हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते | Kumar Vishwas | वे बोले दरबार सजाओ | Ve Bole Lyrics | Sahitya Tak
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वे बोले दरबार सजाओ
वे बोले जयकार लगाओ
वे बोले हम जितना बोले
तुम केवल उतना दोहराओ
वाणी पर इतना कैसे अंकुश सहते
हम दिनकर के वंशज चुप कैसे रहते
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते...
वे बोले जो मार्ग चुना था
ठीक नहीं है बदल रहे हैं
मुक्तिवाहि संकल्प गुना था
ठीक नहीं है बदल रहे हैं
हमसे जो जयघोष सुना था
ठीक नहीं है बदल रहे हैं
हम सबने जो ख्वाब बुना था
ठीक नहीं है बदल रहे हैं
इतने बदलावों में मौलिक क्या कहते
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते...
हमने कहा अभी मत बदलो
दुनिया की आशाएं हम हैं
वे बोले अब तो सत्ता की
वरदायी भाषाएं हम हैं
हमने कहा व्यर्थ मत बोलो
गूंगो की भाषाएं हम हैं
वे बोले बस शोर मचाओ
इसी शोर से आये हम हैं
इतने मतभेदों में मन की क्या कहते
हम दिनकर के वंशज चुप कैसे रहते
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते....
हैं महाप्राण के वंशज चुप कैसे रहते...
हमने कहा शत्रु से जूझो
थोड़े और वार तो सह लो
वे बोले ये राजनीति है
तुम भी इसे प्यार से सह लो
हमने कहा उठाओ मस्तक
खुलकर बोलो खुलकर कह लो
बोले इस पर राजमुकुट है
जो भी चाहे जैसे सहलो
इस गीली ज्वाला में हम कब तक दहते
हम दिनकर के वंशज चुप कैसे रहते
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते
हम दिनकर के वंशज चुप कैसे रहते...
हैं महाप्राण के वंशज चुप कैसे रहते... कुमार विश्वास की आवाज में सुनिए उनका यह गीत. इसे उन्होंने साहित्य आजतक के मंच पर पढ़ा था. साहित्य तक पर फिर सुनिए.
............................
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Sahitya Tak आपके पास शब्दों की दुनिया की हर धड़कन के साथ I शब्द जब बनता है साहित्य I वाक्य करते हैं सरगोशियां I जब बन जाती हैं किताबें, रच जाती हैं कविताएं, कहानियां, व्यंग्य, निबंध, लेख, किस्से व उपन्यास I Sahitya Tak अपने दर्शकों के लिये लेकर आ रहा साहित्य के क्षेत्र की हर हलचल I सूरदास, कबीर, तुलसी, भारतेंदु, प्रेमचंद, प्रसाद, निराला, दिनकर, महादेवी से लेकर आज तक सृजित हर उस शब्द की खबर, हर उस सृजन का लेखा, जिससे बन रहा हमारा साहित्य, गढ़ा जा रहा इतिहास, बन रहा हमारा वर्तमान व समाज I साहित्य, सृजन, शब्द, साहित्यकार व साहित्यिक हलचलों से लबरेज दिलचस्प चैनल Sahitya Tak. तुरंत सब्स्क्राइब करें व सुनें दादी मां के किस्से कहानियां ही नहीं, आज के किस्सागो की कहानियां, कविताएं, शेरो-शायरी, ग़ज़ल, कव्वाली, और भी बहुत कुछ I
Sahitya Tak - Welcome to the rich world of Hindi Literature. From books to stories to poetry, essays, novels and more, Sahitya Tak is a melting pot where you will keep abreast of what's the latest in the field of literature. We also delve into our history and culture as we explore literary gems of yesteryears from Surdas, Kabir, Tulsi, Bhartendu, Premchand, Prasad, Nirala, Dinkar, Mahadevi, etc. To know more about how literature shapes our society and reflects our culture subscribe to Sahitya Tak for enriching stories, poems, shayari, ghazals, kawali and much more. Subscribe Sahitya Tak now.
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ठीक नहीं है बदल रहे हैं
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ठीक नहीं है बदल रहे हैं
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हमने कहा अभी मत बदलो
दुनिया की आशाएं हम हैं
वे बोले अब तो सत्ता की
वरदायी भाषाएं हम हैं
हमने कहा व्यर्थ मत बोलो
गूंगो की भाषाएं हम हैं
वे बोले बस शोर मचाओ
इसी शोर से आये हम हैं
इतने मतभेदों में मन की क्या कहते
हम दिनकर के वंशज चुप कैसे रहते
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते....
हैं महाप्राण के वंशज चुप कैसे रहते...
हमने कहा शत्रु से जूझो
थोड़े और वार तो सह लो
वे बोले ये राजनीति है
तुम भी इसे प्यार से सह लो
हमने कहा उठाओ मस्तक
खुलकर बोलो खुलकर कह लो
बोले इस पर राजमुकुट है
जो भी चाहे जैसे सहलो
इस गीली ज्वाला में हम कब तक दहते
हम दिनकर के वंशज चुप कैसे रहते
हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते
हम दिनकर के वंशज चुप कैसे रहते...
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