Man Par Vijay Kaise Prapt Karen / Shri Krishna/Motivationa by Shri Krishna

Bhagvat Geeta me श्री कृष्ण कहते हैं
चित्तं मनः कथं चंचलं, किं उधार्यं भविष्यति।
आध्यात्मिकं विषयासक्तं, व्यायामेन समाधिना॥

भगवान श्रीकृष्ण यहां कह रहे हैं कि मन अत्यंत चंचल (अशांत) होता है और उसे वश में रखना कठिन है। यह विचार बारिश के साथ भटकता हुआ प्रवाह की तरह भगता है और किसी भी कार्य को सकारात्मक रूप से पूर्ण करने में विघ्न बन जाता है।

भगवान कृष्ण फिर आध्यात्मिक विषयों में अधिष्ठानपूर्वक लगा रहने वाले लोगों को समझाते हैं कि मन को एकाग्र करने के लिए व्यायाम (साधना, अभ्यास) और समाधि (ध्यान और धारणा में एकाग्रता) की आवश्यकता होती है। आध्यात्मिक विषयों में रुचि रखने से और साधना के माध्यम से मन को वश में किया जा सकता है, जिससे उसकी चंचलता कम होती है और वह सकारात्मक रूप से जीवन के कार्यों में एकाग्र होता है।

यह श्लोक हमें बताता है कि मन को नियंत्रित करने के लिए आध्यात्मिक अभ्यास और साधना की आवश्यकता होती है, जिससे हम अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।

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