मुंबई का एक लोकल गुंड़ा कैसे बना बॉलीवुड का जग्गू दादा देखिये पूरी कहानी। ..
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अगर किसी में कुछ करने का जज्बा और हुनर हो तो भला उसे कोन रोक सकता है। दोस्तो आज हम आपको जिस शख्सियत के बारे में बताने जा रहे हैं वो कभी मुंबई की गलियों में दादागिरि किया करता था... अपने जीवन की गाड़ी चलाने के लिये उसने ट्रक ड्राईवरी भी की.... लेकिन जब मौका मिला सफल होने का तो उसे भूनाते हुए मायानगरी का चमकता सितारा बन गया... दरअसल हुआ यूं कि देवानंद साहब साल 1982 में अपनी फिल्म 'स्वामी दादा' की शूटिंग मुंबई की एक लोकल कॉलोनी में कर रहे थे। शूटिंग देखने के लये काफी भीड़ जमा थी। इसी भीड़ में वहां का एक लोकल गुंड़ा भी खड़ा था जिसके हुलिया बाकी लोगों से कुछ अलैहदा था। देव साहब की नजर उस पर पड़ी। उन्होंने उसे बुलाया और एक छोटा सा रोल करने के लिए कहा। उस गुंडे ने ये रोल किया और कुछ इस तरह से किया न सिर्फ फिल्म स्वामी दादा में बल्कि हिंदी सिनेमा में हमेशा हमेशा के लिये अपनी जगह पक्की कर ली। ये लोकल गुंड़ा कोई और नही बल्कि अपने जग्गू दादा था जिन्हैं हम सब आज जैकी श्राफ के नाम से जानते हैं।
फिल्मी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखने वाले जैकी श्रॉफ का जन्म 1 फरवरी साल 1957 को महाराष्ट्र के लातूर जिले के उद्गीर में हुआ था। इनका पूरा नाम है जयकिशन काकुभाई श्रॉफ। जैकी के पिता काकाभाई हरीभाई श्रॉफ एक गुजराती थे और उनकी माता रीता कजाकिस्तान की तुर्क थीं। जैकी का परिवार मुंबई के मालाबार हिल के तीन बत्ती एरिया में रहता था। इनके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न थी ईसलिए ये ज्यादा पढ़ लिख न सके। जैकी से बड़ा एक भाई और था...जो कभी उस चाल का असली दादा हुआ करता था। हमेशा गरीबों की मदद करने वाला जैकी का ये भाई, एक दफा किसी को बचाने के लिये समुद्र में कूद गया जबकि खुद तैरना तक नहीं जानता था। और इस तरह उसने अपना जान गंवा दी। भाई की अचानक मौत के बाद जैकी ने उसकी जगह ली और बस्ती में भलाई का काम करने लगे। इस तरह से जैकी, जग्गु दादा बन गये। जैकी श्रॉफ स्टाइल और कुकिंग में काफी दिलचस्पी रखते थे और शेफ बनना चाहते थे लेकिन डिग्री न होने के कारण, ऐसा न कर सके। इसके बाद इन्होने एयर इंडिया में फ्लाइट अटेंडेंट बनने की कोशिश की परंतु इनकी कम शिक्षा इसमें भी बाधा बन गयी। जैकी के पिता एक प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य थे और जैकी के बचपन में ही उन्होंने अपने बेटे के बड़ा सितारा बनने की भविष्यवाणी कर दी थी। भाग्य ने करवट ली। एक बार जब जैकी बस स्टॉप पर बस का इंतजार कर रहे थे तब एक आदमी ने इन्हैं मॉडलिंग का ऑफर दिया। अच्छे पैसा मिलाता देख जैकी ने भी हामी भर दी। और इस तरह जैकी के सितारा बनने की शुरूआत हुई।
जैकी का भाग्य जोरों पर था। साल 1982 में भरी भीड़ में से ये देव साहब को पसंद आ गये और उनकी फिल्म स्वामी दादा में काम भी मिल गया। इसके बाद जैकी फिल्मों में ही काम तलाशने लगे। अब इसे जैकी का नसीब ही तो कहेंगे कि उस समय मशहूर निर्देशक सुभाष घई स्टार सन्स से परेशान होकर अपनी फिल्म हीरो के लिये किसी नए चेहरे की तलाश में थे। ये फिल्म जैकी श्राफ को मिली। इसमें इनकी जोड़ी नवोदित अदाकार मीनाक्षी शेषाद्री के साथ बनायी गयी। सुभाष घई को जयकिशन नाम पुराना और बड़ा लगा इसलिये उन्होंने इसे 'जैकी' कर दिया। फिल्म हीरो साल 1983 की अत्यंत ही सफल फिल्म रही। हीरो' की सफलता के बाद बॉलीवुड में भी जैकी श्रॉफ की दादागिरि चल निकली। इसके बाद जैकी ने 'अंदर बाहर' 'जूनून' और 'युद्ध' जैसी सफल फिल्में की। साल 1986 में जैकी श्रॉफ की फिल्म 'कर्मा' आयी। फिल्म ने सिर्फ ब्लॉकबस्टर साबित हुयी बल्कि उस साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म रही। जैकी का सिक्का अब पूरी तरह चल चुका था। आगे के सालों में खलनायक, राम-लखन, तेरी महरबानियां, गर्दिश और किशन-कन्हैया जैसी फिल्मों से जैकी ने मायानगरी में धूम मचा दी। अब आलम तो ये था कि निर्देशक स्टारकास्ट बदलकर जैकी को साईन करन लगे। 'किंग अंकल' और 'अल्लाह रखा' ऐसी फिल्में हैं जिनमें निर्देशक की ओरिजिनल चॉइस अमिताभ बच्चन थे, लेकिन बाद में ये फिल्में जैकी श्रॉफ के खाते में आईं। लगातार सफलता के बाद अब समय था जैकी की प्रतिभा को सम्मान मिलने का। साल 1989 में आई फिल्म 'परिंदा' ने जैकी के करियर में एक नई ऊंचाई दी जैकी को इस फिल्म के लिए बेस्ट एक्टर का 'फिल्मफेयर अवॉर्ड' दिया गया। इसके बाद साल 1994 में आयी फिल्म '1942: अ लव स्टोरी' और साल 1995 में आयी रामगोपाल वर्मा की फिल्म 'रंगीला' के लिए जैकी श्रॉफ को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का 'फिल्मफेयर अवॉर्ड' दिया गया।
जैकी श्राफ का फिल्मों में एक तकिया कलाम भी रहा है भीड़ू..
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अगर किसी में कुछ करने का जज्बा और हुनर हो तो भला उसे कोन रोक सकता है। दोस्तो आज हम आपको जिस शख्सियत के बारे में बताने जा रहे हैं वो कभी मुंबई की गलियों में दादागिरि किया करता था... अपने जीवन की गाड़ी चलाने के लिये उसने ट्रक ड्राईवरी भी की.... लेकिन जब मौका मिला सफल होने का तो उसे भूनाते हुए मायानगरी का चमकता सितारा बन गया... दरअसल हुआ यूं कि देवानंद साहब साल 1982 में अपनी फिल्म 'स्वामी दादा' की शूटिंग मुंबई की एक लोकल कॉलोनी में कर रहे थे। शूटिंग देखने के लये काफी भीड़ जमा थी। इसी भीड़ में वहां का एक लोकल गुंड़ा भी खड़ा था जिसके हुलिया बाकी लोगों से कुछ अलैहदा था। देव साहब की नजर उस पर पड़ी। उन्होंने उसे बुलाया और एक छोटा सा रोल करने के लिए कहा। उस गुंडे ने ये रोल किया और कुछ इस तरह से किया न सिर्फ फिल्म स्वामी दादा में बल्कि हिंदी सिनेमा में हमेशा हमेशा के लिये अपनी जगह पक्की कर ली। ये लोकल गुंड़ा कोई और नही बल्कि अपने जग्गू दादा था जिन्हैं हम सब आज जैकी श्राफ के नाम से जानते हैं।
फिल्मी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखने वाले जैकी श्रॉफ का जन्म 1 फरवरी साल 1957 को महाराष्ट्र के लातूर जिले के उद्गीर में हुआ था। इनका पूरा नाम है जयकिशन काकुभाई श्रॉफ। जैकी के पिता काकाभाई हरीभाई श्रॉफ एक गुजराती थे और उनकी माता रीता कजाकिस्तान की तुर्क थीं। जैकी का परिवार मुंबई के मालाबार हिल के तीन बत्ती एरिया में रहता था। इनके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न थी ईसलिए ये ज्यादा पढ़ लिख न सके। जैकी से बड़ा एक भाई और था...जो कभी उस चाल का असली दादा हुआ करता था। हमेशा गरीबों की मदद करने वाला जैकी का ये भाई, एक दफा किसी को बचाने के लिये समुद्र में कूद गया जबकि खुद तैरना तक नहीं जानता था। और इस तरह उसने अपना जान गंवा दी। भाई की अचानक मौत के बाद जैकी ने उसकी जगह ली और बस्ती में भलाई का काम करने लगे। इस तरह से जैकी, जग्गु दादा बन गये। जैकी श्रॉफ स्टाइल और कुकिंग में काफी दिलचस्पी रखते थे और शेफ बनना चाहते थे लेकिन डिग्री न होने के कारण, ऐसा न कर सके। इसके बाद इन्होने एयर इंडिया में फ्लाइट अटेंडेंट बनने की कोशिश की परंतु इनकी कम शिक्षा इसमें भी बाधा बन गयी। जैकी के पिता एक प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य थे और जैकी के बचपन में ही उन्होंने अपने बेटे के बड़ा सितारा बनने की भविष्यवाणी कर दी थी। भाग्य ने करवट ली। एक बार जब जैकी बस स्टॉप पर बस का इंतजार कर रहे थे तब एक आदमी ने इन्हैं मॉडलिंग का ऑफर दिया। अच्छे पैसा मिलाता देख जैकी ने भी हामी भर दी। और इस तरह जैकी के सितारा बनने की शुरूआत हुई।
जैकी का भाग्य जोरों पर था। साल 1982 में भरी भीड़ में से ये देव साहब को पसंद आ गये और उनकी फिल्म स्वामी दादा में काम भी मिल गया। इसके बाद जैकी फिल्मों में ही काम तलाशने लगे। अब इसे जैकी का नसीब ही तो कहेंगे कि उस समय मशहूर निर्देशक सुभाष घई स्टार सन्स से परेशान होकर अपनी फिल्म हीरो के लिये किसी नए चेहरे की तलाश में थे। ये फिल्म जैकी श्राफ को मिली। इसमें इनकी जोड़ी नवोदित अदाकार मीनाक्षी शेषाद्री के साथ बनायी गयी। सुभाष घई को जयकिशन नाम पुराना और बड़ा लगा इसलिये उन्होंने इसे 'जैकी' कर दिया। फिल्म हीरो साल 1983 की अत्यंत ही सफल फिल्म रही। हीरो' की सफलता के बाद बॉलीवुड में भी जैकी श्रॉफ की दादागिरि चल निकली। इसके बाद जैकी ने 'अंदर बाहर' 'जूनून' और 'युद्ध' जैसी सफल फिल्में की। साल 1986 में जैकी श्रॉफ की फिल्म 'कर्मा' आयी। फिल्म ने सिर्फ ब्लॉकबस्टर साबित हुयी बल्कि उस साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म रही। जैकी का सिक्का अब पूरी तरह चल चुका था। आगे के सालों में खलनायक, राम-लखन, तेरी महरबानियां, गर्दिश और किशन-कन्हैया जैसी फिल्मों से जैकी ने मायानगरी में धूम मचा दी। अब आलम तो ये था कि निर्देशक स्टारकास्ट बदलकर जैकी को साईन करन लगे। 'किंग अंकल' और 'अल्लाह रखा' ऐसी फिल्में हैं जिनमें निर्देशक की ओरिजिनल चॉइस अमिताभ बच्चन थे, लेकिन बाद में ये फिल्में जैकी श्रॉफ के खाते में आईं। लगातार सफलता के बाद अब समय था जैकी की प्रतिभा को सम्मान मिलने का। साल 1989 में आई फिल्म 'परिंदा' ने जैकी के करियर में एक नई ऊंचाई दी जैकी को इस फिल्म के लिए बेस्ट एक्टर का 'फिल्मफेयर अवॉर्ड' दिया गया। इसके बाद साल 1994 में आयी फिल्म '1942: अ लव स्टोरी' और साल 1995 में आयी रामगोपाल वर्मा की फिल्म 'रंगीला' के लिए जैकी श्रॉफ को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का 'फिल्मफेयर अवॉर्ड' दिया गया।
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