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मैं कौन हूँ?? - श्री रमण महर्षी / Who Am I (Hindi) - Ramana Maharshi

English version is here - https://youtu.be/J2VcZWypI9c
Marathi version is here - https://youtu.be/boIBiqDbMQI
You can download audio MP3 of this audiobook here - https://archive.org/details/WhoAmI-RamanaMaharshiHindiAudiobook

रमण एक मौन उपदेशक थे| उन्हें एक मौनी कहना अधिक उपयुक्त होगा| सामान्तया उपदेश के लिए द्वैत अर्थात उपदेशक एवं उपदेश ग्रहण करने वाले का होना आवश्यक है जबकि रमण के बारे में संबोधित करते हुए एक भक्त ने लिखा – “ शुद्ध अद्वैत सार ” | उनके सीधे एवं गंभीर उपदेश मौन में सम्प्रेषित हुए|

यद्यपि कितने वहाँ थे जो उनके उच्चारित एवं अलिखित शब्दों को सुन या अनुभव कर पाये? भक्तों एवं आगन्तुकों ने उनसे प्रश्न पूछे| अपनी असीम अनुकम्पा से उन्होंने अद्वितीय रुप मे उत्तर दिए जैसा कि निम्नलिखित उद्धरण दर्शाते हैं ।

आनन्द:

समस्त जीव सदैव आनन्द की इच्छा रखते हैं, ऐसा आनन्द जिसमें दु:ख का कोई चिन्ह नहीं हो| जबकि हर व्यक्ति अपने आप से सर्वाधिक प्रेम करता है| इस प्रेम का कारण केवल आनन्द है, इसलिए आनन्द अपने स्वयं के भीतर होना चहिए ।

जबकि उस आनन्द की अनुभूति, गहन निद्रा में जब मन अनुपस्थित रहता तो प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन करता है | उस प्राकृतिक आनन्द की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को अपने स्वयं के बारे में जानना चाहिए | इसके लिए आत्म – विचार – ‘मैं कौन हूँ?’ प्रमुख साधन है |

चेतना:

सत या चित एक मात्र वास्तविकता है | चेतना + जाग्रत को हम जाग्रति कहते हैं | चेतना + नींद को हम निद्रा कहते हैं | चेतना + स्वप्न को हम स्वप्न कहते हैं | चेतना वह परदा है जिस पर सभी तस्वीरें आती एवं जाती हैं | परदा वास्तविक है जबकि तस्वीरें उस पर छाया मात्र हैं |

मन:

मन आत्मा की आश्चर्यजनक शक्ति है | शरीर के भीतर जो मैं के रुप “में” उदित होता है, वह मन है | जब सूक्ष्म मन, मस्तिष्क एवं इन्द्रियों के द्वारा बहिर्मुखी होता है तो स्थूल नाम, रुप की पहचान होती है | जब वह हृदय में रहता है तो नाम, रुप विलुप्त हो जाते है| यदि मन हृदय में रहता है तो ‘मैं’ या अहंकार जो समस्त विचारों का स्रोत है, चला जाता हैं और केवल आत्मा या वास्तविक शाश्वत ‘मैं’ प्रकाशित होगा| जहाँ अहंकार लेशमात्र नहीं होता, वहाँ आत्मा है|

‘मैं कौन हूँ?’ आत्म विचार

समस्त विचारों का स्रोत – ‘मैं’ का विचार है | मन केवल आत्म – विचार – मैं कौन हूँ द्वारा विगलित होगा| ‘मैं कौन हूँ’ का विचार अन्य सभी विचारों को नष्ट कर देगा और अन्त में स्वयं को भी नष्ट कर देता है| यदि दूसरे विचार उदित होते हैं तो उन्हे पूरा हुए दिए बिना तुरन्त खोज करनी चहिए कि किसके लिए ये विचार उदित हुए| चाहे कितनी ही संख्या में विचार उदित क्यों न हो? जैसे ही एक विचार उदित होता है, सतर्क रहते हुए पूछ्ना चाहिए कि ये विचार किसके लिए है? उत्तर होगा मेरे लिए| यदि आप ‘मैं कौन हूँ’; का आत्म-विचार करते हैं तो मन अपने स्रोत पर वापिस पहुँच जायेगा | विचार जो उदित हुआ था, अस्त भी हो जायेगा | इसका आप जितना अधिक अभ्यास करते हैं, मन की अपने स्रोत में निवास करने की शक्ति बढ़ती जाती है|

Видео मैं कौन हूँ?? - श्री रमण महर्षी / Who Am I (Hindi) - Ramana Maharshi канала Sanātanī
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14 мая 2017 г. 9:23:58
00:31:24
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