Veer Hanuman ji mandir chomu ( Jaipur)
तो देश—विदेश में लाखों हनुमान मंदिर हैं पर इनमें से कुछ की सिदृध धाम के रूप में ख्याति है। इनमें राजस्थान का सामोद वीर हनुमान मन्दिर भी शामिल है। वीर हनुमानजी का यह प्रसिदृध मन्दिर राज्य की राजधानी जयपुर से मात्र 43 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है| यह मंदिर राजस्थान के सबसे प्रमुख धार्मिक स्थलो में से एक है। हनुमानजी के इस मन्दिर के लिए हरे—भरे रास्तों से होकर गुजरना पडता है। इस मन्दिर में हनुमानजी की 6 फीट की प्रतिमा स्थापित है और यहां भगवान राम का भी अनूठा मंदिर है। चौमू तहसील के ग्राम नांगल भरडा में यह पुराना मंदिर सामोद पर्वत पर स्थित है।सामोद वीर हनुमानजी का मंदिर अपने अनूठेपन के लिए जाना जाता है। पर्वत शिखर पर स्थित हनुमानजी के दर्शन करने के लिए करीब 1100 सीढियां चढना होता है। अजीब बात यह है कि सीढियां की संख्या कितनी है यह आज तक कोई पूरी तरह ठीक से नहीं बता पाया है। हनुमानजी के भक्त उनके दर्शन करने और पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यहां दूर-दूर से आते है। यहां भक्तों के रुकने की व्यवस्था भी है।
सीतारामजी, वीर हनुमान ट्रस्ट सामोद द्वारा यह मंदिर बनाया गया था। हनुमान मंदिर निर्माण के पीछे की कहानी अदृभुत है। मान्यता है कि यहां पर स्थापित होने के लिए खुद हनुमानजी ने ही आकाशवाणी के माध्यम से अपनी इच्छा प्रकट की थी। सामोद निवासी देवीसिंह मीना के मुताबिक लगभग 600 वर्ष पूर्व संत नग्नदास और उनके शिष्य लालदास सामोद पर्वत पर तपस्या करने आए। कहा जाता है कि तपस्या के दौरान एक दिन संत नग्नदास ने आकाशवाणी सुनी— मैं यहां वीर हनुमान के रूप में प्रकट होऊंगा। उसी समय उन्हें पहाड़ी की चट्टान पर साक्षात हनुमान के दर्शन भी हुए। आकाशवाणी और हनुमानजी के दर्शन के बाद संत नग्नदास हनुमान आराधना में लीन हो गए। जिस चट्टान पर उन्हें हनुमानजी के दर्शन प्राप्त हुए थे, उसे वे हनुमानजी की मूर्ति का आकार देने लगे। बाद में मंदिर का निर्माण कराया गया। पहले तो भक्त पहाड़ी के दुर्गम रास्तों से ही दर्शन करने आते थे अब उनकी सुविधा के लिए रोप वे भी लगा दिया गया है।
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सीतारामजी, वीर हनुमान ट्रस्ट सामोद द्वारा यह मंदिर बनाया गया था। हनुमान मंदिर निर्माण के पीछे की कहानी अदृभुत है। मान्यता है कि यहां पर स्थापित होने के लिए खुद हनुमानजी ने ही आकाशवाणी के माध्यम से अपनी इच्छा प्रकट की थी। सामोद निवासी देवीसिंह मीना के मुताबिक लगभग 600 वर्ष पूर्व संत नग्नदास और उनके शिष्य लालदास सामोद पर्वत पर तपस्या करने आए। कहा जाता है कि तपस्या के दौरान एक दिन संत नग्नदास ने आकाशवाणी सुनी— मैं यहां वीर हनुमान के रूप में प्रकट होऊंगा। उसी समय उन्हें पहाड़ी की चट्टान पर साक्षात हनुमान के दर्शन भी हुए। आकाशवाणी और हनुमानजी के दर्शन के बाद संत नग्नदास हनुमान आराधना में लीन हो गए। जिस चट्टान पर उन्हें हनुमानजी के दर्शन प्राप्त हुए थे, उसे वे हनुमानजी की मूर्ति का आकार देने लगे। बाद में मंदिर का निर्माण कराया गया। पहले तो भक्त पहाड़ी के दुर्गम रास्तों से ही दर्शन करने आते थे अब उनकी सुविधा के लिए रोप वे भी लगा दिया गया है।
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