11 वेग को रोकेंगे तो हो सकते हैं भयंकर रोग -11 Veg Ko Rokenge To Ho Sakte Hain Bhayankar Rog ! HD !
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दैनिक दिनचर्या में रोके नहीं सामान्य शारीरीक वेग
नहीं तो हो सकते हैं गंभीर रोग...
यह तो हम सभी के अनुभव में आया है कि भूख लगने पर जब भोजन आदि नहीं किया जाता, तो एकदम कमजोरी आने लगती है, प्यास लगने पर पानी न पीने से शरीर बेजान सा महसूस होता है तथा चक्कर, मूर्च्छा आदि भी आ सकते हैं । इसी प्रकार छींक, खाँसी, डकार, जम्हाई, मूत्रवेग, मलवेग, अपानवायु का वेग, वमन का वेग, तीव्रश्वास का वेग, निद्रा का वेग, भूख का वेग, प्यास का वेग इन्हें स्वाभाविक वेग कहा जाता है । प्रत्येक चेतन प्राणी में ये क्रियाएँ स्वाभाविक पाये जाते हैं, जो समय-समय पर वेगों के रूप में अपने आप प्रकट होते हैं । इनकी समय पर निवृत्ति न करने से अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हैं । जो गंभीर भी हो सकते हैं । आईये जानते हैं इन वेगों के बारे में विस्तार से ।
अब आईये जानते हैं इन वेगों को रोकने से क्या क्या बिमारियाँ हो सकती हैं जो आगे चलके गंभीर रूप भी ले सकती हैं ।
1. छींक का वेगरोध -
छींक का वेग रोकने से सिर दर्द होता है, तथा इंद्रियाँ दुर्बल बनती हैं । जिससे गर्दन अकड जाती है । आर्दित नामक वायुरोग अर्थात मुँह का पक्षाघात(लकवा), आधासीसी का दर्द, नेत्र आदि इन्द्रियों में कमजोरी आदि उत्पन्न हो सकते हैं। इसलिए स्वाभाविक छींक के इस वेग को रोकना नहीं चाहिए ।
2. खाँसी का वेग –
खाँसी एक सामान्य वेग है जिसको रोकने से खाँसी की वृद्धि होती है, साथ ही खाँसी को रोकने से दमा, अरुचि, हृदय के रोग, क्षयरोग, हिचकी, श्वासनलिका के और फेफडों के रोग हो सकते हैं ।
3. डकार का वेग –
डकार का वेग रोकने से हिचकी, सांस फूलना, शरीर अथवा किसी अंग का कम्पन, भोजन में अरुचि, हृदय और फेफड़ों की क्रियाओं का धीमा पड़ना, अफारा आदि रोग उत्पन्न हो सकते हैं । इसलिए डकार का वेग रोकना नहीं चाहिए ।
4. जम्हाई का वेग –
जम्भाई का वेग रोकने से शरीर का मुड़ जाना, संकुचन (सिकुड़न जाना), अंगों में सुन्नता, कम्पन आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं । इसलिए इस वेग को रोकना भी शरीर के लिए हितकर नहीं है ।
5. मूत्र का वेगरोध -
मूत्र के वेगरोध अर्थात् मूत्रत्याग की आवश्यकता अनुभव होने पर भी मूत्रत्याग न करने से मूत्राशय, लिंग, पेट के निचले भाग, मूत्रमार्ग, गुर्दो, मूत्रवह-स्रोतों में पीड़ा होती है तथा पेट में अफारा, दर्द, मूत्रत्याग में कठिनाई, सिरदर्द एवं शरीर का झुक जाना, पथरी, अपैंडिक्स आदि जैसी जटिल समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं । इसलिए मुत्रवेग को कभी रोकना नहीं चाहिए और हो सके तो भोजन के पश्चात मूत्रत्याग अवश्य करना चाहिए ।
6. मल का वेगरोध –
मल का वेग होने पर भी मल त्याग न करने से शूल, तीव्र दर्द, सिरदर्द, मल और गैस को त्याग करने में रुकावट, जंघा की पेशियों में ऐंठन, पेट में अफारा, मलद्वार में कैंची से काटने जैसी पीड़ा, हृदय की गति में रुकावट तथा मुख में दुर्गंध आदि शिकायतें उत्पन्न हो जाती हैं । मलत्याग एक स्वाभाविक क्रिया है इसे रोगने से और भी गंभीर बिमारियाँ हो सकती हैं । इसलिए मल का वेग नहीं रोकना चाहिए ।
7. अपानवायु का वेग -
अपानवायु के एकत्र होने पर संकोचवश उसका वेग रोकने से, वात दोष कुपित हो जाता है । इससे मल, मूत्र और गैस को निकालने में रुकावट, पेट में अफारा, दर्द, थकावट, सुस्ती एवं पेट के दूसरे रोग उत्पन्न हो सकते हैं । इससे नेत्ररोग, हृदय की धड़कन में विकृति एवं मन्दाग्नि भी हो सकती है । इसलिए इस अपावनवायु के वेग को नहीं रोकना चाहिए ।
8. तीव्रश्वास का वेगरोध
थकान के कारण या अधिक दौड़ने या अन्य कोई शारीरिक श्रम करने से फूली हुई साँस को जबरदस्ती रोकने का प्रयत्न करने से प्राण और उदान वात कुपित हो जाते हैं । इससे पेट में गोला, आँतों एवं हृदय के रोग, बेचैनी आदि होने लगते हैं । इसलिए तीव्रश्वास का वेग कभी रोकना नहीं चाहिए ।
9. निद्रा का वेग
नींद आने पर उसे हठात् रोक कर जगते रहने से जम्भाइयां, थकावट तथा सुस्ती आदि विकार उत्पन्न हो जाते हैं । सिर में दर्द, आंखों में भारीपन आंखों के नीचे कालापन और चक्कर आना जैसी शिकायतें देखी जाती हैं । इस स्थिति से छुटकारा पाने के लिए पूरा आराम और नींद लेनी चाहिए और हठात नींद को रोकना नहीं चाहिए ।
10. प्यास का वेग
प्यास लगने पर भी जल आदि पेय पदार्थ न पीने से गला और मुख सूखने लगते हैं। बहरापन, थकावट, कमजोरी तथा हृदय में दर्द आदि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं । इसलिए प्यास को रोकना नहीं चाहिए ।
11. भूख का वेग
क्षुधा अर्थात भूख का वेग रोकने से अर्थात् भूख लगने पर भी भोजन न करने से शरीर में कमजोरी और क्षीणता (दुर्बलता) आ जाती है । समय पर भोजन न करने से यकृत् रोग व तद्जन्य दूसरे विकार पैदा हो जाते है । शरीर का रंग बदलने लगता है तथा घबराहट, अरुचि और चक्कर आदि आने लगते हैं। इसलिए भूख का वेग रोकना नहीं चाहिए ।
इस प्रकार स्पष्ट है कि स्वस्थ रहने के लिए इन सब स्वाभाविक वेगों को रोकना नहीं चाहिए इनका ठीक समय पर निस्तारण उचित ढंग से किया जाना चाहिए । इन्हें दबाना नहीं चाहिए। क्योंकि स्वास्थ्य की रक्षा के लिए इन वेगों की तत्काल निवृत्ति करना आवश्यक है ।
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अब आईये जानते हैं इन वेगों को रोकने से क्या क्या बिमारियाँ हो सकती हैं जो आगे चलके गंभीर रूप भी ले सकती हैं ।
1. छींक का वेगरोध -
छींक का वेग रोकने से सिर दर्द होता है, तथा इंद्रियाँ दुर्बल बनती हैं । जिससे गर्दन अकड जाती है । आर्दित नामक वायुरोग अर्थात मुँह का पक्षाघात(लकवा), आधासीसी का दर्द, नेत्र आदि इन्द्रियों में कमजोरी आदि उत्पन्न हो सकते हैं। इसलिए स्वाभाविक छींक के इस वेग को रोकना नहीं चाहिए ।
2. खाँसी का वेग –
खाँसी एक सामान्य वेग है जिसको रोकने से खाँसी की वृद्धि होती है, साथ ही खाँसी को रोकने से दमा, अरुचि, हृदय के रोग, क्षयरोग, हिचकी, श्वासनलिका के और फेफडों के रोग हो सकते हैं ।
3. डकार का वेग –
डकार का वेग रोकने से हिचकी, सांस फूलना, शरीर अथवा किसी अंग का कम्पन, भोजन में अरुचि, हृदय और फेफड़ों की क्रियाओं का धीमा पड़ना, अफारा आदि रोग उत्पन्न हो सकते हैं । इसलिए डकार का वेग रोकना नहीं चाहिए ।
4. जम्हाई का वेग –
जम्भाई का वेग रोकने से शरीर का मुड़ जाना, संकुचन (सिकुड़न जाना), अंगों में सुन्नता, कम्पन आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं । इसलिए इस वेग को रोकना भी शरीर के लिए हितकर नहीं है ।
5. मूत्र का वेगरोध -
मूत्र के वेगरोध अर्थात् मूत्रत्याग की आवश्यकता अनुभव होने पर भी मूत्रत्याग न करने से मूत्राशय, लिंग, पेट के निचले भाग, मूत्रमार्ग, गुर्दो, मूत्रवह-स्रोतों में पीड़ा होती है तथा पेट में अफारा, दर्द, मूत्रत्याग में कठिनाई, सिरदर्द एवं शरीर का झुक जाना, पथरी, अपैंडिक्स आदि जैसी जटिल समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं । इसलिए मुत्रवेग को कभी रोकना नहीं चाहिए और हो सके तो भोजन के पश्चात मूत्रत्याग अवश्य करना चाहिए ।
6. मल का वेगरोध –
मल का वेग होने पर भी मल त्याग न करने से शूल, तीव्र दर्द, सिरदर्द, मल और गैस को त्याग करने में रुकावट, जंघा की पेशियों में ऐंठन, पेट में अफारा, मलद्वार में कैंची से काटने जैसी पीड़ा, हृदय की गति में रुकावट तथा मुख में दुर्गंध आदि शिकायतें उत्पन्न हो जाती हैं । मलत्याग एक स्वाभाविक क्रिया है इसे रोगने से और भी गंभीर बिमारियाँ हो सकती हैं । इसलिए मल का वेग नहीं रोकना चाहिए ।
7. अपानवायु का वेग -
अपानवायु के एकत्र होने पर संकोचवश उसका वेग रोकने से, वात दोष कुपित हो जाता है । इससे मल, मूत्र और गैस को निकालने में रुकावट, पेट में अफारा, दर्द, थकावट, सुस्ती एवं पेट के दूसरे रोग उत्पन्न हो सकते हैं । इससे नेत्ररोग, हृदय की धड़कन में विकृति एवं मन्दाग्नि भी हो सकती है । इसलिए इस अपावनवायु के वेग को नहीं रोकना चाहिए ।
8. तीव्रश्वास का वेगरोध
थकान के कारण या अधिक दौड़ने या अन्य कोई शारीरिक श्रम करने से फूली हुई साँस को जबरदस्ती रोकने का प्रयत्न करने से प्राण और उदान वात कुपित हो जाते हैं । इससे पेट में गोला, आँतों एवं हृदय के रोग, बेचैनी आदि होने लगते हैं । इसलिए तीव्रश्वास का वेग कभी रोकना नहीं चाहिए ।
9. निद्रा का वेग
नींद आने पर उसे हठात् रोक कर जगते रहने से जम्भाइयां, थकावट तथा सुस्ती आदि विकार उत्पन्न हो जाते हैं । सिर में दर्द, आंखों में भारीपन आंखों के नीचे कालापन और चक्कर आना जैसी शिकायतें देखी जाती हैं । इस स्थिति से छुटकारा पाने के लिए पूरा आराम और नींद लेनी चाहिए और हठात नींद को रोकना नहीं चाहिए ।
10. प्यास का वेग
प्यास लगने पर भी जल आदि पेय पदार्थ न पीने से गला और मुख सूखने लगते हैं। बहरापन, थकावट, कमजोरी तथा हृदय में दर्द आदि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं । इसलिए प्यास को रोकना नहीं चाहिए ।
11. भूख का वेग
क्षुधा अर्थात भूख का वेग रोकने से अर्थात् भूख लगने पर भी भोजन न करने से शरीर में कमजोरी और क्षीणता (दुर्बलता) आ जाती है । समय पर भोजन न करने से यकृत् रोग व तद्जन्य दूसरे विकार पैदा हो जाते है । शरीर का रंग बदलने लगता है तथा घबराहट, अरुचि और चक्कर आदि आने लगते हैं। इसलिए भूख का वेग रोकना नहीं चाहिए ।
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