नरबलि की प्रथा पर स्थायी प्रतिबंध 🚫 1875 में अंग्रेज़ सरकार ने याचिका मंजूर की थी @vidhivaani-Law
नरबलि की प्रथा पर स्थायी प्रतिबंध 🚫 1875 में अंग्रेज़ सरकार ने याचिका मंजूर की थी @vidhivaani-Law
भारत की भूमि पर सदियों से चली आ रही नरबलि की प्रथा (Human Sacrifice Practice) को समाप्त करवाने वाले वीर समाज सुधारकों की यह सच्ची कहानी है।
अंग्रेज़ सरकार के शासनकाल में गुजरात के उनावा गांव के नागर दंपत्ति ने इस कुप्रथा के विरुद्ध याचिका दाखिल कर स्थायी प्रतिबंध लगवाया।
यह वीडियो दिखाता है कि कैसे धर्म और मानवता के बीच संघर्ष में न्याय और परिवर्तन की जीत हुई।
देखिए पूरी कहानी और जानिए भारत की इस अविस्मरणीय सामाजिक क्रांति के बारे में।
*उनावा गांव में नरबलि की प्रथा पर 1875 में याचिका को मंजूर करते हुए ब्रिटिश सरकार द्वारा स्थायी प्रतिबंध लगाया गया था*
उनावा और रूपाल गांव की सत्य घटना जो आज भी लाखो लोग देखने आते हैं जिसे आजतक,एनडीटीवी, Zee टीवी आदि चैनलों पर प्रसारित कर चुके हैं ! इस महान घटनाओं की साक्षी मैं भी हूँ इसीलिए आज मैं आपको इसे विस्तार से बताने की कोशिश कर रही हूँ!
*रूपाल मतलब घी की नदियाँ बहाने वाला पूरे विश्व 🌍 का एक मात्र गाँव !* गांधीनगर जिल्ले के रूपाल गाँव में पल्ली उत्सव मनाया जाता है। इस उत्सव की शुरुआत महाभारत काल में "पांडवों" ने की थी। लोग गाँव में आते हैं और अपने परिवार, खासकर अपने बच्चों के लिए प्रार्थना करते हैं। इसी दिन "खिजड़ा" वृक्ष की लकड़ी से "पल्ली" बनाई जाती है।
रूपाल गांव के अत्यंत प्रसिद्ध वरदायिनी माताजी की पल्ली पर 50 करोड़ से भी अधिक घी का अभिषेक किया गया , पल्ली जहां से भी गुजरी वहां घी की नदियां बहने का दृश्य निर्मित हो जाता हैं, गांव की परंपरा के अनुसार इस घी का उपयोग गांव के ही विशेष समुदाय के लोग करते हैं ! इस समाज के लोग पल्ली से गुजरते ही बर्तनों में घी भर लेते हैं ! कई श्रद्धालुओं द्वारा मन्नत पूरी करने के लिए घी चढ़ाया जाता है ! पांडव काल से चली आ रही पल्ली की यह परंपरा आज भी कायम है।
*उनावा गांव यानि कि अंगारों को पुष्प समझने वाला नागर परिवार* और सबसे बड़ी बात तो यह है कि उनावा गाँव में भोपा जिसे गुजराती में भुवा पड़ना यानी की गुग्गल वाले जलते हुए अग्निकुण्ड में भूवाजी का अंगारे हाथ में लेना , अंगारों से पुष्पों के जैसे खेलना , एडवोकेट श्री अशोककुमार महेता जी के हाथ में जलते अंगारे देना ,उसके बाद ही रूपाल की पल्ली में घी चढ़ाया जाएगा तभी पल्ली की शुरुआत होगी ! उनावा गाँव के भोपे मेरे दादा का नाम लेते हुए सेकंडों भक्तों को आशीर्वाद भी अनोखे तरीक़े से देते है , जैसे कि मैं सोमालाल महेता की कालिका माँ बोल रही हूँ , गाँव वालो सब खुश रहो ! और मैं बचपन से देखती आ रही हूँ मेरे पापा यानि कि एडवोकेट अशोककुमार महेता जी जलते हुए अंगारों को ठंडे पुष्पों की भाँति अपने हाथों में लेकर यज्ञ में अर्पित करते हैं!
धन्य है हमारे पूर्वज जिन्होंने 1875 में ब्रिटिश सरकार से नरबलि / मानव बलि यज्ञ को रोकने की याचिका दायर की थी जिसके तहत बेचर नागर और रलियत बा, नागर दंपति को कई दिनों तक हिरासत में भी रखा गया था लेकिन उनपर माँ कालिका देवी की जी की विशेष कृपा होने के कारण उनकी याचिका सरकार को मंज़ूर करनी ही पड़ी और इस परंपरा पर स्थायी प्रतिबंध 🚫 लगा दिया गया ! उसके पहले की घटना यह थी कि भीम महेता जी ने मुस्लिम आतंकि हिन्दू देवी देवताओं को खण्डित कर रहे थे तो माताजी की मूर्ति को भीम जी महेता ने जमीन में गाढ़ दिया और फिर कई वर्षों बाद सोमलाल महेता जी को महाकाली माता जी ने स्वप्न में आकर बताया कि मैं इस जगह जमीन के नीचे 👇🏻 हूँ मुझे बाहर निकालो तबसे सोमलाल महेता जी और कालिका माँ आमने सामने बैठकर बातें करते थे वो ही परंपरा उनके छोटे पुत्र अशोक कुमार महेता जी निभा रहे हैं । तब से हर साल होने वाली मानव बलि की प्रथा पर रोक लग गई वरना आज भी अंधश्रद्धा को बढ़ावा मिलता रहता और एक निर्दोष मानव की बलि चढ़ती रहती! बेचर नागर के परिवार के सदस्य यज्ञ में शामिल होते हैं तभी यज्ञ सम्पूर्ण माना जाता ! कई वर्षों से उनकी सातवीं पीढ़ी के उत्तराधिकारी एडवोकेट श्री अशोककुमार महेता जिनकी उम्र 80 वर्ष है वो इस यज्ञ में जलते हुए अंगारों से पुष्पांजलि अर्पित करते हैं ! अशोककुमार महेता जी का घर विशिष्ट पवित्र भूमि है क्यूंकि उनके घर पर ख़ुद स्वामीनारायण भगवान आशीर्वाद देने आए थे और प्रसादी स्वरूप थाली, लोटा, माला, पोथी, सिक्के आदि अशोकभाई के पूर्वजों को देकर गए थे ! जिसका साक्षी पूरा उनावा गाँव और आसपास का क्षेत्र है क्यूंकि हमने गाँव के बड़े बुजुर्गों के मुँह से यह पूरी सत्य घटनाये सुनी हैं ! और आज भी देवी देवताओं की विशेष कृपा का आभास मेरी पवित्र जन्मभूमि पर आने वाले हर सनातनी श्रद्धालुओं को हमारे घर में महसूस होता है !
विश्व के सबसे पुराने मैगज़ीन नागर बंधु के तंत्री श्री अशोक कुमार महेता और सहतंत्री श्रीमती मयूना बेन महेता जी दोनों ने मिलकर यानी कि मेरे माता पिता ने हजारों ग़रीब लड़का लड़कियों की शादी एवं ग़रीब नागर परिवार के सदस्यों की मुफ्त में दवाई 💊 वितरण जैसे महान कार्य का अभियान आज भी जारी रखा है!
विषय: नरबलि प्रथा, ब्रिटिश शासन, भारतीय संस्कृति, सुधार आंदोलन, गुजरात इतिहास
🎥 प्रेरणा: समाज सुधार, भारतीय विरासत, सांस्कृतिक पहचान
#NarBali #IndianHistory #Culture #Reform #India #Unava #BhuvaMataji #Tradition #Truth #Gujarat #Society #Inspiration
Видео नरबलि की प्रथा पर स्थायी प्रतिबंध 🚫 1875 में अंग्रेज़ सरकार ने याचिका मंजूर की थी @vidhivaani-Law канала Vidhi Vaani
भारत की भूमि पर सदियों से चली आ रही नरबलि की प्रथा (Human Sacrifice Practice) को समाप्त करवाने वाले वीर समाज सुधारकों की यह सच्ची कहानी है।
अंग्रेज़ सरकार के शासनकाल में गुजरात के उनावा गांव के नागर दंपत्ति ने इस कुप्रथा के विरुद्ध याचिका दाखिल कर स्थायी प्रतिबंध लगवाया।
यह वीडियो दिखाता है कि कैसे धर्म और मानवता के बीच संघर्ष में न्याय और परिवर्तन की जीत हुई।
देखिए पूरी कहानी और जानिए भारत की इस अविस्मरणीय सामाजिक क्रांति के बारे में।
*उनावा गांव में नरबलि की प्रथा पर 1875 में याचिका को मंजूर करते हुए ब्रिटिश सरकार द्वारा स्थायी प्रतिबंध लगाया गया था*
उनावा और रूपाल गांव की सत्य घटना जो आज भी लाखो लोग देखने आते हैं जिसे आजतक,एनडीटीवी, Zee टीवी आदि चैनलों पर प्रसारित कर चुके हैं ! इस महान घटनाओं की साक्षी मैं भी हूँ इसीलिए आज मैं आपको इसे विस्तार से बताने की कोशिश कर रही हूँ!
*रूपाल मतलब घी की नदियाँ बहाने वाला पूरे विश्व 🌍 का एक मात्र गाँव !* गांधीनगर जिल्ले के रूपाल गाँव में पल्ली उत्सव मनाया जाता है। इस उत्सव की शुरुआत महाभारत काल में "पांडवों" ने की थी। लोग गाँव में आते हैं और अपने परिवार, खासकर अपने बच्चों के लिए प्रार्थना करते हैं। इसी दिन "खिजड़ा" वृक्ष की लकड़ी से "पल्ली" बनाई जाती है।
रूपाल गांव के अत्यंत प्रसिद्ध वरदायिनी माताजी की पल्ली पर 50 करोड़ से भी अधिक घी का अभिषेक किया गया , पल्ली जहां से भी गुजरी वहां घी की नदियां बहने का दृश्य निर्मित हो जाता हैं, गांव की परंपरा के अनुसार इस घी का उपयोग गांव के ही विशेष समुदाय के लोग करते हैं ! इस समाज के लोग पल्ली से गुजरते ही बर्तनों में घी भर लेते हैं ! कई श्रद्धालुओं द्वारा मन्नत पूरी करने के लिए घी चढ़ाया जाता है ! पांडव काल से चली आ रही पल्ली की यह परंपरा आज भी कायम है।
*उनावा गांव यानि कि अंगारों को पुष्प समझने वाला नागर परिवार* और सबसे बड़ी बात तो यह है कि उनावा गाँव में भोपा जिसे गुजराती में भुवा पड़ना यानी की गुग्गल वाले जलते हुए अग्निकुण्ड में भूवाजी का अंगारे हाथ में लेना , अंगारों से पुष्पों के जैसे खेलना , एडवोकेट श्री अशोककुमार महेता जी के हाथ में जलते अंगारे देना ,उसके बाद ही रूपाल की पल्ली में घी चढ़ाया जाएगा तभी पल्ली की शुरुआत होगी ! उनावा गाँव के भोपे मेरे दादा का नाम लेते हुए सेकंडों भक्तों को आशीर्वाद भी अनोखे तरीक़े से देते है , जैसे कि मैं सोमालाल महेता की कालिका माँ बोल रही हूँ , गाँव वालो सब खुश रहो ! और मैं बचपन से देखती आ रही हूँ मेरे पापा यानि कि एडवोकेट अशोककुमार महेता जी जलते हुए अंगारों को ठंडे पुष्पों की भाँति अपने हाथों में लेकर यज्ञ में अर्पित करते हैं!
धन्य है हमारे पूर्वज जिन्होंने 1875 में ब्रिटिश सरकार से नरबलि / मानव बलि यज्ञ को रोकने की याचिका दायर की थी जिसके तहत बेचर नागर और रलियत बा, नागर दंपति को कई दिनों तक हिरासत में भी रखा गया था लेकिन उनपर माँ कालिका देवी की जी की विशेष कृपा होने के कारण उनकी याचिका सरकार को मंज़ूर करनी ही पड़ी और इस परंपरा पर स्थायी प्रतिबंध 🚫 लगा दिया गया ! उसके पहले की घटना यह थी कि भीम महेता जी ने मुस्लिम आतंकि हिन्दू देवी देवताओं को खण्डित कर रहे थे तो माताजी की मूर्ति को भीम जी महेता ने जमीन में गाढ़ दिया और फिर कई वर्षों बाद सोमलाल महेता जी को महाकाली माता जी ने स्वप्न में आकर बताया कि मैं इस जगह जमीन के नीचे 👇🏻 हूँ मुझे बाहर निकालो तबसे सोमलाल महेता जी और कालिका माँ आमने सामने बैठकर बातें करते थे वो ही परंपरा उनके छोटे पुत्र अशोक कुमार महेता जी निभा रहे हैं । तब से हर साल होने वाली मानव बलि की प्रथा पर रोक लग गई वरना आज भी अंधश्रद्धा को बढ़ावा मिलता रहता और एक निर्दोष मानव की बलि चढ़ती रहती! बेचर नागर के परिवार के सदस्य यज्ञ में शामिल होते हैं तभी यज्ञ सम्पूर्ण माना जाता ! कई वर्षों से उनकी सातवीं पीढ़ी के उत्तराधिकारी एडवोकेट श्री अशोककुमार महेता जिनकी उम्र 80 वर्ष है वो इस यज्ञ में जलते हुए अंगारों से पुष्पांजलि अर्पित करते हैं ! अशोककुमार महेता जी का घर विशिष्ट पवित्र भूमि है क्यूंकि उनके घर पर ख़ुद स्वामीनारायण भगवान आशीर्वाद देने आए थे और प्रसादी स्वरूप थाली, लोटा, माला, पोथी, सिक्के आदि अशोकभाई के पूर्वजों को देकर गए थे ! जिसका साक्षी पूरा उनावा गाँव और आसपास का क्षेत्र है क्यूंकि हमने गाँव के बड़े बुजुर्गों के मुँह से यह पूरी सत्य घटनाये सुनी हैं ! और आज भी देवी देवताओं की विशेष कृपा का आभास मेरी पवित्र जन्मभूमि पर आने वाले हर सनातनी श्रद्धालुओं को हमारे घर में महसूस होता है !
विश्व के सबसे पुराने मैगज़ीन नागर बंधु के तंत्री श्री अशोक कुमार महेता और सहतंत्री श्रीमती मयूना बेन महेता जी दोनों ने मिलकर यानी कि मेरे माता पिता ने हजारों ग़रीब लड़का लड़कियों की शादी एवं ग़रीब नागर परिवार के सदस्यों की मुफ्त में दवाई 💊 वितरण जैसे महान कार्य का अभियान आज भी जारी रखा है!
विषय: नरबलि प्रथा, ब्रिटिश शासन, भारतीय संस्कृति, सुधार आंदोलन, गुजरात इतिहास
🎥 प्रेरणा: समाज सुधार, भारतीय विरासत, सांस्कृतिक पहचान
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Видео नरबलि की प्रथा पर स्थायी प्रतिबंध 🚫 1875 में अंग्रेज़ सरकार ने याचिका मंजूर की थी @vidhivaani-Law канала Vidhi Vaani
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7 октября 2025 г. 20:05:41
00:15:31
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