संविदा कर्मचारी और आउटसोर्स कर्मचारियों की परेशानी || पंचायत सहायक, रोजगार सेवक, शिक्षा मित्र आदि
#संविदा_कर्मचारी_और_आउटसोर्स_कर्मचारियों_की_परेशानी || #पंचायत_सहायक, #रोजगार_सेवक, #शिक्षा_मित्र आदि
#आंगनबाड़ीमानदेय
#चौकीदार
सोर्स लिंक
https://www.amarujala.com/lucknow/up-called-for-details-of-contract-and-outsourcing-personnel-kept-during-yogi-regime
https://www.livehindustan.com/career/story-decision-on-minimum-wage-for-outsourcing-and-contract-workers-in-one-month-9424339.html
https://www.patrika.com/lucknow-news/40-thousand-outsourced-and-contract-workers-will-be-regularized-the-government-has-started-preparations-19034917
https://www.bhaskar.com/news/latest-bhopal-news-041502-1861345.html
https://hindi.news18.com/news/uttar-pradesh/big-news-contract-outsourcing-employees-up-government-responded-know-what-relief-yogi-adityanath-samvida-karmachari-8047207.html
"हाय दोस्तों, आज हम बात करने जा रहे हैं उत्तर प्रदेश के उन सुपरहीरोज की, जो बिना किसी केप के दिन-रात काम करते हैं, लेकिन इनकी जिंदगी में 'सुपर' कुछ भी नहीं है। हाँ, मैं बात कर रहा हूँ संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों की! ये वो लोग हैं जो सरकार के लिए 'सस्ते सौदे' हैं, लेकिन इनकी समस्याएं सुनकर लगता है कि सरकार ने इन्हें 'सस्ते में टरकाने' का ठेका ले रखा है। तो चलिए, इनकी कहानी शुरू करते हैं
"तो सबसे पहले, इनकी समस्याएं क्या-क्या हैं? नंबर एक—कम सैलरी। ये लोग सुबह से शाम तक काम करते हैं, लेकिन महीने के अंत में जो सैलरी मिलती है, उससे तो शायद लखनऊ की चाट भी ढंग से न खरीदी जाए। दूसरा—नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं। तीसरा कोई सुविधा नहीं। न PF, न ESI, न ही मेडिकल लीव। और हाँ, अगर बीमार पड़ गए, तो इलाज का खर्चा अपनी जेब से, क्योंकि सरकार कहती है, 'हम तो बस काम करवाते हैं, बाकी तुम्हारा देखो!' चौथा—समान काम, समान वेतन का सपना। सुप्रीम कोर्ट तक कह चुका है कि 'Equal Pay for Equal Work' होना चाहिए, लेकिन यूपी में ये नियम सिर्फ किताबों में सजावट के लिए है।"
"अब सवाल ये कि ये संविदा और आउटसोर्स कर्मचारी कौन-कौन हैं? सुनिए—पंचायत सहायक, शिक्षामित्र, रोजगार सेवक, NHM के हेल्थ वर्कर्स, बिजली विभाग के लाइनमैन, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, और चतुर्थ श्रेणी के वो कर्मचारी जो चौकीदार से लेकर ऑफिस असिस्टेंट तक का काम करते हैं। यानी, सरकार के हर डिपार्टमेंट में ये 'ऑलराउंडर' मौजूद हैं, लेकिन इनकी हालत ठीक नहीं है
"अब इनकी सैलरी की बात करते हैं, पंचायत सहायक को 6,000 रुपये, शिक्षामित्र को 10,000 रुपये, और रोजगार सेवक को भी 10,000 रुपये। दूसरी तरफ, न्यूनतम कुशल मजदूरी तय की गई है 24,804 रुपये। मतलब, सरकार खुद मानती है कि कुशल काम का दाम इतना होना चाहिए, लेकिन इन बेचारों को आधे से भी कम! NHM संविदा कर्मचारियों को 12,000-15,000 रुपये मिलते हैं, जबकि नियमित कर्मचारी उसी काम के लिए 60,000 रुपये लेते हैं—चतुर्थ श्रेणी आउटसोर्स कर्मियों को तो सिर्फ 6,500 रुपये मिलते हैं, अब भई, इतने में तो साइकिल भी नहीं मिलती काम कैसे चलेगा?"
"अब सवाल ये कि बाकी राज्यों से कितना कम है और क्यों? बिहार में अकुशल मजदूरी 395 रुपये रोज़ाना यानी 10,270 रुपये महीना है, और कुशल के लिए 500 रुपये रोज़ाना यानी 13,000 रुपये, वही उत्तराखंड में संविदा कर्मियों को नियमित करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है, और वहाँ सैलरी भी यूपी से बेहतर है—Patrika की रिपोर्ट के मुताबिक। तो यूपी में सैलरी कम क्यों? वजह साफ है—बजट की कमी, प्रशासनिक लापरवाही, और सरकार की ' काम तो चलता ही रहेगा ' वाली सोच। सुप्रीम कोर्ट का नियम लागू न करना भी बड़ी वजह है,
"अब सरकार को थोड़ा घेरते हैं, अरे योगी जी, आप तो कहते हैं 'राम राज्य' लाएंगे, लेकिन ये संविदा वाले तो 'राम भरोसे' ही जी रहे हैं! आपके मंत्री सुरेश खन्ना कहते हैं, 'निकाला नहीं जाएगा,' लेकिन सैलरी बढ़ाने की बात आते ही सब 'साइलेंट मोड' में चले जाते हैं भई, अगर बजट नहीं है, तो बुलेट ट्रेन का सपना छोड़ दो, पहले इनके पेट तो भर दो! या फिर ये मान लीजिए कि इनकी सैलरी बढ़ाने से पहले आपका 'डबल इंजन' 'सिंगल इंजन ही है '
"तो दोस्तों, ये थी यूपी के संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों की दास्तान। सरकार से बस इतना कहना है—इनकी सैलरी बढ़ाइए, सुविधाएं दीजिए, ये लोग बेहतर कार्य कर रहे है, अगर ये भी कामचोरी करने लगे तो फिर 'डबल इंजन' की स्पीड सचमुच 'बैलगाड़ी' हो जाएगी! दोस्तो लाइक, शेयर, सब्सक्राइब करें, और इनकी आवाज़ को बुलंद करें। मिलते हैं अगले वीडियो में—जय हिंद!"
Видео संविदा कर्मचारी और आउटसोर्स कर्मचारियों की परेशानी || पंचायत सहायक, रोजगार सेवक, शिक्षा मित्र आदि канала Gaw Tak (हर खबर गांव तक)
#आंगनबाड़ीमानदेय
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https://www.livehindustan.com/career/story-decision-on-minimum-wage-for-outsourcing-and-contract-workers-in-one-month-9424339.html
https://www.patrika.com/lucknow-news/40-thousand-outsourced-and-contract-workers-will-be-regularized-the-government-has-started-preparations-19034917
https://www.bhaskar.com/news/latest-bhopal-news-041502-1861345.html
https://hindi.news18.com/news/uttar-pradesh/big-news-contract-outsourcing-employees-up-government-responded-know-what-relief-yogi-adityanath-samvida-karmachari-8047207.html
"हाय दोस्तों, आज हम बात करने जा रहे हैं उत्तर प्रदेश के उन सुपरहीरोज की, जो बिना किसी केप के दिन-रात काम करते हैं, लेकिन इनकी जिंदगी में 'सुपर' कुछ भी नहीं है। हाँ, मैं बात कर रहा हूँ संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों की! ये वो लोग हैं जो सरकार के लिए 'सस्ते सौदे' हैं, लेकिन इनकी समस्याएं सुनकर लगता है कि सरकार ने इन्हें 'सस्ते में टरकाने' का ठेका ले रखा है। तो चलिए, इनकी कहानी शुरू करते हैं
"तो सबसे पहले, इनकी समस्याएं क्या-क्या हैं? नंबर एक—कम सैलरी। ये लोग सुबह से शाम तक काम करते हैं, लेकिन महीने के अंत में जो सैलरी मिलती है, उससे तो शायद लखनऊ की चाट भी ढंग से न खरीदी जाए। दूसरा—नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं। तीसरा कोई सुविधा नहीं। न PF, न ESI, न ही मेडिकल लीव। और हाँ, अगर बीमार पड़ गए, तो इलाज का खर्चा अपनी जेब से, क्योंकि सरकार कहती है, 'हम तो बस काम करवाते हैं, बाकी तुम्हारा देखो!' चौथा—समान काम, समान वेतन का सपना। सुप्रीम कोर्ट तक कह चुका है कि 'Equal Pay for Equal Work' होना चाहिए, लेकिन यूपी में ये नियम सिर्फ किताबों में सजावट के लिए है।"
"अब सवाल ये कि ये संविदा और आउटसोर्स कर्मचारी कौन-कौन हैं? सुनिए—पंचायत सहायक, शिक्षामित्र, रोजगार सेवक, NHM के हेल्थ वर्कर्स, बिजली विभाग के लाइनमैन, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, और चतुर्थ श्रेणी के वो कर्मचारी जो चौकीदार से लेकर ऑफिस असिस्टेंट तक का काम करते हैं। यानी, सरकार के हर डिपार्टमेंट में ये 'ऑलराउंडर' मौजूद हैं, लेकिन इनकी हालत ठीक नहीं है
"अब इनकी सैलरी की बात करते हैं, पंचायत सहायक को 6,000 रुपये, शिक्षामित्र को 10,000 रुपये, और रोजगार सेवक को भी 10,000 रुपये। दूसरी तरफ, न्यूनतम कुशल मजदूरी तय की गई है 24,804 रुपये। मतलब, सरकार खुद मानती है कि कुशल काम का दाम इतना होना चाहिए, लेकिन इन बेचारों को आधे से भी कम! NHM संविदा कर्मचारियों को 12,000-15,000 रुपये मिलते हैं, जबकि नियमित कर्मचारी उसी काम के लिए 60,000 रुपये लेते हैं—चतुर्थ श्रेणी आउटसोर्स कर्मियों को तो सिर्फ 6,500 रुपये मिलते हैं, अब भई, इतने में तो साइकिल भी नहीं मिलती काम कैसे चलेगा?"
"अब सवाल ये कि बाकी राज्यों से कितना कम है और क्यों? बिहार में अकुशल मजदूरी 395 रुपये रोज़ाना यानी 10,270 रुपये महीना है, और कुशल के लिए 500 रुपये रोज़ाना यानी 13,000 रुपये, वही उत्तराखंड में संविदा कर्मियों को नियमित करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है, और वहाँ सैलरी भी यूपी से बेहतर है—Patrika की रिपोर्ट के मुताबिक। तो यूपी में सैलरी कम क्यों? वजह साफ है—बजट की कमी, प्रशासनिक लापरवाही, और सरकार की ' काम तो चलता ही रहेगा ' वाली सोच। सुप्रीम कोर्ट का नियम लागू न करना भी बड़ी वजह है,
"अब सरकार को थोड़ा घेरते हैं, अरे योगी जी, आप तो कहते हैं 'राम राज्य' लाएंगे, लेकिन ये संविदा वाले तो 'राम भरोसे' ही जी रहे हैं! आपके मंत्री सुरेश खन्ना कहते हैं, 'निकाला नहीं जाएगा,' लेकिन सैलरी बढ़ाने की बात आते ही सब 'साइलेंट मोड' में चले जाते हैं भई, अगर बजट नहीं है, तो बुलेट ट्रेन का सपना छोड़ दो, पहले इनके पेट तो भर दो! या फिर ये मान लीजिए कि इनकी सैलरी बढ़ाने से पहले आपका 'डबल इंजन' 'सिंगल इंजन ही है '
"तो दोस्तों, ये थी यूपी के संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों की दास्तान। सरकार से बस इतना कहना है—इनकी सैलरी बढ़ाइए, सुविधाएं दीजिए, ये लोग बेहतर कार्य कर रहे है, अगर ये भी कामचोरी करने लगे तो फिर 'डबल इंजन' की स्पीड सचमुच 'बैलगाड़ी' हो जाएगी! दोस्तो लाइक, शेयर, सब्सक्राइब करें, और इनकी आवाज़ को बुलंद करें। मिलते हैं अगले वीडियो में—जय हिंद!"
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Информация о видео
22 марта 2025 г. 6:10:55
00:05:12
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