सद्गुरु के आत्मज्ञान की कथा | Sadhguru Hindi
English Video: https://youtu.be/p5nzZEOm2YE
एक योगी, युगदृष्टा, मानवतावादी, सद्गुरु एक आधुनिक गुरु हैं, जिनको योग के प्राचीन विज्ञान पर पूर्ण अधिकार है। विश्व शांति और खुशहाली की दिशा में निरंतर काम कर रहे सद्गुरु के रूपांतरणकारी कार्यक्रमों से दुनिया के करोडों लोगों को एक नई दिशा मिली है। दुनिया भर में लाखों लोगों को आनंद के मार्ग में दीक्षित किया गया है।
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एक दिन दोपहर में, मैं बस एक छोटी सी पहाड़ी पर जाकर बैठा, जो उस शहर में है, जहां मैं बड़ा हुआ था।
उस पल तक, मैंने हमेशा यही सोचा था कि ये मैं हूँ, और वो कोई और है।
मुझे किसी और से कोई परेशानी नहीं थी, पर वो कोई और है, ये मैं हूँ।
पहली बार, मैं ये नहीं जानता था कि मैं क्या हूँ, और मैं क्या नहीं हूँ। मैं जो था, वो हर जगह फैला हुआ था। मुझे लगा ये पागलपन 5-10 मिनट तक चला।
लेकिन जब मैं अपने होने के सामान्य तरीके पर वापस आया। तब साढ़े चार घंटे बीत चुके थे।
मैं वहीँ बैठा था, पूरी तरह से चेतन, आँखें खुली।
मैं वहाँ दिन में करीब तीन बजे बैठा था, और शाम के साढ़े सात बज रहे थे।
सूरज डूब चुका था, और मुझे लगा बस दस मिनट हुए हैं, पर साढ़े चार घंटे बीत गए थे।
मेरे वयस्क जीवन में पहली बार, इतने आंसूं बह रहे थे कि मेरी शर्ट पूरी गीली थी।
मुझे आंसूं आना असंभव था, मैं ऐसा था।
मैं हमेशा खुश रहा हूँ। ये मेरे लिए कभी मुद्दा नहीं रहा है। मैं अपने काम में सफल था। मैं युवा था, और कोई परेशानी नहीं थी। मैं खुश था।
पर मुझमें एक अलग तरह के परमानंद का विस्फोट हो रहा था, जो वर्णन से परे है। मेरे शरीर की हर कोशिका परमानन्द से सराबोर थी। मेरे पास कोई शब्द नहीं थे।
जब मैंने अपना सिर हिलाया और अपने शक्की दिमाग से पूछने की कोशिश की ‘कि मुझे हो क्या रहा है?’ तो मेरा दिमाग मुझे सिर्फ एक चीज़ बता पाया, कि मैं कुछ बहुत अजीब कर रहा हूँ।
मुझे इसकी परवाह नहीं थी, कि वो क्या था।
लेकिन मैं उसे खोना नहीं चाहता था।
क्योंकि ये वो सबसे खूबसूरत चीज़ थी, जो मुझे कभी भी मिली थी।
और मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक इंसान अपने अंदर ऐसा महसूस कर सकता है।
तो जब मैं अपने सबसे करीबी दोस्तों के पास गया और बताया कि मेरे साथ कुछ ऐसा हो रहा है।
बातें करते करते, मेरी आँखों से आंसू आ जाते।
और लोग कहते – क्या तुमने कुछ पीया था? क्या कुछ खाया था? तुमने क्या किया था?
मुझे पता था कि किसी को कुछ कहने का कोई फायदा नहीं है।
क्योंकि अगर मैं बस आसमान को देखता तो आंसूं आ जाते, पेड़ को देखता तो आंसूं आ जाते। आँखें बंद करता तो आंसूं आ जाते। मैं बस सराबोर था।
छह महीनों में मेरी हर चीज़ ज़बरदस्त तरीके से बदल गई। और मैंने समय का बोध बिलकुल खो दिया।
जब ये अगली बार हुआ तब बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि मेरे आसपास लोग थे।
मैं अपने परिवार के साथ बैठा था, खाने की टेबल पर।
मुझे वाकई लगा दो मिनट हुए हैं, पर सात घंटे बीत गए। मैं वहीँ बैठा रहा। पूरी तरह से सचेत, पर मुझमें समय का कोई बोध नहीं था।
ये कई बार हुआ।
एक दिन मैं बस अपने खेत में बैठा था, और मुझे लगा कि मैं पच्चीस-तीस मिनट के लिए बैठा, लेकिन मैं तेरह दिन तक बैठा था। तब तक भीड़ जमा हो गई।
भारत ऐसा देश है, कि मेरे आस-पास बड़ी बड़ी मालाएं थीं, कोई पूछ रहा है कि उसका कारोबार कैसे चलाए? कोई पूछ रहा है कि उसकी बेटी की शादी कब होगी?
वो सारी बकवास जिससे मुझे नफरत थी, मेरे ही आस-पास हो रही थी।
और मुझे वाकई लगा पच्चीस तीस मिनट हुए थे।
पर वो लोग कह रहे थे – “तेरह दिन से ये बैठा है, ये समाधि में है। ये ये है, वो है। मैंने ये शब्द भी नहीं सुने थे। मैं यूरोपियन फिलॉसफी पढ़कर बड़ा हुआ था, कामू, काफ्का, डोस्तोवस्की आप उन्हें पढ़ते हैं, अमेरिका में? हम्म?
और साठ का दशक था, तो मैं बीटल्स वगैरह को सुनते हुए बड़ा हुआ था।
मैं और अध्यात्म अलग-अलग दुनियाएं थीं।
मेरे वहाँ जाने का कोई सवाल ही नहीं था।
तो मेरे अंदर ये शब्द ही नहीं थे – समाधि, ये और वो।
लोग कह रहे थे – “अरे, वो इस तरह की समाधि में हैं। वो उस तरह की समाधि में हैं।” आप उन्हें छूएंगे तो ये होगा, और लोग मुझे पकड़ना चाहते थे।
तो मैं बस यही कर सकता था - मैंने वो जगह छोड़ी और सफ़र पर निकल गया।
सिर्फ इससे बचने के लिए।
क्योंकि मैं समझ नहीं पाया कि मेरे आस-पास क्या हो रहा था।
मैं आपको ये कहानी इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि ये हर इंसान के लिए संभव है। ये मेरी कामना और मेरा आशीर्वाद है कि ये आपके साथ होना चाहिए।
चाहे आप माउंट एवरेस्ट पर चढ़ें या न चढ़ें। आप धरती के सबसे अमीर आदमी बनें या न बनें। इस धरती पर आपके जीवन का अनुभव अच्छा होना चाहिए।
आपको आनंद में जीकर जाना चाहिए। ये हर इंसान के साथ होना चाहिए। हर कोई इसका अधिकारी है, और हर किसी में ये काबिलियत है।
चामुंडी पर्वत पर हुए इस अनुभव से सद्गुरु ने इनर इंजीनियरिंग रची, जो लोगों को इस आयाम की खोज खुद करने की शक्ति देने वाला वाहन है।
उनके इस साधन ने xx लाख (We need the latest number) से ज़्यादा लोगों को स्पर्श किया है, और वे अब अपनी सीमाओं से परे जाकर जीवन जी रहे हैं, और इस दुनिया को एक ज़्यादा खूबसूरत और शांतिपूर्ण जगह बना रहे हैं।
प्रेम, प्रकाश और हंसी से भरी दुनिया। आइये इसे एक सच्चाई बनाएं।
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एक योगी, युगदृष्टा, मानवतावादी, सद्गुरु एक आधुनिक गुरु हैं, जिनको योग के प्राचीन विज्ञान पर पूर्ण अधिकार है। विश्व शांति और खुशहाली की दिशा में निरंतर काम कर रहे सद्गुरु के रूपांतरणकारी कार्यक्रमों से दुनिया के करोडों लोगों को एक नई दिशा मिली है। दुनिया भर में लाखों लोगों को आनंद के मार्ग में दीक्षित किया गया है।
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उस पल तक, मैंने हमेशा यही सोचा था कि ये मैं हूँ, और वो कोई और है।
मुझे किसी और से कोई परेशानी नहीं थी, पर वो कोई और है, ये मैं हूँ।
पहली बार, मैं ये नहीं जानता था कि मैं क्या हूँ, और मैं क्या नहीं हूँ। मैं जो था, वो हर जगह फैला हुआ था। मुझे लगा ये पागलपन 5-10 मिनट तक चला।
लेकिन जब मैं अपने होने के सामान्य तरीके पर वापस आया। तब साढ़े चार घंटे बीत चुके थे।
मैं वहीँ बैठा था, पूरी तरह से चेतन, आँखें खुली।
मैं वहाँ दिन में करीब तीन बजे बैठा था, और शाम के साढ़े सात बज रहे थे।
सूरज डूब चुका था, और मुझे लगा बस दस मिनट हुए हैं, पर साढ़े चार घंटे बीत गए थे।
मेरे वयस्क जीवन में पहली बार, इतने आंसूं बह रहे थे कि मेरी शर्ट पूरी गीली थी।
मुझे आंसूं आना असंभव था, मैं ऐसा था।
मैं हमेशा खुश रहा हूँ। ये मेरे लिए कभी मुद्दा नहीं रहा है। मैं अपने काम में सफल था। मैं युवा था, और कोई परेशानी नहीं थी। मैं खुश था।
पर मुझमें एक अलग तरह के परमानंद का विस्फोट हो रहा था, जो वर्णन से परे है। मेरे शरीर की हर कोशिका परमानन्द से सराबोर थी। मेरे पास कोई शब्द नहीं थे।
जब मैंने अपना सिर हिलाया और अपने शक्की दिमाग से पूछने की कोशिश की ‘कि मुझे हो क्या रहा है?’ तो मेरा दिमाग मुझे सिर्फ एक चीज़ बता पाया, कि मैं कुछ बहुत अजीब कर रहा हूँ।
मुझे इसकी परवाह नहीं थी, कि वो क्या था।
लेकिन मैं उसे खोना नहीं चाहता था।
क्योंकि ये वो सबसे खूबसूरत चीज़ थी, जो मुझे कभी भी मिली थी।
और मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक इंसान अपने अंदर ऐसा महसूस कर सकता है।
तो जब मैं अपने सबसे करीबी दोस्तों के पास गया और बताया कि मेरे साथ कुछ ऐसा हो रहा है।
बातें करते करते, मेरी आँखों से आंसू आ जाते।
और लोग कहते – क्या तुमने कुछ पीया था? क्या कुछ खाया था? तुमने क्या किया था?
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और साठ का दशक था, तो मैं बीटल्स वगैरह को सुनते हुए बड़ा हुआ था।
मैं और अध्यात्म अलग-अलग दुनियाएं थीं।
मेरे वहाँ जाने का कोई सवाल ही नहीं था।
तो मेरे अंदर ये शब्द ही नहीं थे – समाधि, ये और वो।
लोग कह रहे थे – “अरे, वो इस तरह की समाधि में हैं। वो उस तरह की समाधि में हैं।” आप उन्हें छूएंगे तो ये होगा, और लोग मुझे पकड़ना चाहते थे।
तो मैं बस यही कर सकता था - मैंने वो जगह छोड़ी और सफ़र पर निकल गया।
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क्योंकि मैं समझ नहीं पाया कि मेरे आस-पास क्या हो रहा था।
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चामुंडी पर्वत पर हुए इस अनुभव से सद्गुरु ने इनर इंजीनियरिंग रची, जो लोगों को इस आयाम की खोज खुद करने की शक्ति देने वाला वाहन है।
उनके इस साधन ने xx लाख (We need the latest number) से ज़्यादा लोगों को स्पर्श किया है, और वे अब अपनी सीमाओं से परे जाकर जीवन जी रहे हैं, और इस दुनिया को एक ज़्यादा खूबसूरत और शांतिपूर्ण जगह बना रहे हैं।
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