापा प्रकट किया है॥1॥
उदित अगस्ति पंथ जल सोषा।
जिमि लोभहिं सोषइ संतोषा॥
सरिता सर निर्मल जल सोहा।
संत हृदय जस गत मद मोहा॥2॥
अगस्त्य के तारे ने उदय होकर मार्ग के जल को सोख लिया, जैसे संतोष लोभ को सोख लेता है। नदियों और तालाबों का निर्मल जल ऐसी शोभा पा रहा है जैसे मद और मोह से रहित संतों का हृदय!॥2॥
रस रस सूख सरित सर पानी।
ममता त्याग करहिं जिमि ग्यानी॥
जानि सरद रितु खंजन आए।
पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए॥3॥
नदी और तालाबों का जल धीरे-धीरे सूख रहा है। जैसे ज्ञानी (विवेकी) पुरुष ममता का त्याग करते हैं। शरद ऋतु जानकर खंजन पक्षी आ गए। जैसे समय पाकर सुंदर सुकृत आ सकते हैं। (पुण्य प्रकट हो जाते हैं)॥3॥
पंक न रेनु सोह असि धरनी।
नीति निपुन नृप कै जसि करनी॥
जल संकोच बिकल भइँ मीना।
अबुध कुटुंबी जिमि धनहीना॥4॥
न कीचड़ है न धूल? इससे धरती (निर्मल होकर) ऐसी शोभा दे रही है जैसे नीतिनिपुण राजा की करनी! जल के कम हो जाने से मछलियाँ व्याकुल हो रही हैं, जैसे मूर्ख (विवेक शून्य) कुटुम्बी (गृहस्थ) धन के बिना व्याकुल होता है॥4॥
बिनु घन निर्मल सोह अकासा।
हरिजन इव परिहरि सब आसा॥
कहुँ कहुँ बृष्टि सारदी थोरी।
कोउ एक भाव भगति जिमि मोरी॥5॥
बिना बादलों का निर्मल आकाश ऐसा शोभित हो रहा है जैसे भगवद्भक्त सब आशाओं को छोड़कर सुशोभित होते हैं। कहीं-कहीं (विरले ही स्थानों में) शरद् ऋतु की थोड़ी-थोड़ी वर्षा हो रही है। जैसे कोई विरले ही मेरी भक्ति पाते हैं॥5॥
चले हरषि तजि नगर
नृप तापस बनिक भिखारि।
जिमि हरिभगति पाइ श्रम
तजहिं आश्रमी चारि॥6॥
(शरद् ऋतु पाकर) राजा, तपस्वी, व्यापारी और भिखारी (क्रमशः विजय, तप, व्यापार और भिक्षा के लिए) हर्षित होकर नगर छोड़कर चले। जैसे श्री हरि की भक्ति पाकर चारों आश्रम वाले (नाना प्रकार के साधन रूपी) श्रमों को त्याग देते हैं॥6॥
Song Credit:
Song: Varsha Vigat Sharad Ritu Aayi(Sri Ramcharitmanas)
Singer: Madhvi Madhukar
Music Label: SubhNir Productions
Music Director: Nikhil Bisht, Rajkumar
Music: Pawan Kumar
Flute: Ajay Prasanna
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