सुरंग टीला मंदिर, क्या इसका निर्माण एलियन ने किया था? | प्रवीण मोहन
किस प्रकार इस मंदिर ने ऐसे शक्तिशाली भूकंप का सामना किया जिसने इस क्षेत्र में बाकी सब कुछ तबाह कर दिया। तेरह सौ साल पहले आखिर किस निर्माण तकनीक का प्रयोग हुआ था?
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00:00 - परिचय
00:49 - भूकंप प्रतिरोधक तकनीक का प्रयोग!
01:57 - मयासुर - एक पारलौकिक जाति!
02:45 - मंदिर के नीचे विचित्र आकृतियाँ!
04:03 - निष्कर्ष
नमस्कार मित्रों,मैं सुरंग टीला मंदिर में हूँ जो कि कम से कम तेरह सौ साल पुराना है और इस मंदिर की खूबसूरती ये है कि इसके निर्माण में भूकंप प्रतिरोधक तकनीक का प्रयोग किया गया है। आप देख सकते हैं कि ये सीढियाँ झुकी हुई हैं,ये उस भीषण भूकंप का परिणाम है जो ग्यारहवीं शताब्दी में आया था। इस भूकंप ने इस क्षेत्र की सभी संरचनाओं को पूरा नष्ट कर दिया था,पर इस मंदिर की सीढ़ियों को केवल झुका भर ही पाया और इसकी संरचना को तोड़ नही पाया।
किस प्रकार इस मंदिर ने ऐसे शक्तिशाली भूकंप का सामना किया जिसने इस क्षेत्र में बाकी सब कुछ तबाह कर दिया। तेरह सौ साल पहले आखिर किस निर्माण तकनीक का प्रयोग हुआ था? निर्माताओं ने बहुत सारी विचित्र निर्माण तकनीकों का प्रयोग किया था जिसका विस्तृत विवरण मयमतं नाम के प्राचीन ग्रंथ में किया गया है जो कि चार हजार पांच सौ साल पहले लिखा गया। इस मंदिर में कई सारे सीधे खड़े स्तम्भ है जो जमीन के अंदर जा रहे हैं ,लगभग पचहत्तर फ़ीट लंबे जो वायुशून्यता की स्थिति निर्मित करते हैं।
यही कारण है कि मंदिर ऐसे भीषण भूकंप का सफलतापूर्वक सामना कर सका क्यूंकि इन एयर पॉकेट्स ने भूकम्प के कंपन को सोखा और छितरा दिया। दूसरा महत्वपूर्ण कारण था मंदिर के शिलाखंडों को चिपकाने के लिए एक विचित्र लेप का प्रयोग.. इन विशाल पत्थरों को भी एक विशेष प्रकार के लेप से आपस में संजोया गया,जिसका विस्तृत विवरण भी उस प्राचीन ग्रंथ में है।
ये लेप न केवल कंक्रीट से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली है अपितु चिरस्थायी भी है। सो,कैसे चार हजार पांच सौ साल पहले ऐसी भूकंपरोधी तकनीक आविष्कृत की गई? विचित्र बात ये है कि इस ग्रंथ के लेखक का नाम मयासुर है जिसे असुरों का राजा माना जाता है,जो कि एक पारलौकिक जाति है। पुरातन भारतीय ग्रंथ बार बार बताते हैं कि मयासुर कई अविश्वनीय,विशाल पत्थरों से निर्मित संरचनाओं का शिल्पकार था। इस मंदिर की खुदाई दो हजार छह में डॉक्टर अरुण शर्मा द्वारा की गई जो कि एक सरकारी पुरातत्ववेत्ता हैं और उन्होंने प्राचीन भारतीय ग्रंथों में उल्लेखित मानचित्रों के आधार पर कई सारे मंदिरों का पता लगाया है।
डॉक्टर शर्मा उन कुछ पहले सरकारी पुरातत्ववेत्ताओं में से एक है जिन्होंने खुले आम कहा है कि ये संरचनाएं पारलौकिक प्राणियों द्वारा बनाई गई है। इसका कारण न केवल आश्चर्य चकित कर देने वाली भूकंपरोधी तकनीक है बल्कि वो भी है जो कि इस मंदिर के नीचे पाया गया। मंदिर के नीचे,उन्होंने बहुत सारे विचित्र आकृतियाँ पाई जो कि मानवों की तरह बिल्कुल नहीं दिखती थी। वो grey aliens जैसी दिखती थीं। इनमें से कुछ गूगल्स और हेलमेट्स पहने हुए भी दिख रहे हैं
पारलौकिक प्राणियों से स्पष्ट रूप से मिलता जुलता एक मुखौटा भी पाया गया था,पर उसे निकटवर्ती संग्रहालय से अज्ञात कारणों से हटा लिया गया। क्या ये संभव है कि ये आकृतियाँ पारलौकिक मयासुर को दर्शाती है जिसने भूकम्प रोधी तकनीक का आविष्कार किया? क्या ये सत्य है कि सारे असुर वास्तव में एस्ट्रोनॉट्स थे जो कि एक भिन्न ग्रह से आये थे? जुलाई,दो हजार चौदह में इस मंदिर के दो सौ मील पूर्व में,एक दूसरे पुरातत्ववेत्ता ने कुछ काफी मिलती जुलती खोज की।
उन्होंने ऐसे शिलाचित्र खोजे जो कि पारलौकिक जीवों को हेलमेट और उसमें से निकली हुई एंटेनास के साथ दिखला रहे थे। और इन कलाकृतियों में न केवल पारलौकिक जीव थे बल्कि उनके उड़ने वाले विमान भी थे। इन पुरातत्ववेत्ताओं का ये कहना है कि ये चित्रकारियां वास्तव में पारलौकिक जीवो को दर्शाती है। क्या ये संयोग मात्र है कि ये सारे साक्ष्य इस ओर इंगित करते हैं कि प्राचीन परग्रहियों ने भूतकाल में पृथ्वी की यात्रा की थी?
क्या सुरंग टीला पारलौकिक तकनीक से बना था? और किस प्रकार से is भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल हुआ होगा? क्यूँ ये विचित्र चेहरों वाली हेलमेट पहनी आकृतियां मंदिर के तल में दबी हुई पाई गई? क्यूँ हम इन पारलौकिक चेहरों और विमानों वाले इन गुफा चित्रों को एक ही क्षेत्र में देखते हैं? कृपया मुझे अपने विचार कमेंट सेक्शन में बताएं मैं हूँ प्रवीण मोहन,इस वीडियो को देखने के लिए धन्यवाद मुझे सब्सक्राइब करना ना भूलें,मैं शीघ्र ही आपसे फिर बात करूँगा। धन्यवाद...
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00:00 - परिचय
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01:57 - मयासुर - एक पारलौकिक जाति!
02:45 - मंदिर के नीचे विचित्र आकृतियाँ!
04:03 - निष्कर्ष
नमस्कार मित्रों,मैं सुरंग टीला मंदिर में हूँ जो कि कम से कम तेरह सौ साल पुराना है और इस मंदिर की खूबसूरती ये है कि इसके निर्माण में भूकंप प्रतिरोधक तकनीक का प्रयोग किया गया है। आप देख सकते हैं कि ये सीढियाँ झुकी हुई हैं,ये उस भीषण भूकंप का परिणाम है जो ग्यारहवीं शताब्दी में आया था। इस भूकंप ने इस क्षेत्र की सभी संरचनाओं को पूरा नष्ट कर दिया था,पर इस मंदिर की सीढ़ियों को केवल झुका भर ही पाया और इसकी संरचना को तोड़ नही पाया।
किस प्रकार इस मंदिर ने ऐसे शक्तिशाली भूकंप का सामना किया जिसने इस क्षेत्र में बाकी सब कुछ तबाह कर दिया। तेरह सौ साल पहले आखिर किस निर्माण तकनीक का प्रयोग हुआ था? निर्माताओं ने बहुत सारी विचित्र निर्माण तकनीकों का प्रयोग किया था जिसका विस्तृत विवरण मयमतं नाम के प्राचीन ग्रंथ में किया गया है जो कि चार हजार पांच सौ साल पहले लिखा गया। इस मंदिर में कई सारे सीधे खड़े स्तम्भ है जो जमीन के अंदर जा रहे हैं ,लगभग पचहत्तर फ़ीट लंबे जो वायुशून्यता की स्थिति निर्मित करते हैं।
यही कारण है कि मंदिर ऐसे भीषण भूकंप का सफलतापूर्वक सामना कर सका क्यूंकि इन एयर पॉकेट्स ने भूकम्प के कंपन को सोखा और छितरा दिया। दूसरा महत्वपूर्ण कारण था मंदिर के शिलाखंडों को चिपकाने के लिए एक विचित्र लेप का प्रयोग.. इन विशाल पत्थरों को भी एक विशेष प्रकार के लेप से आपस में संजोया गया,जिसका विस्तृत विवरण भी उस प्राचीन ग्रंथ में है।
ये लेप न केवल कंक्रीट से कई गुना ज्यादा शक्तिशाली है अपितु चिरस्थायी भी है। सो,कैसे चार हजार पांच सौ साल पहले ऐसी भूकंपरोधी तकनीक आविष्कृत की गई? विचित्र बात ये है कि इस ग्रंथ के लेखक का नाम मयासुर है जिसे असुरों का राजा माना जाता है,जो कि एक पारलौकिक जाति है। पुरातन भारतीय ग्रंथ बार बार बताते हैं कि मयासुर कई अविश्वनीय,विशाल पत्थरों से निर्मित संरचनाओं का शिल्पकार था। इस मंदिर की खुदाई दो हजार छह में डॉक्टर अरुण शर्मा द्वारा की गई जो कि एक सरकारी पुरातत्ववेत्ता हैं और उन्होंने प्राचीन भारतीय ग्रंथों में उल्लेखित मानचित्रों के आधार पर कई सारे मंदिरों का पता लगाया है।
डॉक्टर शर्मा उन कुछ पहले सरकारी पुरातत्ववेत्ताओं में से एक है जिन्होंने खुले आम कहा है कि ये संरचनाएं पारलौकिक प्राणियों द्वारा बनाई गई है। इसका कारण न केवल आश्चर्य चकित कर देने वाली भूकंपरोधी तकनीक है बल्कि वो भी है जो कि इस मंदिर के नीचे पाया गया। मंदिर के नीचे,उन्होंने बहुत सारे विचित्र आकृतियाँ पाई जो कि मानवों की तरह बिल्कुल नहीं दिखती थी। वो grey aliens जैसी दिखती थीं। इनमें से कुछ गूगल्स और हेलमेट्स पहने हुए भी दिख रहे हैं
पारलौकिक प्राणियों से स्पष्ट रूप से मिलता जुलता एक मुखौटा भी पाया गया था,पर उसे निकटवर्ती संग्रहालय से अज्ञात कारणों से हटा लिया गया। क्या ये संभव है कि ये आकृतियाँ पारलौकिक मयासुर को दर्शाती है जिसने भूकम्प रोधी तकनीक का आविष्कार किया? क्या ये सत्य है कि सारे असुर वास्तव में एस्ट्रोनॉट्स थे जो कि एक भिन्न ग्रह से आये थे? जुलाई,दो हजार चौदह में इस मंदिर के दो सौ मील पूर्व में,एक दूसरे पुरातत्ववेत्ता ने कुछ काफी मिलती जुलती खोज की।
उन्होंने ऐसे शिलाचित्र खोजे जो कि पारलौकिक जीवों को हेलमेट और उसमें से निकली हुई एंटेनास के साथ दिखला रहे थे। और इन कलाकृतियों में न केवल पारलौकिक जीव थे बल्कि उनके उड़ने वाले विमान भी थे। इन पुरातत्ववेत्ताओं का ये कहना है कि ये चित्रकारियां वास्तव में पारलौकिक जीवो को दर्शाती है। क्या ये संयोग मात्र है कि ये सारे साक्ष्य इस ओर इंगित करते हैं कि प्राचीन परग्रहियों ने भूतकाल में पृथ्वी की यात्रा की थी?
क्या सुरंग टीला पारलौकिक तकनीक से बना था? और किस प्रकार से is भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल हुआ होगा? क्यूँ ये विचित्र चेहरों वाली हेलमेट पहनी आकृतियां मंदिर के तल में दबी हुई पाई गई? क्यूँ हम इन पारलौकिक चेहरों और विमानों वाले इन गुफा चित्रों को एक ही क्षेत्र में देखते हैं? कृपया मुझे अपने विचार कमेंट सेक्शन में बताएं मैं हूँ प्रवीण मोहन,इस वीडियो को देखने के लिए धन्यवाद मुझे सब्सक्राइब करना ना भूलें,मैं शीघ्र ही आपसे फिर बात करूँगा। धन्यवाद...
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