#Video सातवाँ नवरात्र स्पेशल : आज के दिन कालरात्रि माता की चमत्कारी कथा जरूर सुने
माँ कालरात्रि, माँ दुर्गा के सातवें स्वरूप हैं, जिन्हें देवी के सबसे उग्र और भयावह रूप में माना जाता है। वे अंधकार और बुरी शक्तियों का नाश करने वाली हैं। उनकी उपासना नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय दानवों का राजा शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज नामक महादैत्य ने तीनों लोकों पर आतंक मचा रखा था। उन्होंने स्वर्गलोक पर भी अधिकार कर लिया और देवताओं को निष्कासित कर दिया। देवताओं ने मिलकर माँ दुर्गा से प्रार्थना की कि वे इन असुरों का संहार करें।
माँ दुर्गा ने अपने तेज से एक अत्यंत भयानक और शक्तिशाली देवी को प्रकट किया। यह देवी थी माँ कालरात्रि। उनका रंग काजल के समान काला था, वे खुले बालों वाली थीं, और उनके चार हाथ थे। उनके एक हाथ में खड्ग (तलवार) और दूसरे में लौ जलती हुई मशाल थी। अन्य दो हाथ वर और अभय मुद्रा में थे। उनका रूप इतना भयंकर था कि उन्हें देखकर ही राक्षस भयभीत हो गए।
जब माँ कालरात्रि युद्धभूमि में पहुंचीं, तो उन्होंने असुरों का संहार करना शुरू किया। जैसे ही उन्होंने रक्तबीज को मारने के लिए वार किया, उसके शरीर से गिरा हर रक्तकण नया रक्तबीज बना देता था। इससे युद्ध और कठिन हो गया। तब माँ कालरात्रि ने एक विकराल रूप धारण किया और रक्तबीज का सारा रक्त अपने मुख में पी लिया। इस प्रकार रक्तबीज का अंत हुआ और देवताओं को शुंभ-निशुंभ के आतंक से मुक्ति मिली।
माँ कालरात्रि को संहार और विनाश की देवी माना जाता है, लेकिन वे भक्तों के लिए अत्यंत दयालु और शुभ फल देने वाली हैं। उनके पूजन से सभी प्रकार के भय, नकारात्मक ऊर्जा, और बाधाओं से मुक्ति मिलती है। वे साधकों को आध्यात्मिक उन्नति का आशीर्वाद भी प्रदान करती हैं।
"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नमः।"
माँ कालरात्रि की उपासना करने से शत्रुओं का नाश होता है और जीवन में आने वाली विपत्तियाँ दूर होती हैं। उनका स्मरण करने से व्यक्ति निर्भय और आत्मविश्वास से भर जाता है।
"जय माता दी!"
सातवाँ नवरात्र स्पेशल : आज के दिन कालरात्रि माता की चमत्कारी कथा जरूर सुने
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पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय दानवों का राजा शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज नामक महादैत्य ने तीनों लोकों पर आतंक मचा रखा था। उन्होंने स्वर्गलोक पर भी अधिकार कर लिया और देवताओं को निष्कासित कर दिया। देवताओं ने मिलकर माँ दुर्गा से प्रार्थना की कि वे इन असुरों का संहार करें।
माँ दुर्गा ने अपने तेज से एक अत्यंत भयानक और शक्तिशाली देवी को प्रकट किया। यह देवी थी माँ कालरात्रि। उनका रंग काजल के समान काला था, वे खुले बालों वाली थीं, और उनके चार हाथ थे। उनके एक हाथ में खड्ग (तलवार) और दूसरे में लौ जलती हुई मशाल थी। अन्य दो हाथ वर और अभय मुद्रा में थे। उनका रूप इतना भयंकर था कि उन्हें देखकर ही राक्षस भयभीत हो गए।
जब माँ कालरात्रि युद्धभूमि में पहुंचीं, तो उन्होंने असुरों का संहार करना शुरू किया। जैसे ही उन्होंने रक्तबीज को मारने के लिए वार किया, उसके शरीर से गिरा हर रक्तकण नया रक्तबीज बना देता था। इससे युद्ध और कठिन हो गया। तब माँ कालरात्रि ने एक विकराल रूप धारण किया और रक्तबीज का सारा रक्त अपने मुख में पी लिया। इस प्रकार रक्तबीज का अंत हुआ और देवताओं को शुंभ-निशुंभ के आतंक से मुक्ति मिली।
माँ कालरात्रि को संहार और विनाश की देवी माना जाता है, लेकिन वे भक्तों के लिए अत्यंत दयालु और शुभ फल देने वाली हैं। उनके पूजन से सभी प्रकार के भय, नकारात्मक ऊर्जा, और बाधाओं से मुक्ति मिलती है। वे साधकों को आध्यात्मिक उन्नति का आशीर्वाद भी प्रदान करती हैं।
"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नमः।"
माँ कालरात्रि की उपासना करने से शत्रुओं का नाश होता है और जीवन में आने वाली विपत्तियाँ दूर होती हैं। उनका स्मरण करने से व्यक्ति निर्भय और आत्मविश्वास से भर जाता है।
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5 апреля 2025 г. 5:25:20
00:01:40
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